उत्तर प्रदेश: मां ने सिलाई कर बेटे को पढ़ाया, बेटा बनेगा जज

प्रयागराज के अहद अहमद ने विपरीत आर्थिक परिस्थितियों में पढ़ाई कर पीसीएस जे की परीक्षा पास की।
कठिन परिस्थितियों में अहद अहमद ने पीसीएस जे की परीक्षा पास की.
कठिन परिस्थितियों में अहद अहमद ने पीसीएस जे की परीक्षा पास की.फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक

प्रयागराज। यूपी के प्रयागराज शहर निवासी एक मुस्लिम परिवार की महिला ने 1985 में एक फिल्म देखी। फिल्म में एक महिला सिलाई का काम करके बच्चों को पढ़ाती है। इस फिल्म से प्रेरित होकर उसने भी ऐसा ही किया। दिन रात सिलाई का काम करके महिला ने तीन बच्चों को पढ़ाया, जबकि महिला के पति की पंक्चर की दुकान है। तीन बेटों में से एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। दूसरा बैंक मैनेजर और तीसरे बेटे ने अब पीसीएस जे की परीक्षा पास कर ली है। बेटा अब जज बन गया है। महिला ने कभी नहीं सोचा था जैसा उसने फिल्म में देखा था ठीक वही हकीकत उसके जीवन का हिस्सा और नायाब किस्सा बन जाएगी। अब महिला उस संघर्ष को याद करके सिसकने लगती है। उसके आंख में खुशी के आंसू हैं। इस महिला से मिलने द मूकनायक की टीम लखनऊ से 208 किमी दूर प्रयागराज पहुंची।

1985 में सचिन की फिल्म घर द्वार आई थी। हालांकि इस कहानी में एक गोद लिया हुआ बच्चा भी है। गोद लिए बच्चे की भूमिका अभिनेता राज किरण ने चंदन के रूप में निभाई, जबकि सचिन इस फिल्म में सगे बेटे की भूमिका के रूप में केतन का किरदार निभाते हुए नजर आते हैं। इस फिल्म में अभिनेत्री लोगों के कपड़े सिला करती थी। उससे जो कमाई होती वह वह अपने बच्चों की स्कूल फीस भरती थी। इस फिल्म का प्रयागराज में नवाबगंज के बरई हरख गांव में रहने वाली अफसाना पर गहरा असर पड़ा। पति साइकिल रिपेयरिंग से इतना नहीं कमा पाते थे कि परिवार के खर्च के साथ बच्चों को पढ़ाया जा सके। इसलिए अफसाना ने सिलाई का काम शुरू किया। जो पैसे आए उससे अपने बच्चों को पढ़ाया। अफसाना का समर्पण और बेटे की मेहनत रंग लाई। बेटे अहद अहमद ने पहले ही प्रयास में पीसीएस जे की परीक्षा पास कर ली। रिजल्ट आया तो उसने मां से कहा, "मां, मैं जज बन गया।" मां के दिमाग में एकबारगी बचपन से लेकर अब तक का वक्त घूम गया। उन्होंने जो सोचा था हकीकत हो गया। खुशी में जो आंसू निकले वह लंबे वक्त तक थमे ही नहीं।

द मूकनायक की टीम ने प्रयागराज के नवाबगंज रहने वाले और अब जज बनने की परीक्षा पास कर चुके अहद अहमद के घर पहुंची। मां अफसाना और पिता शहजाद अहमद से बात की। परिवार के संघर्ष को जाना। पिता की पंचर की दुकान देखी।

प्रयागराज जिला मुख्यालय से करीब 27 किमी दूर नवाबगंज है। नवाबगंज तिराहे पर उतरते ही पेट्रोल टँकी में सामने का रास्ता पटेल नगर जाता है। पटेल नगर नवाबगंज से लगभग 7 किमी दूर है। पटेल नगर तिराहे से दाईं ओर का रास्ता अहद के गांव बरई हरख जाता है। यह पटेल नगर तिराहे से लगभग एक किमी दूर है। बरई हरख माध्यमिक विद्यालय के पास ही अहद का घर मौजूद है। यहां शहजाद अहमद अपनी पत्नी अफसाना और तीन बच्चों के साथ रहते हैं। घर के बगल ही उनकी साइकिल रिपेयरिंग की दुकान है। यह दुकान उनके पिता ने 1985 के आस-पास खोली थी। शहजाद का मन पढ़ाई में नहीं लगा और वह 10वीं में फेल हो गए। इसके बाद वह पिता के साथ रहकर साइकिल रिपेयरिंग का काम सीखा और दुकान पर बैठने लगे। कुछ वक्त के बाद बगल में ही छोटे भाई को जनरल स्टोर की दुकान खुलवा दी। अब दोनों भाई दिनभर अपनी दुकान पर काम करने लगे। साइकिल रिपेयरिंग की दुकान से जो कमाई होती उससे परिवार का खर्च तो चल जाता, लेकिन तीन बच्चों की पढ़ाई का खर्च निकालना मुश्किल था। ऐसे कठिन वक्त में शहजाद की पत्नी अफसाना ने बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा संभाला। उन्होंने पैसे इकट्ठा करके किसी तरह सिलाई मशीन खरीदी और फिर गांव की ही महिलाओं का कपड़ा सिलने लगीं। इससे जो कमाई होती वह उससे अपने बच्चों की फीस जमा करती थीं। बड़े बेटे ने पढ़ाई करके प्राइवेट नौकरी ज्वॉइन कर ली।

कैसे हुई अहद की पढ़ाई?

अहद ने द मूकनायक को बताया कि कक्षा एक से पांच तक की पढ़ाई पटेल नगर तिराहे के पास मौजूद सरस्वती विद्या मंदिर से की। आगे की पढ़ाई के लिए पैसे कम थे तो मेरा नाम सरकारी स्कूल में कक्षा छह में पूर्व माध्यमिक विद्यालय बरई हरख में लिखवा दिया गया। आठवीं तक पढ़ाई पूरी करने के बाद नवीं कक्षा में मेरा दाखिला जीआईसी राजकीय इंटर कालेज इलाहाबाद में करा दिया गया। इसके बाद बीए एलएलबी इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से किया। जिसके बाद 2019 में मैं इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने लगा। फिर लाकडाउन आ गया। सब कुछ बन्द था इसलिए मैंने घर पर रहकर पीसीएस-जे की तैयारी शुरू कर दी।

अहद अहमद
अहद अहमदफोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक

अहद द मूकनायक प्रतिनिधि को बताते हैं कि प्री परीक्षा बहुत अच्छी हुई। घर आकर जब सवालों को मिलाया तो करीब 320 नंबर से ज्यादा सही दिखे। जबकि मेरिट 280 के आस-पास रहती है। उसी दिन से मेंस की परीक्षा तैयारी में जुट गया।

अहद कहते हैं, "मेंस के लिए कुछ कोचिंग में गया। क्योंकि मैं किसी तरह से रिस्क नहीं लेना चाहता था। कोचिंग वालों ने मना कर दिया। उनका कहना था कि हम बाहरी बच्चों का प्रैक्टिस पेपर नहीं करवाते। इसके बाद मैं मुजीब सिद्दीकी सर के पास गया। उनको पूरी बात बताई। उन्होंने मुझे भरोसा दिया कि तुम्हें इंटरव्यू तक पहुंचाऊंगा। जब पहले प्रैक्टिस पेपर लिखा तो 110 नंबर ही आया। मन थोड़ा सा डगमगाया लेकिन उन्होंने भरोसा दिया कि आगे बेहतर होगा। मैंने मेहनत की और दोबारा कॉपी लिखी। उस वक्त मुजीब सर ने कॉपी देखकर कहा- ये एक जज की कॉपी है।"

अहद ने मेंस परीक्षा भी निकाल ली। अब उनके सामने इंटरव्यू था। कल्पराज सिंह के बोर्ड में अहद का इंटरव्यू होना था। इसमें दो रिटायर्ड जज और एक प्रतिष्ठित कॉलेज के डीन शामिल थे। इंटरव्यू में विषय से अधिक प्रैक्टिकल सवाल पूछे गए। अहद कुछ का जवाब तो दे पाए लेकिन कुछ सवालों में वह असहज हो गए। बाहर निकले तो थोड़ा निराश थे। उन्हें लगा कि यहां अपना बेहतर नहीं दे पाए। मन में तमाम सवाल लेकर घर वापस आ गए। यह मान लिया था कि जब रिजल्ट आएगा तो खुद नहीं देखेंगे।

अहद अहमद का घर
अहद अहमद का घर फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक

जब परिणाम आया तो बार-बार चेक कर रहे थे रिजल्ट

30 अगस्त की शाम यूपी लोक सेवा आयोग ने रिजल्ट जारी कर दिया। अहद ने रिजल्ट नहीं देखा क्योंकि उन्होंने तय किया था कि जब पास हो जाऊंगा तो कोई न कोई दोस्त फोन जरूर करेगा। हुआ भी कुछ ऐसा ही। एक दोस्त ने फोन किया और बताया कि तुम पास हो गए। तुम्हारी 157वीं रैंक आई है। अहद को भरोसा नहीं हो रहा था। उन्होंने अपना रिजल्ट देखा। एक बार, दो बार, तीन बार, कुल मिलाकर पांच बार देखा। कभी रोल नंबर मिलाते तो कभी नाम की स्पेलिंग देखते। जब एकदम क्लियर हो गया कि मैं ही हूं तब वह सबसे पहले अपनी मां के पास पहुंचे और कहा, "मां मैं जज बन गया।"

अहद की मां अफसाना द मूकनायक प्रतिनिधि से बात करते हुए कहती हैं, "मैंने कोई पढ़ाई नहीं की। अनपढ़ हूं। जब शादी हुई थी तब मैंने घरद्वार फिल्म देखी थी। उसमें एक महिला सिलाई करके बच्चों को पढ़ाती थी। मैंने तभी सोच लिया था कि मैं भी ऐसा करूंगी। जब मैं सिलाई करती तो मेरे साथ अहद पेटीकोट सिलता था। 10 रुपए एक पेटीकोट के मिलते थे। उस वक्त दिनभर में 100-200 रुपए की कमाई हो जाती थी।"

अहद के पिता शहजाद कहते हैं, "अहद बहुत सीधा बेटा था। कोई जिद नहीं करता था। उसे हर परिस्थिति में रहना आता था। जब उसने वकालत की पढ़ाई की और प्रैक्टिस करने लगा तो हम सिर्फ उसे 100 रुपए किराए का देते थे। लोगों से सुना था कि 10-15 साल ऐसे ही गुजर जाते हैं, फिर कुछ कमाई होती है। हमें तो कभी लगा ही नहीं कि इन्हें इतनी बड़ी सर्विस मिल जाएगी। अब जज बन गए हैं तो देखकर बहुत अच्छा लगता है।"

एक भाई इंजीनियर तो दूसरा बैंक मैनेजर

अहद अहमद चार भाई बहनों में तीसरे नंबर पर हैं। उनके माता-पिता ने सिर्फ अहद अहमद को ही नहीं पढ़ाया बल्कि अपने दूसरे बच्चों को भी तालीम दिलाई। अहद के बड़े भाई सॉफ्टवेयर इंजीनियर बन चुके हैं तो छोटा भाई एक प्राइवेट बैंक में ब्रांच मैनेजर है।

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