
आंध्रप्रदेश के विजयनगरम में खेतों में पानी पीने आए चार हाथियों को करंट लगने से दर्दनाक मौत हो गई। इस घटना से पूरे गांव में हड़कंप मच गया। सूचना पाकर पहुंची वन विभाग की टीम ने हाथियों के शवों को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है। वन विभाग की टीम मामले की जांच कर रही है।
आंध्रप्रदेश में विजयनगरम जिला पड़ता है। विजयनगरम में पार्वतीपुरम मान्यम के भामिनी मंडल के पक्कुदभद्रा गांव के पास 11 मई को आधी रात को यह घटना हुई। जानकारी के मुताबिक इन हाथियों का झुंड बीते फरवरी को ओडिसा के जंगलों से यहां आ पहुंचा था। इन हाथियों में एक गुन्ना हाथी और पांच बड़े हाथियों का झुंड भामिनी मंडल में आया था। हाथियों का यह झुंड यहां के जंगलों में तीन महीने तक रह रहे थे। ग्रामीणों के मुताबिक देर रात में हाथियों का झुंड गांव के आस-आस खेतो में भी चला आता था। यह हाथी अक्सर आसपास के खेतों में भोजन और पीने के पानी के लिए आते थे।
11 मई की मध्य रात्रि वे पक्कुड़भद्रा गांव के पास हाथियों का यह झुंड खेतों में घुस आया था। हाथियों का इस झुंड ने बोम्मिका के मिन्ना राव के बोरवेल में जाने की कोशिश की थी। सभी हाथी प्यासे थे। इस दौरान एक हाथी ने सूंड से तीन फेज बिजली लाइन और ट्रांसफार्मर खींच लिया। इसी के चलते तीन अन्य बड़े हाथियों पर भी बिजली के तार आ गिरे। तार में करंट दौड़ रहा था। हालांकि वह बच गए। लेकिन बिजली के झटके से तड़प रहे गुन्ना हाथी को बचाने के प्रयास में अन्य तीनो भी करंट की चपेट में आ गए। किया चारों की मौके पर ही मौत हो गई। उन्हें देखने के लिए आसपास के गांवों से हजारों की संख्या में लोग उमड़ पड़े।
1980 के दशक तक एशिया में लगभग 93 लाख हाथी थे, जो अब घटकर महज 50 हजार रह गए हैं। इसलिए, हाथी जैसे सहज उपलब्ध होने वाले प्राणी को भी 'इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर' की रेड लिस्ट में शामिल किया गया है।
कहा जाता है कि महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, गोवा और मध्य प्रदेश में जहां हाथियों का आतंक हैं और मनुष्य व हाथियों के बीच संघर्ष को देखा जा रहा है। वह स्थान हाथियों के लिए पारंपरिक क्षेत्र नहीं थे। लेकिन, पिछले 15 वर्षों में दो राज्यों महाराष्ट्र और गोवा में खासी संख्या में हाथी आ गए हैं। गौर करने वाली बात यह है कि बांदीपुर, मुदुमलाई, वायनाड, नागरहोले से हाथी इंसानों की बस्ती में आए हैं।
केंद्रीय पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में करीब 27,312 हाथी हैं। अहम बात यह है कि यह दुनिया की हाथियों की आबादी का लगभग 55% है। इससे जाहिर होता है कि भारत में हाथियों का एक बड़ा आवास क्षेत्र है। इस लिहाज से देश के लिए यह गर्व की बात होनी चाहिए।
ऐसे में कोशिश तो यही होनी चाहिए कि हम न सिर्फ वन संसाधनों में बढ़ोतरी को वरीयता दें, बल्कि हाथियों के आवासों को भी सुरक्षित रखें और उनकी संख्या को बढ़ाने के लिए कारगर योजनाओं को अमलीजामा पहनाएं, लेकिन हकीकत यह है कि इस समस्या की ओर अब तक कम ध्यान दिया गया है। आंकड़े बताते हैं कि भारत के 27 हजार से अधिक हाथी 15 राज्यों में 29 हाथी अभयारण्यों और दस हाथियों के रहवासी स्थलों से आते हैं। जाहिर है कि हमारे पास हाथियों के अनुकूल आवासीय क्षेत्र उपलब्ध हैं, इसलिए इनके संरक्षण की नीति बनाने में आसानी होगी।
सवाल है कि हाथियों के प्रवास के कारण क्या हैं? उदाहरण के तौर पर दक्षिण भारत की स्थिति को देखें। वहां के जंगलों में बड़ी संख्या तक हाथी पाए जाते हैं। लेकिन, विगत कुछ समय से दक्षिण भारत के जंगलों में घनेणी और रानमोडी जैसी वनस्पतियों की अत्यधिक कमी हो गई है। इसके कारण हाथियों और अन्य शाकाहारी जीवों के लिए प्राकृतिक भोजन की भी कमी हो गई है।
यही हाल जल-संकट का भी नजर आता है। भोजन और पानी के लिए नए क्षेत्र खोजना हाथियों का स्वभाव है। दूसरी तरफ, महाराष्ट्र का कोंकण बेल्ट में सिंधुदुर्ग जिला और पश्चिमी महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में आजरा-चंदगड वन संसाधनों के मामले में समृद्ध हैं। लिहाजा, हाथी नए आवास की तलाश में पलायन कर रहे हैं, क्योंकि हाथियों के कई पारंपरिक आवास में वन संसाधनों में कमी देखी गई है।
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