विश्व आदिवासी दिवस: मध्य प्रदेश के आदिवासी क्रांतिकारियों ने स्वतंत्रता संग्राम में दिखाया था पराक्रम, इतिहास में दर्ज हैं जनजातीय समुदाय की ये शौर्य गाथाएं..

भील जननायकों में टंटया भील अपने शौर्य और पराक्रम से अलौकिक किवदंती बन गए। सन 1842 के आसपास जन्मे टंटया भील 16 साल की उम्र में क्रांतिवीर हो गए। जबलपुर अंचल के राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह का स्वतंत्रता संषर्घ में रहा वबड़ा योगदान।
स्वाधीनता क्रांतिकारी टंट्या भील
स्वाधीनता क्रांतिकारी टंट्या भीलइंटरनेट
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भोपाल। स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासी समुदायों का भी संघर्ष कम नहीं था। विदेशी हुकूमत का विरोध, भारत की संस्कृति, स्वाभिमान और स्वायत्तता के लिए जनजातियों ने संघर्ष किया, आदिवासी नायकों ने अपने प्राण देश की स्वतंत्रता के लिए न्यौछावर किए है। आज विश्व आदिवासी दिवस पर ऐसे ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के संघर्षों के इतिहास से द मूकनायक आपको परिचित करा रहा है।

विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ सबसे पहले सन 1818 से पहले जनजातियों ने ही शस्त्र उठाए। मजरों, टोलों से तीर-कमान उठाए और अंग्रेजों से संघर्ष किया। मध्य प्रदेश में जनजाति क्रांति का लंबा इतिहास है। उत्तर में विंध्याचल से लेकर दक्षिण-पश्चिम में सहयाद्रि के पश्चिमी घाट तक का अंचल भीलों का निवास था। अंग्रेजी राज में भीलों का दमन, शोषण किया गया। आखिर भीलों ने भी शस्त्र उठा लिए। उन्होंने श्रृंखलाबद्ध संघर्ष किया। ऐसे नायकों में बिरसा मुंडा, खान देश के संषर्घ में दशरथ-हिरिया भील, टंटया भील, भीमा नायक, खाज्या नायक, सीताराम कंवर, रघुनाथ सिंह मंडलोई आदि ने संघर्ष का गौरवपूर्ण इतिहास रचा।

सन 1857 की क्रांति में संपूर्ण मालवा-निमाड़ (अब मध्य प्रदेश का क्षेत्र) में क्रांतिकारियों का जाल फैला था। खरगोन और आसपास का क्षेत्र क्रांतिकारियों का प्रमुख केंद्र था। इन भील जननायकों में टंटया भील अपने शौर्य और पराक्रम से अलौकिक किवदंती बन गए। सन 1842 के आसपास जन्मे टंटया भील 16 साल की उम्र में क्रांतिवीर हो गए। संकट में लोग टंटया मामा को पुकारते और वह लोगों को शोषण से मुक्त करवाते। उन्होंने अंग्रेजों के चाटूकार सेठ-साहूकारों के चंगुल से गरीबों को मुक्ति दिलाई।

निमाड़ क्षेत्र के भीमा नायक ने सन 1840 से 1864 तक अंग्रेजों के विरुद्ध भीलों की क्रांति का नेतृत्व किया। उन्होंने सन 1857 के स्वतंत्रता समर में निमाड़ में अंग्रेजों को हिलाकर रख दिया। वह बड़वानी रियासत के पंचमोहली गांव के रहने वाले थे। अंग्रेजों के शोषण और अत्याचारों से मुक्ति के इस मोर्चे में भीमा की मां सुरसी ने भी एक क्रांतिकारी टोली का नेतृत्व किया। अंग्रेजों की कैद में उन्हें यातनाएं दी गईं। भूख-प्यास से तड़पती सुरसी ने जेल में ही प्राण त्याग बलिदान दिया।

सीताराम कंवर और रघुनाथ सिंह मंडलोई (भिलाला) जनजाति नायक थे। उन्होंने सन 1857 के युद्ध में अंग्रेजों के विरुद्ध निमाड़ क्षेत्र में आवाज उठाई। शोषण के खिलाफ मोर्चा लिया और अंग्रेजों से युद्ध करते हुए प्राण त्याग दिए। उन्होंने भील-भिलाला के तीन हजार क्रांतिकारियों का संगठित दल बनाकर होल्कर दरबार के सवारों, सिपाहियों आदि को भी क्रांति के लिए प्रेरित किया।

जबलपुर अंचल के राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह का स्वतंत्रता संषर्घ में बड़ा योगदान है। गोंडवाना के गोंड राजवंश के राजा शंकरशाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह ने भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम में जबलपुर क्षेत्र का नेतृत्व किया था। राष्ट्रभक्ति पर भावपूर्ण कविता लिखने पर राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह को तोप से उड़ा दिया गया था। रानी ने अधजले अवशेष को एकत्र कर उनका विधिवत अंतिम संस्कार किया था।

सन 1923 में देश में राष्ट्रव्यापी स्वाधीनता आंदोलन चरम पर था, तब छिंदवाड़ा के जनजातीय नायक बादल भोई अपने साथियों के साथ स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए। बादल भोई ने तामिया तहसील में सभा की, जिसमें जोशीले भाषण और आह्वान से कोयतोर (गोंड) जनजाति के लोग स्वाधीनता संग्राम से जुड़ गए। उनके नेतृत्व में हजारों जनजाति वीरों ने मोर्चा थाम लिया। क्रांतिकारियों में बादल भोई के साथ सहरा भोई, अमरू भोई, इमरत भोई, लोटिया भोई, टापरू भोई और झंका भोई जैसे जनजाति नायक संघर्ष करते हुए मातृभूमि पर बलिदान हो गए।

महात्मा गांधी के 'नमक सत्याग्रह" ने मध्य प्रदेश में 'जंगल सत्याग्रह" की नींव रखी। आदिवासियों ने जंगल सत्याग्रह में अपनी सशक्त भागीदारी दिखाई। सिवनी जिले के टुरिया गांव में वर्ष 1930 में चंदन वन में घास काटकर सत्याग्रह शुरू किया। सत्याग्रह के पहले रामप्रसाद और मूका ने जोशला भाषण देकर साथियों को प्रोत्साहित किया। जब आंदोलन नहीं रुका, तो अंग्रेजों ने गोलियां चलाईं। इसमें गुड्डेबाई साकिन खामरीठ, रेनीबाई साकिन खंबा, देभोबाई भीलवा और विरजू भाई मरझोडू शहीद हो गए।

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