नई दिल्ली - नागरिकों के एक समूह द्वारा जारी रिपोर्ट ने छत्तीसगढ़ के बस्तर में सुरक्षा और मानवाधिकारों की चिंताजनक स्थिति पर प्रकाश डाला है। यह रिपोर्ट, जिसका शीर्षक "सुरक्षा और असुरक्षा, बस्तर संभाग, छत्तीसगढ़, 2023 – 2024" है, सोमवार को नई दिल्ली के प्रेस क्लब में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रस्तुत की गई।
रिपोर्ट के अनुसार, बस्तर में सुरक्षा शिविरों की संख्या बढ़ने से यह क्षेत्र भारत के सबसे सैन्यीकृत क्षेत्रों में से एक बन गया है। 2019 से, सरकार ने लगभग 250 सुरक्षा शिविर स्थापित किए हैं, और इस वर्ष की शुरुआत में 50 अतिरिक्त शिविरों की घोषणा की गई है, जिससे यहां हर नौ नागरिकों पर एक सुरक्षा कर्मी तैनात हो गया है। ये शिविर अक्सर आदिवासी निजी या सामुदायिक भूमि पर बिना उनकी सहमति के स्थापित किए जाते हैं, जिससे इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।
सरकार का दावा है कि 'क्षेत्रीय वर्चस्व' सुनिश्चित करने और माओवादी आंदोलन के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए कैंपों की स्थापना आवश्यक है। सरकार के अनुसार अर्धसैनिक कैंप सड़कें बिछाने, स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र और मतदान केंद्र बनाने के लिए आवश्यक हैं, जो सभी राज्य सेवाओं के लिए आवश्यक हैं। वे यह भी दावा करते हैं कि कैंपों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन 'माओवादियों द्वारा उकसाया गया' है क्योंकि वे सुरक्षा बलों की घुसपैठ से घबराए हुए हैं।
फरवरी 2023 में चिंतित नागरिकों का एक समूह इस क्षेत्र का दौरा करने और दावों और प्रतिदावों की जांच करने के लिए एक साथ आया था। उन्होंने अपने निष्कर्षों के आधार पर एक रिपोर्ट जारी की.यह रिपोर्ट उस यात्रा के दौरान की गई जांच और उसके बाद एकत्र की गई हालिया घटनाओं के बारे में जानकारी का परिणाम है।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में झारखंड और ओडिशा के वक्ताओं ने भी इन राज्यों की स्थिति के बारे में बताया। टीम ने पाया कि कैंप आदिवासियों की निजी या सामुदायिक संपत्ति पर उनकी सहमति के बिना और पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा), अनुसूचित जनजाति (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 और पांचवीं अनुसूची के प्रावधानों का गंभीर उल्लंघन में स्थापित किए गए हैं।
कैंपों के आस-पास के इलाकों में मानवाधिकारों का बड़े पैमाने पर उल्लंघन होता है। सुरक्षा बलों द्वारा उत्पीड़न आम बात हो गई है। यहां तक कि साप्ताहिक बाज़ार, जो समुदायों के लिए जीवन रेखा है, और रोज़ की ज़रूरतों की सामग्री की खरीदारी भी निगरानी और पुलिस नियंत्रण के अधीन है।
लोगों ने टीम को बताया कि वे सड़कों के निर्माण के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन यह उनका संवैधानिक अधिकार है कि उनसे यह सलाह ली जाए कि ये सड़कें कैसे और कहाँ बनाई जा रही हैं। सड़कों का लेआउट और चौड़ाई कई मामलों में यह स्पष्ट करती है कि वे खनन कार्यों को सुविधाजनक बनाने के लिए बनाई गई हैं।
एक तरफ तो कैंप और सड़कें लोगों की सहमति के बिना बनाई जा रही हैं। वहीं दूसरी तरफ 2022 तक बस्तर क्षेत्र में 51 खनन पट्टे दिए गए हैं, जिनमें से केवल 14 सार्वजनिक क्षेत्र के पास हैं। क्षेत्र में कैंपों की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ गिरफ़्तारीयां भी बड़ी है। लोगों को माओवादी आरोपों के तहत फंसाना उनकी वैध संवैधानिक मांगों को दबाने का एक आसान तरीका है।
आधिकारिक आंकड़ों के आधार पर, 2011 से 2022 तक बस्तर क्षेत्र में 6,804 गिरफ्तारियाँ की गई हैं। कैंपों और जिला रिजर्व गार्ड (DRG) जैसे बलों की मौजूदगी के कररण कथित नक्सलियों और नागरिकों की न्यायेतर हत्याओं की घटनाओं/फर्जी मुठभेड़ों में वृद्धि देखी गई है. 11 जनवरी से 15 जुलाई 2024 के बीच 141 हत्याएँ हुई हैं।
झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले में भी स्थिति कुछ ऐसी ही है, जहां सारंडा और कोल्हान के जंगलों में पिछले चार सालों में कम से कम 30 कैंप लगाए गए हैं। इनमें से ज्यादातर कैंप ऐसे इलाकों में लगाए गए हैं जो वर्तमान में मंत्रालय की सतत खनन प्रबंधन योजना (एमपीएसएम), 2018 के अनुसार संरक्षण/गैर-खनन क्षेत्र में आते हैं। कैंप लगाने के साथ-साथ राज्य और केंद्र सरकारें संरक्षण क्षेत्र में खनन की अनुमति देने के लिए एमपीएसएम में संशोधन करने की दिशा में सक्रिय रूप से काम कर रही हैं। वहां आदिवासियों के खिलाफ अवैध हिरासत, झूठे मामले और रोज़मर्रा की हिंसा में वृद्धि हुई है।
जांच टीम और प्रेस मीट में मौजूद वक्ताओं का स्पष्ट मत है कि बस्तर और अन्य आदिवासी इलाकों में अर्धसैनिक कैंपों के व्यापक निर्माण ने स्थानीय आदिवासियों के जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है । शांतिपूर्ण होने के बावजूद, कैंपों के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों को नज़रअंदाज़ किया गया है, या इससे भी बदतर, लाठीचार्ज से लेकर स्थलों को जलाने और प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी करने जैसे क्रूर तरीकों का इस्तेमाल करके उन्हें दबाने की कोशिश की गयी है। यह बहुत स्पष्ट है कि शिविरों का वास्तविक उद्देश्य आदिवासियों के जीवन और संवैधानिक अधिकारों की कीमत पर कॉर्पोरेट हितों, विशेष रूप से खनन हितों की रक्षा करना और उन्हें बढ़ावा देना है।
समय की मांग है कि कानून के प्रति सम्मान हो, मानवाधिकार उल्लंघनों का अंत हो, पैसा अधिनियम, ऍफ़.आर.ए 2006, पांचवीं अनुसूची के प्रावधानों को अक्षरशः लागू किया जाए, लोगों की शिकायतों पर गंभीरता से ध्यान दिया जाए और लोगों की सहमति के बिना स्थापित कैंर्पो को हटाने के लिए एक निश्चित समयसीमा तय की जाए।
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