मध्य प्रदेश: बिना मुखिया के आयोग, कैसे मिले दलित, आदिवासी व महिलाओं को न्याय!

एससी, एसटी व महिला आयोग में गत 9 महीनों से अध्यक्ष व सदस्यों के पद खाली, हजारों की संख्या में पेंडिंग पड़े मामले।
राज्य महिला आयोग
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भोपाल। पुलिस थानों और प्रशासनिक कार्यालयों से वाजिब न्याय नहीं मिलने से परेशान दलित, आदिवासी और महिलाएं एससी, एसटी और महिला आयोग में न्याय की उम्मीद में आते है तो उनको न्याय की जगह पर इंतजार मिलता है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि इन आयोगों में पिछले 9 महीने से अध्यक्ष/सदस्यों की नियुक्ति नहीं हो पाई है, जिस कारण इस तबके से संबंधित शिकायतों पर ठोस कार्यवाही नहीं हो पा रही है। आयोग में शिकायत के बाद भी मामले महीनों से पेंडिंग पड़े हैं।

राज्य अनुसूचित जाति आयोग, राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग और राज्य महिला आयोग में अध्यक्ष/सदस्यों के पद मार्च 2023 से खाली पड़े हैं। इस बीच तीनों आयोगों में हजारों की संख्या में शिकायती पत्र पहुँचे, लेकिन निराकरण एक का भी नहीं हुआ।

राज्य महिला आयोग के एक कर्मचारी ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि प्रति महीने लगभग तीन सौ शिकायतें आयोग को मिलती हैं। साल भर में करीब तीन हजार शिकायतें प्राप्त होती हैं। कुछ शिकायतें आयोग से संबंधित नहीं होती, उन्हें निरस्त कर दिया जाता है। बाकी आवेदनों पर संबंधित विभागों से जांच प्रतिवेदन मंगाकर फाइल बनाकर रख लिया जाता है। इनमें से कुछ मामलों में जांच प्रतिवेदन उपरांत ही निराकरण हो जाता। बचे हुए प्रकरणों में अध्यक्ष/सचिव की नियुक्ति के बाद ही कार्यवाही की जा सकती है। यही स्थिति राज्य अनुसूचित जाति/जनजाति आयोगों की है। इन आयोगों में भी शिकायतों की पेंडेंसी हजारों में है। इस संबंध में द मूकनायक ने राज्य महिला आयोग की सचिव तृप्ति शर्मा को फोन किया पर उनसे बात नहीं हो सकी।

आयोगों को सिविल न्यायालय की हैं शक्तियां

प्रशासन की अन्य एजेंसियों से जब शिकायतकर्ता को निष्पक्ष कार्यवाही नजर नहीं आती। तब आयोग में शिकायत की जा सकती है। आयोग की ओर से संबंधित विभाग से जांच प्रतिवेदन मांगा जाता है। विभाग के द्वारा आयोग को प्रेषित जांच से जब शिकायतकर्ता संतुष्ट नहीं होता तब आयोग की पीठ में मामले की सुनवाई होती है। आयोग को सिविल न्यायालय की शक्तियां प्राप्त हैं। आयोग सम्बंधित अधिकारियों की पेशी लगाकर सुनवाई करता है। मामले का निराकरण कर शासन को अनुशंसा भेजी जाती है, लेकिन आयोगों में अध्यक्ष/सदस्यों के नहीं होने से प्रकरणों में इस तरह की कार्यवाही नहीं की जा सकती।

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हाईकोर्ट में लंबित है मामला

अनुसूचित जाति आयोग में इसी साल मार्च 2023 में सदस्य प्रदीप अहिरवार का कार्यकाल समाप्त हुआ है। वहीं महिला आयोग में शोभा ओझा को मार्च 2020 में तत्कालीन कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने नियुक्त किया था। इसी के साथ आयोग के सात सदस्य और एससी/एसटी आयोग में अध्यक्ष और दो सदस्यों की नियुक्ति की गई थी। सरकार गिरते ही पूर्व की शिवराज सरकार ने नियुक्ति के आदेश निरस्त किए थे।  

नियुक्त अध्यक्ष और सदस्यों ने सरकार के फैसलों को न्यायालय में चुनौती दी थी। इस मामले में जबलपुर हाईकोर्ट ने सरकार के फैसले पर स्टे दिया था। स्टे के बाद कुछ सदस्य काम करते रहे तो कुछ हाईकोर्ट के फैसले के आने तक रुके। इस कारण आयोगों के तीन वर्षीय कार्यकाल में भी शिकायतों के खास निराकरण नहीं हुए।

द मूकनायक से बातचीत करते हुए राज्य अनुसूचित जाति आयोग के पूर्व सदस्य प्रदीप अहिरवार ने बताया कि साल 2020 में आयोगों में नियुक्ति के बाद बीजेपी सरकार ने नियुक्ति मामले को कैबिनेट में रखकर निरस्त किया था। यह संवैधानिक नियुक्तियां होती हैं। कोर्ट ने सरकार के फैसले पर तुरन्त स्टे दिया था। अभी भी मामला जबलपुर उच्च न्यायालय में विचाराधीन है।

राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग
राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग

1995 में हुआ आयोगों का गठन

मध्य प्रदेश राज्य अनुसूचित जाति आयोग अधिनियम क्रमांक-25 वर्ष-1995 के अन्तर्गत गठित किया गया था। आयोग में एक अध्यक्ष एवं दो अशासकीय सदस्य होते हैं। आयुक्त, अनुसूचित जाति विकास आयोग के पदेन सदस्य हैं। अनुसूचित जाति के सदस्यों को संविधान के अधीन तथा तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन दिए गए संरक्षण के लिए हित प्रहरी आयोग के रूप में कार्य करते है।

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ऐसे हुआ आयोगों का गठन

दिनांक 24 मई, 1995 के राज्यपाल की अनुमति से मध्यप्रदेश राजपत्र दिनांक 29 जून, 1995 को प्रथम बार प्रकाशित अधिसूचना में राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग का गठन हुआ। उससे संस्तुति या उसके आनुषंगिक विषयों का उपबंध करने के लिये अधिनियम भी प्रकाशित किए गए। वहीं मध्यप्रदेश राज्य महिला आयोग का प्रथम गठन राज्य सरकार द्वारा दिनांक 23 मार्च 1998 को मध्यप्रदेश राज्य महिला आयोग अधिनियम 1995 (क्र0 20 सन 1996) की धारा 3 के तहत किया गया था। अधिनियम के अंतर्गत एक अध्यक्ष और सात सदस्यों की नियुक्ति की जा सकती है।

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