पूर्वांचल के कालानमक चावल की खुशबू पूरे देश में फ़ैल रही

बस्ती जिले के एक खेत में कालानमक धान की फसल
बस्ती जिले के एक खेत में कालानमक धान की फसल [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]

कृषि विज्ञान केंद्र के प्रोत्साहन, उन्नत किस्म के कालानमक की प्रजातियां, अनुकूलित जलवायु और उपजाऊ मिट्टी में किसान पैदा कर रहे सबसे अधिक खुशबूदार और पौष्टिक कालानमक चावल (black salt rice)। भारत सरकार द्वारा देश के 11 जिलों में से बस्ती को कालानमक के मूल उत्पादक जिले के रूप में किया गया है सूचीबद्ध।  

उत्तर प्रदेश। यूपी के पूर्वांचल में किसानों की तीन प्रमुख फसलों — गेहूं, धान और गन्ना, में खरीफ की फसल धान की खेती का स्थान महत्वपूर्ण है. बस्ती सहित आसपास के जिलों की उपजाऊ मिट्टी, नम जलवायु, नदियों द्वारा बहाकर लाई गई जलोढ़ मिट्टी, उयुक्त जलवायु और प्राकृतिक जल स्रोतों की उपलब्धता धान की फसल के लिए सोने पर सुहागा जैसी है। यहाँ के तलहटी मैदान में चावल की खेती के क्रम में पूर्वांचल का यह जिला अब अपने सुगन्धित और पौष्टिक काला नमक चावल (black salt rice) के उत्पादन में नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है. यहाँ की कई सहायक नदियों में रवाई, मनवार, मनोरमा आदि हैं। जनपद की दक्षिणी सीमाओं के साथ दक्षिण पूर्व की ओर दिशा में बहती आमी नदी राप्ती नदी की प्रमुख सहायक नदी है। यह आमी नदी धान कृषि भूमि का एक बड़ा अपवाह तंत्र है।

कालानमक धान [फोटो साभार- विकिपीडिया कामन्स]
कालानमक धान [फोटो साभार- विकिपीडिया कामन्स]

काला नमक चावल की बात होते ही मन में मुलायम और सुगन्धित चावल का ख्याल आने लगता है. अक्सर सामान्य घरों में यह चावल किसी बड़े समारोह, शादी-विवाह, मांगलिक कार्यक्रमों आदि अवसरों पर देखने को मिलता है. मार्केट में सांभर, बासमती आदि प्रो लेवल के चावलों से भी अधिक महंगे काला नमक चावल को सामान्य तौर पर रोजाना खाने में शामिल करना आसान नहीं होता।

बस्ती जिले के प्रगतिशील किसान, व कृषि क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए राष्ट्रीय नवोन्मेषी कृषक पुरस्कार, नेशनल इन्वोवेटिव फॉर्मर एवार्ड विजेता विजेंद्र बहादुर पाल (64) बताते हैं कि, वातावरण जब ठंढा होता है तो धान की फसल बहुत तेज बढ़ती है, और जब मौसम गर्म होता है तो धान की फसल कमजोर पड़ जाती है. पिछले साल की तरह इस बार भी 6 बीघे (2 एकड़) में कालानमक धान की फसल लगाने वाले किसान विजेंद्र बहादुर पाल ने द मूकनायक को बताया, "मैंने कृषि विज्ञान केंद्र बस्ती से एसएल3 (SL3) किस्म का 18 किलोग्राम कालानमक धान का बीज लिया था. यह बीज 6 बीघे के लिए था. 6 जून 2022 को इसका नर्सरी डाला, और 31 जुलाई 2022 को इसकी रोपाई की."

कालानमक के पौधे [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]
कालानमक के पौधे [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]

पाल बताते हैं कि, "मैं अपने खेतों में कभी फर्टिलाइजर (खाद) का प्रयोग नहीं करता। रासायनिक उर्वरक का ही प्रयोग करता हूँ. इस बार बारिश की अनियमितता थी, फिर भी एक बीघे में लगभग 4 कुंतल कालानमक धान की पैदावार की उम्मीद करता हूँ. पिछली बार भी मैंने 6 बीघे में 24 कुंतल कालानमक धान की उपज प्राप्त की थी."

इस साल खरीफ की फसली सीजन में बारिश की कमी के चलते किसान अपनी पैदावार को लेकर चिंतित जरूर हैं. लेकिन मानसून वापसी के दौर में बारिश होने पर उपज को लेकर उम्मीदें बढ़ गईं हैं. 

कालानमक धान की उपज के बाद बाजार में इसके विक्रय के बारे में पूछे जाने पर पाल ने द मूकनायक को बताया, "पिछले साल मेरा 24 कुंतल कालानमक धान यहीं मेरे घर से ही बिक गया था. मेरे कई परिचित, रिस्तेदार, जनपद के कृषि वैज्ञानिक, गांव के लोग जो दिल्ली-मुंबई रहते हैं, ने ही मुझे कालानमक खरीद लिया था. इसलिए इसके विक्रय को लेकर कभी कोई चिंता ही नहीं हुई." उन्होंने बताया, "मैंने कालानमक को 100 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेंचा था." 

Amazon पर कालानमक चावल के दाम 300 रुपए प्रति किलो से भी अधिक [फोटो साभार- अमेजन ऑफिसियल वेबसाइट]
Amazon पर कालानमक चावल के दाम 300 रुपए प्रति किलो से भी अधिक [फोटो साभार- अमेजन ऑफिसियल वेबसाइट]

मार्केट में कालानमक का दाम

कालानमक चावल के मार्केट रेट की बात करें तो, यह दुकानों पर 100 रुपए से लेकर 150-200 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिकता है. अगर ऑनलाइन मार्केट में कालानमक चावल के दामों की जाँच करें तो, अच्छी पैकिंग और किसी ब्रांड के साथ चस्पा किये गए पैकेट में बंद कालानमक चावल का दाम 300 रुपए प्रति किलो या उससे अधिक है। 

सिद्धार्थ फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी के डायरेक्टर और नेशनल आईसीएआर अवार्ड विजेता बृहस्पति पाण्डेय नें बताया कि, "पहले कालानमक चावल देशी था, लेकिन हाल के कुछ वर्षों में लगातार भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् द्वारा काला नमक धान के कई अन्य किस्मों को विकसित करने के लिए बस्ती जनपद का चयन किया जा रहा है."

उन्होंने आगे कहा, "इस साल [2022], बस्ती कृषि विज्ञान केंद्र में कालानमक धान की 24 नई किस्मों पर शोध जारी है. पिछले [2021] साल, 14 किस्में थीं. उन किस्मों का नामकरण अभी नहीं किया गया है. जिस कालानमक धान की नर्सरी यहां डाली जाती है उन्हें कोडिंग दिया जाता है. जिस धन की किस्मों पर शोध चलता है उनपर लगभग सात साल ट्रायल चलता है."

"कालानमक चावल यूपी के पूर्वांचल की ही फसल है. जो नई किस्में आती हैं उनके परीक्षण हेतु पूर्वांचल की मिट्टी, पौधों में लगने वाले रोग, यहां की जलवायु, खुशबू में अंतर, उत्पादन, पौधों की लम्बाई आदि चीज़ों का डाटा तैयार किया जाता है. इसका डाटा भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् को भेजा जाता है. इन सब में जो किस्म अच्छी होती है उसे किसानों के लिए खेतों में रोपित करने हेतु जारी कर दी जाती हैं. बस्ती जनपद में भी हाल ही में 2 उन्नत किस्में रिलीज की गईं हैं. ये दोनों किस्में बौनी प्रजातियां हैं. पहले किसानों को कालानमक की फसल में उसके पौधों की ज्यादा लम्बाई की वजह से नुकसान होता था. थोड़ी सी हवा चलने पर पौधे टूट जाते थे जिससे उत्पादन पर बड़ा प्रभाव पड़ता था। हालाँकि, इन दो किस्मों में यह समस्या नहीं है. इस किस्म के कालानमक का चावल देशी कालानमक चावल जितना खुशबूदार और स्वादिष्ट है. इसका उत्पादन भी अधिक है." बात पूरी करते हुए उन्होंने बताया।

कृषि विज्ञान केंद्र बस्ती [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]
कृषि विज्ञान केंद्र बस्ती [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]

कृषि विज्ञान केंद्र काला नमक की खेती के लिए किसानों को दे रहा प्रोत्साहन

कृषि विज्ञान केंद्र बस्ती में इस वर्ष 2 हेक्टेयर में नई उन्नत किस्म के कालानमक धान की नर्सरी तैयार की गई है. इससे तैयार कालानमक धान को किसानों में सरकारी दर पर सस्ते दाम पर धान के बीज के रूप में वितरित किया जाएगा। पिछले साल 2021 में लगभग 26 कुंतल कालानमक धान के बीज किसानों में वितरित किया गया था. यहां के कालानमक धान के बीज के लिए यूपी के अन्य जिलों के किसानों भी यहां आते हैं. 2021 में, यहां कालानमक धान का बीज किसानों को लगभग 65 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से दिया गया. 

कृषि विज्ञान केंद्र बस्ती के कृषि वैज्ञानिक, फसल सुरक्षा, डॉ. प्रेम शंकर और द मूकनायक पत्रकार राजन चौधरी
कृषि विज्ञान केंद्र बस्ती के कृषि वैज्ञानिक, फसल सुरक्षा, डॉ. प्रेम शंकर और द मूकनायक पत्रकार राजन चौधरी

कृषि विज्ञान केंद्र बस्ती के कृषि वैज्ञानिक, फसल सुरक्षा, डॉ. प्रेम शंकर द मूकनायक को बताते हैं, "पूरे भारत में 739 कृषि विज्ञान केंद्रों में सबसे बेहतर परफॉर्मेंस के लिए 2021 में बस्ती कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) को राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ है. हम उन्नत तकनीकी शोधों और किसानों के सहयोग से कालानमक धान की खेती और उसके उत्पादन में अव्वल स्थान प्राप्त करने की स्थिति में आ चुके हैं."

"किसानों के उत्पाद पर जब जीआई टैग प्राप्त होता है तो वह उनके उत्पाद की शुद्धता की गारंटी देता है. जैसे ISI और एगमार्क पैमाना होता है, इसी प्रकार कालानमक में अगर जीआई टैग है तो किसानों को अपनी कालानमक फसल की शुद्धता का पैमाना मिल जाता है. बस्ती जनपद के किसान भाइयों के लिए यह ख़ुशी की बात है कि उनके कालानमक फसल पर भारत सरकार द्वारा जीआई टैग स्वीकृत किया गया है," उन्होंने कहा.

कृषि विज्ञान केंद्र बस्ती में उन्नत किस्म के कालानमक की तैयार की गई नर्सरी [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]
कृषि विज्ञान केंद्र बस्ती में उन्नत किस्म के कालानमक की तैयार की गई नर्सरी [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]

कृषि वैज्ञानिकी डॉ. प्रेम शंकर ने जनपद के किसानों से अपील की कि, किसान भाइयों को परंपरागत पुराने किस्म के धान की वैरायटीज को छोड़कर नए उन्नत किस्म के कालानमक धान की रोपाई पर ध्यान देना चाहिए। क्योंकि जनपद की जलवायु और यहाँ की मिट्टी इसके लिए बहुत ही उपयुक्त है. इससे किसानों की आमदनी और पैदावार में इजाफ़ा होगा।

पिछले साल 2021 में, बस्ती जनपद के किसानों को कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) बस्ती के जरिये उपलब्ध कराये गए सुगन्धित कालानमक धान की नई वैराइटी की व्यापक स्तर पर खेती करवाई गई थी. कृषि विज्ञान केंद्र के मार्गदर्शन में किसानों से लगभग पांच सौ हेक्टेयर और खुद की निगरानी में भी पांच सौ हेक्टेयर रकबे में कालानमक धान की खेती करवाई गई थी.

बस्ती जिले में कालानमक की खेती [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]
बस्ती जिले में कालानमक की खेती [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]

इस साल लगभग पांच हजार बीघे में कालानमक धान की हुई रोपाई

बस्ती जिले में कालानमक धान की उत्पादकता हेतु अनुकूलित वातावरण और उपजाऊ मिट्टी को देखते हुए यहां के किसान कालानमक धान की खेती के प्रति तेजी से आकर्षित हो रहे हैं. जिले के कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा किसानों के बीच फसल को लेकर जागरूकता, प्रशिक्षण और उन्नत किस्म के बीज उपलब्ध कराए जाने का नतीजा यह हुआ कि इस वर्ष 2022 में  जनपद में लगभग 5 हजार बीघे (1254 हे.) में कालानमक धान की फसल लगाई गई है.

काला नमक उत्पादक क्षेत्रों की भौगोलिक विशेषता

काला नमक चावल उत्पादक बस्ती जिले को भारत सरकार द्वारा देश के 11 जिलों में से एक जीआई टैग प्रदान किया गया है, और बस्ती जिले को काला नमक चावल की उत्पत्ति वाले जिले के रूप में परिभाषित किया गया. जीआई टैग के बाद यहां के काला नमक उत्पादक किसान अपने चावल का अंतर्राष्ट्रीय निर्यात भी कर सकते हैं. भारत सरकार द्वारा 2012 में भौगोलिक संकेत Geographical Indication (जीआई) टैग प्रदान किया गया था। यह टैग भौगोलिक विशेषता वाले क्षेत्र को परिभाषित करने के लिए किया गया था, जहां कलानामक चावल का उत्पादन किया जा सकता है। आधिकारिक रूप से केवल इस परिभाषित क्षेत्र में उगाए जाने वाले कलानामक चावल को ही कलानामक चावल के रूप में लेबल किया जा सकता है। जीआई टैग का उपयोग कृषि, प्राकृतिक और विनिर्मित वस्तुओं के लिए किया जाता है। कलानामक चावल का भौगोलिक क्षेत्र उत्तर प्रदेश में 26° 42′ उत्तर से 27° 75′ उत्तरी अक्षांश और 81° 42′ से 83° 88′ पूर्वी देशांतर के बीच स्थित है।

भारत सरकार द्वारा यूपी के 11 जिलों को काला नमक चावल उत्पादन करने के लिए उन्हें जीआई टैग के माध्यम से स्वीकृत किये गए हैं। ये 11 जिले देवरिया, गोरखपुर, महराजगंज, बस्ती, संत कबीर नगर, सिद्धार्थ नगर, बहराइच, बलरामपुर, गोंडा, कुशीनगर और श्रावस्ती हैं।

गौरतलब है कि, उक्त जिलों के किसानों द्वारा पैदा किए गए कालानमक चावल पूरे भारत सहित विदेशों में भी निर्यात किये जाते हैं.

कालानमक की नर्सरी [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]
कालानमक की नर्सरी [फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक]

काला नमक चावल में पोषक तत्वों की अधिकता

कलानामक चावल आयरन और जिंक जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर होता है। इसलिए, यह चावल पोषक तत्वों की कमी से होने वाली बीमारियों को रोकने के लिए उपयुक्त माना जाता है।

कहा जाता है कि कालानामक चावल के नियमित सेवन से अल्जाइमर रोग से बचाव होता है। इसमें 11% प्रोटीन होता है, जो आम चावल की किस्मों से लगभग दोगुना है। इसमें कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स (49% से 52%) है जो इसे अपेक्षाकृत चीनी मुक्त और मधुमेह रोगियों के लिए उपयुक्त बनाता है।

आपको बता दें कि, भारत सरकार 2013 में अपनी न्यूट्री-फार्म योजना (Nutri-Farm scheme) लेकर आई, जिसका उद्देश्य उन खाद्य फसलों को बढ़ावा देना है जो समाज के कमजोर वर्ग के पोषण की स्थिति में सुधार के लिए महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्व प्रदान करती हैं। कालानामक चावल इस योजना के लिए चुनी गई पोषक फसल में से एक था।

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