हाथरस कांड: पीड़ित परिवार का आरोप, कोर्ट का फैसला राजनीति से प्रभावित

परिजनों ने कहा- हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खट-खटाएँगे
हाथरस कांड: पीड़ित परिवार का आरोप, कोर्ट का फैसला राजनीति से प्रभावित

लखनऊ। यूपी के हाथरस में एससी/एसटी कोर्ट ने 14 सितम्बर 2020 को हुए वीभत्स कांड को लेकर अपना फैसला सुना दिया है। कोर्ट के फैसले के अनुसार तीन आरोपियों को बरी किया गया। वहीं मेडिकल रिपोर्ट के परीक्षण के बाद रेप की धराएं (376A और 376D) हटा दी गई। इस मामले में एक आरोपी को उम्रकैद के साथ 50 हजार के अर्थदंड की सजा हुई है। इस मामले में कोर्ट के आदेश से पीड़ित परिवार असंतुष्ट है। पीड़ित परिवार के अनुसार फैसला जातिवाद, धर्मवाद और ठाकुरवाद से प्रभावित है। वह इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम का दरवाजा खट-खटाएंगे।

जानिए कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया?

यूपी के हाथरस के 14 सितंबर 2020 को बूलगढ़ी में एक दलित युवती के साथ गैंगरेप की वारदात हुई थी। इस लड़की को इलाज के लिए दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 29 सितंबर 2020 को ही इसी अस्पताल में इलाज के दौरान लड़की की मौत हो गई थी। पीड़ित परिवार का आरोप है कि उनकी इच्छा के खिलाफ 29 सितंबर 2020 की रात को यूपी पुलिस और प्रशासन ने इस लड़की का अंतिम संस्कार कर दिया और शव को जला दिया।

हाथरस कांड: पीड़ित परिवार का आरोप, कोर्ट का फैसला राजनीति से प्रभावित
हाथरस कांड: मुख्य आरोपी को आजीवन कारावास, तीन अन्य आरोपी बरी

सीबीआई ने दो हजार पन्नों की चार्जशीट दाखिल की

इस मामले में पुलिस ने मुख्य आरोपी संदीप ठाकुर, लवकुश, रामू और रवि को हत्या, रेप और एससी/एसटी एक्ट की धाराओं के तहत गिरफ्तार किया और जेल भेज दिया। विभिन्न स्थानों पर विरोध प्रदर्शन हुए। कई राजनेताओं ने इसे मुद्दा बनाकर सरकार पर हमला बोल दिया। भारी जन दबाव की वजह से इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी। 29 दिसंबर 2020 को सीबीआई ने इस मामले में 4 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट फाइल की थी। इस मामले में सीबीआई 104 गवाहों को लेकर आई थी। कोर्ट ने इस मामले में मुख्य आरोपी संदीप सिंह को गैर इरादतन हत्या करने का दोषी माना है। अदालत ने आरोपियों के ऊपर लगे गैंगरेप के चार्ज को हटा दिया है।

परिजन का आरोप- राजनीति से प्रभावित है फैसला

पीड़िता के भाई ने मीडिया से कहा, "मेरी बहन के साथ जो किया है, वह पूरी दुनिया देख चुकी है। पीड़िता की भाभी ने कहा, यह उच्च जातियों को न्याय मिला है, हमें नहीं। हमने अभी तक उसकी अस्थियों को गंगा में विसर्जित नहीं किया है। हम ऐसा तब करेंगे जब चारों को दोषी ठहराया जाएगा और तब तक हम आराम से नहीं बैठेंगे।"

दलित परिवार की वकील सीमा कुशवाहा ने कहा, हम हाईकोर्ट में अपील करेंगे। मुझे पूरा विश्वास है कि बाकी तीनों को भी दोषी ठहराया जाएगा। यह अजीब है कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने अपनी जांच के बाद, 376-डी (गैंगरेप), 376-ए (बलात्कार और चोट पहुंचाना जो मौत का कारण बनता है), 302 (हत्या), 34 (कई व्यक्तियों द्वारा किया गया आपराधिक कृत्य) के तहत चार्जशीट दायर की और फिर भी अन्य तीन को कोई सजा नहीं हुई। रिहाई में राजनीतिक प्रभाव की भूमिका हो सकती है।

परिजनों ने लगाए गंभीर आरोप

युवती के परिवार ने आरोप लगाया था कि उसके शव का उनके घर के पास एक खुले मैदान में आनन-फानन में अंतिम संस्कार किया गया, जिसकी निगरानी वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और प्रशासन के अधिकारी कर रहे थे। उन्होंने आरोप लगाया था कि उन्हें स्थानीय पुलिस द्वारा चुपचाप और जल्दी से उसका अंतिम संस्कार करने के लिए मजबूर किया गया था। यह उनकी सहमति के बिना किया गया था, उन्हें शव को घर लाने की अनुमति भी नहीं दी थी। जबकि स्थानीय पुलिस का कहना था कि अंतिम संस्कार 'परिवार की इच्छा के अनुसार' किया गया था।

जानिए अदालत ने क्यों हटाई रेप की धाराएं?

कोर्ट के मुताबिक, पीड़िता और उसकी मां ने यौन उत्पीड़न की बात नहीं बताई। अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि जब 14 सितंबर को पीड़िता को अस्पताल में भर्ती कराया गया तो न तो उसने और न ही उसकी मां ने यौन उत्पीडन की बात बताई थी। सेक्सुअल असॉल्ट की चर्चा पहली बार अस्पताल में एडमिट करने के एक सप्ताह बाद 22 सितंबर को हुई। मेडिकल साक्ष्यों से भी सेक्सुअल असॉल्ट साबित नहीं हो पाया है। अदालत के अनुसार साक्ष्यों में खून और वीर्य के सैंपल नहीं पाए गए। कोर्ट ने अपने नोट में कहा है कि घटना के बाद पीड़िता के अंगों को साफ किया गया था। मेडिकल साक्ष्य इशारा करते हैं कि पीड़िता को जब अस्पताल ले जाया गया था तो उस वक्त उसकी रीढ़ की हड्डी गर्दन के पास से चोटिल थी। कोर्ट की टिप्पणी के अनुसार गर्दन पर लिगेचर मार्क लगातार दिख रहा है, जिससे पता चलता है कि पीड़िता का गला दबाने की कोशिश की गई है, लेकिन इसी वजह से मौत नहीं हुई है।

कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि पीड़िता के शरीर पर मिले जख्म के निशान एक ही व्यक्ति द्वारा किये गए हैं। जख्मों से ये पता नहीं चलता है कि पीड़िता पर कई लोगों ने हमला किया है।

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