भोपाल। प्रदेश की राजधानी भोपाल में शनिवार को मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र सरकार के बीच ‘ताप्ती बेसिन मेगा ग्राउंड वाटर रीचार्ज परियोजना’ को लेकर ऐतिहासिक एमओयू साइन हुआ। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस परियोजना को “विश्व की सबसे बड़ी भूजल पुनर्भरण परियोजना” करार देते हुए इसे निमाड़ अंचल की जीवनदायिनी योजना बताया। लेकिन इस परियोजना पर विपक्ष ने सरकार पर हमला बोलते हुए गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने सोशल मीडिया पर सरकार पर तीखा प्रहार करते हुए लिखा — “लोकतंत्र में जनता की भागीदारी के बिना हर विकास अधूरा है! बैतूल, खंडवा और बुरहानपुर के ग्रामीणों व आदिवासियों की आपत्तियों को दरकिनार कर ‘ताप्ती मेगा रीचार्ज परियोजना’ पर एमओयू साइन किया जा रहा है।”
सरकारी जानकारी के मुताबिक यह परियोजना मध्यप्रदेश के खंडवा जिले की खालवा तहसील और महाराष्ट्र की अमरावती तहसील की सीमा पर प्रस्तावित है। इसके अंतर्गत खरिया गुटीघाट बांध स्थल पर एक लो डायवर्सन वियर बनेगा, जिसकी जलभराव क्षमता 8.31 टीएमसी होगी।
दाई तट नहर प्रथम चरण: खरिया गुटीघाट के दाएं तट से 221 किमी लंबी नहर बनेगी, जिसमें 110 किमी मध्य प्रदेश में होगी। इससे 55,089 हेक्टेयर भूमि सिंचित होगी।
बाई तट नहर प्रथम चरण: 135.64 किमी लंबी इस नहर में 100.42 किमी हिस्सा मध्यप्रदेश में होगा, जिससे 44,993 हेक्टेयर भूमि सिंचित होगी।
बाईं तट नहर द्वितीय चरण: यह केवल महाराष्ट्र में 80,000 हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई के लिए होगी।
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने इस अवसर पर कहा, “यह परियोजना न सिर्फ भूजल स्तर को सुधारने का काम करेगी, बल्कि दशकों से रुकी सिंचाई योजनाओं को गति देगी।” मुख्यमंत्री ने इसे ‘विकास की दिशा में बड़ा कदम’ बताया।
परियोजना के खिलाफ सबसे मुखर आवाज बनकर सामने आए उमंग सिंघार का कहना है कि जिन ज़िलों को इस योजना से प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया जा रहा है, वहां के आदिवासी और ग्रामीण समुदायों से कोई सलाह-मशविरा नहीं किया गया।
अब तक न जनसुनवाई हुई और न ही ग्राम सभाओं की सहमति ली गई।
पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) रिपोर्ट भी सार्वजनिक नहीं की गई है।
वर्षों से लोग अपनी जमीन, जंगल, आजीविका और संस्कृति को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
परियोजना से प्रभावित जिले — खंडवा, बैतूल और बुरहानपुर — के कई गांवों में विरोध के स्वर उठ रहे हैं। पर्यावरण और आदिवासी अधिकारों के लिए काम कर रहे हैं, सामाजिक संगठनों का कहना है, “हमारी ज़मीनें और जंगल सरकार की नीतियों की भेंट चढ़ रहे हैं। हमें आज तक यह नहीं बताया गया कि हमारे गांवों के पास बांध और नहरें बनने वाली हैं। परियोजना की कोई बैठक भी नहीं बुलाई गई।”
उमंग सिंघार ने सरकार से सवाल करते हुए कहा कि, “अगर यह योजना इतनी ही लाभकारी है तो सरकार को जनता से क्या डर है? ग्राम सभा और आदिवासी समुदायों की सहमति संविधानिक प्रावधानों के तहत अनिवार्य है। लेकिन सरकार सिर्फ प्रचार में व्यस्त है।”
परियोजना की पूर्ण जानकारी सार्वजनिक की जाए।
सभी प्रभावित क्षेत्रों में जनसुनवाई करवाई जाए।
ग्राम सभा की अनिवार्य सहमति के बिना किसी निर्माण कार्य की शुरुआत न हो।
एक स्वतंत्र पर्यावरणीय और सामाजिक मूल्यांकन समिति गठित की जाए।
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