दलित भू अधिकार आंदोलन में शामिल होने पर फ्रांसीसी नागरिक को प्रताड़ित कर भेजा था जेल, यूपी पुलिस पर गंभीर आरोप

फ्रांसीसी डाक्यूमेंट्री मेकर को गोरखपुर पुलिस ने अक्टूबर में गिरफ्तार किया था,जेल में बेवजह बिताने पड़े थे तीस दिन.
दलित महिलाओं पर डाक्यूमेंट्री बनाते समय वैलेंटाइन हेनॉल्ट की तस्वीर.
दलित महिलाओं पर डाक्यूमेंट्री बनाते समय वैलेंटाइन हेनॉल्ट की तस्वीर.तस्वीर- वैलेंटाइन हेनॉल्ट

लखनऊ। गोरखपुर पुलिस ने अक्टूबर 2023 में अम्बेडकर मोर्चा के 'घेरा डालो डेरा डालो' आंदोलन के दौरान एक फ्रांसीसी डॉक्यूमेंट्री निर्देशक वैलेंटिन हेनॉल्ट को इस आंदोलन में शामिल होने के लिए गिरफ्तार किया था। शुरुआत में पुलिस ने इसे गोरखपुर में दंगा कराने की एक साजिश बताते हुए गिरफ्तारियां की थीं। यूपी से फ्रांस वापस लौटे पीड़ित ने पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए और कहा- "पुलिस ने मानसिक यातनाएं दीं। उन्हें 40 घंटे तक थाने में रखा। इसके साथ ही 24 घंटे में सिर्फ एक घंटे ही सोने की अनुमति दी।"

गौरतलब है कि गोरखपुर जिले में दलित, पिछड़ा, मुस्लिम और गरीब मजदूर भूमिहीन परिवारों को एक-एक एकड़ जमीन देने की मांग अंबेडकर मोर्चा के नेताओं ने उठाई थी। इस मांग को लेकर नेताओं ने कमिश्नर कार्यालय में दस अक्टूबर 2023 को पूरे दिन डेला डालो, घेरा डालो आंदोलन किया। जिसके बाद देर रात पुलिस ने अंबेडकर जनमोर्चा के नेताओं सहित लेखक और पत्रकार के खिलाफ हत्या के प्रयास सहित अन्य संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज कर 24 घण्टे में गिरफ्तार कर लिया। उन्हें कोर्ट में पेश करके जेल भेज दिया गया था।

गिरफ्तार किये गए इन लोगों में फ्रांसीसी नागरिक हेनोल्ड वेलेंटाइन रोजर भी शामिल थे। होनाल्ड पेशे से एक फिल्म निर्माता हैं,जो डाक्यूमेंट्री बनाते हैं। वह भारत में दलितों पर डाक्यूमेंट्री बनाने आये थे। उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। बाद में उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया, लेकिन उनके खिलाफ जारी लुकआउट नोटिस (एलओसी) के कारण रिहाई के छह महीने बाद भी वे भारत से बाहर नहीं जा सके थे।

अम्बेडकर जन मोर्चा द्वारा घेरा डालो डेरा डालो आंदोलन के दौरान मौजूद महिलाएं.
अम्बेडकर जन मोर्चा द्वारा घेरा डालो डेरा डालो आंदोलन के दौरान मौजूद महिलाएं.तस्वीर- वैलेंटाइन हेनॉल्ट.

द मूकनायक को हेनॉल्ट ने बताया कि भारत में पुलिसिया प्रक्रिया से निपटना सबसे मुश्किल काम लगा। पुलिस का रवैया अमानवीय था। मुझे यह भी नहीं पता था कि मैं कुछ दिनों के लिए जेल में रहूंगा या फिर लम्बे समय के लिए जेल में कैद हो जाऊंगा।

भारत में दलितों पर डाक्यूमेंट्री बनाने के दौरान एक गांव में पहुंचे वैलेंटाइन के साथ मौजूद कुछ युवक
भारत में दलितों पर डाक्यूमेंट्री बनाने के दौरान एक गांव में पहुंचे वैलेंटाइन के साथ मौजूद कुछ युवक तस्वीर- वैलेंटाइन हेनॉल्ट

हेनॉल्ट दलित महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों पर केंद्रित एक फिल्म पर काम करने के लिए 10 अगस्त, 2023 को भारत आए थे। उन्होंने उत्तर प्रदेश से पहले बिहार और झारखंड की यात्रा की। 10 अक्टूबर, 2023 को, हेनॉल्ट किसान महिलाओं के नेतृत्व में “अंबेडकर के लोगों के मार्च” में शामिल हुए थे, जिसमें वे दलितों के लिए भूमि अधिकारों की मांग कर रही थीं। मंच पर एक वक्ता जो उन्हें पहले से जानता था, ने उनका नाम लिया, जिसके बाद उन्हें "स्थानीय खुफिया पुलिस" (एलआईयू) ने घेर लिया। हेनॉल्ट से पूछताछ की, उसके बाद कार्यक्रम स्थल से जाने दिया।

हेनॉल्ट द मूकनायक को बताते हैं-"मैं अपने होटल के कमरे में था। शाम का लगभग 6 बज रहा था। अचानक पुलिस ने मेरे कमरे में दस्तक दी। करीब 6 पुलिसकर्मी थे। मेरा वीडियो बना रहे थे। पुलिस मुझे लेकर पुलिस स्टेशन आ गई। मुझसे अम्बेडकर मोर्चा के बारे में पूछा। जेएनयू और नक्सलवादी संगठनों के बारे में पूछा,लेकिन मुझे इसकी कोई जानकारी नहीं थी।"

भारत में दलितों की जिंदगी बहुत अच्छी है!

हेनॉल्ट ने द मूकनायक को बताया-"पुलिस को अच्छे से पता था कि मैं क्या काम करता हूं। पुलिस समझ रही थी कि मैं दलितों पर होने वाले अत्याचारों के बारे में फिल्म बना रहा हूं। उन्होंने फटकार लगाई और मुझसे कहा-'तुम दलितो पर स्टोरी क्यों बना रहे हो,भारत में दलितों की जिंदगी बहुत अच्छी है। तुम्हे यहां के बारे में कुछ भी पता नहीं है। तुम क्यों उल्टा सीधा वीडियो बना रहे हो। वह मेरे काम को लेकर नाराज थे। वह चाह रहे थे कि मैं दलितों के बारे में कुछ भी न दिखाऊं।"

40 घंटे गैर न्यायिक हिरासत में रखा,24 घंटे में एक घंटे ही सोने दिया

"पुलिस मुझे परेशान कर रही थी। मुझे खाने के लिए तो सबकुछ मिल रहा था,लेकिन बहुत ज्यादा पूछताछ की जा रही थी। ऐसा लग रहा था मैं कोई बहुत बड़ा अपराधी हूं। जब पुलिस मुझे होटल से उठाकर लाई तो मुझे 40 घंटे थाने में ही रखा गया। इस दौरान 24 घंटे में मुझे शायद 20 घंटे की पूछताछ के बाद सिर्फ एक घंटे हो सोने दिया जाता था। वह भी सुबह होने के समय। जब मैं सुबह सोने की कोशिश करता तो एक पुलिसकर्मी आकर जोर से चिल्लाने लगता-'उठो सुबह हो गई है'।" हेनॉल्ट ने द मूकनायक को बताया।

मजिस्ट्रेट आई और कागज पर दस्तखत करके चली गई

"मुझे गिरफ्तार करने के लगभग 20 घंटे बाद पुलिस ने केस दर्ज कर लिया था। इसके बावजूद भी मुझे जेल नहीं भेजा गया। लगभग 40 घंटा बीत जाने के बाद मुझे शाम को एक पार्किंग के पास ले जाया गया। एक गाड़ी आकर रुकी। उसमें महिला मजिस्ट्रेट बैठी हुई थी। वह गाड़ी से उतरी भी नहीं थी। उन्होंने कागज पर साइन किये और चली गई। अगले दिन मुझे जेल भेज दिया गया। मुझे अपनी बात रखने का मौका भी नहीं दिया गया।" हेनॉल्ट बताते हैं।

जेल में कैदियों की बुरी स्थिति,गरीबों और बेकसूर जेल में हैं बंद

"मुझे गोरखपुर की जिला जेल में भेज गया था। जेल में बहुत ज्यादा बुरी स्थिति है। एक बैरक में दो सौ से ज्यादा आदमी थे। वहां भी फ़र्श पर सोता था, सोने के लिए जगह भी बहुत कम मिलती थी। इतनी कम जगह में करवट लेना असंभव था। जेल में सबसे ज्यादा गरीब लोग हैं। उनमें भी दलित,आदिवासी और मुस्लिम समुदाय के लोग ज्यादा है।" हेनॉल्ट जेल में आंखों देखी का जिक्र करते हैं।

जेल में भी जातीय भेदभाव, दलितों से साफ़ कराते हैं गंदगी!

हेनॉल्ट बताते हैं-"मुझे लगा था जेल के बाहर ही जातीय भेदभाव होता होगा, लेकिन जब मुझे जेल में दिन गुजारने पड़े तो मैं आश्चर्यचकित था। जेल में बहुत ज्यादा जातीय भेदभाव है। जेल के अंदर दलितों से गंदगी साफ़ कराई जाती है। उन्हें वही काम दिए जाते थे जो बहुत ही खराब होते थे। एक बैरक में पूरे के पूरे यादव लोग भरे हुए थे। वह सबसे प्रभावशाली लोग थे। उनकी ही जेल में चलती थी। इसके आलावा पैसे वालों की जाति तक नहीं पूछी जाती थी।"

'जब जेल प्रशासन को लगा मुझे असुविधा हो रही है तो मुझे मानसिक रूप से अस्थिर व्यक्तियों के लिए बने एक सेल में स्थानांतरित कर दिया गया था। वहां अन्य कैदियों को चुप रखने के लिए शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता था, लेकिन वहाँ रहना अच्छा था, क्योंकि सेल में थोड़ी ज़्यादा जगह थी। इसके बाद मुझे एक अस्पताल में शिफ्ट कर दिया गया।" हेनॉल्ट बताते हैं।

मामले में पुलिस ने हेनॉल्ट पर विदेशी अधिनियम के अनुच्छेद 14 बी के तहत "वीज़ा शर्तों का उल्लंघन" करने का आरोप लगाते हुए गिरफ्तार किया था। इस कानून के मुताबिक़ यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर भारत में प्रवेश करने के लिए जाली पासपोर्ट का उपयोग करता है या कानून के अधिकार के बिना देश में रहता है, तो उसे कम से कम दो साल की अवधि के कारावास से "दंडित" किया जाएगा, जिसे कई बार आठ साल तक बढ़ाया जा सकता है। हेनाल्ट की गिरफ्तारी ने स्थानीय मीडिया में आईएसआई,विदेशी फंडिंग जैसी धारणाओं और बातों को जन्म दे दिया था।

कानून प्रवर्तन अधिकारियों ने दावा किया था कि उन्होंने "अपने वीज़ा आवेदन पर धनबाद में एक संदर्भ संपर्क का संकेत दिया था और उन्हें झारखंड छोड़ने की अनुमति नहीं थी", वहीं हेनॉल्ट कहते हैं "यह आरोप पूरी तरह से बेबुनियाद है, उनके ई-बिजनेस वीज़ा, जो एक वर्ष के लिए वैध है, में कोई भौगोलिक प्रतिबंध शामिल नहीं है।"

इस बीच, वे पहले दिन जेल से फ्रांसीसी दूतावास से संपर्क करने में सफल रहे। दूतावास ने एक वकील का संपर्क प्रदान किया। गिरफ्तारी के तीसरे सप्ताह में, दूतावास के एक अधिकारी ने जेल में उनसे मुलाकात की। इसके बाद, उनके पिता उनसे मिलने आए और अपना वकील बदल दिया, जिसके बाद वे जमानत पाने में सफल रहे और 10 नवंबर, 2023 को रिहा हुए।

हेनॉल्ट के खिलाफ़ LOC नहीं हटाई गई और उनका पासपोर्ट मई तक पुलिस के पास था। आखिरकार 4 मई को भारत से चले गए। रिपोर्ट के अनुसार, फ्रांसीसी दूतावास ने इस कठिन समय के दौरान उनके परिवार को सूचित किया था कि "चुनावों के कारण प्रक्रिया में देरी हुई है।" हेनॉल्ट ने द मूकनायक को बताया।

प्रेस स्वतंत्रता एनजीओ रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) द्वारा जारी 2024 विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत को 176 देशों में से 159वां स्थान दिया गया है। RSF ने पहले भी कहा है कि केंद्र सरकार विदेशी संवाददाताओं के भारत में काम करने के तरीके को सीमित करने और मीडिया में उनके कवरेज को नियंत्रित करने के प्रयास में उन पर दबाव डालने के लिए "मनमाने ढंग से वीज़ा प्रक्रियाओं का फायदा उठाती है।"

विदेशी नागरिक को गैर न्यायिक हिरासत में रखना गलत

इस पूरे मामले को लेकर पूर्व आईपीएस अधिकारी और अधिकार सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमिताभ ठाकुर द मूकनायक से कहते हैं -"उत्तर प्रदेश पुलिस की कार्रवाई पर हमेशा सवाल उठा है। जब उस फ्रांसीसी नागरिक के साथ पुलिस द्वारा इस तरह बर्बरता की गई होगी तो उसे यह जरूर महसूस हुआ होगा कि कौन सी दुनिया में आ गए। पुलिस किसी को भी 24 घंटे से ज्यादा थाने पर नहीं रख सकती। नियमानुसार हिरासत में लेने के 24 घंटे के बाद मजिस्ट्र्रेट के सामने पेश करने का नियम है। यह मानवाधिकार का उल्लंघन है।"

इधर, द मूकनायक ने गोरखपुर जिला पुलिस अधीक्षक गौरव ग्रोवर से आरोपों के संबंध में बात करने की कोशिश की, लेकिन एसपी कार्यालय से उनके चुनाव ड्यूटी में व्यस्त होने की सूचना दी गई।

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