चेहरे पर मुस्कान आंखों में आंसू, दस साल से संघर्ष कर रही वसंता जीएन साईं बाबा की रिहाई पर क्या बोली?

15 साल की उम्र से मैं उनको जानती हूँ। ऐसा कोई दिन नहीं गया जब दोनों ने एक-दूसरे से बात न की हो। लेकिन साईं की कैद ने उन्हें 10 साल के लंबे समय के लिए अलग कर दिया।
“यह दस साल के लगातार संघर्ष करने के बाद मिली जीत के आंसू हैं।”
“यह दस साल के लगातार संघर्ष करने के बाद मिली जीत के आंसू हैं।”

नई दिल्ली। नागपुर सेंट्रल जेल से कुछ पुलिसकर्मियों के साथ व्हील चेयर पर बैठा एक आदमी बाहर आया। जेल के बाहर गुलाबी रंग का सलवार सूट पहने हुए घंटों से खड़ी महिला उसकी एक झलक पाने के लिए बेताब थी। उसे देखते ही महिला के आंखो में न रुकने वाले आंसू और चेहरे पर खुशी साफ नजर आ रही थी।

व्हील चेयर पर पुलिकर्मियों के साथ जेल से बाहर आये व्यक्ति को देखकर खुशी के आंसुओं में सराबोर महिला वसंता कुमारी हैं। यह कोई मामूली आंसू नहीं थे। यह आंसू दस साल के लगातार संघर्ष करने के बाद मिली जीत के आंसू हैं। वसंता के पति दिल्ली विश्वद्यालय में जाने-माने प्राचार्य थे। जिन्हे 2014 में कथित तौर पर माओवादियों के साथ संलिप्त होकर गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाकर जेल भेज दिया गया था।

व्हील चेयर पर बैठे दिख रहे साधारण से दिखने वाले व्यक्ति का नाम जीएन साईं बाबा है। लेकिन जीएन साईं बाबा का जीवन बचपन से ही असाधारण था। इसका मुख्य कारण बचपन से ही उनकी 90 फीसदी विकलांगता है। उन्हें बचपन से ही संघर्षों का सामना करना पड़ा।

दरअसल, 5 मार्च को, बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने उन्हें और पांच अन्य को आतंकवाद से संबंधित आरोपों से बरी कर दिया। दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के पूर्व प्रोफेसर 90 प्रतिशत से अधिक विकलांग हैं और व्हीलचेयर तक ही सीमित हैं। वह सहायता के बिना एक इंच भी हिलने-डुलने में असमर्थ है इसके बावजूद भी गिरफ्तारी के बाद पुलिसकर्मियों ने कथित तौर पर उनको प्रताड़ित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई थी।

जीएन साईं बाबा को 2014 में कथित तौर पर माओवादियों से संबंध रखने के आरोप में जेल भेजा गया था। 2014 में गिरफ्तारी से पहले जीएन साईं बाबा, रामलाल आनंद कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ाते थे। गिरफ्तारी के बाद उन्हें गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत दोषी ठहराया गया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।

प्रोफेसर अकेले नहीं थे जिन्हें यह सजा हुई थी। उनके साथ पांडु नरोटे, हेम केशवदत्त मिश्रा, महेश टिकरी और प्रशांत राही) सहित प्रोफेसर को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। कोर्ट ने जब सजा सुनाई तब नरोटे सिर्फ 33 वर्ष के थे। इस दौरान उनकी जेल में रहने के दौरान गंभीर बीमारी के बाद अगस्त 2022 में मृत्यु हो गई थी। छठे आरोपी विजय नान टिकरी को 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी। हालांकि, मंगलवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने जीएन साईं बाबा अन्य लोगों की भी आजीवन कारावास की सजा पर रोक लगाते हुए उन्हें रिहा कर दिया। हालांकि, वह खुद के माओवादियों का साथ देने के आरोप से इनकार करते रहे हैं।

जानकारी के अनुसार, जीएन साईं बाबा आंध्र प्रदेश के एक गरीब परिवार में पैदा हुए थे। वह शुरू से ही मेधावी छात्र थे। उनकी एक कोचिंग क्लास में वसंता से मुलाकत हुई थी, जिसके बाद दोनों ने शादी कर ली थी। अखिल भारतीय पीपुल्स रेजिस्टेंस फोरम के एक कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने कश्मीर और उत्तर पूर्व में मुक्ति आंदोलनों के समर्थन में दलित और आदिवासी अधिकारों के प्रचार के लिए काफी यात्रा भी की थी।

कोर्ट में दोषी ठहराए जाने के बाद, डीयू के रामलाल आनंद कॉलेज ने 31 मार्च 2014 की दोपहर से बिना कोई कारण बताए उनकी सेवाएं समाप्त कर दीं गई। वहीं पुलिस द्वारा मामला दर्ज करने के तुरंत बाद गिरफ्तारी होने पर तत्काल रूप से निलंबित भी गया था।

14 अक्टूबर, 2022 को, बॉम्बे हाई कोर्ट ने साईं बाबा और बाकी पांच अन्य लोगों को बरी कर दिया था और उनकी तत्काल रिहाई का आदेश दिया था। कोर्ट ने इस मामले में टिप्पणी की थी कि– "राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए कथित खतरे" की वेदी पर बलिदान नहीं किया जा सकता है। अगले दिन, अभियोजन पक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। अभियोजन पक्ष का कहना था कि कोर्ट ने जो फैसला लिया, वह तर्क संगत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने अभियोजन पक्ष के तर्क पर भरोसा करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए रिहाई के आदेश पर रोक लगा दी।

साईं बाबा 7 मार्च को कोर्ट से रिहा हुए और उन्होंने अपनी रिहाई के बाद पहली और संक्षिप्त बात मीडिया के सामने रखी। उन्होंने करुण शब्दों में कहा, "मैं शौचालय नहीं जा सकता, मैं बिना सहारे के स्नान नहीं कर सकता, और मैं इतने लंबे समय तक बिना किसी राहत के जेल में रहा।" हालांकि, कारावास की इतनी लंबी अवधि के दौरान, जो बात सामने आई वह उनकी पत्नी का साहस और दृढ़ संकल्प था, जो पूरी मजबूती से उनके साथ खड़ी रहीं और चुनौतियों का डटकर सामना किया।

वसंता ने कहा, “यह बहुत कठिन दौर था। गिरफ़्तारी के समय पुलिस की धक्का-मुक्की और मारपीट के कारण उनके बाएँ हाथ में चोटें आईं। जेल में चोट का ख्याल नहीं रखा गया। नतीजा यह हुआ कि उनके हाथ को लकवा मार गया। फिर भी, जेल अधिकारियों ने उसे उचित चिकित्सा देखभाल देना आवश्यक नहीं समझा। संक्रमण धीरे-धीरे उनके दाहिने हाथ तक फैल गया, अब वह भी ठीक से काम नहीं कर रहा है। उन्होंने दावा किया कि गिरफ्तारी के समय उसके दोनों हाथ बिल्कुल ठीक थे और वह उनका उपयोग करके अपनी व्हीलचेयर को आगे धकेलते थे।

उन्होंने आरोप लगाया कि इस दयनीय स्थिति से भी उन अधिकारियों का दिल नहीं पसीजा, जिन्होंने उन्हें एग सेल में रखा– जिसे अंग्रेजों ने यातना के साधन के रूप में बनाया था। उन्होंने कहा, साईं बाबा ने लगभग सात साल अंडाकार कोठरी में बिताए।

व्हीलचेयर पर पूरी जिंदगी बिता देने वाले साईं बाबा जब पांच साल के थे तो उन्हें पोलियो का दौरा पड़ा था। उनकी कमर के नीचे कोई मांसपेशी विकास नहीं था। वह चल नहीं सकते और न ही खड़े हो सकते हैं। पिछले एक दशक में उन्हें और भी जटिलताएँ झेलनी पड़ीं।

वसंता ने मीडिया को बताया, “उन्हें हृदय संबंधी बीमारी हो गई और उच्च रक्तचाप हो गया। उन्हें आमतौर पर पीठ में दर्द रहता है। और उनके दिमाग में एक सिस्ट भी है। उनके पेट के बाईं ओर एक गांठ है और उनकी एक कशेरुका मुड़ी हुई है। वह अपनी व्हीलचेयर पर ज्यादा देर तक बैठ नहीं सकते या बहुत देर तक लेट भी नहीं सकते हैं।”

वसंता कहती हैं– “वह मुझे बहुत पहले से कागज पर पत्र लिखा करते थे। मुझे सप्ताह में एक बार उनका पत्र मिलता था। हर दो या तीन महीने में पत्रों की संख्या धीरे-धीरे कम होती जा रही थी। हर माह चार से पांच तक आने वाले पत्रों की संख्या धीरे-धीरे घटकर एक रह गई। क्योंकि उनका दाहिना हाथ लगातार कमजोर होता जा रहा था। वह नरक जैसी स्थिति में रह रहे थे।"

वसंता अपने पर बीती हर एक बात कहती हैं। वह कहती हैं– “उनका स्वास्थ्य इतना खराब हो गया था कि मुझे अक्सर लगता था कि किसी भी समय, मुझे स्टेन स्वामी (झारखंड स्थित कैथोलिक पादरी, आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता और आतंकवाद के आरोपी सबसे उम्रदराज व्यक्ति, जिनकी राज्य हिरासत में मृत्यु हो गई) जैसी खबर मिलेगी। यह अहसास मेरी रातों की नींद उड़ा देता था। यहां तक कि साईं ने एक बार मुझे पत्र लिखकर कहा था कि उसे वहां से निकालने के लिए मुझे कुछ करना होगा। मैं अक्सर वकील के अचानक फोन कॉल से डर जाती थी, सोचती थी कि मुझे आगे क्या सुनना होगा।”

गढ़चिरौली के अहेरी पुलिस थाना क्षेत्र में डकैती हुई। पुलिस ने कहा कि उन्हें जानकारी मिली थी कि चोरी का सामान दिल्ली में प्रोफेसर साईं बाबा के आवास पर रखा गया है। इसलिए, वे चोरी के सामान की तलाश में घर आए। सर्च वारंट में यही कहा गया है।

वसंता आगे कहती हैं– “वे चोरी हुए सामान क्या थे? वे किसके थे? इनमें से कोई भी परीक्षण के दौरान कभी सामने नहीं आया। लेकिन 2017 में उन्हें बिना सबूत और अपराध के आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। उन्हें केवल उनकी विचारधारा के लिए दंडित किया गया था और उनकी विचारधारा क्या है? सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण बात, हम सभी इंसान हैं और यही चीज़ कि हमें एकजुट होना चाहिए। सभी धर्मों को मिलजुल कर रहना चाहिए। हमें राज्य की हिंसा और साम्राज्यवाद विरोधी नीतियों के खिलाफ बोलना चाहिए। यह उनकी विचारधारा और जीवन दर्शन है जिसने उन्हें जेल में डाल दिया और दंडित किया।"

वह कहती हैं– “साईं बाबा की पारिवारिक पृष्ठभूमि विनम्र थी। वह एक छोटी सी झोपड़ी में रहते थे। उनके पास बिजली भी नहीं थी। उन्होंने अपनी डिग्री (स्नातक महाविद्यालय) तक मिट्टी के तेल के लैंप की रोशनी में पढ़ाई करके पूरी की। बहुत कम उम्र में उन्होंने छात्रों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया और जो भी फीस मिलती थी, उसी से पढ़ाई करते थे। फिर भी, साईं ने कभी भी उन छात्रों से शुल्क नहीं लिया जो गरीब थे और फीस वहन नहीं कर सकते थे। वह उन्हें हमेशा मुफ्त में पढ़ाते थे।

अपनी प्रेम कहानी की शुरुआत के बारे में वसंता बताती हैं– “मेरी पहली मुलाकात साईं बाबा से 10वीं कक्षा की ट्यूशन के दौरान हुई थी। साईं अंग्रेजी में अच्छे थे, जो उन्होंने मुझे भी सिखाई। और इस तरह हमारी दोस्ती शुरू हुई। पहली बार जब मैंने उन्हें ट्यूशन में देखा, तो वह हाथों में चप्पल पहने हुए था क्योंकि पोलियो के हमले के कारण वह चलने में असमर्थ थे। हालाँकि, मुझे वह आकर्षक लगा क्योंकि वह बुद्धिमान और एक उत्कृष्ट छात्र थे। तभी इंटरमीडिएट (सीनियर स्कूल) में मुझे प्यार हो गया। हम करीब आ गए और अधिक घनिष्ठ हो गए।''

उन्होंने कहा, “1991 में मैंने घर छोड़ दिया और अपने प्यार से मिलने के लिए हैदराबाद आ गईं। मैं वापस नहीं लौटी और हमेशा उनके साथ रही। साईं के बिना कोई वसंत नहीं है।” यह कहते हुए उनके चेहरे पर मुस्कान थी लेकिन उनकी आंखों से आँसू बह रहे थे।

वह कहती है कि हमारे सोचने के तरीके एक जैसे हैं। कभी-कभी, इससे पहले कि वह कुछ शब्द कह पाते, मैं उसे बता देती थी कि उसके मन में क्या है। प्यार हमें जोड़ता है, हमें कभी किसी और चीज़ की ज़रूरत महसूस नहीं हुई।

वसंता 15 साल की उम्र से साईं बाबा को जानती हैं और तब से, ऐसा कोई दिन नहीं गया जब दोनों ने एक-दूसरे से बात न की हो। लेकिन साईं की कैद ने उन्हें 10 साल के लंबे समय के लिए अलग कर दिया।

वसंता बताती है, “मैं उन्हें देख सकती थी, उससे बात कर सकती थी, उन्हें गले लगा सकती थी और हाथ मिला सकती थी। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। जब मैं जेल में उनसे मिलने जाती तो हमारे बीच एक फाइबरग्लास हुआ करता था, हमारे संचार का एकमात्र साधन इंटरकॉम था।” उन्होंने याद करते हुए कहा, ''मुझे ऐसा लग रहा था कि उनका एक ही आलिंगन मेरे सारे दुख दूर कर देगा।''

जब उनसे साईं बाबा के परिवार की पीड़ा के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उनकी बिगड़ती सेहत को देखकर उनकी मां बहुत चिंतित हो गईं। इस सारे दर्द के कारण उनकी तबीयत भी तेजी से बिगड़ गई और उनकी मौत हो गई। वह कहती है कि उस समय हमने वीडियो कॉल के जरिए साईं बाबा को उनकी मां का अंतिम संस्कार दिखाने की अनुमति मांगी थी, लेकिन जेल अधिकारियों ने इसकी भी अनुमति नहीं दी थी।

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