“हाथ से मैला ढोने से एक भी मौत नहीं” — लोकसभा में केन्द्र सरकार का जवाब

“हाथ से मैला ढोने से एक भी मौत नहीं” — लोकसभा में केन्द्र सरकार का जवाब

सेप्टिक टैंक, सीवर की सफाई व हाथ से मैला ढोने को केंद्र सरकार ने माना अलग-अलग काम। मीडिया रिपोर्ट्स बताते हैं कि सीवर सफाई के दौरान पिछले पांच सालों में 340 सफाईकर्मियों की हुई मौत। "सरकारी दावे झूठे, आज भी देश में हाथ से मैला ढोया जा रहा है," — सामाजिक कार्यकर्ता।

नई दिल्ली। मानसून सत्र के दौरान लोकसभा में केंद्र सरकार ने यह दावा किया है कि मैनुअल स्कैवेंजिंग (हाथ से मैला ढोना) से किसी की मौत नहीं हुई है। संसद में दिए गए जवाब में यह स्पष्ट किया गया है कि हाथ से मैला ढोने वालों की पिछले पांच साल में एक भी मौत रिपोर्ट नहीं की गई है। साथ ही कहा गया है कि सीवर की सफाई करना और हाथ से मैला ढोना दोनों अलग-अलग काम हैं, जबकि मैनुअल स्कैवेंजिंग की परिभाषा देखी जाए तो दोनों का एक है। इधर, सामाजिक कार्यकर्ता विजयवाड़ा विल्सन ने कहा कि सरकार के दावे झूठे हैं।

केंद्रीय सामाजिक न्याय व अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास आठवले ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के सांसद गिरीश चंद्र द्वारा देश में हाथ से मैला उठाने वालों की संख्या और उनके रोजगार की स्थिति के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब में अपनी बात रखते हुए कहा कि हाथ से मैला ढोने से किसी की मौत नहीं हुई है।

फरवरी में मौत का आंकड़ा किया था पेश

आपको बता दें कि इसी साल फरवरी के महीने में आठवले ने लोकसभा में यह बताया था कि सीवर टैंक की सफाई करते वक्त पिछले पांच सालों में 340 लोगों की मौत हुई है। ऐसा पहली बार नहीं ही जब समाज के सबसे निचले तबके के लोगों की मौत को नकारा गया है। पिछले साल भी मानसून सत्र के दौरान विपक्ष के नेता (कांग्रेस) मल्लिकार्जुन खड़गे और एल हनुमंयैता द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए आठवले ने कहा था कि पिछले पांच सालों में मैनुअल स्कैवेंजिंग से किसी भी मौत का मामला सामने नहीं आया है।

2013 से हाथ से मैला ढोने पर प्रतिबंध है

बसपा सांसद द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए रामदास आठवले ने कहा कि, मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोजगार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 (एमएस अधिनियम, 2013) की धारा 2 (1) (जी) के तहत वर्तमान में मैनुअल स्कैवेंजिंग में लगे लोगों की कोई रिपोर्ट नहीं है। जबकि इस बारे में भी सरकारी आंकड़ों से इतर सच्चाई कुछ और ही है। हाल ही में द क्विंट में प्रकाशित हुई एक खबर के अनुसार, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अधीन काम करने वाली संस्था नेशनल सफाई कर्मचारी फाइनेंस एंड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन की रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ यूपी में ही मार्च 2020 तक 48 जिलों में 23070 मैनुअल स्कैवेंजर्स थे। जबकि देश के 18 राज्यों में 48,345 सफाई कर्मचारी है। वहीं 2011 की जनगणना के अनुसार 1.8 लाख दलितों के आय का स्त्रोत भी यही है।

सरकार ने यह भी दावा किया है कि, सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान हुई दुर्घटनाओं में 340 लोगों की मौत हुई है। जबकि सफाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजवाडा विल्सन के ट्वीट के अनुसार सीवर टैंक में जहरीली गैस में दम घुटने के कारण 472 लोगों की मौत हुई है। लोकसभा में अपनी बात को रखते हुए रामदास आठवले ने कहा कि कोई भी व्यक्ति या एजेंसी उपरोक्त तिथि यानी की कानून पारित होने से बाद से किसी भी व्यक्ति को हाथ से मैला ढोने के काम में नहीं लगा सकता है। न ही नियुक्त कर सकता है, जबकि स्थिति इसके बिल्कुल विपरीत है। द क्विंट की खबर के अनुसार, यूपी के जालौन जिले में आज भी महिलाएं कई घरों का मैला ढोती हैं। महिलाएं अपने किसी रिश्तेदारों को यह बात नहीं बताती हैं कि वह क्या काम करती हैं। इस काम के कारण कई महिलाओं को बीमारियों से भी जूझना पड़ रह है।

75 दिनों से देश में चल रहा है मौत को रोकने का आंदोलन

सफाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजवाड़ा विल्सन का सरकार द्वारा पेश किए गए आंकड़ों के बारे में अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि सरकार झूठ बोल रही है। जिन्हें मैनुअल स्कैवेंजिंग की परिभाषा नहीं पता है वो क्या ही इन लोगों के दर्द को समझ पाएंगे। आए दिन सीवर सफाई के दौरान लोग अपनी जान दे रहे हैं। पिछली बार भी केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने कहा था कि पिछले पांच साल में एक भी मौत नहीं हुई है। जबकि आंकड़े कुछ और ही बयां करते हैं। मैंने कुछ ट्वीट कर सबको बताया था कि पिछले पांच सालों में 472 लोगों की मौत मैनुअल स्कैवेंजिंग के कारण हुई है। विल्सन कहते हैं कि हाथ से मेला ढोने की प्रथा खत्म हो गई है। लेकिन सच्चाई तो यह है कि यूपी, बिहार, झारखंड, जम्मू कश्मीर में आज भी ये प्रथा जिंदा है।

उल्लेखनीय है कि सफाई कर्मचारी आंदोलन द्वारा पूरे देश में 75 दिनों का आंदोलन चलाया जा रहा है। जिसमें इस काम से जुड़े लोग शामिल हो रहे हैं। वहीं बता रहे हैं कि कैसे वह अपनी जान को जोखिम में डालकर अपनी आजीविका चला रहे हैं।

मैनुअल स्कैवेंजिंग की परिभाषा

किसी व्यक्ति द्वारा बिना किसी विशेष सुरक्षा उपकरण के अपने हाथों से मानव अवशिष्ट की सफाई करना या सिर पर ढोने की इस प्रक्रिया को मैनुअल स्कैवेंजिंग के अंर्तगत रखते हैं। सरकार ने जो आंकड़े प्रस्तुत किए हैं। उसके अनुसार जो लोग सिर्फ मैला ढोते हैं। उन लोगों का जिक्र नहीं किया गया है। सीवर के अंदर जाकर सफाई करने वाले लोगों को इस सूची में रखा गया है। जबकि परिभाषा के अनुसार देखा जाए तो वो हर व्यक्ति जो बिना सुरक्षा उपकरणों के काम करता है। वो मैनुअल स्कैवेंजर हैं। चूंकि भारत में आज भी सीवर टैंक की सफाई करने के लिए सफाई कर्मचारी को किसी भी तरह का कोई सुरक्षा उपकरण नहीं दिया जा रहा है।

मौतों का आंकड़ा

लोकसभा में पेश किए जवाब के अनुसार सबसे ज्यादा मौतें उत्तरप्रदेश में हुई हैं। हाल ही में रायबरेली में सीवर टैंक की सफाई के दौरान 2 लोगों की मौत हो गई, जिसमें से एक सफाई कर्मचारी हरियाणा का था। लोकसभा में पेश आंकड़ों के अनुसार यूपी 47, तमिलनाडु 42, हरियाणा में 36 मौते हुई हैं।

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