Opinion : क्या बिहार की कामयाबी को उत्तरप्रदेश में दोहरा पायेगी AIMIM?

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लेखक- तारिक़ अनवर चम्पारणी

उत्तरप्रदेश विधानसभा का चुनाव नजदीक है। उम्मीदवारी के लिए पर्चा दाखिल करने की प्रक्रिया भी जारी है। सभी दलों ने अपने उम्मीदवारों की सूची भी जारी करना शुरू कर दिया है। सभी दलों के बीच का गठबंधन भी लगभग साफ है। एक गठबंधन का नेतृत्व कुछ छोटे दलों के साथ भाजपा कर रही है। दूसरे गठबंधन का नेतृत्व कुछ छोटे दलों के साथ समाजवादी पार्टी कर रही है। कुछ अन्य छोटे दलों को मिलाकर तीसरा गठबंधन बहुजन समाज पार्टी का है। एक चौथा गठबंधन भी है जिसका नेतृत्व आज़ाद समाज पार्टी के नेता चंद्रशेखर कर रहे है। जबकि एक पाँचवा गठबंधन भी जिसका नेतृत्व असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन(AIMIM) कर रही है। मजलिस के साथ वामन मेश्राम की पार्टी भारत मुक्ति मोर्चा और बाबू सिंह कुशवाहा की पार्टी जन अधिकार पार्टी है।

उत्तरप्रदेश के चुनावी समर में ताल ठोकने AIMIM तैयार

बिहार में मिली सफलता के बाद असदुद्दीन ओवैसी बहुत उत्साहित है। हालांकि बिहार के बाद बंगाल में हुए विधानसभा चुनाव में उन्हें सफलता नहीं मिली थी। लेकिन इसके बावजूद उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव को लेकर ओवैसी अतिउत्साहित नजर आ रहें है इसलिए उनकी पार्टी भी उत्तरप्रदेश में चुनाव समर में उतरने के लिए तैयार है, पार्टी ने पहले, दूसरे और तीसरें चरण के लिए अपने उम्मीदवारों की सूची भी जारी कर दिया है। शेष चरणों के लिए अभी उम्मीदवारों के नाम घोषित होना अभी बाकी है। सभी चरणों के उम्मीदवारों की सूची जारी होने के बाद ही मालूम चलेगा कि मजलिस उत्तरप्रदेश के कुल कितने सीटों पर उम्मीदवार उतारती है। चुकी मतदान का दिन बहुत करीब है इसलिए राजनीतिक दलों के साथ-साथ नेताओं ने भी अपना रुख स्पष्ट करना शुरू कर दिया है। ऐसे में मन में यह सवाल आता है की क्या मजलिस उत्तरप्रदेश में बिहार वाली कामयाबी दोहराने में सफल होगी?

बिहार में 20 में 5 सीटों पर मिली थी मजलिस को कामयाबी

मजलिस ने बिहार के 20 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे जिसमे से  5 सीटों पर मजलिस को कामयाबी मिली थी। ये सभी पाँचों सीट सीमांचल इलाके की मुस्लिम बहुल बहादुरगंज, कोचाधामन, अमौर, बायसी और जोकीहाट की सीटें हैं। ठाकुरगंज, अररिया, कस्बा, मनिहारी, साहेबपुर कमाल, शेरघाटी, किशनगंज, सिकटा और फुलवारी को मिलाकर कुल 9 ऐसी सीट थी जहाँ मजलिस के उम्मीदवार होने के बावजूद तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाली महागठबंधन को जीत हासिल हुई थी। इन 9 सीटों में से केवल किशनगंज की सीट थी जहाँ पर  मजलिस के तत्कालीन विधायक कमरुल होदा को 41904 मत प्राप्त हुई और तीसरें नंबर पर रहे थे। जबकि इन 9 विधानसभा क्षेत्रों में केवल दो उम्मीदवार ठाकुरगंज में मजलिस उम्मीदवार महबूब आलम(18925 मत) और शेरघाटी विधानसभा में मसरूर आलम(14987 मत) ऐसे थे जिन्हें दस हजार से अधिक मत प्राप्त हुए थे। छातापुर, नरपतगंज, रानीगंज, प्राणपुर, बरारी और साहेबगंज को मिलाकर केवल 6 ऐसे विधानसभा क्षेत्र थे जहाँ से भाजपा और जदयू समर्थित एनडीए के उम्मीदवार विजयी हुए थे। बिहार में मजलिस की पांच सीटों पर अप्रत्याशित जीत के एक केवल एक नहीं बल्कि अनेकों कारण थे। 

  1. पहला, सीमांचल एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र है। किशनगंज भारत के उन जिलों में से एक है जहाँ मुसलमानों की सबसे घनी आबादी है। अगर मुसलमानों के विरुद्ध धार्मिक ध्रुवीकरण भी होगा फिर भी इस क्षेत्र की कई सीटों पर केवल मुसलमान उम्मीदवार ही चुनाव जीत सकते है। मगर उत्तरप्रदेश में सीमांचल की तरह एक भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जहाँ मुसलमान पूरी तरह से प्रभावी है। कुछ जिलों के कुछ विधानसभा सीटों में मुसलमानों की आबादी घनी जरूर है मगर सीमांचल की तरह पूरा एक क्षेत्र ही मुस्लिम बहुल नहीं है। 
  1. दूसरा, बिहार मजलिस का कमान अख्तरुल ईमान जैसे मजबूत नेता के हाथों में था। उनके भीतर संगठन चलाने का पुराना अनुभव रहा है। वह जिला परिषद सदस्य और दो बार राजद से विधायक बनने से पहले भी छात्र जीवन में स्टूडेंट इस्लामिक ऑर्गनाइजेशन ऑफ इंडिया (SIO) के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके थे। अख्तरुल ईमान उस वक्त राजद से विधायक चुने गये थे जब बिहार से राजद की सरकार जा चुकी थी। उसके बावजूद सदन में उनकी मजबूत उपस्थिति रहती थी। उनकी पूरी पॉलिटिकल ट्रेनिंग राजद के साथ हुई है। उन्होंने लगातार तीन चुनावों में मजलिस को सीमांचल में तपाया और सीमांचल में संगठन खड़ा किया। वह 2015 से लगातार केवल सीमांचल को फोकस करके ही संगठन खड़ा किया। इसलिए कामयाबी भी मिली। उत्तरप्रदेश में मजलिस का प्रदेश नेतृत्व अख्तरुल ईमान की तरह मजबूत नज़र नहीं आ रहा है। उनका कोई राजनीतिक बैकग्राउंड भी नहीं है या अख्तरुल ईमान की तरह संगठन के स्तर पर भी कुछ विशेष काम नज़र नहीं आता है।
  1. तीसरा, नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में आयोजित आंदोलन में सीमांचल के क्षेत्र में मजलिस ने अद्भुत काम किया। इस आंदोलन को स्वंय प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने सीमांचल में लीड किया था। मजलिस प्रतिदिन धरना – प्रदर्शन करती थी। लोगों में यह विश्वास जगाया कि इस नागरिकता संशोधन कानून के विरुद्ध में अकेले मजलिस ही मजबूती के साथ खड़ी है। इसलिए सीमांचल की जनता ने मजलिस को चुनाव में खुलकर समर्थन भी किया। अगर वहीं मजलिस के रोल को अगर उत्तरप्रदेश में देखा जाए तब पता चलता है कि अपने योगदानों को पार्टी जनता के बीच पहुंचाने में सफल नहीं रही है। मैं यह नहीं कहता कि पार्टी का कोई योगदान नहीं था। लेकिन जिस तरह से लोगों के बीच पहुँच बनाने थी उसमें चूक हुई। बल्कि यहाँ तक आरोप लगते है कि उस आंदोलन के बाद जेल गये कार्यकर्ताओं के साथ भी पार्टी खड़ी नहीं रही। इस बात में कितनी सच्चाई है इसके गहराई में नहीं जाना है मगर एक अविश्वास की भावना जरूर है जो बिहार में नहीं था।
  1. चौथा, मजलिस के पाँच वर्तमान विधायकों में से तीन लोग पूर्व में भी विधायक रह चुके है। बायसी विधानसभा सीट से मजलिस के विधायक रुकनुद्दीन अहमद के पिता सय्यद मोइनुद्दीन अहमद बायसी विधानसभा क्षेत्र से दो बार विधायक रह चुके थे। जबकि स्वंय रुकनुद्दीन अहमद 2005 के बिहार विधानसभा चुनाव में निर्दलीय चुनाव जीते थे और 2014 के उपचुनाव में जदयू की टिकट पर 47794 वोट लाकर दूसरे स्थान पर रहे थे। इस क्षेत्र में उनका अपना जनाधार रहा है। जोकीहाट से मजलिस विधायक शाहनवाज़ अहमद के पिता मोहम्मद तस्लीमुद्दीन सीमांचल के किशनगंज लोकसभा, पूर्णिया लोकसभा और अररिया लोकसभा से सांसद रहे थे। उन्हें सीमांचल गाँधी कहा जाता है। जोकीहाट सीट पर शाहनवाज के परिवार का कब्ज़ा 1967 से रहा है जब पहली बार तस्लीमुद्दीन साहब विधायक चुने गये थे। इस सीट पर हमेशा तस्लीमुद्दीन के परिवार से ही लड़ाई रहती है। बल्कि सीमांचल के किसी भी विधानसभा सीट से इस परिवार का सदस्य चुनाव में टक्कर दे सकता है। अमौर सीट से विधायक अख्तरूल ईमान 2005 और 2010 के विधानसभा चुनाव में राजद की टिकट पर कोचाधामन सीट से विधायक चुने गये थे। वह 2014 लोकसभा चुनाव में जदयू की टिकट पर किशनगंज क्षेत्र से प्रत्याशी बने लेकिन काँग्रेस उम्मीदवार मौलाना असरारुल हक़ क़ासमी के समर्थन का ऐलान कर दिया था। इसलिए भी लोगों की सहानुभूति उनके प्रति थी। साथ-साथ वह मजलिस से दो चुनाव पहले भी लड़कर हार चुके थे। बहादुरगंज सीट से विधायक मोहम्मद अंज़र नईमी भी क्षेत्र में काफी सक्रिय रहें है। शिक्षा के क्षेत्र में उनका योगदान सराहनीय रहा है। बहादुरगंज कॉलेज और दारुल उलूम बहादुरगंज की स्थापना में उनका सराहनीय योगदान रहा है। उन्होंने भी 2010 का विधानसभा चुनाव राजद की टिकट पर लड़ा था मगर कामयाबी नहीं मिली थी। हाँ, कोचाधामन सीट से विधायक मोहम्मद इज़हार अस्फी का कोई ख़ास राजनीतिक बैकग्राउंड नहीं रहा है। ईंट भट्ठा और कई दूसरे व्यापार है। मगर वह भी किशनगंज विधानसभा क्षेत्र से लगातार चुनाव लड़ते रहे है। कोचाधामन सीट मजलिस के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान का गृह क्षेत्र रहा है। अभी तक उत्तरप्रदेश में कोई ऐसा मज़बूत चेहरा खुलकर सामने आता हुआ नजर नहीं आरहा है जिस तरह 2017 उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में सांसद शफीकुर्रहमान बर्क़ के पुत्र जेयाउर्रह्मान बर्क़ आये थे।
  1. पाँचवा, बायसी, जोकीहाट, कोचाधामन, अमौर और बहादुरगंज की सीट आपस में जुड़ी हुई है। इन सभी क्षेत्रों का भौगोलिक जुड़ाव है। इसलिए एक सीट के मतदाताओं का दूसरें सीट के मतदाताओं से भाषायी और रिश्तेदारी का भी जुड़ाव है। इसलिए भी मतदाताओं को प्रभावित करने में आसानी हुई थी। सीमांचल के इन पांच सीटों से अलग दक्षिण बिहार में गया जिला की शेरघाटी ही एकमात्र सीट थी जहां से मजलिस के उम्मीदवार को दस हजार से अधिक वोट प्राप्त हुआ था। उत्तरप्रदेश में पार्टी ने जिन सीटों पर लड़ने की घोषणा किया है उन सीटों का आपस मे बहुत लगाव नहीं है। साथ-साथ सीमांचल सभी सीटों पर मुसलमानों की सुरजापुरी बिरादरी का प्रभाव है और अख्तरुल ईमान खुद उसी सुरजापुरी बिरादरी से है। जोकीहाट सीट पर मुसलमानों की कोल्हैया बिरादरी का प्रभाव है और शाहनवाज़ उसी कोल्हैया बिरादरी के सबसे बड़े नेता है। लेकिन उत्तरप्रदेश की सभी सीटों पर मुसलमानों की बिरादरियों की भी आपस की एक राजनीति है। शायद मजलिस अभी इस राजनीति को समझने में असफल रही है।

अगर उपरोक्त बिंदुओं के आधार पर उत्तरप्रदेश में मजलिस की कामयाबी का मूल्यांकन करे तो बिहार में मजलिस की कामयाबी के पीछे जो महत्वपूर्ण कारक थे वह सभी कारक उत्तरप्रदेश मजलिस में नज़र नहीं आ रही है। इसलिए यह कहना कि बिहार वाली कामयाबी दोहरा पाएगी ये थोड़ी जल्दबाजी होगी। लेकिन कुछ सीटों पर सम्मानजनक मुकाबला कर सकती है और कुछ सीटें ऐसी भी है जहाँ पर हार और जीत के अंतर को मजलिस जरूर प्रभावित करेगी। 

डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति The Mooknayak उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार The Mooknayak के नहीं हैं, तथा The Mooknayak उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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