उत्तर प्रदेश: यूपी के इस गाँव की दलित बस्ती में आजादी के 75 साल बाद भी नहीं पहुंची बिजली, लोगों ने अंधेरे में मनाई दीपावली – ग्राउंड रिपोर्ट

अंधेरे में खाना बनाते हुए गांव की एक लड़की [फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक]
अंधेरे में खाना बनाते हुए गांव की एक लड़की [फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक]

उत्तर प्रदेश सरकार इस दीपावली में अयोध्या में 18 लाख दीपक जलाकर और लाइट शो कर विश्व रिकार्ड बनाने में जुटी थी। वहीं दूसरी तरफ वीरों की धरती झाँसी के गांव हर बार की तरह अंधेरे में दिवाली मनाने को मजबूर थे। आजादी के 75 साल बाद भी इन गांवों में विद्युतीकरण नहीं हुआ है। खासतौर से दलित बस्ती में रहने वाले लोगों के घरों तक विद्युत लाइन पहुंचाई ही नहीं गई है, और न ही विद्युत कनेक्शन दिए गए हैं। इसके चलते हर बार की तरह इस बार भी दलित परिवारों की दीपावली अंधेरे में गुजरी। द मूकनायक टीम ने इस दीपावाली पर झांसी जिले के एक ऐसे ही गांव का जायजा लिया। पेश है रिपोर्ट…

अयोध्या में जोर-शोर से की गई दिवाली की तैयारियां
अयोध्या में जोर-शोर से की गई दिवाली की तैयारियां

झांसी जिले की मऊ रानी तहसील में ककवारा गांव पड़ता है। इसी गांव का एक मजरा सिध्दपुरा दलित बस्ती के नाम से जाना जाता है। इस दलित बस्ती में लगभग 200 मकान हैं, जबकि गांव में लगभग 1000 लोग रहते हैं। वहीं कटेरा देहात के पुरैना, यारा, मोरयाना, खोरयाना सहित पांच गांवों में बिजली नहीं है। स्थानीय निवासियों के मुताबिक, यह गांव आजादी से पहले से बसा हुआ है। गांव में लाइट नहीं होने के कारण स्थानीय लोगों को तमाम समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शाम को सूरज ढल जाने के बाद गांव की बहन, बहू-बेटियां घर से नहीं निकलती हैं। स्थानीय ग्रामीणों का मानना है कि, वह अनहोनी हो जाने के डर से बहू-बेटियों को अंधेरा होने के बाद घर के बाहर नहीं जाने देते हैं।

दलित बस्ती की कच्ची सड़क सरकारी सेवाओं से जोड़ती है

ककवारा गांव से लगभग 2 किमी दूर बसी सिध्दपुरा दलित बस्ती को एक कच्ची सड़क जोड़ती है। ककवारा गांव में सरकारी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और प्राइमरी विद्यायल है। ककवारा गांव सहित सरकारी कार्यालयों में बिजली के कनेक्शन हैं, लेकिन दलित बस्ती में कनेक्शन नहीं दिए गए हैं। कच्ची सड़क होने के कारण बारिश के दिनों में यहां की स्थिति और भी बदहाल हो जाती है। जहरीले जानवरों का खतरा और भी बढ़ जाता है।

ककवारा गांव दलित बस्ती निवासी विवेक इंटर की पढ़ाई कर रहे हैं। विवेक बताते है, "रात को पढ़ाई करने के लिए डीजल की ढिबरी जलाते हैं। मोबाइल चार्ज करने के लिए ककवारा गांव में अपने दादा के घर जाते हैं। दादा का घर दलित बस्ती से 2 किलोमीटर की दूरी पर है।"

मोबाइल चार्जिंग के देने पड़ते हैं रुपए

"दलित बस्ती के रहने वाले लोग 2 किमी दूर ककवारा गांव में मोबाइल और बैटरी चार्ज करने के लिए जाते हैं। उस गांव में लोग मोबाइल और बैटरी चार्ज करने के लिए 10 से 20 रुपए तक लेते हैं।" विवेक ने द मूकनायक को आगे बताया, "रात में घर के बाहर निकलने से डर लगता है। अंधेरा हो जाने के कारण सांप-बिच्छू का पता नहीं चल पाता है। सांप के काटने के कारण पिछले 3 महीने में चार लोगों की मौत हो गई है।"

कस्तूरी देवी [फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक]
कस्तूरी देवी [फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक]

सिध्दपुरा दलित बस्ती की स्थानीय निवासी कस्तूरी देवी (55) से द मूकनायक ने बात की। लाइट की समस्या को लेकर कस्तूरी देवी बताती हैं कि, "लड़कों की शादी नहीं हो पाती है। बच्चे पढ़ नहीं पा रहे हैं। मिट्टी का तेल कोटे से मिलना बंद हो गया है। महंगे डीजल से कब तक दिया जलाया जाएगा! चुनाव के समय केवल वोट लेने के लिए माता-बहन करके नेता आते हैं, पैर तक छू जाते हैं, लेकिन इसके बाद कोई नजर नहीं आता है।"

कस्तूरी देवी आगे कहती है कि, "एक 20 साल का लड़का खत्म हो गया। हाई स्कूल की पढ़ाई उसने कर ली थी। उसकी शादी तय हो चुकी थी। बिच्छू काटने की वजह से उसकी मौत हो गई। एक 15 साल की लड़की कविता खत्म हो गई। एक 10-15 साल का लड़का था वह भी खत्म हो गया। तीन आदमी खत्म हो गए, लेकिन कोई सुनवाई नहीं करता है। अंधेरे में बड़े-बड़े सांप आ जाते हैं। बस्ती के सभी लोग अधिकारी के पास गए थे। न ही तब सुनवाई हुई थी न ही अब सुनवाई हुई है।"

सिध्दपुरा दलित बस्ती की रहने वाली माधुरी देवी का कहना है, "लाइट नहीं होने के कारण रात में खाना बनाने और खाने में दिक्कत होती है। बच्चे पढ़ नहीं पाते हैं। मिट्टी का तेल मिलता था, वह भी अब बंद कर दिया गया है।" 60 वर्षीय कमल बताते हैं, "गांव में लाइट की बहुत समस्या है। हमने तो बचपन से गांव में लाइट नहीं देखी है।"

गांव के ही अवधेश कुमार (50) अहिरवार बताते हैं, "जब से यह बस्ती बसी हुई है, तब से आज तक गांव में लाइट की कोई व्यवस्था नहीं है। मिट्टी का तेल मिलता था, वह भी अब नहीं मिलता है। डीजल महंगा है। अंधेरे में जीवन बसर करते हैं। अंधेरे में बच्चे इधर-उधर खेलते हैं, लाइट नहीं होने के कारण सांप और बिच्छू के काटने से 4 बच्चे मर गए, लेकिन लाइट की कोई व्यवस्था नहीं हुई है।"

16 वर्षीय विवेक बारहवीं का छात्र है। वह आर्मी जवान बनना चाहता है। विवेक लाइट की समस्या को लेकर कहता है, "डीजल के लैम्प की रोशनी में रोज पढ़ाई करनी पड़ती है। बैटरी लाइट चार्ज करने के लिए दूर जाना पड़ता है। कोई लाइट चार्ज कर देता है, कोई नहीं करता है। कभी बैट्री वाली लाइट की रोशनी में पढ़ता हूँ, कभी डीजल का दिया जलाकर। डीजल वहां के पेट्रोल टँकी से खरीदकर लाते हैं। डीजल महंगा हो गया है, पैसे नहीं होने के कारण कभी-कभी डीजल नहीं ला पाता हूँ। बारिश के समय में पक्की सड़क नहीं होने के कारण कीचड़ में जाना पड़ता है।"

बिना बिजली के बेकार पड़े इलेक्ट्रिक सामान [फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक]
बिना बिजली के बेकार पड़े इलेक्ट्रिक सामान [फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक]

लाइट नहीं होने के कारण इलेक्ट्रॉनिक सामान खराब

मऊरानी तहसील के एक अन्य गांव कटेरा की रहने वाली क्रांति बताती हैं, "10 पहले मेरी शादी हुई थी, माता-पिता ने पैसे जोड़कर कूलर दहेज में दिया था। गांव में लाइट नहीं होने के कारण कूलर कभी इस्तेमाल नहीं हो सका और कबाड़ की तरह रखा है।"

बिना बिजली के खराब पड़े कूलर को दिखाते गोपालदास [फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक]
बिना बिजली के खराब पड़े कूलर को दिखाते गोपालदास [फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक]

वहीं कटेरा ग्राम पंचायत में रहने वाले गोपालदास बताते हैं, "5 महीने पहले मेरी शादी हुई थी। फ्रिज, कूलर, पंखा, वाशिंग मशीन, टीवी सब मिला है। लाइट नहीं होने के कारण सारा सामान पैक रखा है।" वे आगे कहते हैं, "ससुराल वाले नाराज होते हैं। एक तो जल्दी हमारे गांव में कोई अपनी लड़की की शादी नहीं करता, यदि करता है तो लाइट नहीं होने के कारण शादी टूट जाती है। मुझे भी डर है कि मेरे साथ भी ऐसा नहीं हो जाए।"

झांसी के पारीछा से पूरे यूपी में सप्लाई होती है बिजली

उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन ने झांसी के पारीछा थर्मल पावर प्लांट को 1985 में स्थापित किया था। पारीछा के इस प्लांट पर होने वाले बिजली उत्पादन से पूरी यूपी की सप्लाई दी जाती है। लेकिन पारीछा से 70 किलोमीटर दूर बसे ककवारा गांव की दलित बस्ती सिद्धपुरा के घरों में एक भी कनेक्शन नहीं है। इस पावर प्लांट में 110 मेगावाट की नंबर एक इकाई को जुलाई 2016 में बंद कर दिया गया था। जबकि 110 मेगावाट की दूसरी इकाई को जनवरी 2020 में बंद किया जा चुका है। वर्तमान में प्लांट में 210 मेगावाट की दो, और 250 मेगावाट की दो इकाइयां स्थापित हैं, जिनसे उत्पादन हो रहा है।

किसान कांग्रेस कमेटी के चेयरमैन ने प्रदर्शन कर उठाया मुद्दा

दलित बस्ती सिद्धपुरा के लोगों के बीच पहुंच किसान कांग्रेस कमेटी के चेयरमैन शिव नारायण सिंह परिहार ने 3 जून को ग्रामीणों की सड़क बिजली की समस्या को लेकर ग्रामीणों के साथ प्रदर्शन किया था। परिहार ने बताया, "यहां ऐसे कई गांव हैं, जहाँ आज भी बिजली नहीं है। अभी तक उन्होंने प्रशासन से लड़कर कई गांवों को कनेक्शन दिलवाए हैं। ककवारा गांव की दलित बस्ती के मामले में भी मुख्यमंत्री और ऊर्जा मंत्री के साथ अधिकारियों को कई बार लिखित ज्ञापन दिया है, लेकिन आजतक कोई सुनवाई नहीं हुई।"

लगभग 1 किमी दूरी पर है पावर हाउस

दलित बस्ती ककवारा के रहने वाले बृज किशोर (40) बताते हैं, "गांव से लगभग 1 किमी की दूरी पर दो साल पहले रेवन गांव और बेरवई गांव के बीच नया पावर हाउस बनाया गया था। इससे रेवन गांव, बेववई गांव और ककवारा गांव में बिजली की सप्लाई होती है। इससे पहले मऊरानी पावर हाउस से बिजली सप्लाई होती थी। दलित बस्ती की कच्ची सड़क सरकारी सेवाओं से जोड़ती है।"

विधायक और अधिकारियों से प्रधान ने भी कई बार की शिकायत

ककवारा गांव के मौजूदा प्रधान सर्वेश राय ने बताया कि, गांव में 1987 से प्रधानी चली आ रही है। अब तक 6 प्रधान कार्यकाल बिता चुके हैं, लेकिन इस समस्या का समाधान नहीं हो सका है। ग्राम प्रधान सर्वेश राय अधिकारियों की शिकायत करते हुए कहते हैं, "मैंने खुद पूर्व भाजपा विधायक बिहारी लाल आर्य से तीन साल पहले शिकायत की थी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। 2005 में गांव में लाइट की व्यवस्था के लिए खंभे मंगाए गए थे। वह खंभे आज भी एक किनारे पड़े हुए हैं।"

लखनऊ से दिल्ली तक दौड़

कटेरा ग्राम पंचायत में पांच गांवों में लाइट नहीं है। लाखन यादव की पत्नी पहली बार गांव के प्रधान बनी हैं। प्रधान प्रतिनिधि लाखन यादव कहते है, "अभी तक जितने भी प्रधान बने वह अशिक्षित थे। इसलिए जितना उनसे करवाया जाता था। वह उतना ही करते थे। मेरी पूरी कोशिश है कि मेरे इन गांवो में लाइट पहुंचे। इसके लिए मैं लखनऊ से दिल्ली के चक्कर भी लगा रहा हूँ।"

जिम्मेदारों का रवैया जानिए

पूरे मामले को लेकर दक्षिणांचल विद्युत निगम लिमिटेड के सेक्शन इंजीनियर ग्रामीण एस के अग्रवाल ने बताया, "द मूकनायक की जून में की गई खबर के बाद सिध्दपुरा गांव में कुछ सोलर लाइटें लगवा दी गई हैं। एस्टीमेट बनाकर शासन को भेजा गया था। जल्दी ही हमारे पास इन गांवों में बिजली पहुंचाने के लिए बजट भी आ जाएगा, जिसके बाद इन गांवों के प्रत्येक घर को बिजली कनेक्शन देना सम्भव हो सकेगा।"

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