जानिए कैसे समुदायों को मिलता है अनुसूचित जनजाति का दर्जा!

आमतौर पर जनजाति होने का लक्षण— आदिम प्रवृत्ति, विशिष्ट संस्कृति, भौगोलिक अलगाव, बड़े पैमाने पर समुदाय के साथ संपर्क में संकोच और पिछड़ापन बताया गया है।
जानिए कैसे समुदायों को मिलता है अनुसूचित जनजाति का दर्जा!
Graphic - Rajan Chaudhary

भारत में कई ऐसे समुदाय हैं जो भारतीय संविधान में बनाए गए जाति वर्गों की किसी भी श्रेणी में सूचीबद्ध नहीं हैं। या सरकारी रिकार्ड में किसी जाति वर्ग में होते हुए भी किसी अन्य जाति से होने का वह दावा करते हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं; जैसे- उस समुदाय का आम समाज के साथ दूरी, संबंधित राज्य या जिला-क्षेत्र की सरकारी इकाइयों की अनदेखी या जनप्रतिनिधियों द्वारा उस समुदाय पर और उनकी समस्याओं पर ध्यान न देना हो सकता है।

हाल ही में द मूकनायक ने यूपी के सिद्धार्थनगर जिले में बसे खुद को “घुमंतू समुदाय” बताने वाले दलित बस्ती में बसे लोगों पर रिपोर्ट किया। जिसमें समुदाय के लोगों द्वारा इस बात पर जोर दिया गया कि वह और उनके पूर्वज घुमंतू/खानाबदोश जनजाति से संबंध रखते हैं, और उनके पूर्वज पहले जंगलों और गुफाओं में रहे हैं, खाने की तलाश में जगह-जगह घूमते फिरते थे। आधुनिकता के साथ उनके पूर्वजों ने स्थाई निवास करना शुरु कर दिया, लेकिन अब उन्हें अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल न कर अनुसूचित जाति (एससी) में ही शामिल कर दिया गया है। समुदाय के लोगों ने मांग की कि उन्हें जनजाति की श्रेणी में शामिल किया जाए। 

जानिए कैसे समुदायों को मिलता है अनुसूचित जनजाति का दर्जा!
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उक्त समुदाय के लोगों, उनकी समस्याओं और उनके दैनिक क्रिया-कलापों पर विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित करने के बाद द मूकनायक ने अनुसूचित जनजाति में शामिल होने की अहार्यताएं और इसकी कानूनी प्रक्रियाएं जानने के लिए डॉ. जय सिंह से बात की। डॉ. जय सिंह इंवेस्टिगेटर ग्रेड-1, मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर में रिसर्चर हैं, और मिनिस्ट्री ऑफ ट्राइबल अफेयर को रिपोर्ट करते हैं। जय सिंह भारत सरकार के गृह मंत्रालय की उस टीम का हिस्सा हैं जो टाइबल (जनजाति) में शामिल करने के लिए राज्य सरकारों से आने वाले आवेदनों और प्राप्त हुए आवेदनों के साक्ष्यों पर एनालिसिस करती है। जय सिंह उड़ीसा, छत्तीसगढ़, गुजरात सहित देश के कई हिस्सों में बसे आदिवासियों के बीच रहकर रिसर्च और शेड्यूल ट्राइब (schedule tribe) पर पीएचडी कर चुके हैं।

सिद्धार्थनगर जिले में स्थित ‘दलित समुदाय’ के लोगों के ‘घुमंतू समुदाय’ के दावे और उनके अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग पर डॉ. जय सिंह बताते हैं कि सबसे पहले उन समुदाय के लोगों को यह पता लगाना चाहिए कि क्या उनके समुदाय से संबंध रखने वाले दूर-दराज में बसे किसी को भी अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त है या नहीं। अगर उन्हें ट्राइबल श्रेणी में शामिल किया गया है तो समुदाय के लोग उसे आधार बना कर जनजाति में शामिल करने के लिए सरकार को आवेदन कर सकते हैं। 

जय सिंह बताते हैं कि अगर कोई समुदाय खुद को अनुसूचित जाति (एससी) की श्रेणी में शामिल करने का दावा करता हैं तो उसके लिए जरूरी विषयवस्तु सिर्फ अस्पृश्यता (untouchability) है। उन्हें इस बात का प्रमाण देना होता है कि उनके साथ भेदभाव अथवा छुआछूत का व्यवहार किया जा रहा है। या उनके पूर्वजों के साथ छुआछूत हो रहा था। लेकिन अगर कोई समुदाय अनुसूचित जनजाति (एसटी) की श्रेणी में शामिल करने का दावा करता है तो उसकी प्रक्रिया काफी जटिल हो जाती है। इसमें संबधित सरकारी इकाइयों को कई स्तर से कई स्तर की टीमों के जांच पड़ताल के बाद पक्ष में प्रस्तुत किये गए रिपोर्ट के बाद ही उस समुदाय को जनजाति श्रेणी में शामिल किया जा सकता है।

“ट्राइब की सबसे खास बात यह है कि उनकी अपनी एक पहचान होती है। ट्राइब होने के लिए समुदय को अपना रूट ढूंढना पड़ेगा। क्योंकि भारतीय संविधान भी कहता है कि जनजाति होने के लिए उसका एक ट्राइबल इतिहास होना चाहिए, ”डॉ. जय सिंह ने द मूकनायक को बताया।

यूपी के बारे में उन्होंने बताया कि यहां ट्राइबल्स की संख्या बहुत कम है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक यूपी में सिर्फ सोनभद्र और मिर्जापुर में जनजातियां पाई जाती हैं।

एसटी और एससी श्रेणी में शामिल होने की भिन्नताओं के बारे में डॉ. जय सिंह ने बताया, सामान्यतः कोई भी जाति, जनजाति नहीं बन सकती है। जनजाति होने के लिए किसी जनजाति से उनकी उत्पत्ति या उस समुदाय की जड़ें किसी जनजाति से जुड़ी हुईं होनी चाहिए। जबकि अनुसूचित जाति होने के लिए किसी रूट (जाति के इतिहास की जड़) की जरूरत नहीं होती है। सिर्फ उनके साथ पूर्व में अस्पृश्यता का व्यवहार होने के प्रमाण की आवश्यकता होती है।

जनजाति होने के लक्षण

लोकुर समिति (1965) के गठन का हवाल देते हुए डॉ. जय सिंह बताते हैं कि, इसे अनुसूचित जनजातियों को परिभाषित करने के मानदंड पर विचार करने के लिये किया पेश गया था। समिति ने उनकी पहचान के लिये पाँच मानदंडों - आदिम लक्षण, विशिष्ट संस्कृति, भौगोलिक अलगाव, बड़े पैमाने पर समुदाय के साथ संपर्क में संकोच और पिछड़ापन - की सिफारिश की थी। डॉ. सिंह वर्तमान के लिए अनुसूचित जनजाति के पहचान और उनके वर्गीकरण के लिए इस समिति को उपयुक्त मानते हैं;

  • जनजाति होने की प्रमुख अहार्यताओं में — जनजाति होने के लिए उनमें आदिम प्रवृत्ति, उनके खानपान, उनके पहनावे और उनका रहन-सहन आदिम संस्कृति से मिलता-जुलता होनी चाहिए। 

  • आदिवासी समुदाय की विशेषता है कि उनकी अपनी एक अलग संस्कृति और अलग भाषा होती है, जो एक अनुसूचित जनजाति होने के लिए जरूरी है।

  • यह समुदाय मुख्य समाज से दूरी बनाकर रहता है, या समाज में घुलने-मिलने में संकोच करता है। अनुसूचित जनजाति का दावा करने वाले समुदाय को इस बात का प्रमाण देना होता है।

उपरोक्त चीजों को व्यवहार में पाए जाने या किसी समुदाय के साथ पूर्व में इन चीजों के होने के प्रमाण मिलते हैं तो उन्हें अनुसूचित जनजाति में शामिल किया जा सकता है।

ट्राइबल (जनजाति) श्रेणी में शामिल करने के लिए कैसे करें आवेदन?

डॉ. जय सिंह बताते हैं कि ट्राइब होने का अगर कोई समुदाय दावा करता है तो उसे सबसे पहले अपने समुदाय में बसे लोगों के बीच यह पता करना चाहिए कि क्या किसी को जनजाति श्रेणी में शामिल किया गया है? अगर ऐसा होता है तो वह भी उसी को आधार बनाकर जनजाति में सूचीबद्ध होने का आवेदन कर सकते हैं।

डॉ. सिंह समुदाय के लिए सरकारी आवेदन के बारे में बताते हैं कि समुदाय को अपने स्थानीय जनप्रतिनिधियों (ग्राम प्रधान/विधायक/सांसद) के माध्यम से प्रशासनिक अधिकारी जैसे एसडीएम या जिलाधिकारी को लिखित रूप से आवेदन कर सकते हैं। 

यह आवेदन राज्य सरकार के पास सोशल वेल्फेयर डिपार्टमेंट तक पहुंचती है। यह विभाग अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अध्ययन संस्थान (Scheduled Castes and Scheduled Tribes Research and Training Institute) को निर्देशित करता है कि आवेदन करने वाले समुदाय के लोगों पर शोध कर रिपोर्ट प्रस्तुत करें। जब यह स्टडी रिपोर्ट तैयार हो जाती है तब संस्थान इस रिपोर्ट को राज्य सरकार को सौंप देती है। अगर रिपोर्ट में जनजाति होने के दावे में सत्यता पाई जाती है तो राज्य सरकार इस रिपोर्ट पर अपना सुझाव जोड़कर यह आवेदन केंद्र सरकार में मिनिस्ट्री ऑफ ट्राइबल अफेयर को प्रेषित कर देती है।

मिनिस्ट्री ऑफ ट्राइबल अफेयर में रिपोर्ट आने के बाद वह भी अपने विभागीय अधिकारियों से समुदाय के लोगों पर स्टडी करवाता है या करवा सकता है। ज़्यादातर मामलों में मिनिस्ट्री ऑफ ट्राइबल अफेयर इस रिपोर्ट को मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर के पास भेजती है। होम अफेयर का एक डिवीजन है — रजिस्टार ऑफ जनरल इंडिया। यह डिवीजन समुदाय पर पेश की गई रिपोर्ट और उसकी ऐतिहासिक आधार पर साक्ष्यों व ट्राइबल लक्षणों की जांच करती है, उसके बार अपना फाइनल रिपोर्ट तैयार करती है। यह तैयार की गई रिपोर्ट वापस मिनिस्ट्री ऑफ ट्राइबल अफेयर के पास भेज दी जाती है जहां से यह आई हुई होती है। अगर रिपोर्ट में समुदाय के ट्राइबल होने के दावे साक्ष्यों के आधार पर सही पाए जाते हैं तो उस समुदाय को संबंधित जनजाति में शामिल करने का जवाब संबंधित राज्य सरकार को प्रेषित कर दिया जाता है। अगर समुदाय की ऐतिहासिक तथ्यों व साक्ष्यों के आधार पर जनजाति होने के प्रमाण वाले रिपोर्ट मिनिस्ट्री ऑफ ट्राइबल अफेयर को नहीं प्राप्त होते हैं तो वह राज्य सरकार को संबंधित समुदाय को जनजाति में शामिल करने से मना कर देती है।

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