जानें बिल्किस बानो के 20 साल के संघर्ष और 11 आरोपियों की रिहाई की कहानी

बिल्किस बानो
बिल्किस बानो

नई दिल्ली। आजादी का अमृत महोत्सव के बीच गुजरात में एक और खुशी मनाई गई, जिसका जनता खुले तौर पर विरोध कर रही है। मामला है बिल्किस बानो गैंगरेप केस के 11 आरोपियों की रिहाई का है। लोगों में गुस्सा इस बात का भी है कि इन आरोपियों का स्वागत फूल माला और मिठाईं के साथ किया गया। अब इसको लेकर लोगों में रोष है। दिल्ली में कई महिला संगठनों ने जंतर-मंतर पर रिहाई के विरोध में प्रदर्शन किया, जिसमें दोषियों को दोबारा जेल भेजने की मांग की गई।

इस तरह बलात्कारी आसानी से क्षमा पा सकते हैं- शोभा गुप्ता

15 अगस्त को आरोपियों की रिहाई के दो दिन बाद बिल्किस ने मीडिया से बात करते हुए कहा, "मैं सुन्न और खामोश सी हो गई हूं। 20 साल पुराना सदमा फिर कहर बनकर टूटा है। आरोपियों को रिहाई ने मुझसे मेरी शांति छीन ली और न्याय व्यवस्था पर मेरे भरोसे को हिला दिया है।"

बिल्किस बानो का लंबे समय तक केस लड़ने वाली वकील शोभा गुप्ता ने इस रिहाई के बाद मीडिया से बात करते हुए कहा कि "मेरा मानना है कि ऐसे तो हर बलात्कार और हत्या का आरोपी 14 साल में क्षमा की मांग कर सकता है। अगर क्षमा याचना मान ली जाती है तो हर बलात्कारी और हत्यारा इसकी मांग क्यूं नहीं करेगा।" शोभा ने कहा, क्षमा याचना एक गलती कानून है। उन्होंने कहा जिस 1992 की नीति के आधार पर दोषियों को रिहा किया गया है अब वह कानून ही अस्तित्व में नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट का छह हजार लोगों ने दरवाजा खटखटाया

अब इस रिहाई के खिलाफ लगभग 6000 लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, जिसमें बुद्धिजीवियों से लेकर कई राजनीतिक हस्तियां और स्टूडेंट्स भी है। जिनका कहना है कि इन 11 आरोपियों की रिहाई को खारिज किया जान चाहिए। वहीं गुजरात से कांग्रेस के तीन विधायक इमरान खेडावाला, ग्यासुद्दीन शेख और मुहम्मद पीरजादा ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर रिहाई को निरस्त करने की मांग की है। बिल्किस बानो के केस में अब हर कोई बात कर रहा है। इस घटना को घटे लगभग 20 साल हो गए हैं। लंबी लड़ाई के बाद बिल्किस को न्याय मिल पाया था। लेकिन इस तरह की रिहाई ने उसके जीवन में एक बार फिर अंधेरा ला दिया है।

गैंगरेप का पूरा प्रकरण

27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस मे आग लगने के बाद राज्य में हिंसा भड़क गई थी। इसी ट्रेन में अयोध्या से कारसेवक वापस आ रहे थे। ट्रेन में आग लगने के कारण 59 कारसेवकों की मौत हो गई। जिसका नतीजा यह हुआ कि गुजरात में साम्प्रदायिक हिंसा भड़क गई।

इसी दौरान पांच महीने की गर्भवती बिल्किस बानो ने अपने साढ़े तीन साल की बेटी और परिवार के 15 अन्य सदस्यों के साथ दाहोद जिले के रंधिकपुर गांव से भागकर छपरवाड़ में शरण ली। इस दौरान बिल्किस के साथ उसकी बेटी सालेह और परिवार के अन्य 15 सदस्य थे। लगातार पांच दिनों तक हिंसा के बीच दाखिल की गई चार्जशीट के अनुसार 3 मार्च को 2002 को 30 लोगों ने हंसिया, तलवार और लाठियों के साथ उन पर हमला किया था। इन हमलावरों में 11 युवक भी थे। इसमें बिल्किस, उसकी मां और तीन अन्य महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। जिस वक्त बलात्कार किया गया वह पांच महीने की गर्भवती थी। इस हिंसा के बीच उनके परिवार के 7 सदस्यों की निर्मम हत्या कर दी गई। बाकी के कुछ लोगों ने वहां से भागकर अपनी जान बचाई। सिर्फ बिल्किस, एक आदमी और तीन साल का बच्चा बच पाया।

इस घटना के बाद बिल्किस लगभग तीन घंटों तक बेहोश पड़ी रही। होश आने के बाद एक आदिवासी महिला ने उसे कपड़े पहनाएं और एक होमगार्ड उसे लिमखेड़ा पुलिस स्टेशन ले गया।

पुलिस स्टेशन पहुंचकर बिल्किस बानो ने अपनी रिपोर्ट लिखाई। सीबीआई की रिपोर्ट के अनुसार इस रिपोर्ट में बहुत सारे तथ्यों को दबाया गया। इसके बाद बिल्किस गोधरा राहत शिविर पहुंची और वहां से मेडिकल अस्पताल ले जाया गया गया। इसकी शिकायत राष्ट्रीय मानवाधिकार को दी गई। जहां एनएचआरसी और सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को उठाया और सीबीआई को जांच का आदेश दिया।

न्यायिक प्रक्रिया

बिल्किस को न्याय के लिए एक लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी। यहां तक की उसे जान से मारने की भी धमकी मिलने लगी थी। सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस केस को गुजरात से मुंबई ट्रांसफर कर दिया गया। जिसके बाद छह पुलिस अधिकारी एक सरकारी डॉक्टर समेत 19 लोगों पर मामला दर्ज किया गया। एक लंबी लड़ाई के बाद साल 2008 में एक विशेष अदालत ने 11 आरोपियों को गर्भवती महिला के साथ बलात्कार की साजिश रचने, हत्या गैरकानूनी रूप से इकट्ठा होने और अन्य कई मामलों में भारतीय दंड संहिता के तहत आरोपी करार दिया और उम्रकैद की सजा सुनाई। सात लोगों को सबूतों को अभाव में बरी कर दिया गया। हेड कांस्टेबल को गलत रिकॉर्ड बनाने के मामले में दोषी पाया गया। इसके बाद एक बार फिर मई 2017 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने सामूहिक बलात्कार के मामले में 11 लोगों के आजीवन कारावास को बरकरार रखा। पुलिस समेत सात लोगों को बरी कर दिया। इसके दो साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को दो सप्ताह के भीतर बिल्किस बानो को 50 लाख का मुआवजा देने का निर्देश दिया था।

कैसे हुई 11 आरोपियों की रिहाई?

11 दोषियों की रिहाई के बाद पूरे देश में रिहाई के गलत ठहराते हुए दोबारा से न्याय की मांग की जा रही है। लेकिन आपको बता दें कि, 11 आरोपियों को उम्रकैद की सजा हुई थी। उम्र कैद की सजा के अनुसार दोषी 14 साल या फिर 20 साल की सजा काटने के बाद माफी की अपील कर सकता है। बिल्किस बानो के केस में भी यही हुआ है। सभी 11 आरोपियों में 14 साल पूरे होने के बाद माफी का आवेदन किया था।

भारतीय संविधान धारा 161 के अनुसार अगर कोई व्यक्ति किसी मामले में दोषी पाया जाता है, तो वह राज्यों को रिमिजन पॉलिसी के तहत माफी के लिए आवेदन कर सकता है। यह आवेदन वही कर सकता है जिसके केस में फैसला आ चुका हो। जिनका मुकदमा चल रहा हो वहां धारा 161 लागू नहीं होती है। 11 में से एक दोषी राधेश्याम शाह ने सीआरपीसी की धारा 432 और 433 के तहत गुजरात हाईकोर्ट में माफी के लिए दरवाजा खटखटाया था। लेकिन उच्च न्यायलय ने यह कहते हुए इसे खारिज कर दिया कि यह मामला महाराष्ट्र का है गुजरात का नहीं। इसके बाद दोषियों ने रिमिजन पॉलिसी के तहत गुजरात सरकार ने दोषियों को रिहा कर दिया है। सीआरपीसी की धारा 432 के तहत एक दोषी व्यक्ति स्वयं ही सजा में छूट के लिए आवेदन कर सकता है। इस मामले में राज्य सरकार किसी दोषी को बिना आवेदन के सजा माफ नहीं कर सकती है।

द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.

Related Stories

No stories found.
The Mooknayak - आवाज़ आपकी
www.themooknayak.com