मध्य प्रदेश: 12 वर्षीय मुस्लिम लड़के पर चल रहा मुकदमा, ट्रिब्यूनल कर रहा है मामले की सुनवाई

मध्य प्रदेश: 12 वर्षीय मुस्लिम लड़के पर चल रहा मुकदमा, ट्रिब्यूनल कर रहा है मामले की सुनवाई

यूपी और हरियाणा के समान 2022 में बने मध्यप्रदेश के एक कानून के अनुसार अब दंगाइयों से सार्वजनिक व निजी सम्पत्ति के नुकसान की वसूली सरकार करेगी। एमपी के खरगोन शहर के पश्चिमी इलाके में रामनवमी के दिन दंगे के आरोपी 270 लोगों, (65 प्रतिशत मुस्लिम) पर एक ट्रिब्यूनल में मुकदमा चलाया जा रहा है, जिनमें एक 12 वर्षीय मुस्लिम लड़का भी शामिल है। कानूनी विशेषज्ञों ने बताया कि इस कानून के तहत सरकार उनसे दावा की गई राशि से दोगुना जुर्माना लगा सकती है, जो की एक अवैध और मनमाना नियम है।

रिपोर्ट- श्रीगिरीश जलिहाल

खरगोन (मध्य प्रदेश)। 25 अगस्त 2022 को, एक पुलिस कांस्टेबल ने दक्षिण पश्चिमी मध्य प्रदेश के शहर खरगोन में 34 वर्षीय वाहन चालक कालू खान के एक कमरे वाले घर की पहचान की और उसे तीन नोटिस दिए गए। खान ने कहा, "मुझे बताया गया था कि मेरे पड़ोसियों ने मेरे और मेरे बेटे के खिलाफ ट्रिब्यूनल में याचिका दायर की थी।"

खान के हिंदू पड़ोसियों ने 10 अप्रैल 2022 को सांप्रदायिक हिंसा के दौरान शहर के आनंद नगर मोहल्ले में उनके घर में लूटपाट और तोड़फोड़ करने का आरोप लगाते हुए उनसे 4 लाख 80 हजार रुपए और उनके 12 वर्षीय बेटे से 2 लाख 90 हजार रुप के नुकसान का दावा किया है।

हिंसा उस समय हुई जब शहर के मुस्लिम बहुल इलाके से रामनवमी की जुलूस गुजर रहा था, जिसमें 20 लोग घायल हो गए और एक की मौत हो गई। खरगोन, जो कि इंदौर से 150 कि.मी. दक्षिण की और है। जहां 61 फीसदी आबादी हिंदुओं की है और 37 फीसदी मुसलमानों की।

खान ने द रिपोर्टर्स कलेक्टिव को बताया कि, "पुलिसकर्मी ने मुझसे कहा कि हमें एक विशेष न्यायालय (ट्रिब्यूनल) का सामना करना होगा और केस लड़ना होगा।"

खान का बेटा, 12 वर्षीय आरिफ (नाम बदला गया है क्योंकि वह नाबालिग है), पर अब 270 लोगो के साथ मुकदमा चलेगा, जिनमें से 65 मुस्लिम हैं। खान ने दावा किया कि हम दोनों हिंसा की रात घर पर थे। मगर पड़ोसियों ने नुकसान की भरपाई के लिए हमारे खिलाफ ट्रिब्यूनल में वाद दायर किया है।

हिंसा के दो दिन बाद राज्य सरकार ने मध्य प्रदेश लोक एवं निजी सम्पति को नुकसान का निवारण एवं नुकसान की वसूली अधिनियम, 2021 के तहत दावा अधिकरण (क्लेम ट्रिब्यूनल) का गठन किया। हर्जाना वसूली कानून के अनुसार, ट्रिब्यूनल की स्थापना मुख्य रूप से 'नुकसान का आकलन करने और उसके मुआवजे देने' के लिए की गई है। ट्रिब्यूनल अगस्त 2022 से चल रहे मुकदमे की सुनवाई क्लेम ट्रिब्यूनल में की जा रही है।

संबंधित अधिनियम जनवरी 2022 में लागू हुआ था। मध्य प्रदेश इस तरह का कानून बनाने वाला उत्तर प्रदेश और हरियाणा के बाद तीसरा राज्य है। अधिकरण एक अर्ध-न्यायिक निकाय है, जिसके पास सिविल कोर्ट की शक्तियां हैं। यह दंगों और अन्य हिंसा के दौरान सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले दोषी लोगों से हर्जाना वसूल करने का अधिकार रखता है।

12 साल के बच्चे पर अदालत में नहीं चल सकता मुकदमा

भारतीय कानून के तहत, किसी भी भारतीय अदालत में किसी भी तरह की आपराधिक कार्यवाही में 12 साल के बच्चे पर बालिग के रूप में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। उस पर कानून के अनुसार केवल एक किशोर न्याय बोर्ड द्वारा ही मुकदमा चलाया जा सकता है।
जिस दिन यह घटना घटी, उस दिन आरिफ की उम्र 11 साल 10 महीने ही थी। मुकदमा चलाने के लिए नोटिस दिए जाने से महज एक महीने पहले ही उसने 12 साल पूरे किए थे।

भारतीय दंड संहिता, 1870 के अनुसार, किशोर मानसिक रूप से अपरिपक्व है। रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने आरिफ के आधार कार्ड और स्कूल की मार्कशीट की प्रतियां देखी और दोनों दस्तावेज उसकी उम्र की पुष्टि करते हैं। इसके अलावा आरिफ का नाम हिंसा के बाद उसके पड़ोसियों द्वारा दाखिल की गई प्राथमिकी (एफआईआर) में नहीं है।

आरिफ व अन्य के खिलाफ शिकायत

आरिफ के मोहल्ले में रहने वाले 32 वर्षीय राकेश गंगले ने स्थानीय थाने में दी प्राथमिकी में बतायां कि जब वे रात 9 बजे काम से घर जा रहे थे, तब उन्होंने तलवार, लाठी, पत्थरों और कांच की बोतलों से लैस 50-60 मुसलमानों की भीड़ को देखा।

उन्होंने आरोप लगाया कि, भीड़ इलाके में घरों पर पत्थर और पेट्रोल बम फेंक रही थी। उनमें से तीन ने उसके घर में आग लगा दी, जबकि अन्य ने उसके पड़ोसी के घर में तोड़फोड़ की। हिंसा के तीन दिन बाद, राकेश, उसके रिश्तेदारों और पड़ोसियों ने पुलिस को घटना की सूचना दी। प्राथमिकी में 36 मुसलमानों को दंगाइयों के रूप में नामित किया गया है।

25 अगस्त को, घटना के चार महीने बाद, 65 वर्षीय सुरुजबाई गंगले, राकेश के पड़ोसी, जो उनके साथ प्राथमिकी दर्ज करने के लिए पुलिस स्टेशन गए थे, उन्होंने ट्रिब्यूनल में दावा दायर किया। उन्होंने आरोप लगाया कि, दंगाइयों ने उनके आभूषण और एक लाख रुपए नकद चुरा लिए। द कलेक्टिव द्वारा समीक्षा किए गए उनके नोटिस में आरिफ का नाम उन लोगों में शामिल है जिन्होंने उनकी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया। उन्होंने अपने याचिका में राकेश द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी का उल्लेख करते हुए बताया कि "अतिरिक्त जानकारी दावे के निपटान में मदद कर सकती है।"

बचाव पक्ष के वकीलों का दावा

बचाव पक्ष के वकील साजिद पठान ने कहा कि, "शिकायतकर्ता एक दंगे के दौरान 36 लोगों की पहचान कैसे कर सकता है और प्राथमिकी में उनके पिता के नाम के साथ उनका नाम कैसे ले सकता है।" यह एक चौंकाने वाली बात है। इधर, राकेश की एफआईआर में आरिफ का नाम तक नहीं है। पठान ने कहा, "हमने ट्रिब्यूनल से शिकायत की है कि वह नाबालिग है।" पठान ने कहा कि, अधिकारियों ने हमसे पूछा, क्या बारह साल का बच्चा दंगाई नहीं हो सकता।

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष आरिफ को दिए गए नोटिस को चुनौती देने वाले अधिवक्ता सैयद अशर वारसी ने कहा कि, "लेकिन यहाँ सवाल यह है कि एक बच्चे पर मुकदमा कैसे चलाया जा सकता है?"

12 सितंबर 2022 को हाई कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि ट्रिब्यूनल में आपत्तियां दायर की जानी चाहिए।

न्यायमूर्ति विजय कुमार शुक्ला के आदेश में कहा गया है, "यदि आपत्ति दायर की जाती है, तो उस पर विचार किया जाएगा और न्यायाधिकरण द्वारा कानून के अनुसार निर्णय लिया जाएगा।"

वारसी ने 13 सितंबर 2022 को ट्रिब्यूनल के समक्ष एक आवेदन दिया जिसमें तर्क दिया गया कि आरिफ को नोटिस देना "गलत" और "अवैध" था। वारसी ने कहा कि, "हमें अब तक ट्रिब्यूनल से कोई लिखित आदेश नहीं मिला है, लेकिन हमें बताया गया है कि हमारी आपत्ति को खारिज कर दिया गया है।"

न्यायाधिकरण के अध्यक्ष मिश्रा ने कहा कि, "किशोरों के मामले में, हम केवल उनकी नागरिक दायित्व तय करते हैं। इसलिए, उन्हें किशोर न्याय बोर्ड द्वारा अलग से मुकदमा चलाने की आवश्यकता नहीं है।"

इधर, कानूनी विशेषज्ञों ने कहा कि नागरिक दायित्व के मामलों में भी, एक किशोर पर मुकदमा चलाना अस्पष्ट और दुविधाओं से भरा है।

किशोर कानून के एक विशेषज्ञ ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि, "यहां तक कि मोटर वाहन अधिनियम के तहत किशोरों के खिलाफ जारी किए गए चालान को भी किशोर न्याय बोर्ड में ले जाया जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि किशोर न्याय कानून की भावना नाबालिग को सुधारना है ना की उन्हें दंडित करना।"

नए कानून कानून वं ट्रिब्यूनल की प्रक्रिया पर सवाल

आरिफ के मुकदमे ने सरकार पर सामान्य रूप से सांप्रदायिक संघर्षों के लिए सरकार की प्रतिक्रिया के पहलुओं पर और खासकर राज्य के नए हर्जाना वसूली कानून पर सवाल उठाए हैं। इस मुकदमें ने नए कानून में छुपी कमियों को उजागर किया है, जिसके तहत किशोरों पर नागरिक अपराधों में मुकदमा चलाने की अनुमति दी गई है।

यदि अधिकरण क्षति के लिए किसी को भी जिम्मेदार ठहराता है, तो ऐसे आरोपी कानूनी रूप से दंगा और संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के क्रिमिनल अफेंस के तहत अपराध के किसी भी निर्धारण के बिना, कथित रूप से हुई क्षति की दोगुनी राशि का भुगतान करने के लिए बाध्य हैं।

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि अधिकरण की जांच प्रक्रिया 'अस्पष्ट' और 'अपारदर्शी' थी, और आरोपी को बुरे परिणाम भुगतने को लेकर डराया धमकाया भी गया।

विशेष न्यायलय गठित होने के 18 दिन के भीतर ही न्यायधिकरण के नियमों को उसमें मौजूद सदस्यों पर छोड़ दिया जाता है, वो खुद तय करें कि वे कैसे कार्य करेंगे। न्यायधिकरण में सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश डॉ. शिवकुमार मिश्रा और सेवानिवृत्त राज्य सचिव प्रभात पाराशर शामिल हैं। नियम कहते हैं कि 'विशेष न्यायालय, न्यायधिकरण में सुनवाई की अपनी प्रक्रिया निर्धारित करेगा।'

यह है ट्रिब्यूनल की प्रक्रिया

मध्य प्रदेश कानून के तहत दंगों के नुकसान की वसूली के लिए, राज्य एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश और एक सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी को न्यायाधिकरण में नियुक्त करती है जिनके पास हिंसा प्रभावित क्षेत्र पर एक सिविल कोर्ट और अधिकार क्षेत्र की शक्तियां होती हैं। इसके बाद सरकार इस अधिकरण में तीन राज्य अधिकारियों की एक पैनल भेजती है। विशेष न्यायलय अपने 'दावा आयुक्त के रूप में किसी एक को चुन सकता है। दंगा प्रभावित क्षेत्र का कोई भी नागरिक नुकसान के लिए दावा दायर कर सकता है।

आयुक्त तय करता है कि कौन से दावों पर विचार करना है, वास्तव में एक व्यक्ति को संपत्ति के नुकसान के लिए बिना किसी आपराधिक जांच के एक अपराधिक अपराध के लिए उत्तरदायी ठहरा दिया जाता है।

तल्हा अब्दुल रहमान नाम के एक वकील ने सुप्रीम कोर्ट में ऑन रिकॉर्ड ये कहा कि "न्यायधिकरण कैसे जांच करता है, यह ज्ञात नहीं है। अधिकरण नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) से बंधे नहीं हैं, लेकिन जब वे चाहें तो सीपीसी लागू करते हैं।" "अधिकरणों को पालन करने के लिए कुछ प्रक्रिया तैयार करने की आवश्यकता होती है।"

उदाहरण के लिए, कानून किसी को भी 'उन व्यक्तियों का नाम लेने की अनुमति देता है, जिन्होंने सार्वजनिक या निजी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाया हो या इसके लिए उकसाया हो।' अगर एक बार घटना संलिप्तता स्थापित हो जाती है तो फिर उस व्यक्ति को दोषी ठहराया जा सकता है।

दिल्ली स्थित वकील मेघा बहल ने द रिपोर्टर्स कलेक्टिव को बताया कि, मानक व प्रक्रिया अस्पष्ट है और न्यायाधीश को सबूतों के मौजूद नियमों से भटका देता है।

हम अपने कुछ नियम खुद तय करते हैं- न्यायाधिकरण प्रमुख

विशेष न्यायालय के सामने किस स्तर के सबूत पेश करने हैं, क्या नियम हैं, क्या नए कानून हैं ये कुछ भी नहीं बताए जाते हैं, यह निर्धारित करता है कि क्या व्यक्ति ने वास्तव में नुकसान पहुंचाया है। मध्य प्रदेश न्यायधिकरण के प्रमुख सेवानिवृत्त जज मिश्रा ने स्वीकार किया कि अधिकरण अपने कुछ नियम खुद बना रहा था।

उन्होंने द रिपोर्टर्स कलेक्टिव से कहा, "हम नागरिक प्रक्रिया संहिता का पालन करते हैं, लेकिन हम इसका कड़ाई से पालन नहीं करते हैं।"

इधर, एक सामान्य आपराधिक मामले में पुलिस एफआईआर दर्ज करने के बाद जांच शुरू करती है जिसमें सबूत जुटाना, गवाह के बयान लेना और आरोपियों से पूछताछ करना शामिल होता है।

इसके बाद पुलिस सक्षम न्यायालय के सामने चार्जशीट दाखिल करती है, जिसके बाद आरोप तय करने को लेकर अदालत में बहस होती है। एक बार आरोप तय हो जाने के बाद अदालत में सुनवाई शुरू हो जाती है।

जांच के इन मानकों को अधिकरण द्वारा मुकदमे में शामिल नहीं किया जा रहा है, इससे उन लोगों पर जुर्माना लगाया जा सकता है जिन्हें अभी तक दोषी नहीं ठहराया गया है।

विशेषज्ञों ने कहा कि, एक न्यायधिकरण का फैसला संपत्ति नष्ट करने के आरोपी लोगों के खिलाफ समानांतर आपराधिक कार्यवाही को संभावित रूप से प्रभावित कर सकता है। इसे और अन्य संदेहों को स्पष्ट करने के लिए मध्य प्रदेश सरकार ने मित्र मीडिया को गुमनाम इंटरव्यू दिए। जो, हालांकि, उन लोगों पर जुर्माना लगा सकता है जिन्हें अभी तक दोषी नहीं ठहराया गया है।

(लेखक- श्रीगिरीश जलिहाल द रिपोर्टर्स कलेक्टिव के सदस्य हैं। द रिपोर्टर्स कलेक्टिव एक पत्रकारिता सहयोगी प्लेटफ़ॉर्म है, जिसकी खबरें कई भाषाओं और मीडिया में प्रकाशित होती हैं।)

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