आरक्षण पर फिर आई आंच, अब यूजीसी ने किया नया कारनामा

इस मुद्दे पर यूजीसी अध्यक्ष एम जगदेश कुमार ने भी स्पष्ट किया कि अतीत में केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों (सीईआई) में आरक्षित श्रेणी के पद का आरक्षण रद्द नहीं किया गया और ऐसा कोई आरक्षण समाप्त नहीं किया जाने वाला है।
आरक्षण पर फिर आई आंच, अब यूजीसी ने किया नया कारनामा
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नई दिल्ली। भारत में आरक्षण को लेकर लगातार नए-नए फैसले और मामले सामने आ रहे हैं। ताजा मामला यूजीसी से जुड़ा है, जहां आरक्षित पदों पर भर्ती या उम्मीदवार न मिलने पर उन पर अनारक्षित पदों की भर्ती का प्रस्ताव रखा गया था। हलांकि भारी विरोध को देखते हुए सरकार बैकफुट पर नजर आई है। सरकार ने इस बात को खारिज करते हुए सफाई जारी की है। शिक्षा मंत्रालय (एमओई) ने रविवार को स्पष्ट किया कि किसी भी आरक्षित पद को अनारक्षित नहीं किया जा सकता। शिक्षा मंत्रालय का कहना है कि उच्च शिक्षा संस्थानों में भारत सरकार की आरक्षण नीति के कार्यान्वयन के लिए दिशा-निर्देश हितधारकों की आपत्ति और सुझाव के लिए जारी किए गए थे।

आरक्षण से जुड़े अधिनियम का हवाला दिया

 शिक्षा मंत्रालय ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर जारी पोस्ट में कहा, केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों (शिक्षकों के संवर्ग में आरक्षण) अधिनियम, 2019 के अनुसार शिक्षक संवर्ग में सीधी भर्ती के सभी पदों के लिए केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण प्रदान किया जाता है। मंत्रालय ने कहा, इस अधिनियम के लागू होने के बाद, किसी भी आरक्षित पद का आरक्षण समाप्त नहीं किया जाएगा। शिक्षा मंत्रालय ने सभी केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों (सीईआई) को 2019 अधिनियम के अनुसार रिक्तियों को भरने के निर्देश दिए हैं।

यूजीसी अध्यक्ष ने भी घोषणा की

इस मुद्दे पर यूजीसी अध्यक्ष एम जगदेश कुमार ने भी स्पष्ट किया कि अतीत में केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों (सीईआई) में आरक्षित श्रेणी के पद का आरक्षण रद्द नहीं किया गया और ऐसा कोई आरक्षण समाप्त नहीं किया जाने वाला है। उन्होंने कहा, सभी उच्च शैक्षणिक संस्थानों के लिए यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि आरक्षित श्रेणी के सभी पूर्व में रिक्त पद (बैकलॉग) ठोस प्रयासों से भरे जाएं।

यूजीसी के दिशा-निर्देशों की आलोचना हुई

यूजीसी के दिशा-निर्देशों को जमकर आलोचना का सामना करना पड़ा। रविवार को जारी हुए आदेश के बाद कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि उच्च शिक्षा संस्थानों में पदों पर एससी, एसटी और ओबीसी को दिए गए आरक्षण को समाप्त करने की साजिश की जा रही है और केंद्र की मोदी सरकार दलितों, पिछड़े वर्गों और आदिवासियों के मुद्दों पर केवल की राजनीति कर रही है। जेएनयू छात्र संघ (जेएनयूएसयू) ने इस मुद्दे पर यूजीसी अध्यक्ष के खिलाफ आज विरोध प्रदर्शन करने की घोषणा की।

विस्तार में जानिए क्या थे नए दिशा-निर्देश ?

यूजीसी के नये दिशा-निर्देशों के अनुसार, आरक्षित पद को एससी या एसटी या ओबीसी अभ्यर्थी के अलावा किसी अन्य अभ्यर्थी द्वारा नहीं भरा जा सकता। हालांकि, एक आरक्षित सीट को अनारक्षित करके उसपर जनरल केटेगरी के अभ्यर्थी की बहाली की जा सकती है। सीधी भर्ती के मामले में आरक्षित रिक्तियों को अनारक्षित घोषित करने पर प्रतिबंध है। हालांकि समूह ‘ए’ सेवा में जब कोई रिक्ति सार्वजनिक हित में खाली नहीं छोड़ी जा सकती। ऐसे में इस तरह के दुर्लभ और असाधारण मामलों में संबंधित विश्वविद्यालय रिक्ति के आरक्षण को रद्द करने का प्रस्ताव तैयार कर सकता है। प्रस्ताव में पद भरने के लिए किये गए प्रयास सूचीबद्ध करने होंगे, रिक्ति को क्यों खाली नहीं रखा जा सकता, इसका कारण बताना होगा और आरक्षण रद्द करने का औचित्य क्या है, यह भी बताना होगा।

दिशा-निर्देश में कहा गया कि ग्रुप ‘सी’ या ‘डी’ के मामले में आरक्षण समाप्त करने का प्रस्ताव विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद को भेजा जाना चाहिए और समूह ‘ए’ या ‘बी’  के मामले में प्रस्ताव आवश्यक अनुमोदन के लिए पूर्ण विवरण के साथ शिक्षा मंत्रालय को प्रस्तुत किया जाना चाहिए। मंजूरी मिलने के बाद पद भरा जा सकता है और आरक्षण को आगे बढ़ाया जा सकता है।

आरक्षित सीट रिक्त रहने पर उसे किया जा सकेगा 'अनारक्षित'

दिशा निर्देश में कहा गया था कि उच्च शिक्षण संस्थानों में एक रिक्त सीट जो अनुसूचित जाति (एससी) या अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षित है, वह खाली रह जाने की स्थिति में आवश्यकतानुसार इन तीन आरक्षित श्रेणियों से इतर श्रेणी में भरी जा सकेगी। आमतौर पर सीधी भर्तियों के मामले में किसी भी आरक्षित सीट के 'विआरक्षण' पर प्रतिबंध रहता है।

यूजीसी ने 'विआरक्षण' के प्रस्ताव पर दी थी अपनी मंजूरी

शिक्षा मंत्रालय और यूजीसी के उपयुक्त प्राधिकार ने 'विआरक्षण' के प्रस्ताव पर अपनी मंजूरी दी है और इसे विश्वविद्यालयों में एससी, एसटी के मामले देखने वाले लाइजन अफसर देखेंगे और मंजूरी देंगे। इसके क्रियान्वयन को लेकर विश्वविद्यालय में एससी-एसटी के लिए लाइजन अफसर और नियुक्ति अधिकारी के बीच असहमति की स्थिति में कार्मिक विभाग की सलाह को माना जाएगा और उसका ही अनुपालन होगा। लेकिन कुछ तय शर्तें पूरी होने के बाद ही इन मामलों को यूजीसी और शिक्षा मंत्रालय के समक्ष लाया जा सकेगा।

'विआरक्षण' का भी देना होगा उचित कारण

दिशा-निर्देश में बताया गया है कि दुर्लभ और अपवाद वाले मामलों में जब जनहित में 'समूह-ए' सेवा में किसी सीट को खाली रहने नहीं दिया जा सकता है तो संबंधित विश्वविद्यालय सूचित रिक्त पड़ी सीट के 'विआरक्षण' यानी उस आरक्षित सीट से आरक्षण हटाने की प्रक्रिया को अपना सकता है। इन प्रयासों के तहत विश्वविद्यालय को स्पष्ट करना होगा कि उस सीट को खाली क्यों नहीं रहने दिया जा सकता और उसके 'विआरक्षण' का भी उचित कारण देना होगा। दिशा-निर्देशों के मसौदे में बताया गया है कि 'समूह-सी' और 'समूह-डी' 'विआरक्षण' के प्रस्ताव का मामला विश्वविद्यालय के अधिशासी परिषद में जाएगा जबकि 'समूह-ए' और 'समूह-बी' का मामला पूरे ब्योरे के साथ शिक्षा मंत्रालय को सौंपा जाएगा।

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