ऑपरेशन सिंदूर: आतंक के खिलाफ ऐतिहासिक कार्रवाई और दो नारी शक्तियों का वैश्विक पराक्रम

ऑपरेशन सिंदूर में मुस्लिम महिला कमांडो की बहादुरी की चर्चा, लेकिन विपक्ष ने उठाए राजनीतिक मकसद के सवाल
Colonel Sofia Qureshi and Wing Commander Vyomika Singh
कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह
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7 मई 2025 को हुए ऑपरेशन सिंदूर ने देश को आतंकियों के खिलाफ एक साहसी कार्रवाई की तस्वीर दिखाई। इस कार्रवाई के पीछे की रणनीति जितनी अहम थी, उससे भी अधिक चर्चा में आईं भारतीय सेना की अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह।

कर्नल सोफिया कुरैशी का परिवार मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के नौगांव से ताल्लुक रखता है। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा वहीं से प्राप्त की थी। उनके पिता ताज मोहिउद्दीन भारतीय सेना में थे और 1971 के भारत-पाक युद्ध में हिस्सा ले चुके हैं। इस परिवार की पीढ़ियों से सेना में सेवा देने की परंपरा रही है।

जब कर्नल सोफिया को मीडिया ब्रीफिंग के लिए आगे लाया गया, तो यह एक सशक्त संदेश था—कि देश की सुरक्षा में सभी धर्मों और वर्गों की भागीदारी है। कर्नल कुरैशी की उपस्थिति ने यह स्थापित कर दिया कि भारतीय मुसलमान भी देश की रक्षा के लिए कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में एक इंटरव्यू में कहा था कि "भारत का मुसलमान देश के लिए जिएगा और देश के लिए मरेगा।" कर्नल सोफिया ने इसे सिद्ध किया।

लेकिन यहां एक बड़ा सवाल भी खड़ा होता है—क्या इस सशक्त छवि के पीछे एक रणनीतिक राजनीतिक संदेश भी छिपा था?

मुस्लिम पहचान और राजनीतिक प्रतीक

बीते वर्षों में कई नीतियों और घटनाओं को लेकर यह सवाल उठते रहे हैं कि क्या सरकार मुस्लिम समुदाय के प्रति निष्पक्ष रही है? ट्रिपल तलाक, वक्फ कानून, CAA जैसे कई मुद्दों में यह सवाल गहराए। मगर जब पाकिस्तान को कड़ा संदेश देना हो, तब एक मुस्लिम महिला अधिकारी को सामने लाना केवल एक संयोग भर था?

सच यह है कि भारत के मुसलमानों की देशभक्ति को किसी प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं है। ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान से लेकर वीर अब्दुल हमीद तक, और अब कर्नल सोफिया कुरैशी—इतिहास गवाह है कि देश की रक्षा में किसी धर्म की दीवार नहीं रही।

एक युद्ध फेक ख़बरों के खिलाफ

जहां पूरा देश कर्नल सोफिया की ब्रीफिंग देख रहा था, वहीं ऑल्ट न्यूज के पत्रकार मोहम्मद जुबैर सोशल मीडिया पर पाकिस्तान के प्रोपेगेंडा का जवाब दे रहे थे। जुबैर की भूमिका यह दर्शाती है कि देशप्रेम सिर्फ सीमा पर ही नहीं, सूचना युद्ध में भी निभाया जाता है। लेकिन दुर्भाग्यवश, ऐसे नागरिकों पर ही आए दिन मुकदमे दर्ज होते हैं।

राजनीति और सैन्य सफलता का संतुलन

देश की सुरक्षा सेना के शौर्य से जुड़ी है, न कि किसी राजनीतिक दल के प्रचार से। पुलवामा, बालाकोट और अब ऑपरेशन सिंदूर—हर बार सैनिक कार्रवाई के तुरंत बाद राजनीतिक रैलियों और क्रेडिट लेने की होड़ देखी गई है। यह जरूरी है कि सेना की सफलता को दलगत राजनीति से ऊपर रखा जाए।

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