डोली पर अस्पताल जाते हुए रास्ते में ही आदिवासी महिला ने बच्चे को दिया जन्म — जानिए क्यों 2 घंटे तक नहीं पहुंची एंबुलेंस!

अनाकापल्ली जिले के लोसिंगी गांव में सड़क न होने से गर्भवती महिलाओं को डोली पर अस्पताल ले जाना पड़ता है, हाल ही में रास्ते में ही हुआ प्रसव।
सड़क के अभाव में डोली पर अस्पताल ले जाई जा रही आदिवासी महिला
सड़क के अभाव में डोली पर अस्पताल ले जाई जा रही आदिवासी महिलाफोटो साभार- The Hans India
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अनाकापल्ली, आंध्र प्रदेश: अनाकापल्ली जिले के लोसिंगी गांव के आदिवासी अब भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं तक पहुंचने के लिए उन्हें आज भी डोली (कांधे पर उठाई जाने वाली अस्थायी स्ट्रेचर) का सहारा लेना पड़ रहा है।

रविवार को लोसिंगी गांव की एक 22 वर्षीय आदिवासी महिला पांगी साई ने अस्पताल पहुंचने से पहले ही डोली पर ले जाते समय रास्ते में बच्चे को जन्म दे दिया। यह घटना उस समय घटी जब परिवार के सदस्य चार किलोमीटर दूर अस्पताल तक पैदल उसे ले जाने की कोशिश कर रहे थे।

परिवार के अनुसार, पांगी साई को रविवार तड़के प्रसव पीड़ा शुरू हुई। उसका पति सुंदर राव और अन्य परिजन उसे डोली पर लेकर वाईबी पटनम गांव तक पहुंचे, जहां से एंबुलेंस की मदद से अस्पताल ले जाने की योजना थी। लेकिन एंबुलेंस के पहुंचने में दो घंटे से ज्यादा का समय लग गया। इस दौरान साई की स्थिति बिगड़ गई और महिलाओं ने रास्ते में ही एक एकांत जगह पर उसका प्रसव कराया। बाद में उसे बुच्चिमपेटा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया गया।

गांव की इस पुरानी समस्या को दूर करने के लिए अनाकापल्ली जिला कलेक्टर ने वाईबी पटनम से लोसिंगी तक पेडागारुवु गांव होते हुए एक ब्लैकटॉप (BT) सड़क निर्माण के लिए 2.5 करोड़ रुपये मंजूर किए थे। लेकिन ठेकेदारों को भुगतान न होने के कारण निर्माण कार्य बीच में ही रुक गया है। हाल ही में भारी बारिश में सड़क का बड़ा हिस्सा बह गया और रास्ता कीचड़ भरे गड्ढों में तब्दील हो गया, जिससे एंबुलेंस का गांव तक पहुंचना लगभग असंभव हो गया है।

लोसिंगी गांव में लगभग 290 लोग रहते हैं, जो 70 परिवारों से संबंधित हैं और सभी ‘विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह’ (PVTG) से आते हैं। गांव में न तो आंगनवाड़ी केंद्र है और न ही कोई प्रशिक्षित स्वास्थ्य कार्यकर्ता, जो किसी भी आपात स्थिति में सहायता कर सके।

इस मुद्दे को उठाते हुए सीपीएम जिला कार्यकारी समिति के सदस्य के. गोविंदा राव ने कहा:

“गांव की गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को सरकारी राशन प्राप्त करने के लिए आठ किलोमीटर दूर स्थित राजन्नापेट गांव तक पैदल जाना पड़ता है। यह इन आदिवासियों के लिए बेहद पीड़ादायक स्थिति है।”

उन्होंने सरकार से मांग की कि आदिवासी बस्तियों को बुनियादी सुविधाएं दी जाएं और अधूरी सड़क निर्माण परियोजना को शीघ्र पूरा किया जाए ताकि लोगों को वर्षों से चली आ रही इस पीड़ा से राहत मिल सके।

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