नस्ल सुधार पर गोलवलकर की वह टिप्पणी जिसे पढ़कर शर्म से सर झुक जाए! 'RSS काया और माया' किताब ने खोली पुरानी परतें

कन्नड़ साहित्य के प्रसिद्द लेखक देवनूर महादेव की लिखी किताब आरएसएस काया और माया के अध्याय 2 - सुनें नफ़रत की कहानी: दस्तावेजों की जुबानी, में वह बताते हैं कि भारतीय इतिहास में RSS व उसके पुरोधाओं की कैसी विचारधाराएं थीं जो किसी भी सभ्य समाज द्वारा कतई ग्रहण नहीं की जा सकती थीं.
RSS Kaya Aur Maya Book
आरएसएस काया और माया किताब बताती है कि कैसे अतीत में RSS ने दकियानूसी, कपोल कल्पनाओं की नींव समाज में रखी. जिसका खामियाज़ा आज के समाज को गाहे-बगाहे भुगतना पड़ता है. फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक
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कन्नड़ साहित्य के कोहिनूर माने जाने वाले देवनूर महादेव की किताब 'आर.एस.एस. : आळ मत्तू अगला' का 'आरएसएस काया और माया' शीर्षक से, कन्नड़ से हिंदी में स्वाति कृष्णा द्वारा अनूदित की गई वह किताब है जो अपने नाम के ही अनुरूप आरएसएस की काया और उसकी माया की बखिया उधेड़ती है.

राधाकृष्ण पेपरबैक्स द्वारा प्रकाशित 'आरएसएस काया और माया' किताब ऐतिहासिक साक्ष्यों के माध्यम से आरएसएस की उन सच्चाईयों को उजागर करती है जिसे आज का कोई भी सभ्य समाज कभी स्वीकार नहीं करेगा.

किताब के अध्याय दो 'सुनें नफ़रत की कहानी: दस्तावेजों की जुबानी', में लेखक देवनूर महादेव, माधव सदाशिव गोलवलकर द्वारा गुजरात विश्विद्यालय में दिए गए स्पीच को तथ्यों के साथ पेश करते हैं. और समझाने की कोशिश करते हैं कि कैसे आरएसएस को चलाने वाले लोगों की विचारधारा दकियानूसी, असंवैधानिक व शर्मनाक थी.

आरएसएस की माउथपीस कही जाने वाली पत्रिका 'ऑर्गनाइजर' के 2 जनवरी, 1961 के अंक में प्रकाशित गोलवलकर की स्पीच को उद्घृत करते हुए बताया गया कि, गोलवलकर गुजरात विश्विद्यालय में छात्रों को व्याख्यान देते हुए कहते हैं,

"आज केवल जानवरों पर क्रॉस-ब्रीडिंग प्रयोग हो रहे हैं। इनसानों के बीच इन प्रयोगों को करने की हिम्मत आज के तथाकथित वैज्ञानिकों में नहीं है। अगर आज कुछ मानव क्रॉस-ब्रीडिंग देखी जाती है तो यह वैज्ञानिक प्रयोगों का नहीं बल्कि कामवासना का परिणाम है। अब इस क्षेत्र में हमारे पूर्वजों द्वारा किये गए प्रयोगों को देखते हैं। क्रॉस-ब्रीडिंग के माध्यम से मानव प्रजातियों को बेहतर बनाने के प्रयास में उत्तर के नम्बूदरी ब्राह्मण केरल में बसाए गए और एक नियम निर्धारित किया गया कि नम्बूदरी परिवार का सबसे बड़ा बेटा केरल के वैश्य, क्षत्रिय या शूद्र समुदायों की बेटी से ही शादी कर सकता है। एक और अधिक साहसी नियम यह था कि किसी भी वर्ग की विवाहित महिला की पहली सन्तान नम्बूदरी ब्राह्मण से पैदा होनी चाहिए और फिर वह अपने पति से बच्चे पैदा कर सकती है। आज इस प्रयोग को व्यभिचार कहा जाएगा लेकिन ऐसा नहीं था, क्योंकि यह पहले बच्चे तक ही सीमित था।"

लेखक तंज कसते हुए कहते हैं: "ऐसा है इनका आर्य नस्ली विज्ञान!"

देवनूर कहते हैं कि, विडम्बना यह है कि गुजरात विश्वविद्यालय में गोलवलकर का नस्लवादी भाषण आर.एस.एस. के मुखपत्र 'ऑर्गनाइज्तर' में छपने के बाद उन्होंने अपनी कही हुई बात वापस ले ली। लेकिन तब तक वह प्रकाशित हो गया था और दस्तावेज भी बन गया था। सवाल है, गोलवलकर ने जो कहा था वह सच है या झूठ? अगर गोलवलकर ने अपने शब्द वापस ले लिये तो इसका मतलब है कि यह एक कपोल कल्पना है। लेकिन गोलवलकर इसका वर्णन इतनी स्पष्टता से कर रहे थे जैसे उन्होंने स्वयं अपनी आँखों से देखा था।

वह आगे कहते हैं कि, "यह जो गोलवलकर की गढ़ी हुई कथा (नैरेटिव) है यह झूठ के बीज बनकर, खर-पतवार की तरह हर जगह फैलती जा रही है। तथ्यों की जाँच किये बगैर, झूठ की यह खर-पतवार देश के कोने-कोने में WhatsApp, फेसबुक, न्यूज़ मीडिया तथा चर्चा के माध्यम से हर रोज फैलाई जा रही है.यह कपोल कल्पना का अंतहीन विस्तार, यह झूठ के बीज बोना, गोलवलकर की ही देन है."

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