वसंत विहार डेमोलिशन: बुलडोज़र से टूटे घर, आज भी फुटपाथ पर बसर-ग्राउंड रिपोर्ट

दिल्ली के वसंत विहार में प्रियंका गांधी कैम्प इलाके में एक बार फिर से डिमोलिशन ड्राइव चली, इस दौरान कई मकान तोड़ दिए गए।
पीजी कैम्पः मकान टूटने के बाद सड़क पर उदास बैठी महिला।
पीजी कैम्पः मकान टूटने के बाद सड़क पर उदास बैठी महिला।Credits : Tej Bahadur Singh

नई दिल्ली: दिल्ली के वसंत विहार में अपनी झोपड़ी के बिखरने के बाद राजाबाई आज सड़कों पर रात बिताने को मजबूर है. राजाबाई 30 साल से उस झोपड़ी में रहती थी. घर टूटने और बेसहारा होने की त्रासदी अकेली राजाबाई नहीं झेल रहीं हैं. वसंत विहार में शुक्रवार 16 जून को एनडीआरएफ़ द्वारा किये डिमोलिशन से क़रीब 300 लोग बेघर हो गए हैं. बता दें यह तोड़ फोड़ एनडीआरएफ़ द्वारा अपने मुख्यालय के निर्माण के लिए की जा रही थी. इसपर दिल्ली हाईकोर्ट ने रोक (Stay) लगाने से इंकार कर दिया था.

वसंत विहार, प्रियंका गाँधी कैंप के निवासियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए, स्थानीय अदालत ने दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (DUSIB) को पुनर्वास याचिकाकर्ताओं को इलाके से हटाने से पहले उनके लिए अस्थायी आश्रय की व्यवस्था करने को कहा था. हालांकि, झुग्गियों के निवासियों ने कहा कि उनके घरों को गिराए जाने से पहले उन में से किसी को भी कोई पुनर्वास प्रदान नहीं दिया गया.

डिमोलिशन ड्राइव के दौरान मौजूद पुलिसकर्मी और स्थानीय निवासी।
डिमोलिशन ड्राइव के दौरान मौजूद पुलिसकर्मी और स्थानीय निवासी।Credits : Tej Bahadur Singh

निवासियों ने क्या कहा?

द मूकनायक की टीम से बात करते हुए मोहम्मद जुम्मन, जो पिछले 23 साल से वहाँ रहते थे, कहते हैं, “ सब बिखर गया है. अब कुछ नहीं बचा. जिस दिल्ली सरकार को हमने वोट देकर जिताया वही आज हमारी मदद को आगे नही आई. हमारे पास राशन कार्ड, आधार कार्ड, वोटर कार्ड सब इस जगह का ही है और आज हमें यहाँ सड़क पर बेघर खड़ा कर दिया गया है.”

अंजलि जो पिछले 20 साल से यहीं रहीं हैं ,ने कहा कि, “एनडीआरएफ़ वाले हम से समय-समय पर पेपर पर बिना पढ़ाए साइन करवाते रहे. आज यह दिन आ गया है कि हमें बाहर निकाल दिया है. पूरी रात मच्छरों में बिताई. मेरी लड़कियाँ हैं, कहाँ जााएं, क्या करें कुछ पता नहीं.”

कोर्ट में वकीलों ने दी ये दलीलें...

द मूकनायक की टीम ने निवासियों की वकील कवलप्रित कौर से भी बात की. उन्होंने कहा कि,” यह डीडीए की ज़मीन थी पर 2020 में इसको एनडीआरएफ़ को दे दिया गया, यहाँ रहने वाले सब स्लम ड्वेलर्स है और क़रीब 30 साल से यह लोग यहाँ रहे थे. कानून के हिसाब से अगर किसी जगह से किसी को हटाना है तो उनका पहले पुनर्वास करवाना होगा, लेकिन इस केस में नागरिक पुनर्वास नहीं दिया गया.

“दिल्ली अर्बन ग्रुप” नाम से दिल्ली में एक पालिसी जिस में अगर कोई व्यक्ति 9 साल से ज़्यादा झुग्गी में रह रहा है तो उसका पहले निरक्षण होगा, कि वह पुनर्वास पाने के लिए एलिजिबल हैं या नहीं. या फिर उसे पहले घर दिया जाएगा फिर अतिक्रमण हटाया जाएंगे. केंद्र सरकार का इस में एक बड़ा रोल है, क्योंकि एनडीआरएफ़ केन्द्र सरकार का हिस्सा है.”

घर टूटने के बाद सामान के साथ बैठे छोटे बच्चे।
घर टूटने के बाद सामान के साथ बैठे छोटे बच्चे।Credits : Tej Bahadur Singh

वहीं एडिशनल सॉलिसिटियर जनरल ऑफ़ इंडिया चेतन शर्मा ने कोर्ट में कहा कि यह ज़मीन एनडीआरएफ़ को 2020 में आलोट कर दी गई थी और अब यहाँ एनडीआरएफ़ का हेडक्वर्टर बनना ज़रूरी है क्योंकि यह एक राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा है क्योंकि दिल्ली भूकंप आशंकित क्षेत्र में आता है, यहाँ NDRF का मुख्यालय होना ज़रूरी है. दिल्ली में मुख्यालय न होने के कारण NDRF को सालाना 23 करोड़ रुपए दफ़्तर किराए में खर्च करने पड़ते हैं. लोगों को हटा जाए पर उनको टेम्पररी शेल्टर दे दिया जाए."

दिल्ली अर्बन शेल्टर इंप्रूवमेंट बोर्ड का कोर्ट में प्रतिनिधित्व कर रहे एडवोकेट प्रविंदर चौहान ने कोर्ट में कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि 675 कॉलोनियां डीयूएसआईबी की सूची में हैं. जो 2015 की नीति के तहत पुनर्वास के पात्र हैं. केस में सम्बंधित कालोनी 82 कॉलोनियां वाली अतिरिक्त सूची में शामिल हैं. लेकिन इलाके में रहने वाले लोगों के पास 2015 की पॉलिसी का लाभ लेने का अभी कोई अधिकार नहीं है.”

डिमोलिशन ड्राइव के दौरान मौजूद पुलिसकर्मी और स्थानीय निवासी।
डिमोलिशन ड्राइव के दौरान मौजूद पुलिसकर्मी और स्थानीय निवासी।Credits : Tej Bahadur Singh

एडवोकेट चौहान का कहना है कि “जहां तक अस्थायी आवास का संबंध है, दिल्ली के नागरिकों को ऐसे आश्रय/ रैन बसेरे उपलब्ध करवाना DUSIB कानूनी दायित्व है. झुग्गी झोपड़ी समूहों के पात्र बनने के लिए पहली शर्त है कि उन्हें 01.01.2006 से पहले अस्तित्व में होना चाहिए था. वह प्रस्तुत करता है कि वे सभी क्लस्टर जो 82 अतिरिक्त कॉलोनियों की सूची का हिस्सा हैं, 01.01.2006 से बाद की अवधि के हैं. इस आधार पर, एडवोकेट चौहान ने कहा कि वे किसी भी मामले में विचार के योग्य नहीं हैं.”

कोर्ट ने दिया आदेश

तीनों पक्ष सुन ने के बाद कोर्ट ने अपने आदेश में डीयूएसआईबी को उन सभी 69 परिवारों को तत्काल अस्थायी आश्रय प्रदान करने को कहा गया. साथ ही मौजूदा समूहों से आश्रयों तक की आवाजाही में DUSIB द्वारा मुफ्त में सहायता, प्रक्रिया पूरी होने तक याचिकाकर्ताओं को डीयूएसआईबी द्वारा प्रदान किए गए अस्थायी आश्रयों से नहीं हटाने के भी निर्देश दिए गए.

समान ले जाने के लिए वाहन का प्रबंध करते लोग।
समान ले जाने के लिए वाहन का प्रबंध करते लोग।Credits : Tej Bahadur Singh

कोर्ट ने यह भी कहा कि डीयूएसआईबी के द्वारा मौजूदा क्षेत्र के सर्वे किया जाए कि वे 2015 की पॉलिसी के तहत पुनर्वास के पात्र हैं या नहीं. कोर्ट ने चार हफ़्ते के भीतर इस मामले में जवाब दाखिल करने को कहा. विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, केवल एक बार के उपाय के रूप में, 69 परिवारों को मौजूदा स्थान से अस्थायी आश्रयों में स्थानांतरित करने की लागत डीयूएसआईबी द्वारा वहन किया जाएगा.

पुलिस की बदसलूकी, महिलाओं के साथ अभद्रता

यूं तो नोटिस के हिसाब से डिमोलिशन 15.06.2023 को होना था पर 16 जून को सुबह 6 बजे दिल्ली पुलिस ने वसंत विहार के पीजी कैंप इलाके में बैरीकेडिंग कर दी. वहां पर पहले से एक्टिविस्ट एव पत्रकार भी मौजूद थे.

द मूकनायक की टीम को न्यूज रील एशिया के पत्रकार तेज बहादुर सिंह ने बताया कि, “ मैं प्रियंका गांधी कैंप में डॉक्युमेंट्री शूट करने 2-3 दिन पहले से जा रहा था और डेमोलिशन के दिन भी मैं और मेरे साथी देवेश गए थे, पर उस दिन पुलिस ने हमे रोका. पुलिस कर्मी हमें रिपोर्ट नहीं करने दे रहे थे. फिर उसके बाद मुझे धकेला और जिससे मेरे पीछे खड़ी महिला भी गिर गई. जिस तरीक़े से पुलिस ने हम पत्रकारों के साथ बरताव की वह तरीक़ा सही नहीं था.”

डिमोलिशन ड्राइव के दौरान टूटा मकान।
डिमोलिशन ड्राइव के दौरान टूटा मकान।Credits : Tej Bahadur Singh

वहीं आकाश, जो एक सोशल एक्टिविस्ट है , ने 16 जून को हुई पूरी घटना की जानकारी देते हुए द मूकनायक की टीम से कहा कि, "कई दिनों से पी.जी कैंप मजदूरों की मदद करने के लिए आ रहा था. मुझे खबर थी कि डिमोलिशन होगा. 16 जून की सुबह मैं 5:30 बजे ही आ गया और लोगों की फोटो खींच रहा था, बात कर रहा था कि तभी पुलिस ने डिटेन लिया और मुझसे कहा कि लोगों को भड़का रहे हो. वह मुझे वसंत विहार पुलिस स्टेशन ले गए और बहुत बदतमीजी और गाली गलौज की. उन्होंने मुझे रात के 9:00 बजे तक डिटेन रखा. रात के 9:00 बजे जब अन्य साथी और वकील आए तो वकील के दबाव बनाने के बाद रात के 2:30 बजे पुलिस ने मुझे छोड़ा. बाद में मालूम चला कि पुलिस ने माहिलों और अन्य एक्टिविस्ट साथियों पर लाठीचार्ज किया है."

डिमोलिशन ड्राइव के पड़ा मलबा।
डिमोलिशन ड्राइव के पड़ा मलबा।Credits : Tej Bahadur Singh

नेहा, सोशल एक्टिविस्ट और AICCTU की सदस्य हैं उन्होंने द मूकनायक की टीम से कहा , " मैं प्रियंका गांधी कैंप में लंबे समय से काम कर रही हूं. 16 जून को सरकार द्वारा बुलडोजर चला और परिवारों को बेघर कर दिया. फोर्स ने लोगो को बर्बता से पीटा. पुलिस ने एक औरत को धकेला जिसे उनकी साड़ी उतर गई. हम अपने साथी हिमांशु, जो NSUI से हैं, को बचाने के लिए जब आगे बढ़े तो मुझे और मेरी एक साथी को भी डिटेन क्रिया गया. पुलिस थाने ले जाकर हमारे साथ बदसलूकी हुई. पुलिस से धक्का मुक्की के दौरान मेरे कपड़े भी फट गए. मैं चीखती रही पर वह लोग नही माने. यह दिल्ली पुलिस के लिए शर्मनाक है."

इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक के वसंत विहार पी. जी कैंप में रहने वाले लोगों को प्रशासन की तरफ़ से केवल रैन बसेरे में रहने का विकल्प दिया गया है. कई लोग अब भी सड़क किनारे रात बिताने को मजबूर हैं.

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