हाथरस कांड फैसले पर देश में उबाल, महिलाओं ने कहा-ये तो न्याय नहीं !

हाथरस कांड फैसले पर देश में उबाल, महिलाओं ने कहा-ये तो न्याय नहीं !

उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के एक गाँव में 14 सितंबर 2020 में हुए सामूहिक दुष्कर्म और युवती की हत्या के मामले में निचली अदालत के हालिया फैसले को लेकर देशभर में कटु आलोचना हो रही है। जनता स्तब्ध और हताश है। विशेषकर महिलाओं में इस बात को लेकर गहरा रोष है कि अदालत ने प्रकरण में तीन सह-अभियुक्तों को निर्दोष मानकर बरी कर दिया। सभी आरोपियों को रेप की धाराओं से मुक्त किया गया और मुख्य आरोपी संदीप ठाकुर को उम्रकैद और महज पचास हजार रुपये के अर्थदंड की सजा सुनाई गई, जबकि इस जघन्य हत्याकांड के मुख्य आरोपी के लिए लोगों को न्यायालय से फांसी की सजा सुनाए जाने की आस थी। महिलाओं ने कहा जिस देश मे वर्ष में दो बार नवरात्रि मनाते हैं, कन्या पूजन करते हैं वहीं पर जब किसी बेटी खासकर अगर दलित लड़की के साथ यौन हिंसा और सामूहिक बलात्कार जैसा घिनौना अपराध हो, तब सरकार उस परिवार को न्याय दिलाने की बजाय अपराधियों को ही बचाने की जुगत में जुट जाती है। महिलाओं ने ये भी कहा कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के स्लोगन सरकारी ढकोसले भर हैं, बिलकिस बानो हो या हाथरस की बेटी, बलात्कारियों को बेगुनाह मानकर उनका सत्कार ही किया जाता रहा है।

द मूकनायक ने इस विषय पर अलग अलग राज्यों में विभिन्न प्रोफेशन, एक्टिविस्ट और सामाजिक संगठनों की सदस्य महिलाओं से बात की तो कुछ ऐसे विचार उभरकर सामने आए

ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वीमन असोसिएशन (ऐपवा) की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ.सुधा चौधरी ने फैसले को बेहद निराशाजनक और अपराधियों को संरक्षित करने वाला बताया। उन्होंने कहा हाथरस प्रकरण और बिलकिस मामले अलग नहीं, दोनों मामलों में दोषी आज़ाद घूम रहे हैं। उन्होंने कहा " एफआईआर दर्ज होने में विलंब, बॉडी का चोरी छिपे अंतिम संस्कार करना, शुरू से ही एडमिनिस्ट्रेशन का प्रयास आरोपियों को बचाने का ही था। जिस तरह से केस में तथ्यों और धाराओं को मोड़ा गया है वह बेहद हताश करने वाला है। मेसेज साफ है कि आम आदमी को भारतीय न्याय व्यवस्था से कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए, न्याय उनके लिए एक सपना बनकर रह गया है", डॉ चौधरी ने कहा की ऐपवा उत्तरप्रदेश इकाई इस प्रकरण को लेकर धरने प्रदर्शन कर रही है, राजस्थान इकाई द्वारा भी प्रधानमंत्री के नाम का ज्ञापन दिया जाएगा।

द मूकनायक के साथ अपने विचार साझा करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता व लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति प्रो. रूपरेखा वर्मा ने कहा, " कोर्ट के इस फैसले से संतुष्ट नहीं हूं। जब जांच और पीड़िता के बयान से रेप की पुष्टि हुई थी तो रेप का चार्ज हटा लेना तर्कसंगत नहीं है। घटना के बाद स्थानीय दबंग लोगों ने कहा था कि आरोपियों को कुछ नहीं होने देंगे। ये तो उनका कहा सच हो रहा है। ये न्याय नहीं है। ऐसे फैसले से कोई न्यायप्रिय व्यक्ति संतुष्ट नहीं होगा।

लखनऊ से अखिल भारतीय अम्बेडकर महासभा की राष्ट्रीय अध्यक्ष विद्या गौतम कहती हैं, "हम इस फैसले से बहुत निराश हैं,जिसमें 4 में से 3 अभियुक्तों को SC/ST अदालत ने रिहा कर दिया है। एक दलित लड़की को न्याय से वंचित कर दिया गया है, लेकिन हम निडर हैं और मृतका को न्याय दिलाने के लिए हाई कोर्ट जाएंगे, हम आखिरी सांस तक लड़ेंगे।"

राजस्थान के डूंगरपुर जिले में महिला आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में कार्यरत प्रतिध्वनि संस्थान की निदेशक डॉ.निधि जैन ने कहा, " लोकतंत्र का सबसे मजबूत स्तंभ कितनी कमजोर और भ्रष्ट हो चुकी है जिसका परिणाम एक दलित महिला को न्याय नहीं दिला पाने की पंगुता को दर्शाता है। न्याय होना चाहिए और संदीप एवं अन्य आरोपियों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए ताकि दूसरे अपराधियों के लिए भी ये प्रकरण एक सबक साबित हो। "

राजस्थान में आदिवासी अंचल में कड़िया गांव से ताल्लुक रखने वाली शर्मिला डामोर कहती हैं कि इन प्रकरण में पुलिस दोषी है। " अगर बलात्कार नही हुआ तो फिर परिवार की रजामंदी के बिना पीड़िता के शव का अंतिम संस्कार क्यों कर दिया गया? इस केस की नए सिरे से सुनवाई होनी चाहिए"।

केरल के कन्नूर जिले में निजी अस्पताल में कार्यरत डॉ.स्वाति पिल्लई कहती हैं मेडिकल प्रोफेशन में वो विभिन्न मौकों पर रेप विक्टिम्स के संपर्क में आईं हैं और ऐसे में पेशेंट की शारीरिक वेदना और मनोदशा का आकलन बहुत बहुत मुश्किल होता है। " हमारे लिए उन जख्मों को देख पाना और इलाज करना भी मुश्किल होता है तो सोचिए उन लोगों की पीड़ा जो ये असहनीय दर्द को बर्दाश्त करते हैं। रेप पीड़िता और परिजन न्याय की आस लगाए पुलिस- कचहरी के चक्कर लगाते हैं और आखिर में आरोपी तकनीकी खामियों या साक्ष्य के अभाव में बरी हो जाते हैं, जो बहुत निराशजनक है।"

द मूकनायक से बातचीत करते हुए ऑल इंडिया दलित महिला अधिकार मंच की मध्यप्रदेश स्टेट कॉर्डिनेटर गायत्री सोनकर ने कहा कि कोर्ट को इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए था। मैं इस फैसले से पूर्ण रूप से संतुष्ट नहीं हूं। इस मामले में क्या पुलिस प्रशासन की कार्यवाही निष्पक्ष रही यह भी जांच का विषय था ? सभी आरोपियों को सजा मिलनी चाहिए थी। हालांकि उच्च न्ययालय का रास्ता खुला है, लेकिन एक तरफ यह भी है यदि इस तरह से आरोपियों को संदेह का लाभ मिला और वह सजा से बच रहे है तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है।

क्या है हाथरस कांड ?

हाथरस के चंदपा इलाके के एक गांव में 14 सितंबर 2020 को अनुसूचित जाति की एक युवती के साथ दरिंदगी हुई। गांव के ही चार युवकों ने दुष्कर्म किया और उसकी गला दबाकर हत्या करने का प्रयास किया। 29 सितंबर 2020 में युवती ने दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में दम तोड़ दिया। पुलिस ने युवती के बयान के आधार पर चारों अभियुक्त संदीप, रवि, रामू व लवकुश को गिरफ्तार कर लिया था। परिजनों की इच्छा के बिना प्रशासन ने मध्य रात्रि को किया शव का अंतिम संस्कार।

मामले की विवेचना सीबीआई ने की थी। सीबीआई ने चारों अभियुक्तों संदीप, रवि, रामू व लवकुश के खिलाफ आरोपत्र विशेष न्यायाधीश (एससी-एसटी एक्ट) के न्यायालय में दाखिल किया था। सीबीआई ने आरोप पत्र धारा 302, 376 ए, 376 डी, व एससी-एसीटी एक्ट के तहत दाखिल किया था। सीबीआई ने 67 दिनों तक विवेचना की।

ये हुआ फैसला

हाथरस सामूहिक दुष्कर्म केस में गुरुवार 2 मार्च को 900 दिन बाद एससी-एसटी अदालत ने फैसला सुनाया। अदालत ने चार आरोपियों में से केवल संदीप ठाकुर को ही दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई और 50 हजार रुपये का दंड लगाया। जबकि तीन अन्य आरोपियों लवकुश सिंह, रामू सिंह और रवि सिंह को बरी कर दिया। अदालत ने संदीप को गैर इरादतन हत्या (धारा-304) और एससी/एसटी एक्ट में दोषी माना।

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