मध्य प्रदेश: गोंडवाना पार्टी के 10 टिकट में से इन सीटों पर सामान्य वर्ग के प्रत्याशी लड़ रहे चुनाव!

विधानसभा 2023 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) के बीच गठबंधन हुआ था। इन दोनों दलों ने सीट शेयर के साथ चुनाव लड़ने का फैसला किया था। सीट-बंटवारे की व्यवस्था के अनुसार, बसपा 178 सीटों पर चुनाव लड़ी जबकि गोंडवाना गणतंत्र ने 52 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे।
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी.
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी. द मूकनायक।
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भोपाल। मध्य प्रदेश में आगामी लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा-कांग्रेस सहित क्षेत्रीय दल भी चुनाव मैदान में उतर चुके हैं। प्रदेश में आदिवासियों के मुद्दों पर काम करने वाली गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) भी अपने 10 प्रत्याशियों के नाम का ऐलान कर चुकी है। जीजीपी ने मध्य प्रदेश की छिंदवाड़ा, सीधी, मंडला, शहडोल, बालाघाट, रीवा, दमोह, खंडवा, सागर और जबलपुर सीटों पर प्रत्याशियों को मैदान में उतार दिया है। लेकिन आदिवासियों की पार्टी ने अनारक्षित सीटों पर सामान्य वर्ग के प्रत्याशियों को टिकट दिया है।

इनमें कुछ प्रत्याशी ऐसे भी हैं, जिन्होंने पार्टी का सबसे बड़ा मुद्दा जल जंगल जमीन की कभी बात नहीं की, न ही पार्टी में रहे लेकिन जातीय समीकरण और क्षेत्र में प्रभाव के चलते गोंडवाना पार्टी ने इन्हें टिकट दे दिया। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) ने मंडला लोकसभा सीट से महेश कुमार वट्टी, शहडोल लोकसभा सीट से तेजप्रताप उइके, सीधी से अजय प्रताप सिंह, बालाघाट सीट से नंदलाल उइके, छिंदवाड़ा से देवरावेन भलावी को प्रत्याशी बनाया है।

इसके अलावा रीवा लोकसभा सीट से कमलेश मिश्रा और दमोह से राजेश सिंह सोयाम को टिकट दिया है। जीजीपी ने खंडवा से आशाराम भवसार और सागर लोकसभा सीट से अशोक बंसल को अपना प्रत्याशी बनाया है। वहीं जबलपुर सीट पर एक मुस्लिम प्रत्याशी गोलू अंसारी को टिकट दिया है।

जीजीपी ने सीधी लोकसभा सीट से भाजपा से राज्य सभा सदस्य अजय प्रताप सिंह को टिकट दिया है। अजय प्रताप ठाकुर जाति से आते हैं। बीते 16 मार्च को उन्होंने भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दिया था। जिसके बाद जीजीपी ने उन्हें अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया।

रीवा लोकसभा सीट से जीजीपी ने कमलेश मिश्रा को प्रत्याशी बनाया है, जो ब्राह्मण जाति से आते हैं। यह पहले कभी गोंडवाना पार्टी में नहीं रहे। जबलपुर से गोलू अंसारी को प्रत्याशी बनाया है। इन सभी लोगों को पार्टी ने जातीय समीकरण के हिसाब से टिकट दिया है।

गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को पूर्व के विधानसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली थी। जीजीपी ने मंडला, शहडोल, बालाघाट, छिंदवाड़ा, बैतूल, सीधी, सतना, दमोह जिले की विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था। लेकिन उन्हें एक भी सीट नहीं मिली। हालांकि, 3 लाख 92 हजार से ज्यादा वोट मिले। कई सीटों पर इसका फायदा भाजपा को हुआ था और कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा।

गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को पूर्व के विधानसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली थी। जीजीपी ने मंडला, शहडोल, बालाघाट, छिंदवाड़ा, बैतूल, सीधी, सतना, दमोह जिले की विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था। लेकिन उन्हें एक भी सीट नहीं मिली। हालांकि, 3 लाख 92 हजार से ज्यादा वोट मिले। कई सीटों पर इसका फायदा भाजपा को हुआ था और कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा।

विधानसभा में बसपा से रहा गठबंधन

विधानसभा 2023 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) के बीच गठबंधन हुआ था। इन दोनों दलों ने सीट शेयर के साथ चुनाव लड़ने का फैसला किया था। सीट-बंटवारे की व्यवस्था के अनुसार, बसपा 178 सीटों पर चुनाव लड़ी जबकि गोंडवाना गणतंत्र ने 52 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे।

गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का प्रभाव महाकौशल क्षेत्र तक ही सीमित हैं। माना जा रहा था कि जीजीपी बालाघाट क्षेत्र से दो सीटें जीत सकती है। लेकिन चुनावी परिणाम में पार्टी का खाता तक नहीं खुल पाया। बसपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के गठबंधन में गोंडवाना पार्टी को आदिवासी बहुल इलाकों की 52 सीटें दी गई थी। प्रदेश के सिंगरौली, सीधी, शहडोल, अनूपपुर, उमरिया, कटनी, जबलपुर, सागर, डिंडोरी, मंडला, बालाघाट, सिवनी छिंदवाड़ा, बैतूल, नरसिंहपुर, हरदा, होशंगाबाद, रायसेन, झाबुआ, बड़वानी, अलीराजपुर, इंदौर और खरगोन ज़िलों की सीटों पर गोंडवाना चुनाव लड़ा था। यह जिले आदिवासी बाहुल्य हैं जहाँ जीजीपी खासा प्रभाव रखती है।

क्यों टूट गया गठबंधन?

लोकसभा चुनाव में बसपा-जीजीपी का गठबंधन टूट गया है। बसपा का आरोप है कि विधानसभा चुनाव में जीजीपी ने धोखा दिया, जिसके कारण हमने इस बार गठबंधन नहीं किया। द मूकनायक से बातचीत करते हुए बसपा के भोपाल जोन प्रभारी सीएल वंशकार ने बताया कि जीजीपी से हुए समझौते को तोड़कर विधानसभा चुनाव में तय सीटों के अलावा भी प्रत्याशी उतार दिए। इसके अलावा बसपा का वोट जीजीपी को ट्रांसफर हुआ लेकिन जीजीपी ने बसपा को वोट ट्रांसफर करवाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। इस कारण हमारा वोट प्रतिशत भी कम रहा।

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