जामिया हिंसा मामला: हाईकोर्ट ने फैसले में क्या कहा! शरजील और सफूरा के वकीलों ने दिया था ये तर्क..

शरजील इमाम, सफूरा जरगर और आसिफ इकबाल तन्हा
शरजील इमाम, सफूरा जरगर और आसिफ इकबाल तन्हा

नई दिल्ली। दिल्ली के जामिया हिंसा मामले में हाई कोर्ट ने 11 में से नौ आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए. कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की अपील मंजूर कर ली है. जांच एजेंसी ने स्टूडेंट्स एक्टिविस्ट शरजील इमाम, सफूरा जरगर, आसिफ इकबाल तन्हा और आठ अन्य को आरोपमुक्त करने के निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी थी. हाई कोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को आंशिक रूप से पलट दिया है. अदालत ने आरोपियों के खिलाफ दंगे और अन्य आरोप तय करने का निर्देश दिए हैं.

कोर्ट ने स्टूडेंट एक्टिविस्ट शरजील इमाम, सफूरा जरगर और आसिफ इकबाल तन्हा सहित आठ के खिलाफ दंगे और गैरकानूनी सभा करने का आरोप तय किए हैं. निचली अदालत ने इन लोगों को आरोप मुक्त किया था. हाईकोर्ट के फैसले के बाद अब इन लोगों के खिलाफ मुकदमा चलाया जाएगा. हाईकोर्ट ने कहा कि विरोध प्रदर्शन और भाषण और अभिव्यक्ति आजादी का संवैधानिक संरक्षण हासिल है पर इसका शांतिपूर्ण होना भी जरूरी है. जबकि पूर्व में इन लोगों को मामले में आरोप मुक्त करते हुए अदालत ने कहा था कि उन्हें बलि का बकरा बनाया गया है.

मीडिया रिपोर्ट में हाईकोर्ट ने पुलिस की अपील का निपटारा करते हुए मंगलवार को साकेत कोर्ट के एक फैशन जज के आदेश को पलट दिया. उसमें आशिक बदलाव करते हुए जस्ट्रीम स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि प्रति वादियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 143/147/149/186/353/427 और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान से बचाने के लिए पीडीपीपी एक्ट की धारा तीन के तहत अपराध के आरोप बनते हैं. इनमें से तीन के खिलाफ आईपीसी की धारा 143 के तहत आरोप तय किए गए हैं. हाई कोर्ट ने हाल के निचली अदालत के आदेश के उस हिस्से में कोई बदलाव नहीं किया. जिसके तहत पुलिस को आगे की जांच करने और हिंसा करते हुए आरोपी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की छूट दी गई है.

अपने फैसले में हाईकोर्ट ने वह सीमा रेखा बताने की कोशिश की जहां शांतिपूर्ण विरोध से जुड़े मौलिक अधिकार का धारा खत्म होता है, और कानून व्यवस्था लागू करने वाली एजेंसियों के अधिकार में आता है. जस्टिन शर्मा ने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में मुद्दों को उठाने के लिए अपने अधिकारों पर जोर देना अपराध नहीं है. विरोध प्रदेश प्रदर्शन को संवैधानिक संरक्षण हासिल है, पर इसका शांतिपूर्ण होना भी जरूरी है। शांतिपूर्ण सभा का अधिकार उचित सीमा के अधीन हैं. राज्य लोगों को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किए बिना रोड के अधिकार सहित दूसरे अधिकारों को प्रतिबंधित कर सकता है.

हाई कोर्ट ने इमाम, जरगर और तन्हा आदि के विरोध के तरीके से असहमति जताई। कोर्ट ने कहा कि एक विरोध प्रदर्शन से को दूसरे को खतरे में डालने, संपत्ति नुकसान पहुंचाने, जरूरी सेवाओं को प्रतिबंधित करने की इजाजत नहीं दी जा सकती. ऐसे भाषण जैसी गतिविधियों को जो हिंसा को बढ़ाती है, और कानून व्यवस्था को खतरे में डालती हैं, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान और समाजिक शांति को भंग करती हैं, उन्हें भारतीय संविधान के तहत संरक्षण हासिल नहीं है.

लाइव लॉ के अनुसार, अदालत ने कुछ आरोपियों का जिक्र करते हुए कहा, "प्रथम दृष्टया, जैसा कि वीडियो में देखा जा सकता है, प्रतिवादी भीड़ की पहली पंक्ति में थे. वे दिल्ली पुलिस मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे और बेरिकेड्स को हिंसक रूप से धकेल रहे थे।" अदालत ने 23 मार्च को मामले की दो घंटे से अधिक लंबी सुनवाई के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया. एडिशनल सॉलिसिटर जनरल संजय जैन ने पहले दिल्ली पुलिस के लिए तर्क दिए। ट्रायल कोर्ट ने 4 फरवरी को बताया कि शरजील इमाम, आसिफ इकबाल तन्हा, सफूरा जरगर, मो. अबुजर, उमैर अहमद, मो. शोएब, महमूद अनवर, मो. कासिम, मो. बिलाल नदीम, शहजर रजा खान, चंदा यादव और मोहम्मद इलियास के खिलाफ आरोप तय करने के लिए पर्याप्त सबूत मिले हैं।

दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला

दिल्ली हाई कोर्ट ने मोहम्मद कासिम, महमूद अनवर, शहजर रजा, उमैर अहमद, मोहम्मद बिलाल नदीम, शरजील इमाम, चंदा यादव, सफूरा जरगर पर आईपीसी की धारा 143, 147, 149, 186, 353, 427 के साथ सार्वजनिक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम की धाराओं के तहत आरोप लगाया है. न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने मोहम्मद शोएब और मोहम्मद अबुजार पर आईपीसी की धारा 143 के तहत आरोप लगाए और अन्य सभी धाराओं से आरोपमुक्त कर दिया.

शांतिपूर्ण नहीं था प्रदर्शन

हाईकोर्ट ने कहा कि पहली नजर में जैसा कि वीडियों में दिख रहा है, आरोपी स्टूडेंट एक्टिविस्ट्स भीड़ की अगुवाई कर रहे थे. वे दिल्ली पुलिस मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे और हिंसात्मक ढंग से बैरिकेड्स को धक्का दे रहे थे. शांतिपूर्ण तरीके से सभा करने का अधिकार तार्किक प्रतिबंधों के अधीन है. हिंसक गतिविधि और हिंसापूर्ण भाषणों को संरक्षण नहीं मिल सकता.

गैरकानूनी तरीके से हुई थी सभा

हाईकोर्ट ने माना कि जिस सभा के साथ जामिया में दंगे फैले थे. उसमें आरोपी गैरकानूनी सभा का हिस्सा थे। उन्होंने नारेबाजी और पुलिस पर हमला किया, बैरीकेट्स पर चढ़कर पुलिस को चुनौती दी गई. ऐसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम को खारिज नहीं किया जा सकता.

चुनौती देंगे बचाव पक्ष

हाई कोर्ट का फैसला सुनने के बाद आरोपी शरजील इमाम और अन्य के खिलाफ वकीलों ने कहा है कि वह इस फैसले को चुनौती देंगे। निचली अदालत स्पष्ट कर देख चुकी थी, कि उनके मुवक्किल की इन दंगों में भूमिका नहीं थी लेकिन एक बार फिर से मामला खुला और उनके लिए परेशानी का सबब बन गया.

निचली अदालत ने 4 फरवरी को सभी 11 अभियुक्तों को आरोप मुक्त कर दिया था, लेकिन मोहम्मद इलियास के खिलाफ गैरकानूनी असेंबली और दंगा करने के आरोप तय किए गए। 23 मार्च को न्यायमूर्ति शर्मा की पीठ के समक्ष, जैन ने तर्क दिया था कि ट्रायल कोर्ट (साकेत कोर्ट) ने जांच एजेंसी के खिलाफ अपमानजनक और गंभीर पूर्वाग्रहपूर्ण टिप्पणियां की और अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन किया और कहा कि इसे रिकॉर्ड से हटा देना चाहिए।

कोर्ट ने कहा था कि पुलिस वास्तविक अपराधियों को पकड़ने में नाकामयाब रही, और इन 11 आरोपियों को बलि का बकरा बनाया। बेंच ने कहा था, निचली अदालत के न्यायाधीश ने कहा है कि आप अदालत में साबित करने के लिए कोई दस्तावेज नहीं ला पाए कि ये व्यक्ति उस भीड़ का हिस्सा थे जिसने अपराध किया था। उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि जब इतने लोग थे तो आपने कुछ को ही क्यों उठाया? प्रतिवादी अनवर, रजा खान, कासिम और उमैर अहमद की ओर से पेश अधिवक्ता एम.आर. शमशाद ने कहा कि अभियुक्त केवल तमाशबीन थे और निचली अदालत ने उन्हें आरोपमुक्त करने का सही आदेश पारित किया था।

दिसंबर 2019 में हुआ था जामिया मिल्लिया इस्लामिया हिंसा

नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के विरोध में 13 दिसंबर 2019 को जामिया मिलिया इस्लामिया से शुरू मार्च के दौरान भीड़ उग्र हो गई थी. इसमें पुलिस पर पथराव हुआ था. कई जगह पर आगजनी की गई थी. पुलिस ने भी जवाबी कार्रवाई में आंसू गैस समेत अन्य कार्रवाई की थी. शुरुआत में मामले की जांच जामिया नगर थाना पुलिस ने की थी. बाद में इसे क्राइम ब्रांच को सौंप दिया था. विरोधी प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प के बाद हिंसा भड़क उठी थी। सभी 11 आरोपी इमाम, तन्हा, जरगर, अबुजर, उमैर अहमद, मोहम्मद शोएब, महमूद अनवर, मोहम्मद कासिम, मोहम्मद बिलाल नदीम, शहजार रजा खान और चंदा यादव को ट्रायल कोर्ट ने 4 फरवरी को आरोपमुक्त कर दिया था। लेकिन मोहम्मद इलियास के खिलाफ गैरकानूनी असेंबली और दंगे के आरोप तय किए गए थे।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार छात्र कार्यकर्ता और जेएनयू के पूर्व छात्र शरजील इमाम की ओर से, अधिवक्ता तालिब मुस्तफा ने प्रस्तुत किया कि किसी भी चार्जशीट में इमाम के खिलाफ कोई वीडियो क्लिप या गवाह का एक भी बयान नहीं है. जरगर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेका जॉन ने पुलिस द्वारा उनकी पहचान के तरीके पर सवाल उठाया और कहा कि जिस व्यक्ति को एक वीडियो क्लिप से जरगर के रूप में पहचाना गया था, उसके पास फेस कवर था. अभियोजन पक्ष के पास कोई पुख्ता पुष्टि नहीं है कि यह वही थी.

मामले पर द मूकनायक ने आसिफ इकबाल तन्हा से बात की. परंतु उन्होंने किन्हीं कारणों से अभी मामले में कुछ भी कहने से इनकार कर दिया. इसके अलावा द मूकनायक ने जामिया पीआरओ से भी बात करने की भी कोशिश करी. परंतु उनसे भी कोई जानकारी नहीं मिल पायी.

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