राजस्थानः मानगढ़ धाम में 100 साल पहले क्यों हुआ था आदिवासी जनसंहार?

क्या है ये मानगढ़ धाम, जो अंग्रेजों के हाथों जलियांवाला बाग से कहीं अधिक नृशंस संहार की कहानी कहता है. राजस्थान गुजरात की सीमा पर बांसवाड़ा के मानगढ़ में अंग्रेजों ने करीब 1500 भील आदिवासियों को मौत के घाट उतार दिया था. लेकिन आमतौर पर इस शहादत को करीब विस्मृत ही कर दिया गया.
मानगढ़ धाम.
मानगढ़ धाम.

जयपुर। राजस्थान के बांसवाड़ा जिला स्थित मानगढ़ में 17 नवम्बर 1913 को भील आदिवासी समुदाय के हजारों लोगों को अंग्रेज सरकार ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसे ही मानगढ़ नरसंहार कहते हैं। स्थानीय लोग इस घटना को जलियावाला बाग हत्याकांड के समरूप बताते हैं। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अमृतसर के जलियांवाला बाग कांड की खूब चर्चा होती है पर मानगढ़ नरसंहार को संभवतः इसलिए भुला दिया गया, क्योंकि इसमें बलिदान होने वाले लोग निर्धन आदिवासी थे।

मानगढ़, राजस्थान में बांसवाड़ा जिले का एक पहाड़ी क्षेत्र है। यहां मध्यप्रदेश और गुजरात की सीमाएं भी लगती हैं। यह सारा क्षेत्र वनवासी बहुल है। मुख्यतः यहां भील आदिवासी रहते हैं। स्थानीय सामन्त, रजवाड़े तथा अंग्रेज इनकी अशिक्षा, सरलता तथा गरीबी का लाभ उठाकर इनका शोषण करते थे। इनमें फैली कुरीतियों तथा अंध परम्पराओं को मिटाने के लिए गोविन्द गुरु के नेतृत्व में एक बड़ा सामाजिक एवं आध्यात्मिक आंदोलन हुआ जिसे 'भगत आन्दोलन' कहते हैं।

गोविन्द गुरु का जन्म 20 दिसम्बरए 1858 को डूंगरपुर जिले के बांसिया बेड़िया गांव में हुआ। गोविंद गुरु ने भगत आंदोलन 1890 के दशक में शुरू किया था। आंदोलन में अग्नि को प्रतीक माना गया था। अनुयायियों को अग्नि के समक्ष खड़े होकर धूनी करना होता था। 1883 में उन्होने सम्प सभा की स्थापना की। इसके द्वारा उन्होंने शराब, मांस, चोरी व व्यभिचार आदि से दूर रहने, परिश्रम कर सादा जीवन जीने की सीख दी। इसके साथ ही अंग्रेजों के पिट्ठू जागीरदारों को लगान नहीं देने, बेगार नहीं करने तथा विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर स्वदेशी का प्रयोग करने जैसे सूत्रों का गांव-गांव में प्रचार किया।

कुछ ही समय में लाखों लोग उनके भक्त बन गए। प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष पूर्णिमा को सभा का वार्षिक मेला होता था, जिसमें लोग हवन करते हुए घी एवं नारियल की आहुति देते थे। लोग हाथ में घी के बर्तन तथा कन्धे पर अपने परम्परागत शस्त्र लेकर आते थे। मेले में सामाजिक तथा राजनीतिक समस्याओं की चर्चा भी होती थी। इससे वागड़ का यह वनवासी क्षेत्र धीरे-धीरे ब्रिटिश सरकार तथा स्थानीय सामन्तों के विरोध की आग में सुलगने लगा।

17 नवम्बर 1913 मार्गशीर्ष पूर्णिमा को मानगढ़ की पहाड़ी पर वार्षिक मेला होने वाला था। इससे पूर्व गोविन्द गुरु ने शासन को पत्र द्वारा अकाल से पीडि़त वनवासियों से खेती पर लिया जा रहा कर घटाने, धार्मिक परम्पराओं का पालन करने देने तथा बेगार के नाम पर उन्हें परेशान नहीं करने का आग्रह किया गया। लेकिन, प्रशासन ने पहाड़ी को घेरकर मशीनगन और तोपें लगा दीं। इसके बाद उन्होंने गोविन्द गुरु को तुरन्त मानगढ़ पहाड़ी छोड़ने का आदेश दिया। उस समय तक वहां लाखों भगत आ चुके थे। पुलिस ने कर्नल शटन के नेतृत्व में गोलीवर्षा प्रारम्भ कर दी, जिससे हजारों लोग मारे गये। इनकी संख्या 1500 तक बताई गयी है।

पुलिस ने गोविन्द गुरु को गिरफ्तार कर पहले फांसी और फिर आजीवन कारावास की सजा दी। 1923 में जेल से मुक्त होकर वे भील सेवा सदन, झालोद के माध्यम से लोक सेवा के विभिन्न कार्य करते रहे। 30 अक्टूबर 1931 को ग्राम कम्बोई गुजरात में उनका देहान्त हुआ। प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष पूर्णिमा को वहां बनी उनकी समाधि पर आकर लाखों लोग उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।

द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.

Related Stories

No stories found.
The Mooknayak - आवाज़ आपकी
www.themooknayak.com