पीएम मोदी की जगह विपक्ष का नेता होता तब भी चुनाव आयोग आचार संहिता उलंघन मामले में उसे क्लीन चिट देता?

चुनाव आयोग ने उस मामले में पीएम मोदी को राहत दी है जिसमें यह आरोप लगाया गया था कि यूपी में एक चुनावी जनसभा संबोधन के दौरान उन्होंने राम मंदिर का जिक्र वोट मांगने के लिए किया था.
ग्राफिक- द मूकनायक
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नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले में 9 अप्रैल, मंगलवार को एक जनसभा को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर और करतारपुर कॉरिडोर का जिक्र किया था। इस बात को लेकर सुप्रीम कोर्ट के वकील आनंद एस ने चुनाव आयोग से शिकायत की थी कि पीएम मोदी द्वारा आचार संहिता का उल्लंघन किया गया। आरोप था कि पीएम मोदी ने हिंदू देवी-देवताओं और पूजा स्थलों के नाम पर जनता से वोट मांगने की कोशिश की। इसके लिए उनके खिलाफ कार्रवाई किया जाए.

लेकिन अब खबर आ रही है कि चुनाव आयोग ने पीएम मोदी को मामले में क्लीन चिट दे दी है। चुनाव आयोग का मानना है कि पीएम मोदी द्वारा आचार संहिता को उल्लंघन नहीं किया गया, वे सिर्फ अपनी सरकार की उपलब्धियां बता रहे थे और उसे धर्म के नाम पर वोट मांगना नहीं कहा जा सकता।

मोदी की पीलीभीत में रैली के एक दिन बाद वकील ने 10 अप्रैल को आयोग को पत्र लिखा था, जिसमें एमसीसी के प्रावधानों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए कार्रवाई की मांग की गई थी।

वकील ने अपनी शिकायत में आयोग से मोदी के खिलाफ धारा 153ए के तहत एफआईआर दर्ज करने को कहा, जो धर्म, नस्ल, जन्म स्थान, निवास और भाषा के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने से संबंधित है। चुनाव आयोग से कोई जवाब न मिलने पर, आनंद एस ने 15 अप्रैल को दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और अदालत से अनुरोध किया कि वह चुनाव आयोग को उनकी शिकायत के आधार पर पीएम के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दे।

यूपी के पीलीभीत में भाजपा उम्मीदवार जितिन प्रसाद के समर्थन में पीएम मोदी ने चुनावी रैली को संबोधित करते हुए आरोप लगाया था कि सपा और कांग्रेस तुष्टीकरण की राजनीति में इतने जुटे हैं कि वे नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का भी विरोध कर रहे हैं।

हालांकि, पार्टी की वरिष्ठ नेता मेनका गांधी और उनके बेटे वरुण गांधी, जिन्होंने लगभग 25 वर्षों तक पीलीभीत लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया है, रैली में शामिल नहीं हुए।

पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा था कि, ''इंडिया गठबंधन के सहयोगी दल सपा और कांग्रेस को देश की विरासत की कोई परवाह नहीं है। 500 साल के इंतजार के बाद अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण हुआ. कल्याण सिंह जी (उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री) ने न केवल अपना जीवन दिया, बल्कि इस उद्देश्य के लिए अपनी सरकार का भी बलिदान दे दिया। देश भर से प्रत्येक परिवार ने इस उद्देश्य के लिए योगदान दिया, और इसी तरह पीलीभीत ने भी। लेकिन इंडिया गठबंधन के इन लोगों ने लंबे समय से राम मंदिर के प्रति नफरत पाल रखी है.”

यह वही बयान था जिसपर वकील आनंद एस ने चुनाव आयोग से शिकायत की थी. 

इंडियन मास्टर माइंड के एडिटर व सीनियर पत्रकार शरद गुप्ता द मूकनायक को बताते हैं कि, “कोई नेता चुनावी रैली में यह कहता है कि मैंने राम मंदिर बनवाया है तो यह साफ तौर पर आदर्श चुनाव आचार सहिंता का उलंघन है.” 

“छोटी-छोटी बातों को लेकर इलेक्शन कमीशन विपक्षी नेताओं को टोक देता है, जवाब मांग लेता है. इलेक्शन कमीशन की जो प्रतिष्ठा बनी हुई थी वह अब मिट्टी में मिलती हुई नजर आ रही है. आयोग को अपनी इनडिपेंडेंस खुद ढूढ़नी पड़ेगी”, उन्होंने कहा.

वरिष्ठ पत्रकार ने समझाया कि कैसे आयोग अब सरकार के नियंत्रण में हो चुकी है. “पूर्व चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति के सम्बन्ध में सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया था कि क्या कोई चुनाव आयुक्त जिसकी नियुक्ति प्रधानमंत्री ने किया हो, और अगर पीएम आदर्श चुनाव आचार सहिंता का उलंघन करते हैं तो क्या आयोग उनको नोटिस भेज पाएगा..? यह सवाल तो सर्वोच्च न्यायालय के सामने अभी भी है. इलेक्शन कमीशन का यह काम होना चाहिए कि वह सबको एक नजर से देखे. जनता इन चीजों को लेकर जागरूक है. यह सब बहुत दिन चलने वाला नहीं है”, उन्होंने समझाया. 

हाल ही में, 17 अप्रैल को BJP4india (भाजपा का ऑफिसियल ट्विटर हैंडल) से राम की प्रतिमा के साथ फोटो पोस्ट किया गया जिसका कैप्शन था “आपके एक वोट की ताकत…”

जाहिर है कि देश लोकसभा चुनाव 2024 के दौर में है. आदर्श चुनाव आचार संहिता के बावजूद ऐसे पोस्टर जनता के बीच क्या सन्देश दे रहे हैं यह एक आम नागरिक भी समझ सकता है. 

मुस्लिम समुदाय पर विवादित बयान

पीएम मोदी ने 21 अप्रैल, रविवार को राजस्थान के बांसवाडा में हुई रैली में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के एक पुराने भाषण का हवाला देते हुए मुसलमानों पर टिप्पणी की थी, जिसमें उन्हें 'घुसपैठिए' और 'ज़्यादा बच्चे पैदा करने वाला' कहा था. 

चुनावी रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि अगर कांग्रेस सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति को मुसलमानों में बांट देगी. उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार ने कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है.

कानून

2 जनवरी, 2024 को भारतीय निर्वाचन आयोग सचिवालय द्वारा आदर्श आचार संहिता के सम्बन्ध में चुनाव प्रचार सम्बंधित्व नियमों की विस्तृत सूची जारी की गई थी. 

राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के अलावा अन्य व्यक्तियों द्वारा की जाने वाली चुनाव-संबंधी कैम्पेन अभियान गतिविधियों के सम्बन्ध में आयोग ने आदर्श आचार संहिता लागू होने की अवधि के दौरान महत्वपूर्ण दिशानिर्देश निर्धारित किए हैं:

(i) उन्हें (दलों/व्यक्तिगत) अपने अभियान में किसी भी तरह से धर्म या धार्मिक आधार का, या विभिन्न वर्गों या लोगों के समूहों के बीच वैमनस्य पैदा करने वाली किसी भी गतिविधि का आह्वान नहीं करना चाहिए।

ऐसी गतिविधियों/बयानों को कानून के विभिन्न प्रावधानों के तहत अपराध माना जाता है, जैसे लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 125, भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए, 153बी, 171सी, 295ए, 505(2) और धार्मिक संस्थान ( दुरुपयोग निवारण) अधिनियम, 1988

(ii) उन्हें किसी भी गतिविधि में शामिल नहीं होना चाहिए या ऐसा कोई बयान नहीं देना चाहिए जो किसी व्यक्ति के निजी जीवन पर हमला हो या ऐसे बयान न दें जो दुर्भावनापूर्ण हों या शालीनता और नैतिकता को ठेस पहुंचाने वाले हों। [जब व्यक्ति और संगठन सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति मांगते हैं, तो उन्हें उपरोक्त दिशानिर्देशों का पालन करने के लिए एक घोषणा/वचन पत्र देने के लिए कहा जाना चाहिए।]

(iii) ऐसे व्यक्तियों एवं संगठनों के सार्वजनिक कार्यक्रमों की वीडियोग्राफी के माध्यम से कड़ी निगरानी की जाए। यदि कोई उपरोक्त दिशानिर्देशों का उल्लंघन करता है तो उचित कानून व्यवस्था बनाए रखने से संबंधित राज्य और जिला अधिकारियों को ऐसे सभी मामलों में शीघ्रता से उचित उपचारात्मक और दंडात्मक कार्रवाई करनी चाहिए। इसके अलावा, जिला प्रशासन यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसे व्यक्ति जिन्होंने वचन पत्र का उल्लंघन किया है, उन्हें उस चुनाव की अवधि के दौरान कोई और कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

नियम यह भी बताते हैं कि, आयोग भारत के नागरिकों को दिए गए संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को विधिवत मान्यता देता है। लेकिन यह भी ध्यान रखने की आवश्यकता है कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ऐसा अधिकार पूर्ण नहीं है और इसका प्रयोग इस तरह से किया जाना चाहिए कि यह, अन्य बातों के साथ-साथ, शालीनता और नैतिकता की सीमाओं को पार नहीं करता है या सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ता नहीं है या मानहानि के बराबर नहीं है या किसी अपराध को उकसाता नहीं है जैसा कि अनुच्छेद 19 के खंड (2) में बताया गया है। आदर्श आचार संहिता का लक्ष्य अपने विभिन्न प्रावधानों के माध्यम से उसी उद्देश्य को प्राप्त करना है।

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