उत्तर प्रदेश: नई टाउनशिप नीति से दलित चिंतकों और नेताओं में रोष

बिना डीएम की अनुमति के दलितों की जमीन को खरीदने की अनुमति के फैसले पर जताई चिंता
उत्तर प्रदेश: नई टाउनशिप नीति से दलित चिंतकों और नेताओं में रोष

लखनऊ। यूपी सरकार शहरों में आवासीय जरूरतों को पूरा करने के लिए नई टाउनशिप नीति 2023 पर काम कर रही है। इस नीति के तहत अब अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों की जमीन खरीदने के लिए जिलाधिकारी से अनुमति लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इससे पहले अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के तहत अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों की जमीनें सिर्फ उसी समुदाय का व्यक्ति ही खरीद सकता था। किसी अन्य समुदाय को अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों की जमीन खरीदने के लिए जिलाधिकारी से अनुमति लेनी पड़ती थी। वहीं इसी नीति को लेकर दलित नेताओं और चिंतकों ने आपत्ति जाहिर की है।

जानिए क्या है पूरा मामला

यूपी में उत्तर प्रदेश सरकार जमीनों की खरीद-बिक्री के नियमों में संशोधन करने जा रही है। एससी व एसटी यानी दलितों और अनुसूचित जनजाति की जमीन लेने के लिए अब डीएम की अनुमति की अनिवार्यता नहीं रहेगी। इसके साथ ही साढ़े 12 एकड़ में टाउनशिप बसाने की अनुमति भी सरकार देने जा रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समक्ष मंगलवार को प्रस्तावित उत्तर प्रदेश टाउनशिप नीति-2023 का प्रस्तुतीकरण किया गया। टाउनशिप बसाने वालों को जमीन की रजिस्ट्री पर 50 फीसदी छूट दी जाएगी।

आईए जानते क्या है नई नीति की प्रमुख बातें

- एससी, एसटी की जमीन लेने पर डीएम की अनुमति जरूरी नहीं।

- चंडीगढ़ की तर्ज पर क्षैतिज विकास को बढ़ावा दिया जाएगा।

- पैदल चलने वालों के लिए पर्याप्त फुटपाथ यानी पटरी होगी।

- उबड़-खाबड़ या अनुपयोगी भूमि को ग्रीन बेल्ट बनाया जाएगा।

- पार्कों, शॉपिंग काम्प्लेक्स व पुलिस स्टेशन के पास पार्किंग सुविधा।

- पार्कों व हरित पट्टियों में बागवानी के लिए ट्रीटेड जल का उपयोग।

- सॉलिड वेस्ट डिस्पोजल के संबंध में नेट जीरो वेस्ट का पालन जरूरी।

जानकारी के मुताबिक प्रदेश में हाईटेक टाउनशिप नीति समाप्त हो चुकी है। इंटीग्रेटेड नीति में 500 एकड़ और हाईटेक में 1500 एकड़ की अनिवार्यता थी। प्रस्तावित नीति में दो लाख से कम आबादी वाले शहरों में न्यूनतम 12.5 एकड़ जमीन और अन्य शहरों में 25 एकड़ जमीन पर कालोनियां बसाने की अनुमति दी जाएगी। कालोनियों तक जाने के लिए 24 मीटर और अंदर 12 मीटर सड़क की अनिवार्यता होगी।

ग्राम समाज, सीलिंग या फिर अन्य विभागों की जमीन लेकर दूसरे स्थान पर छोड़ने की सुविधा मिलेगी। 50 एकड़ से अधिक क्षेत्रफल की परियोजनाएं कृषि भूमि और 50 एकड़ तक मास्टर प्लान में आवासीय भूउपयोग पर कालोनी बसाने का लाइसेंस मिलेगा। ग्राम समाज व अन्य शासकीय भूमि को 60 दिनों में नियमित किया जाएगा। राजस्व संहिता के प्रावधानों के अधीन 12.5 एकड़ से अधिक भूमि लेने की छूट होगी।

दलित नेताओ में रोष व्याप्त

इस मामले में आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद ने कहा है-"हमारे पुरखों ने धरती का सीना चीरकर जमीनों को उपजाऊ बनाया लेकिन राजाओं, सामंतों ने छल-बल से इनको हड़प लिया।बाबा साहब ने आजादी के आंदोलन में जमीनों को वापस लेने का आंदोलन किया। देश की स्वतंत्र सरकार ने जमींदारी उन्मूलन करके दलितों, वंचितों के साथ न्याय करने का वादा किया था, इसीलिए कांशीराम साहब ने कहा "जो जमीन सरकारी है,वो जमीन हमारी हैं" लेकिन योगी सरकार का नया हुक्मनामा दलितों,आदिवासियों की खून पसीने से सींची गई जमीनों को शोषक सामंतों के हवाले करने की साजिश है। इसे हम नहीं होने देंगे। अपने पुरखों की जमीन हम लेकर रहेंगे।जमीन की लड़ाई जमीन पर लड़ेंगे।

इस मामले में बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता धर्मवीर चौधरी ने द मूकनायक को बताया-"सरकार दलित विरोधी है। लगभग 90 फीसदी दलित किसान भूमिहीन है अथवा उनके पास छोटी काश्त हैं। सरकार ने दलितों को अब पट्टे पर जमीन देना भी बन्द कर दिया है। इस नीति से सरकार दलितों का दमन करना चाहती है।"

इस मामले में समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने द मूकनायक को बताया-"यदि ऐसी कोई नीति आ रही है तो यह खतरनाक स्थिति है। बहरहाल इस नीति में कौन से किसान ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं,इसका पूर्ण अध्ययन करने के बाद ही कुछ भी कहना सम्भव होगा।"

इस मामले में भीम आर्मी चीफ विनय रतन सिंह ने द मूकनायक को बताया-"सरकार गरीबों को दबाना चाहती है। यदि अनुपात निकाला जाए तो इस देश मे सबसे ज्यादा गरीब आबादी के लोग दलित ही हैं। इस नीति के जरिये सरकार लोगों का दमन करना चाहती है।"

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