
रिपोर्ट- Hemant Gairola, Dehradun
देहरादून। देश भर के बैंक केंद्र सरकार की कई बीमा और पेंशन योजनाओं के लिए ग्राहकों से शुल्क वसूल रहे हैं, जिनकी उनको आवश्यकता नहीं है या उन्होंने इसके लिए अनुरोध नहीं किया था। ग्राहक अब भी निरंतर इन योजनाओं के लिए प्रीमियम का भुगतान कर रहे हैं।
हमारी जांच में पता चला है कि सरकारी और निजी बैंक अपने ग्राहकों पर जीवन बीमा के लिए ’प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना’, दुर्घटना बीमा के लिए ’प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना’ और पेंशन के लिए ’अटल पेंशन योजना’ में पंजीकृत होने का दबाव बनाते हैं। नियमानुसार ये योजनाएँ स्वैच्छिक हैं और ग्राहकों से शुल्क लेने के लिए अनुमति की आवश्यकता होती है, बैंक या तो ग्राहकों को इन योजनाओं में बिना किसी सूचना के नामांकन कर रहे हैं या फिर झूठ बोलकर, छल या जबरदस्ती से सहमति पत्र पर हस्ताक्षर ले रहे हैं। सूचना के अधिकार से मिली जानकारी, बैंक प्रबंधन द्वारा जारी किए गए नामांकन लक्ष्यों से संबंधित इंटरनल सर्कुलर व बैंक कर्मचारियों के अवैध तरीकों को स्वीकार करते हुए जारी किए गए वीडियो व ऑडियो इस बात की पुष्टि करते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मई 2015 में गरीबों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करने के लिए इन योजनाओं की शुरुआत की थी। जीवन बीमा किसी भी कारण से मृत्यु के लिए 2 लाख का कवर प्रदान करता है, जबकि दुर्घटना बीमा दुर्घटना के कारण मृत्यु या विकलांगता के मामले में समान राशि का आश्वासन देता है। माइक्रो-पेंशन योजना 60 वर्ष की आयु के बाद 5,000 तक की मासिक पेंशन की गारंटी देती है। जीवन बीमा और दुर्घटना बीमा पॉलिसियों को सालाना नवीनीकरण किया जाता है और इसके लिए क्रमशः 436 और 20 का प्रीमीयम देना होता हैं। पेंशन योजना का शुल्क प्लान पर निर्भर करता है और मासिक अंशदान शुल्क लिया जाता है।
बैंक एक कमीशन एजेंट के तौर पर ग्राहकों का इन स्कीम के तहत पंजीकरण करता है। बैंक को पीएमजेजेबीवाई के लिए 41 रुपए व पीएमएसबीवाई के लिए 2 रुपय कमीशन प्राप्त होता है, जबकि व्यवसाय उन बीमा कंपनियों के पास जाता है जिनके साथ केन्द्र सरकार ने समझौता किया है। भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) और वित्तीय सेवा विभाग (DFS) के अनुसार, 31 मई, 2022 तक नामांकित 12.89 करोड़ लोगों की 6.58 करोड़ सक्रिय जीवन बीमा पॉलिसियाँ हैं। IRDAI ने कहा कि उसके पास अब तक नामांकित 28.63 करोड़ लोगों में सक्रिय दुर्घटना बीमा पॉलिसी धारकों की संख्या की जानकारी नहीं है।
बैंक कर्मचारियों और ग्राहकों ने टीआरसी को उन अनैतिक तरीकों के बारे में बताया, जिनके द्वारा बैंक इन योजनाओं में लोगों को नामांकित करते हैं और बनाए रखते हैं।
बाइस वर्षीय राहुल चौहान उन कई ग्राहकों में से एक हैं, जिन पर बैंकों ने अवांछित बीमा योजनाएं थोप दीं। राहुल जब स्कूल में थे। तब उन्होंने सरकारी छात्रवृत्ति प्राप्त करने के लिए भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) शाखा में खाता खोला था। 2019 के बाद से, उनके खाते से हर साल सरकार की बीमा पॉलिसियों के लिए डेबिट किया जा रहा है, जिन्हें उन्होंने नहीं खरीदा था। हर साल वह अपनी होम ब्रांच से इन डेबिट्स को बंद करने का अनुरोध करते हैं। बैंककर्मचारी राहुल को इधर-उधर दौड़ाते है। वहीं पॉलिसी बंद करने का आश्वासन देते है, लेकिन साल के अंत में पुनः प्रीमीयम की राशि खाते से काट लेते हैं।
बैंक कर्मचारियों की एक नई यूनियन, वीबैंकर्स एसोसिएशन के महासचिव आशीष मिश्रा ने द रिपोर्टर्स कलेक्टिव (टीआरसी) को बताया कि इन योजनाओं में अनैतिक नामांकन व्यापक रूप से चलन में है। उन्होंने कहा कि प्रमोशन की चाह रखने वाले सीनियर मैनेजर ब्रांच मैनेजर/हेड के साथ दुर्व्यवहार करते हैं और उन्हें अधिक संख्या में नामांकन नहीं देने पर निलंबन, स्थानांतरण, वेतन कटौती आदि की धमकी देते हैं। यह दबाव ब्रांच हेड को बैंक ग्राहकों को अनैतिक तरीके से योजनाओं में नामांकित करने के लिए मजबूर करता है।
बैंक कर्मचारी लंबे समय से सोशल मीडिया पर शिकायत कर रहे हैं कि बैंक प्रबंधन द्वारा दिए गए लक्ष्यों के चलते उनको न चाहकर भी ग्राहकों को धोखे में रखकर इन योजनाओं में नामांकन करना पड़ता हैं।
साथ ही, इस प्रकार ठगे गए सैकड़ों ग्राहकों ने अपनी शिकायतें ट्विटर, शिकायत फोरम, यूट्यूब और अनजानी वेबसाइटों पर पोस्ट की हैं। वहीं सीधे नामांकन के बारे में शिकायतें सोशल मीडिया पर योजनाओं के लॉन्च के कुछ हफ्तों के भीतर समाचारों में दिखाई देने लगी थीं। एक साल बाद इस गोरखधंधे का खुलासा द ट्रिब्यून अखबार के जम्मू संस्करण में एक समाचार रिपोर्ट में किया गया।
नौ सरकारी बैंकों के बीस कर्मचारियों और कियोस्क संचालकों ने टीआरसी को इस बात की जानकारी दी कि यह ठगी कैसे की जाती है। उनमें से लगभग आधे लोगों ने यह स्वीकार किया कि उन्हें मजबूरी में ऐसा करना पड़ा था। कुछ ने कहा कि ग्राहकों से धोखाधड़ी करना उनके नियमित काम का हिस्सा है।
बैंक बैक ऑफिस से एक बटन क्लिक करके बड़ी संख्या में ग्राहकों के खातों में योजनाओं को सक्रिय करते हैं। यह ग्राहकों की घरेलू शाखाओं में तब होता है जब शाखा प्रबंधकों को पात्र खातों की सूची व लक्ष्य जोनल और रीजनल ऑफिस से मिलते है।
केनरा बैंक के दो अधिकारियों ने द कलेक्टिव को बताया कि उन्होंने इस तरह के विशेष अभियानों के दौरान बड़ी संख्या में ग्राहक खातों में बीमा योजनाओं को सक्रिय किया है।
रिपोर्टर कलेक्टिव के साथ एक अन्य सरकारी बैंक कर्मचारी ने चार ईमेल साझा किए और उनमें से दो के साथ संलग्न फाइलें अपलोड कीं, जो इस वर्ष की शुरुआत में उसकी शाखा के क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा भेजी गई थीं। बल्क अपलोड एक तकनीकी है, जिसका उपयोग बल्क ऑपरेशन के लिए किया जाता है, जैसे कॉर्पोरेट ग्राहकों के सैलरी एकाउंट में वेतन भेजना। कर्मचारी का दावा है कि ये फाइलें ग्राहकों की सहमति के बिना जीवन बीमा और दुर्घटना बीमा को सक्रिय करने के लिए थीं।
जबकि ईमेल कहता है, “कृपया संलग्न फाइल देखें“ कर्मचारी का आरोप है कि ग्राहकों को उनकी जानकारी के बिना नामांकन करने का निर्देश क्षेत्रीय कार्यालय से एक फोन कॉल पर आया था। विभिन्न बैंकों के कर्मचारियों ने द कलेक्टिव को बताया कि उनकी शाखा में भी सीधे नामांकन का यह मानक तरीका है।
बैंकों के तकनीकी संचालन के विशेषज्ञ एक सेवानिवृत्त, वरिष्ठ बैंक अधिकारी ने बल्क अपलोड फाइलों की जांच की और उन्हें प्रामाणिक पाया। उन्होंने अपनी पहचान उजागर नहीं करने का अनुरोध किया।
बल्क अपलोड फाइलों को साझा करने वाले कर्मचारी का कहना है कि उसने इन फाइलों को प्रोसेस करने से इनकार कर दिया। इसके कुछ ही समय बाद उसका दूर की शाखा में ट्रांसफर कर दिया गया। कथित तौर पर ट्रांसफर एक से अधिक बार किया गया। टीआरसी के पास इस संबंध में बैंक के ईमेल की प्रतियां हैं। कर्मचारी ने टीआरसी को एक कॉल रिकॉर्डिंग भी भेजी जिसमें एक वरिष्ठ अधिकारी उसे तौर-तरीकों में सुधार करने की चेतावनी देते हुए सुनाई दे रहा है।
फॉरेंसिक एकाउंटेंट और सर्टिफाइड फ्रॉड एक्जामिनर निखिल पारुलकर ने कहा कि बल्क अपलोड फाइलों से घालमेल किया गया है यह साबित नहीं होता है, लेकिन ग्राहकों की सहमति के बिना बल्क अपलोड के आरोप को स्थापित करने के लिए एक गहन फोरेंसिक ऑडिट की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यदि आरोप सही हैं, तो यह बिजनेस बढ़ाने के लिए धोखाधड़ी के इरादे से गलत तरीके से पॉलिसी बेच कर संख्या बढ़ाने का मामला हो सकता है।
पारुलकर 20 वर्षों से बैंकिंग और परामर्श क्षेत्र में हैं और वरिष्ठ पदों पर रहे हैं। वर्तमान में वह ऑक्यूराइज कंसेलटिंग में कॉर्पोरेट जांच के प्रधान सलाहकार हैं, इस फर्म के वो को फाउंडर है जो फोरेंसिक सलाहकार सेवाएं प्रदान करती हैं।
ग्राहकों को योजनाओं के लिए साइन अप करने के लिए बैंकर एक और तरीका अपनाते हैं। खाता खोलने के फॉर्म के साथ-साथ इन योजनाओं के फॉर्मों को चुपचाप देते हैं, बिना किसी छानबीन के हर फॉर्म पर ग्राहकों से हस्ताक्षर करवाते हैं। जबकि इन फार्मों को देखने वालों को बताया जाता है कि खाता खुलवाने के लिए ये जरूरी हैं। साथ ही, कई शाखाएँ बैक-एंड से नए खातों पर नीतियों को सक्रिय करती हैं।
बैंक कर्मचारियों के कुछ फेसबुक ग्रुपों में-एक के 1.74 लाख फॉलोअर्स हैं- इनमें बैककर्मियों के इन तरीकों के बारे में मीम्स और कमेंट थ्रेड मिलेंगे। मीम्स और उसके बाद की चर्चा बैंक कर्मचारियों और ग्राहकों के आरोपों की पुष्टि करती है, जिनके साथ टीआरसी ने बात की है।
बैंक ग्राहकों के खातों को यह कहकर फ्रीज कर देते हैं कि उन्होंने नो योर कस्टमर (केवाईसी) मापदंडों के तहत आवश्यक सभी दस्तावेज जमा नहीं किए हैं। बैंक शाखा में इन ग्राहकों को बताया जाता है कि केवाईसी नियमों के तहत जीवन और दुर्घटना बीमा और पेंशन फॉर्म भरना अनिवार्य हैं।
बैंक से ऋण लेने वाले ग्राहकों को बताया जाता है कि बीमा खरीदना उनके लिए अनिवार्य है। रेहड़ी-पटरी वालों, स्वयं सहायता समूहों, सूक्ष्म-उद्यमियों आदि अन्य सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों से भी यही झूठ बोला जाता है। कुछ शाखा प्रबंधक ग्राहकों को योजना को चालू करने का एसएमएस बैंक को भेजने के लिए बरगलाते हैं।
दूर-दराज या ग्रामीण इलाकों में बैंक ग्राहक सेवा केन्द्र कियोस्क के जरिए ग्राहकों को सेवाएं मुहैया कराते हैं। अपने पर्यवेक्षकों के दबाव में, कियोस्क संचालक चालाकी से अपने भोले-भाले ग्राहकों को आधार से जुड़े बायोमेट्रिक डिवाइस पर अपनी उंगलियों के निशान सत्यापित करने के लिए कहते हैं और उन्हें बिना उनकी जानकारी के बीमा योजनाओं के साथ जोड़ देते हैं।
यदि वे सवालों का सामना करते हैं, तो कई शाखा प्रबंधक, बैंक कर्मचारी और कियोस्क संचालक ग्राहक को तब तक सेवा देने से इनकार करते हैं जब तक कि वह इन योजनाओं में अपना नामांकन कराने के लिए राजी नहीं होता है।
एक ग्राहक की शिकायत के बाद, मध्य प्रदेश में एक पत्रकार ने बैंक ऑफ बड़ौदा (बीओबी) की एक शाखा में ग्राहक बनकर पूछा कि जीवन बीमा के लिए उसके खाते से पैसा कैसे कट गया।
बैंक कर्मचारी ने फोन पर कहा, “यह बैक-एंड से हो रहा है। सरकार के निर्देश के अनुसार सभी बचत खातों के साथ ऐसा किया जा रहा है।” पत्रकार ने पूछा कि क्या योजना अनिवार्य है, जिस पर प्रतिक्रिया थी कि इन योजनाओं का सभी नए खातों के साथ नामांकन करने के निर्देश है।
इसी तरह, इस पत्रकार ने इन कल्याणकारी योजनाओं की सरकारी हेल्पलाइन पर चार बार फोन किया और पूछा कि क्या बैंक वास्तव में बैक-एंड से ग्राहकों को नामांकित करते हैं। दो ग्राहक सेवा सहयोगियों ने स्पष्ट रूप से कहा कि बैंक करते हैं, केवल एक ने जोर देकर कहा कि बैंक नहीं करते हैं।
एक से अधिक बैंकों में खातों वाले कई लोगों से कई बार शुल्क लिया जाता है, जब उनके सभी खाते उनकी सहमति के बिना योजनाओं में नामांकित हो जाते हैं। अक्सर, सहमति के बिना बीमित लोगों के परिवारों को पहली बार में पॉलिसी के बारे में जानकारी नहीं होती है।
केनरा बैंक के एक कर्मचारी, जिन्होंने खुद ग्राहक को ऐसी ही योजना में नामांकित किया है, उन्होंने बताया कि जब बैंक कर्मचारियों को ऐसा करने के लिए कहा जाता है, तो फार्म में कई कॉलम खाली छोड़ देते हैं। इनमें नॉमिनी का कॉलम भी है। नॉमिनी के कॉलम में ’नहीं’ या ’लागू नहीं लिख’ दिया जाता है।
बैंक ऑफ इंडिया (बीओआई) ने एक आरटीआई के जवाब में कहा कि करीब 2.73 लाख जीवन और दुर्घटना बीमा पॉलिसियों में नॉमिनी नहीं हैं। बैंक ने यह भी कहा कि 9,871 दुर्घटना बीमा पॉलिसियों में नॉमिनी का नाम एन/ए है।
इसके अलावा, आरटीआई के जवाब में खुलासा हुआ कि 54.4 लाख जीवन बीमा पॉलिसियों और 1.4 करोड़ दुर्घटना बीमा पॉलिसियों में नामांकित व्यक्ति की आयु का उल्लेख नहीं है। अन्य बैंकों ने जानकारी देने से मना कर दिया।
आईआरडीएआई (पॉलिसीधारकों के हितों का संरक्षण) विनियम, 2017, कहता है कि एक जीवन बीमा पॉलिसी में स्पष्ट रूप से नामांकित व्यक्ति का नाम और आयु और पॉलिसीधारक के साथ उनका संबंध लिखित होना चाहिए। यदि किसी बीमा पॉलिसी में नामांकित व्यक्ति नहीं है तो पॉलिसीधारक के परिवार को भुगतान का दावा करने में सक्षम होने के लिए कानूनी उत्तराधिकारी प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए एक बोझिल, महंगी और लंबी प्रक्रिया से गुजरना होगा। हालांकि, इन बीमा योजनाओं के क्लेम फॉर्म में कहा गया है कि मृतक के परिवार को पॉलिसीधारक की मृत्यु के 30 दिनों के भीतर बीमा दावा प्रस्तुत करना चाहिए।
इसके अलावा पॉलिसी में काल्पनिक व्यक्ति का नाम भी लिखा जाता है। महाराष्ट्र के एसबीआई ग्राहक स्वप्निल मेश्राम ने 24 अगस्त को खुद को जीवन बीमा योजना में सीधे नामांकित पाया। उनके पॉलिसी प्रमाणपत्र में कहा गया है कि पत्र में नॉमिनी का नाम ’शालिक्रम शालिक्रम’ है और पॉलिसीधारक नामांकित व्यक्ति का पति है। मेश्राम अविवाहित हैं। और शालिक्रम उनके पिता का सरनेम है।
चौहान के जीवन बीमा नवीनीकरण में कहा गया है कि उनकी नॉमिनी कुसुम देवी हैं लेकिन उनके परिवार में इस नाम का कोई नहीं है। उन्होंने आरटीआई में पूछा कि बैंक के पास उपलब्ध जानकारी के मुताबिक नॉमिनी उनसे कैसे संबंधित है। बलिया में एसबीआई के क्षेत्रीय कार्यालय ने जवाब दिया कि बैंक के पास उनका आवेदन पत्र उपलब्ध नहीं है। दस्तावेज मिलने पर जानकारी उपलब्ध कराएंगे।
साथ ही, उनकी बैंक शाखा के एक कर्मचारी ने उन्हें फोन किया और अपनी जेब से पूरा रिफंड देने की पेशकश की। चौहान ने कर्मचारी नहीं बल्कि बैंक से रिफंड देने पर जोर दिया। टीआरसी के पास उनकी कॉल रिकॉर्डिंग है। कुछ सप्ताह बाद, बैंक ने उन्हें पिछले तीन वर्षों में काटे गए बीमा शुल्क का पूरा रिफंड दिया।
चौहान ने अपने जीवन बीमा नामांकन फॉर्म की मांग करते हुए एक और आरटीआई आवेदन दायर किया था। बैंक ने उन्हें दुर्घटना बीमा फॉर्म की एक प्रति भेजी, जिस पर चौहान के हस्ताक्षर थे। अपने हस्ताक्षर वाले फॉर्म को देखकर वे भड़क गए. इस फॉर्म के मौजूद होने के बावजूद बैंक ने उनके गलत नामांकन के दावे पर विवाद नहीं किया और उन्हें दुर्घटना बीमा प्रीमियम भी वापस कर दिया।
11 राज्यों के 20 खाताधारकों ने द रिपोर्टर्स कलेक्टिव के साथ अपनी कहानियां साझा कीं और उन सभी में एक ही बात थी। उन्होंने सहमति के बिना या जबरदस्ती नामांकन कराया।
कलेक्टिव ने ग्राहकों के साथ साक्षात्कार में पाया कि बीमा को अनसब्सक्राइब करना भी चुनौतीपूर्ण है। कई शाखाओं में, जो ग्राहक बीमा सदस्यता समाप्त करने के लिए कहते हैं, उन्हें बताया जाता है कि कोई भी इनसे बाहर नहीं निकल सकता है क्योंकि ये केंद्र/भारतीय रिजर्व बैंक के आदेशों के अनुसार अनिवार्य हैं। कई बैंक ग्राहकों को आश्वासन देते हैं कि योजनाएं निष्क्रिय कर दी गई हैं या बंद कर दी जाएंगी, हालांकि अगली भुगतान तिथि पर फिर से प्रीमियम राशि काट ली जाती है।
महाराष्ट्र निवासी एक व्यक्ति को एसबीआई शाखा ने उसकी सहमति के बिना उसे जीवन बीमा योजना में नामांकित कर दिया। उनके शाखा प्रबंधक ने उनसे कटुतापूर्वक कहा कि भविष्य में कटौतियों से बचने के लिए उन्हें अपना खाता बंद करना होगा। उन्होंने आवेश में आकर एसबीआई खाता बंद कर दिया और महाराष्ट्र ग्रामीण बैंक (एमजीबी) में खाता खोल लिया, जिसने भी कुछ ही समय बाद उनसे बीमा योजना के लिए शुल्क लिया।
ग्राहक ने दोनों बैंकों के पास आरटीआई दाखिल की, लेकिन कोई भी अपना नामांकन फॉर्म नहीं दिखा सका। हालांकि एमजीबी ने तुरंत उन्हें ₹436 वापस कर दिए, लेकिन एसबीआई शाखा प्रबंधक ने उन्हें एक रेस्तरां में आमंत्रित किया, खाता खोलने का फॉर्म लेकर आए और कुछ दिनों बाद उन्हें पूरा रिफंड दिया। उन्होंने ग्राहक को एक जीवन बीमा फॉर्म पर हस्ताक्षर करने (उसके आरटीआई अनुरोध का ख्याल रखने के लिए) और एक पत्र लिखकर यह कहते हुए फुसलाया कि उसकी शिकायत का समाधान हो गया है। टीआरसी के पास रेस्टोरेंट में मैनेजर और ग्राहक की बातचीत की ऑडियो रिकॉर्डिंग है।
ओडिशा के एक छोटे व्यापारी अनिल दास के आरटीआई के जवाब में एसबीआई ने जवाब दिया ’ग्राहक खाता पीएमएसबीवाई दुर्घटना बीमा पॉलिसी के लिए गलती से पंजीकृत किया गया था।’
दास को बीमा खाते से काटे गए दो वर्षों की प्रीमियम राशि का बहुत मुश्किल से रिफंड मिला। हालांकि केवाईसी नियमों का हवाला देते हुए 17 मई को उनका खाता फ्रीज कर दिया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि शाखा प्रबंधक ने कहा कि जब तक पीएमएसबीवाई, पीएमजेजेबीवाई और एसबीआई के व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा के लिए क्रमशः ₹12, ₹330 और ₹1,000 का भुगतान नहीं किया, तब तक वह खाते को फिर से सक्रिय नहीं करेंगे।
दास ने घर वापस जाकर एसबीआई कस्टर केयर को कॉल किया। ग्राहक सेवा प्रतिनिधि ने कहा कि बीमा लेना स्वैच्छिक है। इस जानकारी के साथ पुनः वह अपनी बैंक शाखा गए जहां उन्होने मैनेजर से यह जानकारी साझा की। इस पर मैनेजर ने बोला की ग्राहक सेवा प्रतिनिधि कुछ नहीं जानते है। इसके बाद दास ने एसबीआई ग्रिवेंस सेल में ऑनलाइन शिकायत की। इसके बाद उनको अपनी होम साखा से फोन आया जिसने खाते का केवाईसी अपडेट कर दिया। वहीं करीब एक हफ्ते के बाद उनका फ्रीज खाता सक्रिय हो सका।
दास को कुछ ही दिन राहत मिली। बमुश्किल तीन दिन बाद उन्हें बैंक से एक एसएमएस मिला, जिसमें उन्हें अपनी दुर्घटना पॉलिसी के नवीनीकरण के लिए अपने खाते में पर्याप्त शेष राशि बनाए रखने की याद दिलाई गई। इस तरह उन्हें पता चला कि उन्हें दो साल पहले इस योजना में नामांकित किया गया था। इसने दास को शाखा प्रबंधक और शिकायत प्रकोष्ठ के आगे-पीछे फिर से घूमने के लिए मजबूर कर दिया।
कई लोगों की शिकायत है कि उनके बैंक का कस्टमर केयर विभाग समस्या का समाधान किए बिना ही उनकी शिकायतों का निस्तारण कर देता है। दूसरों की शिकायत है कि उन्हें केवल यह सलाह दी जाती है कि वे योजनाओं से बाहर निकलने के लिए अपनी शाखा में एक लिखित अनुरोध प्रस्तुत करें। जो अपनी मूल शाखा से दूर रहते हैं वे असहाय हो जाते हैं और कई ग्राहक अपनी शाखा में जाते हैं तो उनसे झूठ बोला जाता, गुमराह किया जाता है।
सरकार की इस नीति से गरीब बैंक ग्राहकों का आर्थिक उत्पीड़न होता है जिसे वे आक्रेशित होते है। कियोस्क संचालकों ने टीआरसी को बताया कि वे अधिकांश श्रमिक वर्ग के साथ वित्तीय लेन-देन व उनके खाते खुलवाते है। इससे उनकी अल्प बचत में से चोरी होती है। इस चोरी व धोखे के वे भी भागीदार बनते है।
हरियाणा के करनाल के एक दिहाड़ी मजदूर ने कहा कि जब इस साल दो बीमा योजनाओं के लिए नए जन धन खातों से शुल्क लिया गया तो वह और उसका परिवार व्यथित था। उनके परिवार ने प्रत्येक के साथ ₹ 500 के खाते खोले थे।
“मैं दिहाड़ी मजदूर हूं, महीने में करीब 8,000 रुपये कमाता हूं। इससे मुझे घर चलाना है। मेरे पिता का डायलिसिस चल रहा है, किडनी काम नहीं कर रही है। उसका खर्चा भी उठाना पड़ता है। उन्होंने अपने कियोस्क संचालक से प्रतिक्रिया के डर से नाम नहीं छापने का अनुरोध किया।
इंटरनेट पर सबसे ज्यादा शिकायतें जहां सरकारी बैंकों के खिलाफ होती हैं, वहीं निजी संस्थानों के नाम भी सामने आते हैं।
रिपोर्टर ने बैंकों के पास आरटीआई अनुरोध दायर किया और अनधिकृत नामांकन की उन्हें प्राप्त हुई शिकायतों की संख्या और उन ग्राहकों की संख्या के बारे में पूछा जिन्हें रिफंड दिया गया है। एसबीआई और बीओबी ने कहा कि वे इस डेटा को मेनटेन नहीं करते हैं जबकि केनरा बैंक ने कहा कि इस डेटा को साझा करने से ग्राहकों की गोपनीयता भंग होगी। बीओआई और पंजाब एंड सिंध बैंक ने कहा कि उन्हें एक भी शिकायत नहीं मिली है, जबकि बीओआई ने कहा कि योजनाओं के शुरू होने के बाद से उन्हें केवल एक ही शिकायत मिली है।
टीआरसी ने सरकारी अधिकारियों से भी शिकायतों, रिफंड, नीति रद्द करने के बारे में डेटा मांगा, लेकिन उन्होंने कहा कि वे इस जानकारी को नहीं रखते हैं। वित्तीय सेवा विभाग (डीएफएस), जो बैंकिंग और बीमा से संबंधित सरकारी पहलों की देखरेख करता है, ने आगे कहा कि आरटीआई के तहत काल्पनिक सवालों के जवाब देने की आवश्यकता नहीं है। इसके अलावा, डीएफएस ने पीएमजेजेबीवाई और पीएमएसबीवाई के तहत नामांकन बढ़ाने के संबंध में बैंकों को भेजे गए पत्रों व आदेशों की प्रतियों के लिए टीआरसी के आरटीआई अनुरोध को नजरअंदाज कर दिया।
आईआरडीएआई, जिसका काम पॉलिसीधारकों के हितों की रक्षा करना है, ने भी आरटीआई के जवाब में कहा कि उसके पास शिकायतों के बारे में कोई डेटा नहीं है। आईआरडीएआई ने यह भी खुलासा किया कि उसने बीमा योजनाओं का ऑडिट नहीं किया है।
इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया, सरकारी निकाय जिसका उद्देश्य ऑडिटिंग नियमों व प्रक्रिया को विनियमित करना है और जो नियमित रूप से बैंकों के ऑडिट पर गाइडेंस नोट लाता है, ने टीआरसी के साक्ष्य की जांच करने से इनकार कर दिया। इसकी जनसंपर्क समिति के अध्यक्ष संजय कुमार अग्रवाल ने कहा- ’जब तक मंत्रालय हमें नहीं बताता, तब तक हम आपकी मदद कैसे कर सकते हैं!’ उन्होंने कहा कि केवल एक सामान्य चार्टर्ड अकाउंटेंट ही इसमें मदद कर सकता है, वह भी गुमनाम रूप से। उन्होंने कहा- ’सरकार के खिलाफ कुछ भी करना, मुझे यह मुश्किल लगता है।’
आईआरडीएआई, डीपफसी व केंद्रीय वित्त मंत्रालय और आरबीआई को ईमेल अनुत्तरित रहे। एसबीआई ने कहा कि वह किसी अनुचित व्यवहार को बढ़ावा नहीं देता है। बैंक के वित्तीय समावेशन विभाग के मुख्य प्रबंधक (संचालन) विनय पाठक ने एक ईमेल में कहा कि चूंकि बैंक की शाखाओं की संख्या सबसे अधिक है, ’आपके के बताए उदाहरणों से इंकार नहीं किया जा सकता है, कुछ मामले ऐसे हो सकते है। हालांकि यह नियम नहीं है।
टीआरसी के 25 सवालों के जवाब में उन्होंने लिखा कि विवरण संबंधित विभागों को भेज दिया गया है और विस्तृत प्रतिक्रिया प्राप्त होने पर जवाब दिए जाएंगे।
बीओबी के वित्तीय समावेशन विभाग के उप महाप्रबंधक के सूर्य प्रसाद ने टीआरसी से सबूत मांगा। हालांकि, उन्होंने सबूतों के विवरण और टीआरसी द्वारा भेजे गए आरोपों की सूची पर कोई टिप्पणी नहीं की। इसके बजाय, उसने फिर से सबूत मांगे।
केनरा बैंक के प्रधान कार्यालय के ईमेल में केवल यह कहा गया है कि संगठन अपनी नीतियों और दिशानिर्देशों का कड़ाई से पालन करता है। बैंक ने टीआरसी द्वारा भेजे गए किसी भी विशिष्ट प्रश्न का उत्तर नहीं दिया। इस लेख में नामित अन्य संगठनों ने ईमेल का जवाब नहीं दिया।
(यह रिपोर्ट रिपोर्टर्स कलेक्टिव की टीम द्वारा संकलित किया गया है. इसे पुनः द मूकनायक पर प्रकाशित किया गया है.)
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