अलवर में बाल्टी तो गोरखपुर में पैर नहीं छूने पर दलित छात्र की पिटाई, आखिर थम क्यों नहीं रही उत्पीड़न की घटनाएं ?

समाजशास्त्री आरएस लोढ़ा कहते हैं, "हमें यह बात स्वीकार करनी चाहिए कि जाति अभी भी विद्यमान है जो अलग-अलग रूपों में प्रकट होती रहती है। जातीय उत्पीड़न उसका एक रूप है जो उम्र नहीं देखता।''
सांकेतिक फोटो।
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लखनऊ। राजस्थान के अलवर जिले में आठ साल के एक दलित बच्चे की बेरहमी से सिर्फ इसलिए पिटाई की गई क्योंकि उसने हैंडपम्प पर पानी पीने के दौरान वहां रखी बाल्टी छू ली थी। यह मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि यूपी के गोरखपुर से एक मामला सामने आया, जिसमें आरोप है कि शिक्षक के पैर नहीं छूने पर दलित छात्र को बेरहमी से पीटा गया। पुलिस ने दोनों मामलों में परिजनों की शिकायत पर एफआईआर दर्ज कर ली है।

ताजा मामले में, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के उरुवा थाना क्षेत्र के एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय में अनुसूचित जाति के छठी कक्षा के एक छात्र को पैर न छूने पर शिक्षक ने कथित रूप से पिटाई कर दी और उसे जातिसूचक गालियां दी। पुलिस ने सोमवार को इसकी जानकारी दी।

पुलिस के अनुसार जिले के उरुवा थाना क्षेत्र के मुरारपुर प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक रविशंकर पांडेय के खिलाफ छठी कक्षा के एक दलित छात्र को पीटने और जातिसूचक गालियां देने का आरोप लगा है। शिक्षक ने सम्मान स्वरूप पैर न छूने पर छात्र की पिटाई कर दी। पुलिस ने मारपीट के मामले में आरोपी शिक्षक के खिलाफ अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम समेत अन्‍य संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज कर लिया है।

द मूकनायक को अपर पुलिस अधीक्षक (एएसपी) जितेंद्र कुमार ने बताया कि शिकायत के आधार पर मामला दर्ज कर लिया गया है और पुलिस जांच कर रही है। जांच और साक्ष्य के आधार पर कार्रवाई की जाएगी। जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी रामेंद्र कुमार ने बताया कि ऐसा मामला प्रकाश में आया है। मामले की पूरी निष्पक्षता से जांच की जाएगी और जांच के आधार पर कार्रवाई की जाएगी। इधर, घटना के बाद से आरोपी शिक्षक फरार है।

राजस्थान से भी सामने आया मामला

राजस्थान के अलवर जिले में आठ साल के एक दलित बच्चे की बेरहमी से पिटाई का मामला गत दिनों सामने आया। आरोप है कि कथित ऊंची जाति के शख्स ने पानी की बाल्टी छूने को लेकर बच्चे के साथ मारपीट की। इतना ही नहीं, उसने बच्चे के पिता और घरवालों के खिलाफ जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल किया। पीड़ित बच्चे के घरवालों ने आरोपी के खिलाफ केस दर्ज करवाया है।

घटना 31 मार्च की सुबह की है। शिकायत के मुताबिक, सुबह करीब साढ़े नौ बजे चौथी क्लास का बच्चा गांव के सरकारी स्कूल में लगे हैंडपंप से पानी पीने गया था. तभी पानी की बाल्टी छूने को लेकर उसकी पिटाई कर दी गई। पीड़ित बच्चे के पिता ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि स्कूल में एक हैंडपंप है जहां से गांव के सभी लोग पानी पीते हैं। आगे बताया,

मेरे बेटे ने पानी पीने के लिए बाल्टी को एक तरफ हटाने को कहा और उसे छू दिया। आरोपी ऊंची जाति का शख्स था। उसने मेरे बेटे को बेरहमी से पीटा। बच्चे की आवाज सुनकर स्कूल के पास से गुजर रहा मेरा एक रिश्तेदार मौके पर पहुंचा। उसने ही मुझे घटना की जानकारी दी। 

मामले में SC/ST एक्ट के तहत FIR दर्ज की गई है. सर्किल इंस्पेक्टर सवाई सिंह ने कहा कि पुलिस घटना की जांच कर रही है। उन्होंने बताया कि आरोपी से पूछताछ की गई है और अगर वो दोषी निकला तो कार्रवाई की जाएगी।

दलित छात्र ने सवर्ण शिक्षक की मटकी से पानी पिया, सजा मिली मौत! (फाइल फोटो)
दलित छात्र ने सवर्ण शिक्षक की मटकी से पानी पिया, सजा मिली मौत! (फाइल फोटो)

इंद्र मेघवाल प्रकरण की याद हुई ताजा!

राजस्थान में दलित छात्र से छुआछूत व पिटाई का यह पहला मामला नहीं है। अगस्त 2022 में जालोर जिले की सायला तहसील के सुराणा गांव में कथित तौर पर एक निजी स्कूल संचालक ने पानी की मटकी छूने पर 9 वर्षीय दलित छात्र इंद्र मेघवाल की पिटाई की थी, गंभीर घायल छात्र इंद्र की इलाज के दौरान मौत हो गई थी। मामला न्यायालय में विचाराधीन है।

इसके एक साल बात सितम्बर 2023 में भरतपुर जिले के बयाना के एक राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में कैम्पर से पानी पीने पर शिक्षक ने दलित छात्र की बेरहमी से पिटाई की थी। छात्र रविंद्र के बड़े भाई रनसिंह जाटव की तहरीर पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया था।

एनसीआरबी रिपोर्टः बढ़ रहे है बाल अपराध

 राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के 2022 आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर बाल अधिकार से जुड़े एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘सीआरवाई' ने यह दावा किया है। बच्चों से दुष्कर्म के मामले वर्ष 2016 से 2022 के बीच 96 फीसदी बढ़े हैं, जिनमें सभी प्रकार के प्रवेशन हमले (पेनिट्रेटिव असॉल्ट) शामिल हैं।

एनसीआरबी रिपोर्ट के मुताबिक 2021 में जहां 18 साल से ज़्यादा आयु की महिलाओं के साथ बलात्कार के कुल 28,644 मामले दर्ज हुए, वहीं नाबालिग़ों के साथ बलात्कार की कुल 36,069 घटनाएं हुईं। हालांकि रिपोर्ट में नाबालिग बच्चों के साथ जातीय भेदभाव व छुआछूत के आंकड़े शामिल नहीं किए गए है।

‘भयानक जगह हैं कक्षाएं'

डीब्ल्यू में प्रकाशित खबर के अनुसार भारत में लगभग 20 करोड़ दलित आबादी है जिन्हें आज भी अपने मूल अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ता है। दिल्ली यूनिवर्सिटी में इंग्लिश की प्रोफेसर जेनी रोवेना कहती हैं, " शिक्षण संस्थानों में जातिगत उत्पीड़न आम बात है. कक्षाएं भयानक जगह बन चुकी हैं।”

रोवेना एक यूट्यूब चैनल के साथ मिलकर दलित और अन्य पिछड़ी जातियों के साथ हो रहे उत्पीड़न की कहानियों का दस्तावेजीकरण कर रही हैं। वह कहती हैं कि शर्मिंदगी और यातनाओं से बचने के लिए बहुत से छात्र कक्षाओं में जाते ही नहीं हैं।

सरकार के उच्च शिक्षण संस्थानों के आंकड़े दिखाते हैं कि 18-23 साल के दलित या अन्य पिछड़ी जातियों के बच्चों की संख्या मात्र 14.7 प्रतिशत है जबकि उन्हें बहुत से विषयों में तो 15 प्रतिशत आरक्षण हासिल है।

क्यों होती हैं ऐसी घटनाएं

ऐसी घटनाएं न सिर्फ़ उत्तर प्रदेश में बल्कि अन्य राज्यों में भी देखने को मिलती हैं। लेकिन, भेदभाव के ख़िलाफ़ कड़े क़ानून होने और सामाजिक समरसता की इतनी कोशिशों के बावजूद भेदभाव की ये घटनाएं क्यों होती हैं?

राजस्थान उदयपुर स्थित मोहनलाल सुखाडि़या विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग से सेवानिवृत्त प्रो. आरएस लोढ़ा ने कई राज्यों की जाति-व्यवस्था पर काफ़ी शोध किया है।

आरएस लोढ़ा कहते हैं, "दरअसल, जाति को लेकर जो हमारी समझ है वो हमें किताब से पता चलती है, लेकिन धरातल पर स्थिति अलग है। जाति ऐसी चीज़ है जो कि ख़त्म नहीं हो सकती. यह एक तरह से पुनरुत्पादित होती है। हमारे यहां इसे ख़त्म करने की कभी कोशिश भी नहीं हुई। जितने भी समाज सुधार आंदोलन हुए, उनका परिणाम भी इसी रूप में सामने आया है और आख़िरकार ये आंदोलन भी जातीय पुनरुत्पादन के केंद्र बन जाते हैं। वास्तव में जाति को भारतीय समझ ने कभी भी बुरा नहीं माना बस उसमें सुधार करता रहा है।"

आरएस लोढ़ा कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि यह भेदभाव सिर्फ़ जातीय स्तर पर या फिर ग्रामीण पृष्ठभूमि में ही या फिर स्कूलों में ही देखने को मिलता है, बल्कि यह कई स्तरों पर देखा जा सकता है. वो कहते हैं कि यही दलित बच्चे यदि किसी अधिकारी के या फिर किसी अमीर के रहे होते, तो भी क्या शिक्षक या अन्य कोई व्यक्ति ऐसा कर सकते थे।

आरएस लोढ़ा कहते हैं, "हमें यह बात स्वीकार करनी चाहिए कि जाति अभी भी विद्यमान है जो अलग-अलग रूपों में प्रकट होती रहती है। स्कूल वाली घटनाएं जहां हो रही हैं, वो समाज का सबसे निचला तबका है। उसकी गतिशीलता ज़्यादा नहीं होती। वो नाम और जाति सबसे पहले सीखता है और दूसरे किस जाति के हैं, ये भी वो अपने आप सीख जाता है।''

''अपने से छोटे पर हिंसा करके सुख का अनुभव करने की एक सार्वभौमिक प्रवृत्ति है जो जातीय संरचना में सबसे साफ़ दिखाई देती है, लेकिन अन्य स्तरों पर भी वैसे ही मौजूद है। ग़रीब है तो अमीर उसके ऊपर हिंसा करेगा और आनंद की अनुभूति करेगा। हर व्यक्ति में विशिष्टता का बोध होता है और यह बना हुआ है. इस तरह की घटनाएं इसी सामाजिक स्तरीकरण को दर्शाती हैं और ये इतनी जल्दी ख़त्म होने वाली भी नहीं हैं।"

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