OPINION: “22 प्रतिज्ञाएं जो एक सवर्ण होने के नाते मैंने ली हैं”

22 प्रतिज्ञाएं
22 प्रतिज्ञाएं

जातिगत आधार को मिटाने के लिए हम चाहे किसी को भी कोट कर लें, कोई फर्क नहीं पड़ता. फर्क तभी पड़ेगा जब हम अपने एक्शन्स में बदलाव लाएंगे. चाहे हमारे दिल में वो बदलाव न भी हो शुरू में, तो करते करते वह आदतों में शामिल हो जाता है. हम देखते हैं कि जाति ज्यादातर आदत का मसला है. हमें याद है कि डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने 22 प्रतिज्ञाएं ली थीं. लेकिन सवर्ण समाज में बदलाव के लिए हमें कुछ नई प्रतिज्ञाएं लेनी चाहिए जो इस प्रकार हैं-

1- मैं यह एक्टिंग नहीं करूंगा कि मैंने दलित के साथ खाना खाया, इसका मतलब है कि मैं जाति नहीं मानता. पहली बात तो ये कि दलित के घर जाकर उनके पैसे नहीं बर्बाद करूंगा, बल्कि एक मित्र और पहचान के नाते उनको अपने घर बुलाऊंगा. एक सामान्य रिश्ते के तौर पर. दूसरी बात कि जाति खुद के दिल में बसती है, वहां से उसे दूर करना है.

2- मैं डॉक्टर अंबेडकर से नफरत नहीं करूंगा. साथ ही दलित नायकों को अंबेडकर तक ही सीमित नहीं करूंगा. आज का भी अगर कोई दलित व्यक्ति आगे बढ़ता है तो मैं सम्मान करूंगा. उसे अंबेडकर से तुलना कर नीचा दिखाने का प्रयत्न नहीं करूंगा. इस हिपोक्रेसी को खत्म करना है.

3- दलितों को ज्ञान नहीं बांटूंगा कि अंबेडकर की पूजा मत करो. क्योंकि मुझे पता है कि वो पूजा नहीं करते, अपनी श्रद्धा दिखाते हैं नायक के लिए.

4- मैं आरक्षण को लेकर गुस्सा नहीं करूंगा. क्योंकि सामान्य वर्ग में भी आर्थिक आधार पर आरक्षण मिल चुका है. दूसरी बात कि दलितों के साथ हजारों साल से इतना अन्याय हुआ है कि कई पीढ़ियों तक आरक्षण जरूरी है.

5- अगर कोई दलित अपनी मेहनत से कार खरीदता है, अच्छे कपड़े पहनता है और बढ़िया खाना खाता है तो मैं यह नहीं कहूंगा कि इसके आधार पर आरक्षण खत्म कर दिया जाए. कोई आगे बढ़ता है तो यह उसकी प्रतिभा, अवसर और किस्मत है. लेकिन बहुत सारे लोग पीछे हैं जिनके लिए आरक्षण जरूरी है.

6- मैं इंटरकास्ट मैरिज को प्रमोट करूंगा. इंटरकास्ट का मतलब यह नहीं कि अपर कास्ट और अपर कास्ट की शादी हो. मैं प्रयास करूंगा कि जातिभेद मिटे यानी कि हायरार्की टूटे. जैसे डॉक्टर अंबेडकर और शारदा कबीर ने की थी.

7- सिर्फ इसलिए कि किसी दलित का लिखने का स्टाइल अलग है, उसके अनुभव अलग हैं और वो अलग तरीके से सोचता है, मैं उसका मजाक नहीं उड़ाऊंगा. बल्कि अपने ज्ञान को बढ़ाने की कोशिश करूंगा कि उसके अनुभव को समझूं.

8- अगर मैं खुद वेद नहीं पढ़ता तो दूसरों को भी पढ़ने के लिए मजबूर नहीं करूंगा. अगर पढ़ता हूं तो उसकी सिर्फ अच्छी बातों को समझने का प्रयास करूंगा. उसकी गलत बातों को आधार बनाकर जाति को प्रमोट करने का प्रयास नहीं करूंगा कि जैसे वर्णाश्रम व्यवस्था सही थी, ये था, वो था, नहीं करूंगा. क्योंकि अपने दिल में पता है कि ये सब कहना बदमाशी है. चतुराई से जाति को स्थापित करने की कलाकारी है.

9- मैं किसी दलित को मंदिर जाने से नहीं रोकूंगा. उनको ज्ञान भी नहीं बांटूंगा कि मंदिर मत जाओ, स्कूल जाओ. किसी व्यक्ति की जो मर्जी. मंदिर जाना है, जाए. पढ़ना है, पढ़े. मैं खुद को नहीं थोपूंगा.

10- मैं जाति मिटाने के नाम पर पुराने कपड़े और बचे खाने देने का नाटक नहीं करूंगा. अगर कोई व्यक्ति गरीब हो तो उसका सम्मान करूंगा. यह भी महसूस करूंगा कि मैं खुद इतना ज्यादा धनी नहीं हूं कि बहुत घमंड करूं.

11- मैं जाति के बारे में पढ़ूंगा और उसके डायनेमिक्स को समझने का प्रयास करूंगा. जाति वह नहीं है जो हम अपने बचपन से सुनते आए हैं बल्कि जाति वह है जो अंबेडकर ने समझाई है, गेल ओम्वेट ने बताई है.

12- अपने वर्कप्लेस पर मैं ऐसा नहीं करूंगा कि दलितों के मुंह पर बड़ाई करूंगा और पीठ पीछे कहूंगा कि ये तो आरक्षण से आए हैं, इनको कुछ नहीं आता.

13- मैं यह समझूंगा कि मेरे माता पिता या दादा दादी के मन में जातिवाद है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इसे कम नहीं किया जा सकता है. जितना संभव हो सके, उतना कम करना है.

14- मैं यह नहीं कहूंगा कि भारतीय संस्कृति सिर्फ सवर्णों की संस्कृति है. बल्कि यह भी समझूंगा कि दलितों के इतिहास को पूर्ण रूप से जगह नहीं दी गई है. तो उन्हें पर्याप्त जगह दूंगा और उनकी संस्कृति को अपने ज्ञान में शामिल करूंगा. वरना मेरी समझ का कोई मतलब नहीं.

15- मैं संस्कृत को लेकर जबर्दस्ती नाटक नहीं करूंगा. मैं भी नहीं पढ़ता हूं और दूसरों को पढ़ने के लिए फोर्स नहीं करूंगा. मैं अगर पढ़ता हूं तो भी दूसरों को फोर्स नहीं करूंगा. कोई दलित संस्कृत पढ़ता है तो उसे रोककर अपनी हिपोक्रेसी और मूर्खता को नहीं बढ़ाऊंगा. इस बात का कोई मतलब है?

16- मैं किसी दलित को मूंछ रखने के लिए तंग नहीं करूंगा. मैं यह मूर्खता क्यों करूंगा? इस बात का कोई अर्थ है? मेरी इस हरकत का किसी यूनिवर्सिटी में पता चलेगा तो वो क्या सोचेंगे, मुझे एडमिशन देंगे क्या? क्या मैं पूरी लाइफ यही मूर्खता करता रहूंगा?

17- मैं यह समझूंगा कि अवसर मिलने से हर कोई अच्छा काम कर सकता है. चूंकि दलित जातियों के पास ना तो जमीन थी, ना शिक्षा और वो सामाजिक कुचक्र में फंसे हुए थे, वह अच्छा नहीं कर पा रहे थे. मौका मिलते ही वो अच्छा करने लगे. यह हमारे देश के लिए खुशी की बात है क्योंकि सबकी प्रगति में ही हमारी प्रगति छुपी है.

18- अपनी शादी में कोई दलित घोड़ी चढ़े या लैम्बोर्घिनी पर चढ़े, मेरे पेट में क्यों तकलीफ होगी? मुझे आपत्ति हो, मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा. अगर ऐसा होता है तो मैं तुरंत मनोचिकित्सक से मिलूंगा.

19- जिस प्रकार महाराणा प्रताप हम सबके पूर्वज हैं, वैसे ही ज्योतिबा फूले, डॉक्टर अंबेडकर इत्यादि हम सबके पूर्वज हैं. हमारे कुछ पूर्वजों ने हमारे अन्य पूर्वजों के प्रति बड़ा अन्याय किया था. मैं इस बात को समझने का प्रयास करूंगा.

20- मैं यह कोशिश करूंगा कि मेरे वर्कप्लेस पर दलित व्यक्तियों के लिए पर्याप्त जगह बने. मैं पॉलिटिक्स कर उन्हें ना आने देने का कृत्य नहीं करूंगा.

21- मैं जहां भी दलितों के प्रति अन्याय देखूंगा, अपनी बात रखूंगा. क्योंकि बात करने से ही बात बनती है. साथ ही एससी-एसटी एक्ट को लेकर मैं अपनी समझ बनाऊंगा, इसके सही उपयोग पर जोर दूंगा और अगर कहीं इसका दुरुपयोग हुआ है तो इसके आधार पर एक्ट को खत्म करने की बात नहीं करूंगा. बल्कि जातिगत आधार को खत्म करने की बात करूंगा जो कि इसके पीछे का कारण है.

22- ऊपर की सारी प्रतिज्ञाएं देखकर समझ आ रहा है कि सवर्ण जाति की प्रवृत्ति में काफी सुधार की आवश्यकता है. इन सारी प्रतिज्ञाओं को पूरा करने की प्रतिज्ञा लेता हूं.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति The Mooknayak उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार The Mooknayak के नहीं हैं, तथा The Mooknayak उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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