सस्ते मजदूर चाहिए, उनकी कच्ची बस्ती नहीं!

सस्ते मजदूर चाहिए, उनकी कच्ची बस्ती नहीं!

यूपी की राजधानी लखनऊ में बस अड्डे के लिए प्रशासन ने सरकारी जमीन अतिक्रमण मुक्त कराई, इस दौरान यहां झुग्गी-झोपड़ी डालकर रह रहे लोगों को बिना किसी अस्थायी व्यवस्था के खदेड़ दिया गया, सर्द मौसम में अचानक सिर से छत चले जाने से प्रवासी मजदूरों के परिवारों को परेशानी का सामना करना पड़ा

बस्ती उजड़ने के बाद सड़क किनारे डिवाइडर पर रखा गरीब मजदूरो का सामान
बस्ती उजड़ने के बाद सड़क किनारे डिवाइडर पर रखा गरीब मजदूरो का सामान

लखनऊ। यूपी के लखनऊ में रोजाना लाखों प्रवासी मजदूर आस-पास के जिले से काम की तलाश में आते हैं। अधिकांश मजदूर जिन्हें काम के लिए रोजाना लंबा सफर तय करना पड़ता है, उनमें से कई मजदूर परिवारों ने खाली पड़ी सरकारी जमीनों पर अपना अस्थाई आशियाना बना लिया। इनमें से तो कई स्थान ऐसे हैं, जहां यह मजदूर दो दशकों से ज्यादा समय से रह रहे हैं। कई सरकारें आई और गईं, लेकिन इन गरीब मजदूरों के रहवास की समस्या जस की तस रही। ऐसे ही कुछ मजदूर परिवार इंजीनियरिंग कॉलेज चौराहे के पास सचिवालय कालोनी के ठीक सामने खाली पड़े सरकारी भूखंडों में छोपड़ी बनाकर रह रहे थे। सोमवार को भारी पुलिस बल के साथ पहुंची जिला प्रशासन, नगर-निगम व लखनऊ विकास प्राधिकरण सहित अन्य विभागों की टीमों ने इस स्थान पर दो दशकों से बनी बस्तियां उजाड़ दीं। हालांकि प्रशासन ने इस जगह को खाली करने का समय भी दिया। लेकिन सप्ताह भर के समय में दो दशकों में बनाई गृहस्थी को यह मजदूर हटा नहीं सके। पूरी बस्ती तहस-नहस हो गई। इस कार्रवाई से नगर-निगम के रैन बसेरों पर अतिरिक्त बोझ बढ़ गया है। वहीं खुले में सड़क पर सोने वालों की तादाद भी बढ़ गई है।

जानिए क्या है पूरा मामला

लखनऊ के जानकीपुरम में सचिवालय कालोनी के सामने लगभग दो दशकों से 600 से अधिक झुग्गियां बनी हुई थीं। इन झुग्गियों में उन्नाव, कानपुर, सीतापुर, बाराबंकी, हरदोई जिले के विभिन्न तहसीलों से आए कामगर मजदूर रहते थे। इन मजदूरों के साथ उनका परिवार और बच्चे भी रहते थे।

इन मजदूरों में सबसे अधिक आबादी अनुसूचित जाति के लोगों की है। ज्यादा जमीन (खेत-खलिहान) नहीं होने के कारण यह मजदूर काम की तलाश में लखनऊ आते हैं। इनकी दैनिक मजदूरी बहुत ही कम होती है। इस कारण यह किराया देने में सक्षम नहीं होते हैं। इस कारण यह मजदूर खाली पड़े सरकारी भूखंडों में झुग्गियां बनाकर रहते हैं।

बस अड्डे के लिए खाली कराई गई जमीन

इंजीनियरिंग कॉलेज के पास खाली पड़े इस भूखंड पर पिछले तीन दशकों से बस अड्डा प्रस्तावित है। इसका ढांचा भी तैयार था। परंतु बस अड्डा चालू नहीं होने के कारण गरीब मजदूरों ने इसमें अपना आशियाना बना लिया। इस साल एक बार फिर प्रशासन को बस अड्डा बनाने की याद आ गई। सप्ताह भर पहले दो दशकों से बसे इन मजदूरों को यह झुग्गियां हटाने का आदेश दिया गया था। सोमवार को पहुंची जिला प्रशासन के कई विभागों की संयुक्त टीमों ने इसे उजाड़ कर रख दिया।

मजदूरी में कम पैसे मिलते हैं, महिलाएं करती हैं घरों में काम

पुरूष मजदूरी करने लेबर अड्डे पर जाते हैं।

बस्ती उजड़ने के बाद ईंट के चूल्हे पर बच्चे के लिए दूध पकाती गीता देवी
बस्ती उजड़ने के बाद ईंट के चूल्हे पर बच्चे के लिए दूध पकाती गीता देवी

सीतापुर के बिसवां से आई गीता बताती हैं-हमारे पति काम पर जाते हैं। 300-350 मजदूरी मिलती है। परिवार चलाने के लिए पैसा कम पड़ता है। इसके लिए हम जूठे बर्तन धुलकर अपने बच्चों का पेट पालते हैं।

दहशत में गई मजदूर की जान

जब बिल्डोजर चलना शुरू हुआ तब इन मजदूरों ने बचा हुआ सामान समेटना शुरू कर दिया। अफरा-तफरी मच गई। सीतापुर के बिसवां के रहने वाले गोपी अपनी पत्नी और बच्चियों के साथ झोपड़ी बनाकर रहते थे। वह जल्दी-जल्दी घर का सामान समेटने लगे। भारी पुलिस बल देखकर हर कोई दहशत में था। इस दौरान गोपी को हार्ट-अटैक आ गया और उसने मौके पर दम तोड़ दिया।

बनेगा बस अड्डा, चलेगी आठ इलेक्ट्रॉनिक बसें

इस खाली किए गए स्थान पर बस अड्डा बनेगा। यहां इंजीनियरिंग कॉलेज से स्कूटर इंडिया तक चलने वाली चार जोड़ी इलेक्ट्रिक बसें कानपुर रोड के बनी गांव तक संचालित होंगी। सिटी बस सेवा का विस्तार करते हुए एक जोड़ी ई बस को हरी झंडी दी गई। मंडलायुक्त डॉ. रौशन जैकब की अध्यक्षता में आठ ई बसों को संचालित करने की मंजूरी दी गई है। आठ ई बसों के विस्तार से बंथरा, जुनाबगंज, कटी बगिया और बनी गांव के लोगों को राहत मिलेगी। लखनऊ सिटी ट्रांसपोर्ट के एमडी आरके त्रिपाठी ने बताया कि रोजाना इंजीनियरिंग कॉलेज से सुबह साढ़े सात बजे बसें रवाना होंगी। हर 40 मिनट पर आम लोगों को बसों की सुविधा मिलेगी।

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