नई दिल्ली- भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) रुड़की पर सरकार के दिशा-निर्देशों की धज्जियां उड़ाने और एससी/एसटी तथा दिव्यांग उम्मीदवारों को प्रताड़ित करने के गंभीर आरोप लगे हैं।
संस्थान के खिलाफ मुख्य शिकायत यह है कि वह ग्रुप-बी/सी (गैर-राजपत्रित) पदों पर भर्ती के लिए इंटरव्यू की प्रक्रिया को बंद करने से इनकार कर रहा है, जबकि सरकार ने एक दशक पहले ही भ्रष्टाचार और जातिगत पक्षपात रोकने के लिए इंटरव्यू पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके अलावा, आरक्षण रोस्टर को छिपाकर एससी/एसटी रिक्तियों में हेराफेरी करने के आरोपों ने विवाद को और गहरा दिया है।
आरोपियों में डिप्टी डायरेक्टर, रजिस्ट्रार और सहायक रजिस्ट्रार (भर्ती) जैसे वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं, जिन पर दस साल से अधिक समय से भेदभावपूर्ण नीतियां बनाए रखने का आरोप है। शिकायतकर्ताओं का कहना है कि ये अधिकारी केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों को नजरअंदाज करते आए हैं और एससी/एसटी तथा दिव्यांग कर्मचारियों की करियर प्रगति में जानबूझकर बाधा डाल रहे हैं।
पहचान गुप्त रखने की शर्त पर एक शिकायतकर्ता ने द मूकनायक को बताया कि 15 अगस्त 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी सरकारी विभागों और स्वायत्त संस्थानों (जैसे आईआईटी) को ग्रुप-बी/सी पदों पर भर्ती के लिए इंटरव्यू खत्म करने का आदेश दिया था।
इसके बाद अप्रैल 2017 में डॉ. जितेंद्र सिंह (तत्कालीन DOPT मंत्री) ने एक कार्यालय ज्ञापन (OM No. 13) जारी करके लिखित परीक्षा और कौशल परीक्षण को ही चयन का आधार बनाने का निर्देश दिया।
केंद्र सरकार ने अधिकांश विभागों में इंटरव्यू आधारित चयन प्रक्रिया को समाप्त करके योग्यता-आधारित लिखित परीक्षा प्रणाली लागू की है। संसद में भ्रष्टाचार के खिलाफ दिए गए आश्वासन में भी सरकार ने पारदर्शी एवं योग्यता-आधारित चयन प्रक्रिया सुनिश्चित करने का वादा किया था।
शिकायतकर्ता का कहना है कि इस संबंध में लोकसभा का अतारांकित प्रश्न संख्या 2448 ( हरिश मीना द्वारा पूछा गया) और राज्यसभा का अतारांकित प्रश्न संख्या 2365 (जावेद अली खान द्वारा पूछा गया) देखें जा सकते हैं। लेकिन आईआईटी रुड़की प्रधानमंत्री, संसद और DOPT के इन दिशा-निर्देशों का पालन करने को तैयार नहीं है। संस्थान ग्रुप-बी/सी (गैर-राजपत्रित) पदों पर प्रमोशन के लिए केवल इंटरव्यू के आधार पर चयन कर रहा है और इसके लिए DOPT से कोई अनुमति भी प्राप्त नहीं की गई है। आईआईटी रुड़की की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, वर्ष 2021 से 2025 के बीच लगभग 07 ग्रुप-बी/सी पदों पर प्रोन्नति प्रक्रियाएं आयोजित की गई हैं।
आईआईटी रुड़की ने नियम को नहीं माना और आज भी ग्रुप-बी/सी पदों पर भर्ती व प्रमोशन में इंटरव्यू ले रहा है। शिकायतकर्ता का कहना है कि इससे एससी/एसटी और खासकर श्रवण दिव्यांग उम्मीदवारों को नुकसान होता है, क्योंकि इंटरव्यू में उनकी कमजोरियों का फायदा उठाया जाता है। इससे मानसिक तनाव और इस्तीफे जैसी स्थितियां पैदा होती हैं, जिससे संस्थान में इन वर्गों का प्रतिनिधित्व और कम हो जाता है।
दूसरा बड़ा आरोप यह है कि आईआईटी रुड़की आरक्षण रोस्टर को सार्वजनिक नहीं कर रहा है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 के तहत सरकारी नौकरियों में एससी/एसटी का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए रोस्टर बनाए जाते हैं। DOPT के 31 दिसंबर 1992 के दिशा-निर्देशों के मुताबिक, ये रोस्टर गोपनीय नहीं होते और जनता को उपलब्ध कराए जाने चाहिए। सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम की धारा 4(2) के तहत भी ऐसी जानकारी सार्वजनिक करना अनिवार्य है।
जनवरी 2021 में मुख्य सूचना आयुक्त ने भी सभी सरकारी संस्थानों को रोस्टर ऑनलाइन प्रकाशित करने का आदेश दिया था। AIIMS दिल्ली जैसे संस्थान इसे मानते हैं, लेकिन आईआईटी रुड़की पर आरोप है कि वह रोस्टर छिपाकर एससी/एसटी रिक्तियों और बैकलॉग पदों में हेराफेरी कर रहा है।
प्रभावित उम्मीदवारों ने तीन मुख्य मांगें रखी हैं:
इंटरव्यू पर तुरंत रोक – ग्रुप-बी/सी भर्ती और प्रोन्नति में इंटरव्यू बंद करके केवल लिखित परीक्षा और कौशल परीक्षण को आधार बनाया जाए।
पारदर्शी रोस्टर – आईआईटी रुड़की अपना आरक्षण रोस्टर वेबसाइट पर प्रकाशित करे, जिसमें एससी/एसटी रिक्तियों और बैकलॉग का ब्यौरा हो।
जवाबदेही तय हो – एससी/एसटी और दिव्यांग उम्मीदवारों के साथ भेदभाव करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।
इन आरोपों पर IIT रूडकी का पक्ष जानने के लिए द मूकनायक ने संस्था के निदेशक और रजिस्ट्रार को ईमेल किया। हमें सिर्फ रजिस्ट्रार से जवाब प्राप्त हुआ जिसमे उन्होंने सभी आरोपों को झूठा बताया लेकिन भर्ती में इंटरव्यू पर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया। रजिस्ट्रार से प्राप्त मेल का अनुवाद शब्दश: इस प्रकार है-:
"इन आरोपों की हमें सूचना देने के लिए धन्यवाद। ये सभी आरोप झूठे, गढ़े हुए हैं और इसलिए पूरी तरह खारिज किए जाते हैं। यह भी आपके ध्यान में लाना है कि शिकायतकर्ता किसी स्वार्थ से प्रेरित प्रतीत होता है, और इसलिए बेताबी से अपने आरोपों को विभिन्न उपलब्ध पोर्टल्स, शिकायतों, आरटीआई, आरटीआई अपील, सीपीजीआरएएम, मंत्रालय, पीएमओ आदि पर दोहरा रहा है। सभी का तथ्यों के साथ उत्तर दिया गया है। हालांकि, शिकायतकर्ता अक्सर अलग-अलग आईडी और नामों से आवेदन करना जारी रख शरारत कर रहा है। यही शिकायत माननीय दिव्यांगजन मुख्य आयुक्त की अदालत में लंबित है, और संस्थान माननीय अदालत के समक्ष सभी तथ्य प्रस्तुत करेगा।"
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