
लखनऊ– बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय (बीबीएयू) में जातिवादी दमन के खिलाफ चले लंबे संघर्ष को ऐतिहासिक जीत मिली। इतिहास विभाग के वरिष्ठ दलित पीएचडी शोधार्थी बसंत कुमार कन्नौजिया का 19 नवंबर को जारी किया गया निष्कासन आदेश तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया गया है। करीब 25 दिनों तक चले शांतिपूर्ण धरने और व्यापक सामाजिक-राजनीतिक समर्थन के बाद यह फैसला आया, जिसे कन्नौजिया ने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में "संघर्ष, धैर्य और विश्वास की जीत" करार दिया। बसपा राज्यसभा सांसद रामजी गौतम द्वारा भी इस मुद्दे को संसद में उठाया गया, आखिरकार विश्वविद्यालय प्रशासन को झुकना पड़ा, छात्र संगठनों और बहुजन कार्यकर्ताओं ने इसे "अंबेडकारी न्याय की मिसाल" बताया।
प्रॉक्टर कार्यालय से जारी पत्र में लिखा गया है कि, " आपके 03-12-2025 के प्रतिनिधित्व के जवाब में, जो पत्र संख्या REG39500-L/BBAU/25 दिनांक 14-11-2025 द्वारा आपके निष्कासन के विरुद्ध था, आपके निष्कासन को तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया गया है, बशर्ते कि निम्नलिखित शर्तों का पूर्णतः पालन किया जाए:
1. आप विश्वविद्यालय के छात्र आचार संहिता का कड़ाई से पालन करेंगे।
2. आप किसी भी असामाजिक गतिविधि या विरोध प्रदर्शन में शामिल नहीं होंगे और इस संबंध में विश्वविद्यालय प्राधिकारियों द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करेंगे।
3. आप विश्वविद्यालय के अधिकारियों/प्रोफेसरों के विरुद्ध कोई भी मानहानिकारक सोशल मीडिया पोस्ट नहीं करेंगे और भविष्य में ऐसी पोस्ट हटाएंगे।
4. आप तीन महीने के भीतर अपने पीएचडी थीसिस को पर्यवेक्षक को जमा करेंगे। उपरोक्त शर्तों में से किसी भी का उल्लंघन करने पर बिना किसी पूर्व सूचना के अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी और इसके लिए आप ही पूरी तरह जिम्मेदार होंगे।"
इस मामले की पृष्ठभूमि सितंबर की है, जब बीबीएयू परिसर में छात्र कल्याण से जुड़ी अशांति के दौरान एक जांच समिति ने बसंत कन्नौजिया को मुख्य आरोपी ठहराया। 14 वर्षों से विश्वविद्यालय में अध्ययनरत इस पहली पीढ़ी के दलित शोधार्थी पर छात्रों को भड़काने, तोड़फोड़ करने और कुलपति कार्यालय में अनधिकृत घुसपैठ के आरोप लगाए गए। अनुशासन समिति ने सीसीटीवी फुटेज, छात्र बयानों और कन्नौजिया के पूर्व रिकॉर्ड (जिसमें 2012 से 14 अनुशासनहीनता के मामले, शो-कॉज नोटिस और एफआईआर शामिल थे) के आधार पर 7 और 9 अक्टूबर की बैठकों में निष्कासन की सिफारिश की।
उपकुलपति प्रो. राज कुमार मित्तल ने 17 अक्टूबर को जारी शो-कॉज नोटिस के जवाब को "निराधार" बताते हुए 19 नवंबर को निष्कासन आदेश जारी कर दिया, जिसमें कन्नौजिया को परिसर प्रवेश और भविष्य की दाखिले से वंचित कर दिया गया। कन्नौजिया ने हमेशा इन आरोपों को फर्जी करार दिया, दावा किया कि वे केवल छात्र हितों पर प्रशासन से संवाद कर रहे थे और उनका आंदोलन अंबेडकारी विचारधारा को मजबूत करने तथा जातिगत भेदभाव के खिलाफ था। निष्कासन के तुरंत बाद उन्होंने संवैधानिक दायरे में प्रशासनिक भवन के मुख्य द्वार पर शांतिपूर्ण धरना शुरू कर दिया जो पुलिस दबाव, समर्थकों पर चेतावनी पत्र तथा निलंबन जैसी बाधाओं के बावजूद जारी रहा।
निष्कासन रद्द होने की खबर मिलते ही कन्नौजिया ने सोशल मीडिया पर एक भावुक पोस्ट साझा की, जिसमें उन्होंने कुलपति के प्रति हृदय से आभार व्यक्त किया। उन्होंने लिखा, " आज जो निर्णय मेरे हाथों में पहुँचा है, वह केवल एक आदेश नहीं यह मेरे संघर्ष, मेरे धैर्य और मेरे विश्वास की जीत है। मैं कुलपति महोदय, बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ का हृदय की गहराइयों से आभार व्यक्त करता हूँ कि मेरे द्वारा दिए गए प्रतिनिधित्व पर सकारात्मक संज्ञान लेते हुए मेरे निष्कासन को रद्द किया गया। यह निर्णय न केवल एक शोधार्थी के भविष्य को सुरक्षित करता है, बल्कि विश्वविद्यालय प्रशासन की संवेदनशीलता, न्यायप्रियता और संवाद-प्रधान परंपरा को भी दर्शाता है। पिछले कई दिनों की कठिनाइयों, चिंता और मानसिक दबाव के बीच यह निर्णय मेरे लिए एक नई उम्मीद लेकर आया है। मैं विश्वविद्यालय के नियमों एवं आचार-संहिता का पालन करने हेतु प्रतिबद्ध हूँ तथा शैक्षणिक कार्यों को पूरी निष्ठा और जिम्मेदारी के साथ आगे बढ़ाऊँगा। "
इस जीत के पीछे छात्रों, दलित चिंतकों और राजनीतिक नेताओं का अहम योगदान रहा। धरने के दौरान पॉन्डिचेरी विश्वविद्यालय के बहुजन स्टूडेंट्स फ्रंट (बीएसएफ) ने बयान जारी कर इसे "ब्राह्मणवादी दमन" बताया, जबकि जर्मनी के अम्बेडकर कलेक्टिव गोटिंगेन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थन जुटाया। नगिना से सांसद चंद्रशेखर आजाद, कांग्रेस सांसद तनुज पुनिया ने धरना स्थल का दौरा किया और शिक्षा मंत्रालय से हस्तक्षेप की मांग की। लेकिन निर्णायक भूमिका निभाई बसपा राज्यसभा सांसद रामजी गौतम ने, जिन्होंने इस मुद्दे को संसद में उठाया और विश्वविद्यालय प्रशासन पर दबाव बनाया।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.