राजस्थान: दलित नाबालिग से छेड़छाड़ के मामले में समझौते के आधार पर क्या रद्द हो पाई FIR...?

रद्द एफआईआर के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी स्वीकार. राजस्थान के गंगापुर सिटी का मामला, जनवरी 2022 में सरकारी विद्यालय में शिक्षक ने छात्रा से की थी छेड़छाड़.
सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्टफाइल फोटो

जयपुर। राजस्थान के गंगापुर सिटी सदर थाना इलाके के एक गांव के सरकारी विद्यालय में अध्ययनरत नाबालिग दलित छात्रा से छेड़छाड़ के आरोप में शिक्षक के खिलाफ मामला दर्ज हुआ था। इसमें समझौता पत्र के आधार पर एफआईआर रद्द करने के राजस्थान उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट ने स्पेशल लीव पीटिशन (एसएलपी) स्वीकार की है। अधिवक्ता चेतन बैरवा ने तलावड़ा गांव निवासी रामजीलाल बैरवा और जगदीश प्रसाद गुर्जर की ओर से सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। SC ने राजस्थान हाइकोर्ट के फैसले के विरुद्ध दायर जनहित याचिका को एसएलपी में कन्वर्ट कर दिया है।

यह था मामला

अधिवक्ता चेनत बैरवा ने बताया कि 6 जनवरी 2022 को गंगापुर सिटी सदर थाना इलाके के एक गांव के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में वाणिज्य संकाय के लेक्चरर विमल कुमार गुप्ता ने कक्षा में अकेली पाकर दलित छात्रा के साथ छेड़छाड़ की। छात्रा ने इसका विरोध किया तथा कक्षा कक्ष से निकल कर बाहर आ गई। छात्रा के चिल्लाने की आवाज सुनकर अन्य स्टाफकर्मी स्कूल परिसर में जमा हो गए। छात्रा ने आरोपी शिक्षक द्वारा उसके साथ की गई हरकत के बारे में अन्य शिक्षकों को बताया। इस बीच हंगामा होता देख ग्रामीण भी विद्यालय जा पहुंचे। एडवोकेट चेतन बैरवा ने बताया कि एक शिक्षक पीड़ित छात्रा के घर पहुंचा। घर पर मां मिली। पिता मजदूरी के लिए बाहर गया था। शिक्षक ने पीड़िता की मां को बताया कि उसकी बेटी की तबीयत खराब है। उसे स्कूल से लेकर आएं। इस पर मां स्कूल पहुंची तो बेटी ने सारी बात दी। 7 जनवरी को पीड़ित छात्रा का पिता गांव पहुंचा। बेटी ने पिता को आपबीती बताई। इसके बाद 8 जनवरी को गंगापुर सिटी पुलिस थाने में शिक्षक विमल कुमार गुप्ता के खिलाफ नाबालिग दलित छात्रा से छेड़छाड़ के आरोप में प्राथमिकी दर्ज कराई है।

पिता की रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने छेड़छाड़ सहित पॉस्को एक्ट तथा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज कर जांच शुरू कर दी। इस दौरान पुलिस ने पीड़िता के धारा 164 में न्यायालय के समक्ष बयान भी दर्ज करवाए।

एडवोकेट ने बताया कि जांच के दौरान आरोपी पक्ष ने डरा धमका कर समझौता कर लिया तथा पांच सौ रुपए के स्टाम्प पेपर पर यह लिखवा लिया कि उसने शिक्षक के खिलाफ गलत फहमी में एफआईआर दर्ज कराई थी। अब वह इस मुकदमे में कोई कार्रवाई नहीं चाहता है। इस संबंध में पुलिस ने एफआर दे दी, लेकिन स्थानीय न्यायालय ने इस मामले में एफआर स्वीकार नहीं की।

एडवोकेट ने बताया कि इस मामले में आरोपी शिक्षक ने पीड़ित पक्ष से लिखवाया कि उसने रिपोर्ट गलत फहमी में दर्ज करा दी थी और अब वह इस केस में मुल्जिम विमल कुमार गुप्ता के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं चाहता। इस समझौते को आधार बनाकर आरोपी ने 2 फरवरी 2022 को राजस्थान हाईकोर्ट जयपुर में एक याचिका दायर की, जिसमें एफआईआर रद्द करने की मांग की गई। आरोपी पक्ष ने हाइकोर्ट को बताया कि उसके खिलाफ दर्ज पुलिस रिपोर्ट झूठी थी। पीड़ित पक्ष ने खुद स्टाम्प पर स्वीकार किया है। ऐसे में उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया जाए। 2 फरवरी को दायर इस याचिका का हाईकोर्ट ने 4 फरवरी 2022 को एफआईआर रद्द करने के आदेश दिए।

समाजसेवी रामजीलाल बैरवा व जगदीश प्रसाद गुर्जर को हाइकोर्ट के आदेश के बारे में जानकारी मिली तो उन्होंने इस संबंध में ग्रामीणों से चर्चा की। चर्चा के दौरान लोगों ने कहा कि ऐसे तो कानून का महत्व ही खत्म हो जाएगा। कोई भी दलितों के साथ अपराध करेगा। बाद में डरा धमका कर या प्रलोभन देकर एफआईआर रद्द करवा लेगा। इससे दलित महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ेंगे। साथ ही दलित बच्चियां शिक्षा से वंचित रह जाएंगी।

राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ समाज सेवी रामजीलाल बैरवा व जगदीश प्रसाद गुर्जर ने एडवोकेट चेतन बैरवा के माध्यम से राजस्थान हाईकोर्ट के उक्त आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की। एडवोकेट चेतन बैरवा ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि एफआईआर दर्ज होने के बाद पुलिस ने कोर्ट में छात्रा के 164 के बयान करवा दिए, लेकिन आरोपी को 30 जनवरी तक भी गिरफ्तार नहीं किया। जबकि आरोपी गंगापुर सिटी शहर में ही रहा था। आरोपी खुला घूमता रहा और पीड़ित पक्ष पर समझौते का दबाव बनाने में सफल रहा। समझौते के आधार पर एफआईआर रद्द करना न्यायोचित नहीं है। इस पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश यू.यू. ललित व जस्टिस जे. बी. पारदीवाला की बेंच ने राजस्थान सरकार के मुख्य सचिव व राजस्थान सरकार के पुलिस महानिदेशक से जवाब भी मांगा। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश ने जनहित याचिका को एसपलपी में कन्वर्ट कर दिया।

न्यायालय ने आरोपी व पीड़ित पक्ष को भी नोटिस देकर तलब किया था। एडवाकेट चेतन बैरवा ने बताया कि दलित नाबालिग छात्रा से छेड़छाड़ के दर्ज मामले में समझौते के आधार एफआईआर रद्द करने के राजस्थान के हाईकोर्ट के फैसले के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट ने उनकी एसएलपी स्वीकार कर ली है।

दलित अधिकार केन्द्र संयोजक व एडवोकेट सतीश कुमार ने बताया कि नाबालिग छात्रा से छेड़छाड़ के मामले में समझौता नहीं हो सकता। पुलिस सबूतों के अभाव में एफआर लगा सकती है। राजस्थान उच्च न्यायालय ने समझौता पत्र के आधार पर एफआईआर रद्द की है तो सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के आदेश के विरुद्ध अपील की जा सकती है। पीड़िता के बयानों से मुकरने के बाद भी इस तरह के मामलों में न्यायालय ने डीएनए के आधार पर आरोपी को सजा सुनाई है।

मध्य प्रदेश में पीड़िता बयान से मुकरी तो डीएनए रिपोर्ट के आधार पर न्यायालय ने सुनाई थी सजा

मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले के एक दुष्कर्मी को कोर्ट ने 20 साल की सजा सुनाई है। साथ ही 10 हजार का अर्थदंड लगाया गया है। मामले का खुलासा खेत में फेंके गए नवजात से हुआ था। विशेष न्यायाधीश आरके पाटीदार ने उसी नवजात के डीएनए टेस्ट के बाद आरोपी को दोषी करार देते हुए दंडित किया है। जानकारी के अनुसार मामला करीब दो साल पुराना है। अतिरिक्त जिला अभियोजन अधिकारी रामलाल रन्धावे ने बताया कि 16 अगस्त 2020 को धुलकोट चौकी में एक एफआईआर दर्ज हुई थी कि खेत में नवजात लड़की के रोने की आवाज आ रही है। पुलिस ने बच्चे को उसे उपचार के लिए अस्पताल भेजा।

पुलिस ने जांच के बाद बच्चे को फेंकने वाली का पता किया। वह नाबालिग थी और उसने जो कहानी बताई उससे पुलिस भी चौंक गई। पुलिस ने मामले में सरदार उर्फ सादरिया को गिरफ्तार कर लिया था। पीड़िता ने बयान दिए थे कि उसका दूर का रिश्तेदार सरदार उर्फ सादरिया उसके घर आता-जाता था। सरदार आए दिन उसके साथ दुष्कर्म किया करता था। डर के कारण पीड़िता ने किसी को कुछ नहीं बताया। इसी बीच उसे गर्भ ठहर गया। जब उसने यह बात आरोपी सरदार को बताई तो उसने कहा बच्चा पैदा होने के बाद फेंक देना। 16 अगस्त 2020 को पीड़िता ने नवजात बच्ची को जन्म दिया। तब वह बिना किसी को बताए सुबह करीब 5 बजे एक सोयाबीन के खेत में फेंक आई थी।

पुलिस ने जांच के दौरान पीड़िता और आरोपी का डीएनए टेस्ट बच्चे के साथ कराया। जिसमें पुष्टि हुए थी कि पीड़िता नवजात शिशु की जैविक माता और आरोपी सरदार उर्फ सादरिया जैविक पिता है। हालांकि पीड़िता बाद में बयानों से मुकर गई थी। कोर्ट ने सुनवाई के बाद डीएनए रिपोर्ट को आधार मानकर आारोपी सरदार उर्फ सादरिया को 20 साल के सश्रम कारावास और 10 हजार रुपए के अर्थदंड की सजा सुनाई।

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