"यह किताब राहुल गांधी द्वारा लोकतंत्र और संविधान के लिए कर रहे उनके संघर्ष का एक दस्तावेज है": दयाशंकर मिश्र

कार्यक्रम में लेखक और विश्लेषक राजू परुलेकर, 'द वायर' की वरिष्ठ पत्रकार आरफ़ा ख़ानम शेरवानी, गांधीवादी विचारक कुमार प्रशांत, लेखक-पत्रकार पीयूष बबेले, लेखक-आलोचक प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल और दयाशंकर मिश्र ने इस किताब का विमोचन किया।
पुस्तक विमोचन की तस्वीर।
पुस्तक विमोचन की तस्वीर। फोटो - द मूकनायक

नई दिल्ली। वरिष्ठ पत्रकार दयाशंकर मिश्र की नई किताब ‘राहुल गांधी: सांप्रदायिकता, दुष्प्रचार, तानाशाही से ऐतिहासिक संघर्ष' का विमोचन रविवार, 21 जनवरी 2024 को दिल्ली के ‘इंडिया इंटरनेशनल सेंटर’ में हुआ। इस कार्यक्रम में लेखक और विश्लेषक राजू परुलेकर, 'द वायर' की वरिष्ठ पत्रकार आरफ़ा ख़ानम शेरवानी, गांधीवादी विचारक कुमार प्रशांत, लेखक-पत्रकार पीयूष बबेले, लेखक-आलोचक प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल और दयाशंकर मिश्र ने इस किताब का विमोचन किया।

इस कार्यक्रम में दयाशंकर मिश्र ने कहा कि 22 नवंबर की तारीख मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण तारीख है। मैं एक अलग ही दुनिया में पहुंच गया हूं। सच पूछिए तो अभी मैं संभलने की कोशिश कर रहा हूं...उस 22 नवंबर से पहले के दयाशंकर में और 23 नवंबर के बाद के दयाशंकर में। इस हॉल में ज्यादातर वे लोग बैठे हैं जो 23 नवंबर के बाद के दयाशंकर से मिले हैं। इस किताब के कवर का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि लोग मुझसे पूछते हैं कि किताब पर राहुल गांधी की तस्वीर क्यों है? वह बताते हैं कि "यह किताब राहुल गांधी की जीवनगाथा नहीं है। यह राहुल गांधी का जीवन चरित्र पेश नहीं करती। इस किताब को पढ़कर आपको बिलकुल पता नहीं चलेगा कि राहुल गांधी का जन्म कहां हुआ, वह पढ़ाई करने के लिए कहां गए और फिर आगे की उनकी यात्रा क्या रही। दरअसल, यह किताब राहुल गांधी के लोकतंत्र के लिए, संविधान के लिए संघर्ष का एक दस्तावेज है। एक कोशिश की गई है कि पिछले 10 साल में जो लोकतंत्र और संविधान पर अंधेरा फेंकने की कोशिश की जा रही थी, उस समय ये लोग अंधेरे को दूर करने का काम कर रहे थे। इसकी एक लंबी सूची है, इसमें पत्रकार शामिल हैं जो अपने तरीके से काम कर रहे हैं।" वरिष्ठ पत्रकार दयाशंकर मिश्र ने अपने इस संबोधन में 1984 और फादर स्टेन स्वामी का भी जिक्र किया।

सिद्दकी कप्पन का जिक्र करते हुए दयाशंकर कहते हैं, "हम ऐसे लोकतंत्र में रहते हैं,जहां पत्रकार कुछ लिखे जाने के संदेह में लिखने से पहले ही गिरफ़्तार कर लिए जाते हैं। उमर खालिद, रोहित वेमुला सहित इन सभी को याद करते हुए दयाशंकर कहते हैं कि अगर ये लोग मेरे स्मृति में नहीं होते तो शायद इस किताब का सिलसिला आगे नहीं बढ़ता।"

किताब के विमोचन में आई 'द वायर' की वरिष्ठ पत्रकार आरफ़ा ख़ानम ने कहा कि "एक ऐसा वक्त जिसमें संसद धर्म की धुरी पर घूम रहा हो, मंदिरों में राजनीति हो रही हो और टीवी चैनलों पर रामलीला चल रही हो तो समझ नहीं आता कि आखिर क्या हो रहा है? ऐसे वक्त में इस किताब का विमोचन एक तरह का प्रतिरोध है और एक छोटी-सी क्रांति भी है।"

वहीं लेखक और विश्लेषक राजू परुलेकर ने अभी के समय के पत्रकार और पत्रकारिता को लेकर नाराजगी जताई।

इस कार्यक्रम में आए में लेखक-आलोचक प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल ने कहा कि, हमें इस देश की परंपरा, संस्कृति, इसकी खूबियों, खामियों को नए सिरे से डिस्कवर करने की जरूरत है। हमने इस तरह का डिस्कोर्स खड़ा किया है जहां हमें 'राम' और 'राम' का फर्क नहीं पता है। मैं धार्मिकता का विरोधी नहीं हूं लेकिन एक व्यक्ति जो पॉलिकल प्रोजेक्ट के तहत काम कर रहा है जो बाकायदा हिंदू राष्ट्र की बात करता है, आप उनके पास क्यों जा रहे हैं?

गांधीवादी विचारक कुमार प्रशांत ने कहा कि मेरी चिंता यह है कि हम सब लोग जो भारत के नागरिक है उन्होंने लोकतंत्र को इतना कम समझा, लोकतंत्र की इतनी कम कीमत लगाई और जो ढांचा बना इस देश का आजादी की लड़ाई के बाद उसको भी इतना कम समझा, इसकी मुझे तकलीफ है।

इस विमोचन कार्यक्रम में पत्रकार, लेखक, चिंतक, रिसर्चर और विद्यार्थियों समेत अनेक श्रोता मौजूद रहे।

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