CUK में दलित छात्रा की संदिग्ध मौत: भेदभाव, चुप्पी और सवालों से घिरा विश्वविद्यालय

केंद्रीय विश्वविद्यालय कर्नाटक में दलित छात्रा की संदिग्ध आत्महत्या ने जातीय भेदभाव, प्रशासनिक लापरवाही और शैक्षणिक संस्थानों में सामाजिक असमानता पर गंभीर बहस छेड़ दी है।
Dalit Student’s Alleged Suicide at Central University of Karnataka Sparks Outcry
केंद्रीय विश्वविद्यालय कर्नाटक में दलित छात्रा की संदिग्ध आत्महत्या से उठे सवाल, भेदभाव के आरोप
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कलबुर्गी: ओडिशा की 20 वर्षीय दलित छात्रा जयश्री नायक की कथित आत्महत्या ने केंद्रीय विश्वविद्यालय कर्नाटक (CUK) में शैक्षणिक परिवेश और वंचित समुदायों के साथ व्यवहार को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

छात्रा का शव विश्वविद्यालय परिसर स्थित हॉस्टल के कमरे में पाया गया। कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि प्रशासन ने बिना पुलिस को सूचना दिए कमरे का दरवाजा तोड़ा, जिससे सबूतों से छेड़छाड़ की आशंका बढ़ गई है।

घटना को लेकर विश्वविद्यालय में विरोध-प्रदर्शन तेज हो गया है, वहीं दलित छात्रा की संदिग्ध मौत को लेकर जातीय भेदभाव के आरोपों ने माहौल को और भी संवेदनशील बना दिया है।

व्यवस्थित भेदभाव के गंभीर आरोप

केंद्रीय विश्वविद्यालय में अंबेडकर विद्यार्थी संगठन के पूर्व अध्यक्ष और 8 वर्षों तक छात्र रहे पी. नंदकुमार ने मीडिया से बातचीत में कहा कि विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद से ही दलित छात्रों के खिलाफ भेदभाव की घटनाएं होती रही हैं।

उन्होंने कहा, “2017 में जब एक दलित छात्र ने आत्महत्या की थी, तब हमारे पास विरोध दर्ज कराने की जगह थी। लेकिन पिछले 3-4 वर्षों से विरोध करने का अधिकार भी छीन लिया गया है। आज अगर हम आवाज उठाते हैं तो हमारे खिलाफ एफआईआर दर्ज कर दी जाती है।”

नंदकुमार ने यह भी आरोप लगाया कि पहले अनुसूचित जाति/जनजाति (SC/ST) सेल द्वारा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर शोध-पत्र प्रस्तुत करने वाले दलित छात्रों को ₹20,000 की आर्थिक सहायता दी जाती थी, जिसे अब बंद कर दिया गया है।

उन्होंने बताया, “पुस्तक बैंक, कंप्यूटर सुविधाएं और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए सहायता अब नहीं मिलती। ओबीसी सेल भी बंद है। अनुसूचित जाति के शोधार्थियों से अब सामान्य छात्रों के बराबर फीस ली जाती है। उपस्थिति रजिस्टर में जाति का कॉलम जोड़ दिया गया है। प्रेस विज्ञप्तियों में कहा जाता है कि SC/ST छात्रों के लिए आवास और भोजन निःशुल्क है, लेकिन वास्तव में उनसे किराया और शुल्क वसूला जाता है, जिसे विरोध के बाद ही वापस किया जाता है।”

उन्होंने यह भी कहा कि विश्वविद्यालय ने अंबेडकर की प्रतिमा स्थापित करने से पहले सरस्वती की प्रतिमा लगाई थी, जो संविधान के अनुच्छेद 28(1) के तहत शिक्षा संस्थानों में धार्मिक प्रतीकों पर रोक के प्रावधान का उल्लंघन है।

सिविल सोसाइटी और सामाजिक कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रिया

कर्नाटक पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व अध्यक्ष द्वारकानाथ सी.एस. ने भी दलित छात्रों के साथ हो रहे भेदभाव पर चिंता जताई। उन्होंने बताया कि एक बार उन्हें विश्वविद्यालय परिसर में डॉ. अंबेडकर पर भाषण देने से रोका गया था।

उन्होंने कहा, “हम वहां दलित छात्रों के आमंत्रण पर गए थे, जहां हमें केवल अंबेडकर की प्रतिमा पर माला अर्पित करने की अनुमति दी गई, लेकिन उनके विचारों पर कुछ बोलने नहीं दिया गया। कई छात्रों ने हमें बताया कि वे जातीय भेदभाव के कारण मानसिक तनाव में हैं। अब सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन को इस आत्महत्या को गंभीरता से लेना चाहिए।”

कलबुर्गी की सामाजिक कार्यकर्ता के. नीला ने आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय हाल के वर्षों में महिला और अल्पसंख्यक विरोधी रुख अपना रहा है।

विश्वविद्यालय प्रशासन का पक्ष

इन आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए कुलपति प्रो. बट्टू सत्यनारायण ने जातीय या लैंगिक भेदभाव के सभी आरोपों को खारिज किया।

उन्होंने कहा, “यह कहना कि विश्वविद्यालय महिला विरोधी है, बिल्कुल गलत है। हमारे यहां छात्राओं की संख्या छात्रों से अधिक है। हम सभी छात्रों को समान अवसर देते हैं और आरक्षण प्रणाली के तहत प्रवेश प्रक्रिया को पूरी तरह से लागू करते हैं।”

उन्होंने स्पष्ट किया कि उपस्थिति रजिस्टर में कोई जाति कॉलम नहीं जोड़ा गया है और जाति/वर्ग की जानकारी केवल प्रवेश प्रक्रिया के दौरान ही ली जाती है, ताकि आरक्षण नियमों का पालन किया जा सके।

आत्महत्या मामले पर बोलते हुए कुलपति ने कहा, “जब छात्रा के कमरे का दरवाजा नहीं खुला, तो सुरक्षा कर्मियों को लगा कि वह जीवित हो सकती हैं और तत्काल इलाज की जरूरत हो सकती है, इसलिए उन्होंने दरवाजा तोड़ा। जब उनकी मृत्यु की पुष्टि हुई, तो तुरंत पुलिस को सूचित किया गया और फिर उनके माता-पिता को जानकारी दी गई। परिवार ने हमें बताया कि छात्रा को पहले से कुछ स्वास्थ्य समस्याएं थीं।”

स्वतंत्र जांच की मांग तेज

हालांकि, विश्वविद्यालय प्रशासन ने सफाई दी है, लेकिन छात्र संगठनों और कार्यकर्ताओं की मांग है कि छात्रा की मौत की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। साथ ही, विश्वविद्यालय में जातीय भेदभाव के सभी आरोपों की भी जांच की जानी चाहिए।

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