लोकसभा चुनाव परिणामः मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी जीत की ओर, सहानुभूति ने बदला परिणाम

अफजाल अंसारी एक लाख वोटो से आगे, बीजेपी को दे रहे कड़ी टक्कर.
दिवगंत मुख्तार अंसारी व सपा प्रत्याशी अफजाल अंसारी.
दिवगंत मुख्तार अंसारी व सपा प्रत्याशी अफजाल अंसारी. तस्वीर- द मूकनायक

गाजीपुर। यूपी के गाजीपुर में मुख्तार अंसारी की मौत की सहानुभूति ने उनके भाई अफजाल अंसारी को संसद भेजने का फैसला कर लिया है। मुख़्तार के भाई अफजाल अंसारी 1 लाख 24 हजार 266 वोटों से आगे चल रहे हैं। अफजाल, समाजवादी पार्टी (सपा) के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। उनका मुकाबला भाजपा उम्मीदवार पारसनाथ राय से है। चुनाव आयोग की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, खबर लिखे जाने तक अफजाल को 5 लाख 37 हजार 784 वोट मिले हैं। वहीं पारसनाथ राय को 4 लाख 13 हजार 518 वोट मिले हैं।

पिछले चुनाव में भाजपा ने यहां मनोज सिन्हा को टिकट दिया था। सिन्हा अभी जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल हैं। पारसनाथ राय, मनोज सिन्हा के करीबी माने जाते हैं। राय अपने जीवन का पहला चुनाव लड़ रहे हैं। 2019 में अफजाल गाजीपुर से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े और मनोज सिन्हा को हराया। उस समय सपा और बसपा का गठबंधन था। अफजाल को 5 लाख 66 हजार वोट मिले थे। वहीं मनोज सिन्हा को 4 लाख 46 हजार 690 वोट मिले थे। इस तरह 2019 में अफजाल 1 लाख 19 हजार 392 वोटों के अंतर से विजयी हुए थे।

इससे पहले 2014 के चुनाव में यहां मनोज सिन्हा को भाजपा के सिंबल पर जीत मिली थी। उनका मुकाबला सपा के शिवकन्या कुशवाहा और बसपा के कैलाश नाथ सिंह यादव से था। इस साल भी मामला त्रिकोणीय था। मनोज सिन्हा को 3 लाख 6 हजार वोट मिले थे। वहीं शिवकन्या कुशवाहा को 2 लाख 74 हजार और कैलाश नाथ को 2 लाख 41 हजार वोट मिले थे। सिन्हा को 32 हजार वोटों से जीत मिली थी। गाजीपुर लोकसभा में लगभग 3.5 लाख यादव और 2 लाख की मुस्लिम आबादी है। इसके अलावा यहां तीन लाख दलित वोटर हैं जिनकी हार-जीत तय करने में निर्णायक भूमिका होती है। इसके अलावा यहां 1 लाख राजभर, 1 लाख कुशवाहा और दो लाख से थोड़े कम अपर कास्ट वोटर हैं।

पांच बार के विधायक हैं अफजाल

इससे पहले 2004 में अफजाल को गाजीपुर लोकसभा सीट पर जीत मिली थी। समाजवादी पार्टी के सिंबल पर अफजाल ने मनोज सिन्हा को हराया था। बलिया लोकसभा क्षेत्र के भीतर मोहम्मदाबाद विधानसभा क्षेत्र आता है। अफजाल मोहम्मदाबाद से 5 बार विधायक का चुनाव जीत चुके हैं। 1985 में उन्हें कम्युनिस्ट पार्टी और इंडिया (CPI) के सिंबल पर विधानसभा चुनाव में जीत मिली। इसके बाद CPI के ही टिकट पर 1989, 1991, 1993 और 1996 में विधायक बनें. इसके बाद 2002 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर अफजाल अंसारी यहां से विधानसभा का चुनाव जीते।

भाई की मौत के बाद मिली सहानुभूति ने वोट बैंक बढ़ाया

इस चुनाव से पहले उनके भाई मुख्तार अंसारी की मौत हो गई। अफजाल ने अपनी प्रत्येक चुनावी सभाओं में मुख्तार की मौत का जिक्र किया था। इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार पर सवाल उठाया। उन्होंने आरोप लगाया कि मुख्तार को जेल में जहर दिया गया था। एक तरफ जहां अफजाल का ध्यान मुख्तार की मौत पर सहानुभूति वोट पर था तो वहीं उनके विरोधी पारसनाथ मुख्तार को ‘आतंक का पर्याय’ बताते रहे थे।

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