एमपी हाईकोर्ट ने स्टाफ रूम में जातिसूचक शब्द कहने को अपराध नहीं माना, वकीलों ने कहा- 'फैसले पर हो पुनर्विचार'

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
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दिल्ली। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल में एससी/एसटी एक्ट के तहत विचाराधीन मामले की सुनवाई करते हुए दिए फैसले में स्टाफरूम को सार्वजनिक स्थान न मानते हुए ऐसी जगह पर की गई जातिगत टिप्पणी को अपराध नहीं माना है। दरअसल, एक मामले में स्टाफ रूम में हुई बैठक के दौरान शिकायतकर्ता को च&%$र कहकर बुलाया गया था। यह बात पीड़ित को अपमानजनक लगी और उसने मुकदमा दर्ज कराया था। इसी मामले ने कोर्ट ने फैसला सुनाया था।

हाईकोर्ट के इस फैसले को लेकर माहौल गरमा गया है। वहीं इस मामले में पंजाब हाईकोर्ट के अधिवक्ता रजत कल्सन ने एससी/एसटी एक्ट में संशोधन किए जाने की सलाह दी है। उनका कहना है ऐसे ही पंजाब हाईकोर्ट का फैसला आया था, जिसमें फोन पर जातिसूचक शब्द कहने को अपमान नहीं माना था। रजत कल्सन के मुताबिक इस प्रकार के आदेशों से तो दलितों का उत्पीड़न बढ़ जाएगा और लोग ऐसे ही माध्यमों से उत्पीड़न करना शुरू कर देंगे। उनका कहना है नियमों में बदलाव की सख्त जरूरत है। वहीं राजस्थान हाईकोर्ट के अधिवक्ता सतीश कुमार बताते हैं, "यह फैसला नियमों की अनदेखी करते हुए दिया गया है।" इसका मुख्य कारण पैरवी करने वाले वकील और मामले की जांच करने वाले विवेचक हैं।

पंजाब हाईकोर्ट के अधिवक्ता रजत कल्सन
पंजाब हाईकोर्ट के अधिवक्ता रजत कल्सन

एमपी कोर्ट के फैसले के मुताबिक आरोपी याचिकाकर्ताओं ने कथित तौर पर स्टाफ रूम मीटिंग के दौरान शिकायतकर्ता को जातिसूचक शब्द का जिक्र करते हुए अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया था। मामले में जस्टिस विशाल धगट सुनवाई कर रहे थे। कोर्ट का कहना था कि चूंकि स्टाफ रूम ऐसी जगह नहीं, जो सार्वजनिक रूप से नजर में आती हो। ऐसे में आरोपी के खिलाफ कोई आपराधिक मामला नहीं बनता है। कोर्ट ने कहा कि एससी एसटी एक्ट की धारा 3(1)(x) के तहत सार्वजनिक जगह पर अनुसूचित जाति या अनुसूचिज जनजाति के व्यक्ति का अपमान करना या धमकाने के चलते दंड दिया जा सकता है। उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार'यह साफ है कि SC & ST (POA) Act की धारा 3(1)(x) के तहत सार्वजनिक स्थान पर किए गए अपराध को अपराध माना जाएगा। स्टाफ रूम ऐसी जगह नहीं है, जो सार्वजनिक हो। ऐसे में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ SC & ST (POA) Act की धारा 3(1)(x) के तहत अपराध नहीं बनता है।'

इसके अलावा कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 294 के तहत दर्ज आरोपों को भी खारिज कर दिया। कोर्ट का कहना था कि स्कूल का स्टाफ रूम ऐसी जगह नहीं है, जहां आम जनता बगैर अनुमति के जा सके। उन्होंने कहा, 'ऐसे हालात में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ IPC की धारा 294 के तहत अपराध नहीं बनता है।' कोर्ट ने यह भी कहा कि IPC की धारा 506 के तहत भी याचिकाकर्ताओं के खिलाफ अपराध नहीं बनता है।

अधिवक्ता ने एससी /एसटी एक्ट नियमों में बदलाव किये जाने की सलाह दी

पंजाब हाईकोर्ट के अधिवक्ता मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के इस फैसले को लेकर कहा है कि-कोर्ट ने एससी एसटी एक्ट के नियमों के आधार पर फैसला दिया है। इस एक्ट में 3 (vii) (r) के मुताबिक एक अनुसूचित जाति के व्यक्ति का बन्द कमरे में आरोपी द्वारा जातिसूचक शब्द कहकर अपमान करना अपराध की श्रेणी में नहीं आता। यह घटना सार्वजनिक स्थान पर कही जाने पर आरोपी दंड का पात्र है। उन्होंने पंजाब हाईकोर्ट के एक फैसले को लेकर कहा कि पंजाब हाईकोर्ट ने फोन पर जातिसूचक शब्द कहने की घटना पर भी यही फैसला दिया था। ऐसे में इन नियमों में बदलाव करने की आवश्यकता है। यदि ऐसा नहीं किया गया तो यह अपराध ऐसे फैसलों से बढ़ सकते हैं।

इस मामले में राजस्थान हाईकोर्ट के अधिवक्ता बताते हैं, "मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर बेंच ने जो फैसला दिया वह गलत है। यह केस पेटिशन 482 के तहत 2010 में दर्ज किया गया था। यह 13 साल तक पेंडिंग रहा। बात रही पब्लिक प्लेस की तो पहले धारा -3(I) 10 होती थी, जो कि 3(I) (r) (s) हो गई है, इसमें कहा गया पब्लिक प्लेस पर नहीं है। यह घटना स्टाफ रूम में हुई है। स्टाफ रूम का मतलब एक से अधिक लोगों के बैठने की जगह यानि यह सार्वजनिक स्थान है। क्योंकि इसमें सभी लोग बैठते हैं। माननीय सुप्रीम कोर्ट सवर्ण सिंह ने कहा है कि जहां सब लोग देख सके वहां ऐसी घटना हो उसे अपराध माना जायेगा। क्योंकि स्टाफ रूम ऐसी ही जगह है। ऐसे मामले में स्टेट सरकार को रिव्यू पेटिशन डालनी चाहिए।"

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