मध्य प्रदेश: 78 हजार से ज्यादा कुपोषित बच्चे, आदिवासी बहुल क्षेत्रों में क्यों बढ़ रहा है कुपोषण?

अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर 2022 की तिमाही रिपोर्ट में गंभीर कुपोषित बच्चों की संख्या 20 हजार 728 थी, जो ताजा तिमाही रिपोर्ट में 21 हजार 631 हो गई।
मध्य प्रदेश: 78 हजार से ज्यादा कुपोषित बच्चे, आदिवासी बहुल क्षेत्रों में क्यों बढ़ रहा है कुपोषण?

भोपाल। मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल इलाकों में बच्चों में लगातार कुपोषण बढ़ता जा रहा है। अटल बिहारी वाजपेयी बाल आरोग्य एवं पोषण मिशन की ताजा तिमाही रिपोर्ट में मध्य प्रदेश में करीब 78 हजार बच्चों में कुपोषण मिला है। ये वो बच्चे हैं, जो रोजाना आंगनबाड़ी पहुंचते हैं। रिपोर्ट जनवरी, फरवरी और मार्च 2023 की है। वहीं सबसे ज्यादा गंभीर कुपोषित बच्चे आदिवासी बहुल इलाकों में मिले है। रिपोर्ट सामने आने के बाद आदिवासी नेताओं में आक्रोश दिखाई दिया। इसी वर्ष प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसके कारण बीजेपी सरकार अब आदिवासी नेताओं के निशाने पर है। आदिवासी इलाकों से आने वाले नेता सरकार पर सवाल खड़ा कर रहे हैं।

इन जिलों में बढ़ा कुपोषण

धार में 2 हजार 968 गंभीर कुपोषित बच्चे मिले हैं। मध्यम कैटेगरी की भी संख्या 7,365 है। इसी तरह बड़वानी में भी 1313 गंभीर हैं, जबकि 3,878 कम कुपोषित हैं। आदिवासी जिले डिंडोरी में भी यह संख्या गंभीर कुपोषित बच्चों की संख्या 154 मिली है। सबसे कम आगर में 47 और हरदा में 64 बच्चे गंभीर स्थिति में मिले हैं। संभागवार स्थिति देखें तो इंदौर संभाग (अलीराजपुर, बड़वानी, बुरहानपुर, धार, झाबुआ, खंडवा, खरगोन व इंदौर) में सर्वाधिक 6 हजार 491 बच्चे गंभीर कुपोषित हैं, जबकि मध्यम कुपोषण के शिकार 16 हजार 230 हैं। यह सभी इलाके आदिवासी बहुल हैं।

आदिवासी विधायक ने सरकार पर लगाए गंभीर आरोप

आदिवासी इलाकों में लगातार बढ़ रहे कुपोषण के कारण आदिवासी नेताओं में नाराजगी देखी जा रही है। द मूकनायक से बातचीत करते हुए आदिवासी विधायक पंचीलाल मैडा ने कहा कि सरकार का भ्रष्टाचार उजागर हो रहा है जो भी सामग्री और भोजन तय किया जाता है वह आदिवासी बच्चों को नहीं मिलता, इस कारण से आदिवासी बहुल इलाकों में कुपोषण बढ़ा है। विधायक मैडा ने कहा कि आंगनवाड़ियों और स्कूलों में बोर्ड पर मेन्यू लिख दिया जाता है पर गरीब आदिवासियों को कुछ नहीं मिल रहा।

खराब गुणवत्ता का राशन कुपोषण की वजह

गोंडवाना के नेता और पूर्व विधायक दरबू सिंह उइके ने कहा कि सरकार गुणवत्ताहीन राशन शासकीय दुकान पर भेज रही है। एक रुपए किलो में दिए जा रहे चावल का क्या मानक है? सरकार सिर्फ कागजों में खानापूर्ति कर अरबों का खर्चा दर्शाती है। लेकिन जमीनी हकीकत इससे अलग है। आदिवासी इलाकों में लोगों की बुरी हालत है, लोग सिर्फ सरकार के राशन के भरोसे ही चल रहे है। गुणवत्ताहीन राशन के कारण कुपोषण के मामले बढ़ रहे हैं।

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जानकारी के अनुसार पिछली तिमाही (अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर 2022) की रिपोर्ट की तुलना में भोपाल समेत सात संभागों में गंभीर कुपोषित बच्चों की संख्या बढ़ी है। महिला एवं बाल विकास विभाग अब अगले तीन माह कुपोषित बच्चों को सही स्थिति में लाने के लिए काम करेगा।

जानकारी के मुताबिक मुख्यमंत्री बाल आरोग्य संवर्धन कार्यक्रम के तहत प्रदेश में गंभीर व मध्यम कुपोषित (एसएएम और एमएएम) बच्चों की पहचान करने और उन्हें पोषित बच्चों की श्रेणी में लाने के लिए हर माह 11 से 20 तारीख तक रोजाना आंगनबाड़ी आने वाले बच्चों की मॉनिटरिंग होती है। जनवरी, फरवरी और मार्च में मॉनिटरिंग के बाद 21 हजार 631 बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित मिले हैं, जबकि 57 हजार 602 बच्चे मध्यम कुपोषित पाए गए हैं। अटल बिहारी वाजपेयी बाल आरोग्य एवं पोषण मिशन मध्य प्रदेश के मिशन संचालक डॉ. रामराव भोंसले ने 2 जून को यह रिपोर्ट जारी की।

पहले से बढ़ गया कुपोषण

अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर 2022 की तिमाही रिपोर्ट में गंभीर कुपोषित बच्चों की संख्या 20 हजार 728 थी, जो ताजा तिमाही रिपोर्ट में 21 हजार 631 हो गई। भोपाल समेत सात संभागों ग्वालियर, इंदौर, चंबल, रीवा, सागर और उज्जैन में गंभीर कुपोषित बच्चे ताजा तिमाही रिपोर्ट में पिछली बार से ज्यादा मिले हैं।

मध्य प्रदेश सामने आया था पोषण आहार घोटाला

मध्य प्रदेश वर्ष 2022 में पोषण आहार घोटाला उजागर हुआ था। मुख्यमंत्री शिवराज की सरकार पर पोषण आहार में गड़बड़ी को लेकर आरोप लगे थे। दरअसल, कैग की रिपोर्ट में प्रदेश में पोषण आहार बांटने में गड़बड़ी होने का खुलासा हुआ था।

बता दें कि मध्य प्रदेश में महिला एवं बाल विकास विभाग के तहत काम करने वाली आंगनबाड़ियों में कुपोषित बच्चों और गर्भवती महिलाओं को सरकार की ओर से पोषण आहार वितरित किया जाता है। इस पोषण आहार को लोगों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी जिन निजी कंपनियों को दी गई थी, उन्होंने राशन को लोगों तक नहीं पहुंचाकर सिर्फ कागजों पर इसकी खानापूर्ति कर दी।

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कैग रिपोर्ट में यह सामने आया था कि, भोपाल, छिंदवाड़ा, धार झाबुआ, रीवा, सागर, सतना और शिवपुरी जिलों में करीब 97 हजार मैट्रिक टन पोषण आहार का स्टॉक के बारे में बताया गया था, लेकिन उसमें से सिर्फ 87 हजार मीट्रिक टन पोषण आहार बांटने के बारे में बताया गया है। यानी करीब 10 हजार टन आहार में गड़बड़ी हुई है। हेराफेरी कर कागजों में बटें इस आहार की कीमत करीब 62 करोड़ रुपए बताई गई थी। इसी प्रकार मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के दो विकासखंडों खनियाधाना और कोलारस में सिर्फ आठ महीने के भीतर पांच करोड़ के आहार के भुगतान की अनुमति दे दी गई, लेकिन इसकी जांच होने पर स्टॉक के रजिस्टर तक नहीं मिले।

क्या है कुपोषण?

दरअसल, कुपोषण के मायने होते हैं आयु और शरीर के अनुरूप पर्याप्त शारीरिक विकास नहीं होना, एक स्तर के बाद यह मानसिक विकास की प्रक्रिया को भी अवरुद्ध करने लगता है। बहुत छोटे बच्चों खासतौर पर जन्म से लेकर 5 वर्ष की आयु तक के बच्चों को भोजन के जरिए पर्याप्त पोषण आहार नहीं मिलने के कारण उनमें कुपोषण की समस्या जन्म ले लेती है। इसके परिणाम स्वरूप बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता का कम होना होता है और छोटी-छोटी बीमारियाँ उनकी मृत्यु का कारण बन जाती हैं। ऐसे बच्चों में प्रोटीन, विटामिन्स, आदि की कमी होती है। रोगप्रतिरोधक झमता कम होने के कारण वह छोटे-मोटे रोग से भी नहीं लड़ पाते और मौत हो जाने का खतरा बढ़ जाता है।

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