अविवाहित महिलाओं को गर्भपात का अधिकार, सुप्रीम कोर्ट ने बताया किन शर्तों पर मिलेगा अबॉर्शन का हक, जानें गर्भपात को लेकर नियम

अविवाहित महिलाओं को गर्भपात का अधिकार
अविवाहित महिलाओं को गर्भपात का अधिकार

नई दिल्ली। अबॉर्शन (abortion) यानि की गर्भपात को लेकर विश्व के अलग-अलग देशों में अलग-अलग नियम कानून हैं। कहीं इसका अधिकार है तो कहीं गैरकानूनी है। ब्रिटेन, कनाड़ा, स्कॉडलैंड में यह संवैधानिक अधिकार है। वहीं दूसरी ओर अमेरिका में इसे गैरकानूनी घोषित किया जा चुका है। अमेरिका में इसी साल जून 2022 को गर्भपात के कानून को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है।

25 वर्षीय अविवहिता करा सकती है गर्भपात

भारत में गर्भपात को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल में एक अहम फैसला दिया गया, जिसके तहत अब महिलाएं अपनी मर्जी से गर्भपात करा सकती हैं। यह कानून सिर्फ विवाहित महिलाओं के लिए ही नहीं बना है बल्कि अब 25 वर्षीय अविवाहिता भी कानूनी तौर पर 24 हफ्तों में गर्भपात करा सकती हैं।

दरअसल, गर्भपात पर सुनवाई करते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि महिला की स्थिति जो भी हो उसे सुरक्षित और कानूनी तरीके से गर्भपात कराने का हक है। साथ ही कहा कि महिलाओं से गर्भपात का अधिकार इसलिए नहीं छीना जा सकता, क्योंकि वह अविवाहिता हैं। अगर ऐसा होता है तो यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा।

गर्भपात को लेकर पहले कानून

ऐसा नहीं है की पहले महिलाओं को कानूनी तौर पर गर्भपात की अनुमति नहीं थी। गर्भपात को लेकर 1971 में कानून बना था। जिसके अनुसार एक विवाहित गर्भवती महिला कानूनी तौर पर 20 सप्ताह में गर्भपात करा सकती है। लेकिन साल 2021 में इसकी समय सीमा बढ़ाकर 20 से 24 कर दी गई। जिसमें यह कहा गया कि 24 हफ्तों में गर्भपात उस स्थिति में हो सकता है जब महिला या बच्चे के मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य को किसी तरह का खतरा हो, लेकिन इसके लिए मेडिकल बोर्ड की मंजूरी होगी। लेकिन इस कानून के तहत भी अविवाहिता गर्भपात नहीं करा सकती थी। लेकिन, गत बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के आए अहम फैसले में अब अविवाहिता महिलाएं भी गर्भपात करा सकती हैं।

आपको बता दें कि, दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा एक अविवाहिता को 20 हफ्ते से अधिक हो जाने पर गर्भपात की अनुमित नहीं देने पर सुप्रीम कोर्ट में इसकी गुहार लगाई गई। जिस पर अहम सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 24 हफ्तों तक गर्भपात करने को कानूनी अधिकार बताया।

मैरिटल रेप पर भी फैसला

इस नए नियम के आने के साथ ही एक और बहस मीडिया में बनी हुई है — मैरिटल रेप। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि शादीशुदा महिलाएं भी रेप पीड़िताओं की श्रेणी में आ सकती हैं। महिला की बिना सहमति से बनाया संबंध रेप के दायरे में आता है। इसलिए ऐसी स्थिति में अगर महिला गर्भवती हो जाती है तो वह अपना गर्भपात करा सकती है। मैरिटल रेप को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पहले ही सुनवाई चल रही है। हालांकि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जबरन संबंध बनाने से पत्नी के प्रेग्नेंट होने पर मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल (Medical termination of pregnancy rule) यानि की MTP का सहारा लिया है। MTP के रूल 3B(a) के अनुसार गर्भपात करवाने के मामले को रेप माना जाएगा।

आईये जानते हैं कि क्या है MTP कानून और किन स्थितियों में एक महिला गर्भपात करा सकती है:

1- अगर प्रेग्नेंसी 20 हफ्ते से ज्यादा की नहीं है तो ऐसी स्थिति में गर्भपात किया जा सकता है।

2- महिला की प्रेग्नेंसी अगर 20 सप्ताह से ज्यादा की है लेकिन 24 हफ्ते से कम है लेकिन महिला की जान को खतरा है या उनके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान होने का खतरा है तो दो डॉक्टरों की राय के बाद प्रेग्नेंसी टर्मिनेट हो सकती है।

3- ऐसी स्थिति में अगर होने वाले बच्चे में कोई शारीरिक या मानसिक बीमारी होगी तो प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट किया जा सकता है।

इसके अलावा रेप सर्वाइवर्स, नाबालिग लड़की, मानसिक रूप से बीमार, विकलांग महिलाएं को 24 हफ्ते में प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने का अधिकार दिया गया है। इसके लिए कोर्ट से अनुमति लेने की जरुरत नहीं है। इसके साथ ही अगर प्रेग्नेंसी के दौरान किसी महिला की वैवाहिक स्थिति बदल जाती है। मतलब अगर पति की मृत्यु हो जाती है या तलाक हो जाता है तो ऐसी स्थिति में 24 हफ्ते में गर्भपात करा सकती है।

मैट्रियल रेप को लेकर यूएन इंटरनेशलन मे एंड जेंडर एक्वेलिटी सर्वे के अनुसार, भारत में 15 साल से 49 साल की दो तिहाई से ज्यादा शादीशुदा महिलाएं पति की पिटाई और जबरन सेक्स का शिकार होती है। पति की हिंसा झेलने वाली शादीशुदा महिलाओं में हर सामाजिक, आर्थिक स्थिति वाली महिलाएं शामिल हैं। इसके साथ ही देश में हर 5 में से एक पुरुष अपनी पत्नी या पार्टनर के साथ जबरन सेक्स करता है।

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