उत्तर प्रदेश: वीर महार योद्धाओं को याद किया, उनके योगदान को सराहा

भारतीय दलित पैंथर के तत्वावधान में विशाल जनसभा आयोजित.
उत्तर प्रदेश: वीर महार योद्धाओं को याद किया, उनके योगदान को सराहा

कानपुर: भारतीय दलित पैंथर के तत्वावधान में प्रांतीय कार्यालय मैकराबर्टगंज कानपुर नगर में एक विशाल जनसभा का आयोजन किया गया, जिसमें कानपुर नगर व कई अन्य जनपदों के गणमान्य जनों व प्रबुद्ध जनों ने शिरकत की। वर्ष 1818 भीमा कोरेगांव में घटित घटना में 28000 पेशवा सैनिकों को 500 महार सैनिकों ने युद्ध स्थल में धूल चटाई थी और उन्हें मार गिराया था.

इस शौर्य पूर्ण घटना पर शहीद हुए महार सैनिकों को श्रद्धांजलि व इस गौरवपूर्ण गाथा को व्यक्त कर सभी को गौरवान्वित रहने व उत्पन्न मौजूदा परिस्थितियों में एकजुट रहने की अपील की गई।

कार्यक्रम के आयोजक प्रदेश अध्यक्ष धनीराम पैंथर ने अपने वक्तव्य में शौर्य दिवस व नव वर्ष की हार्दिक बधाई एवं मंगल कामनाएं करते हुए संपूर्ण उपेक्षित, दलित, पिछड़ा व अल्पसंख्यक समाज को विषम परिस्थितियों में एक जुट रहकर संघर्ष करने का आहवान किया।

कार्यक्रम में प्रमुख रूप से साजिद, संतोष पैंथर, योगेश गौतम, राहुल गौतम, एडवोकेट विजय सागर,महेश कुशवाहा, इंजीनियर कोमल सिंह, विनोद पाल, आर ए गौतम, डॉक्टर सुभाष चंद्रा, अशोक कुमार, सतीश चंद्रा, मनोज दिवाकर, मोहम्मद रिजवान,अजय कमल,विपिन कठेरिया, हनी पैंथर,रोशन साहू,अनिल जायसवाल, जय कठेरिया, विनीत कुमार सहित सैकड़ो लोग उपस्थित सैकड़ों है।

क्या थी भीमा कोरेगांव की घटना?

1 जनवरी, 1818 को, जब दुनिया नया साल मना रही थी, ब्रिटिश लाइट इन्फैंट्री के 500 महार सैनिक 28,000 पेशवाओं की शक्तिशाली सेना का मुकाबला करने की तैयारी कर रहे थे, जिनमें से 20,000 घुड़सवार और 8,000 पैदल सैनिक थे.

महार, ब्रिटिश मूल निवासी सेना का हिस्सा थे, उनका नेतृत्व कैप्टन फ्रांसिस स्टॉन्टन कर रहे थे और उनके साथ 300 घुड़सवार थे. जबकि महार ब्रिटिश सेना में अधिक गिनती में थे, तोह वहीं सेना में मराठा, राजपूत, मुस्लिम और यहूदी भी कम संख्या में शामिल थे। यह लड़ाई तीसरे एंग्लो मराठा युद्ध का हिस्सा थी और अंत में पेशवा साम्राज्य का अंत साबित हुई.

महारों ने बिना खाने या पानी के 12 घंटे तक बहादुरी से लड़ाई लड़ी और शक्तिशाली पेशवाओं को कुचल दिया. शायद अपमान और अधीनता की टीस इतनी भारी थी कि भूख और सूखे गले की पीड़ा से प्रभावित नहीं हो सकती थी.

महार अपने दमनकारी शासकों की सेना को पूरी तरह से पराजित करने में सक्षम हुए. ब्रिटिश सेना के कमांडरों में से एक जनरल स्मिथ ने अपनी आधिकारिक रिपोर्ट में लिखा, “कोरेगांव की लड़ाई किसी भी सेना द्वारा हासिल किए गए सबसे शानदार मामलों में से एक थी जिसमें यूरोपीय और मूल निवासी सैनिकों ने सबसे महान भक्ति और सबसे अधिक बहादुरी का प्रदर्शन किया था. बिना भूख और प्यास के बारे में सोचे, वे जीतने तक डटे रहे.“

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