मंदिर में पानी पी लेने का गुनाह और हिन्दू कट्टरता का मुद्दा

मंदिर में पानी पी लेने का गुनाह और हिन्दू कट्टरता का मुद्दा
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दस मार्च को सोशल मीडिया पर मारपीट का एक वीडियो वायरल हुआ. इस वायरल वीडियो में आसिफ नाम के एक लड़के को मार खाते देखा जा सकता है. लड़के पर इल्ज़ाम है कि उसने मंदिर जाकर पानी पीने का जुर्म किया है. मारपीट करने से पहले लड़के से कैमरा पर पूछा जाता है कि क्या वो मंदिर गया था पानी पीने के लिए, हां में जवाब मिलने पर उसकी पिटाई कर दी जाती है. आसिफ की मारपीट का मामला इकलौता नहीं है. इससे पहले भी मुल्क भर में हेट क्राइम का एक सिलसिला चलता रहा है. पहले लिंचिग में और फिर कोरोना काल में मुसलमानों से नफरत फैलाने का कई दौर आकर गुज़र चुका है.

दरसअल मुसलमानों के साथ होने वाले इस तरह के क्राइम पर मेन स्ट्रीम में कभी खुलकर बात नहीं होती. बात इसलिए भी नहीं होती क्योंकि किसी पॉलिटिकल पार्टी के लिए या किसी पॉलिटिकल एक्टिविस्ट के लिए, मुसलमान मात्र एक वोटर भर है. चाहे कोई कितना सेक्युलर हो, लिबरल हो, जागा हुआ पत्रकार हो, या एक्टिविस्ट हो, वो मुसलमानों के मुद्दे पर बच-बच कर बात करते हैं, बस इतना ही बात करते हैं, जिससे उनको मुसलमान भी हीरो मान लें और हिन्दू भी अपना दुश्मन ना समझें. ये वो लोग होते हैं जो मुसलमानों के लिए स्टैंड तो लेते हैं लेकिन इस तरह से की सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे.

इस सब में होता ये है कि ये जो नफरत का पूरा चैंबर है, उसपर कोई वार नहीं होता, वो जूं का तुं बना रह जाता है. प्रोटेस्ट के बाद कुछ शरजील उस्मानी जैसे एक्टिविस्ट ने इन मुद्दों की तह तक जाकर उसपर अपने विचार रखने की कोशिश की है. हालांकि शरजील की बात को सिरे से कट्टर करार दे दिया गया. कई लोगों ने, जिनमें पत्रकार और एक्टिविस्ट शामिल हैं, उन्होंने अपनी धार्मिक भावना के आहत होने का इल्ज़ाम लगाया. लेकिन आसिफ के मामले में जब इतनी मामूली सी बात पर इस तरह का क्राइम होते हुए देखते हैं तो लगने लगता है कि वाकई कहीं ना कहीं लार्जर कम्युनिटी के साथ कुछ मसला तो है. कोई यूं ही तो मारपीट का शौक नहीं रखता, जब तक आपको इस हद तक नहीं उकसाया जाए कि मुस्लिम आपके दुश्मन हैं तब तक आप उसपर बेवजह हाथ नहीं उठाएंगे.

इस तरह के हेट क्राइम को अनालाइज करने पर साफ हो जाता है कि वाकई हिन्दू समाज किसी हद तक तो ज़रूर कट्टरता (radicalization) से गुजर रहा है. एक मुस्लिम लड़के को मंदिर में नहीं जाने देना एक बात हो सकती है लेकिन उसको मना करने के बजाए उसपर लात घूसों की बारिश कर देना एक तरह से मन में पल रहे नफरत का बाहर आ जाना है. वो नफरत जो आम हिन्दू के जहन में कभी न्यूज के जरिए तो कभी सिनेमा के जरिए, तो कभी पॉलिटिकल बयानबाज़ी के जरिए पहुंचाई जा रही है. हालांकि इस तरह के मामले में इस बात की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि ये महज पापुलर होने के लिए एक स्टंट है ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग इसको देखें और दोनों कम्युनिटी के दरमियान और ज़्यादा नफरत पैदा हो. लेकिन कारण जो भी हो, इस तरह का व्यवहार एक सभ्य समाज की निशानी नहीं है. इस तरह की वीडियो को वायरल कराया जाता है ताकि मुसलमानों के खिलाफ हेट क्राइम को आम किया जाए.

वक्त-वक्त पर इस तरह की वीडियो के जरिए नफरत के बाज़ार को जान बूझकर हवा दी जाती है. ये समझा जाता है कि एक खास समुदाय का हिंदुस्तान की डेमोक्रेसी के सभी अंगों पर दबदबा है. अमूमन यही माना जाता है कि यही कम्युनिटी मुसलमानों के खिलाफ इस तरह के हेट के इको सिस्टम पर पेट्रोल छिड़कने का काम करती है. लेकिन आसिफ के मामले को देखें तो साफ हो जाता है कि उससे मारपीट करने वाला व्यक्ति एक बहुजन समाज से है. इसीलिए इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि हिंदुत्व के कंपैन करने का असर आम हिन्दू मानस पर हुआ है. हिन्दू मास कट्टरता (radicalization) अब गांव-गांव और कस्बों तक पहुंच चुका है.

ये एक समस्या तो है की हिंदुत्व को आम हिन्दू मानस ने बड़े स्तर पर एक्सेप्ट कर लिया है. सबसे बड़ा मसला ये होता है कि एक बार मुस्लिम समाज के खिलाफ परोसा गया ये ज़हर आपके ज़हन में चला गया, तो वो अपने आप नहीं निकलता है, उसके लिए बड़ी मेहनत करनी पड़ेगी. कोविड के वक्त भी इस तरह के हालात से गुजरना पड़ा था. कोरोना के लिए दुनिया चीन को ज़िम्मेदार ठहरा रही थी लेकिन भारत की मीडिया और यहां के सेक्युलर से लेकर कट्टर पार्टी के नेता ट्वीट कर-करके मुसलमानों को जी भर के कोस रहे थे. जिस तरह से मास टीवी कंपेन चला, हिंदुस्तान की सभी पॉलिटिकल पार्टी ने सामूहिक रूप से कोरोना के लिए जमात वालों को असली गुनहगार माना था. हिंदुस्तान का कोई भी लिबरल, सेक्युलर दिखने वाला मीडिया हाउस नहीं था जिसने मुसलमानों को कोरोना का जिम्मेदार ना बताया हो. जो न्यूज वेबसाइट सेक्युलरिज्म के खलीफा के तौर पर देखे जाते हैं उन्होंने भी कोरोना की कोई न्यूज दिखाई तो फ्रंट पर बुरके वाली लड़की की फोटो लगाई. कोरोना की खबर देने के लिए बुरके वाली लड़की की फोटो लगाकर अपने ऑडियंस को एक साइलेंट मैसेज दिया जाता है कि कोरोना के लिए असल में यही लोग ज़िम्मेदार हैं.

आरिब मेहर

(स्वतंत्र पत्रकार)

(नोट- ये लेखक के निजी विचार है. 'द मूकनायाक' इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति उत्तरदायी नहीं है.)

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