भोपाल। मध्य प्रदेश के जबलपुर में भिक्षावृत्ति खासकर बाल भिक्षावृत्ति एक गंभीर सामाजिक समस्या बन चुकी है। शहर के प्रमुख चौराहों, बाजारों, और सड़कों पर छोटे बच्चों को भीख मांगते हुए देखना आम हो गया है। इस परिस्थिति में बच्चों का बाल्यकाल और भविष्य दोनों ही खतरे में हैं। इसे ध्यान में रखते हुए, जबलपुर के कलेक्टर दीपक कुमार सक्सेना ने भिक्षावृत्ति को समाप्त करने और इसमें संलिप्त बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए एक महत्वपूर्ण योजना की शुरुआत की है।
कलेक्टर दीपक सक्सेना ने बाल भिक्षावृत्ति को जड़ से खत्म करने के लिए एक व्यापक जागरूकता अभियान शुरू किया है, जिसका उद्देश्य सड़कों पर भिक्षा मांगने वाले बच्चों को शिक्षा की ओर मोड़ना है। इस अभियान में पुलिस विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग और विभिन्न समाजसेवी संगठनों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इन संगठनों की सहायता से ऐसे परिवारों तक पहुंचने की योजना बनाई गई है, जो अपने बच्चों को भिक्षावृत्ति के लिए मजबूर करते हैं, ताकि बच्चों को शिक्षा के अधिकार से वंचित न किया जाए।
कलेक्टर ने इस अभियान की सफलता के लिए समाज की जागरूकता को आवश्यक बताया। उन्होंने कहा कि लोगों को केवल पात्र व्यक्तियों को ही भिक्षा देने के लिए प्रेरित किया जाएगा और बच्चों को भीख देने से बचने की सलाह दी जाएगी। कलेक्टर के अनुसार, बच्चों को भिक्षा देने से उनकी स्थिति और खराब हो जाती है, क्योंकि इस भीख से मिलने वाला पैसा अक्सर उनके गलत कामों में इस्तेमाल होता है, जैसे नशा या अपराध। इसलिए, लोगों को जागरूक किया जाएगा कि वे बच्चों को आर्थिक सहायता के बजाय शिक्षा और पुनर्वास के प्रयासों में मदद करें।
बाल भिक्षावृत्ति को रोकने के लिए एनजीओ और समाजसेवी संगठनों की भूमिका को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। एनजीओ के माध्यम से उन परिवारों तक पहुंचा जाएगा, जो अपने बच्चों को भिक्षावृत्ति के लिए भेजते हैं। कलेक्टर ने इस बात पर जोर दिया कि इन परिवारों को यह समझाना जरूरी है कि बच्चों का स्थान सड़कों पर नहीं, बल्कि स्कूलों में होना चाहिए। इसके लिए स्थानीय स्तर पर शिक्षा के प्रति जागरूकता फैलाने और बच्चों को स्कूलों में दाखिला दिलाने के प्रयास किए जाएंगे। इन प्रयासों के तहत बच्चों के अभिभावकों से भी संवाद स्थापित किया जाएगा, ताकि वे अपने बच्चों के भविष्य के प्रति जिम्मेदारी समझ सकें।
भीख मांगना भारतीय कानून के तहत अपराध है। कलेक्टर दीपक सक्सेना ने बताया कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 133 के तहत सार्वजनिक स्थानों पर भीख मांगना एक "पब्लिक न्यूसेंस" यानी सार्वजनिक परेशानी माना गया है। साथ ही भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम के तहत भी सख्त प्रावधान हैं। यदि कोई व्यक्ति पहली बार भिक्षावृत्ति करते हुए पकड़ा जाता है तो उसे दो साल की सजा का प्रावधान है, और दोबारा पकड़े जाने पर यह सजा दस साल तक बढ़ाई जा सकती है। कलेक्टर ने बताया कि इस कानून को प्रभावी रूप से लागू करने की जिम्मेदारी पुलिस, सामाजिक न्याय विभाग और बाल संरक्षण आयोग की होगी।
इस अभियान का एक महत्वपूर्ण पहलू उन बच्चों का पुनर्वास है, जो वर्तमान में सड़कों पर भीख मांगने को मजबूर हैं। इसके लिए जिला प्रशासन द्वारा विशेष केंद्र बनाए जाएंगे, जहां बच्चों को शिक्षा, खानपान, और आवास की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। प्रशासन का मानना है कि शिक्षा ही वह साधन है, जो बच्चों को भिक्षावृत्ति की कुरीति से बाहर निकाल सकती है और उन्हें एक बेहतर भविष्य की ओर ले जा सकती है। इसके साथ ही, बच्चों के माता-पिता के लिए भी जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे, ताकि वे अपने बच्चों को इस सामाजिक बुराई में न धकेलें।
गौरतलब है कि इससे पहले भी बाल भिक्षावृत्ति को रोकने के लिए विभिन्न प्रयास किए गए थे, लेकिन उनकी सफलता सीमित रही। कई जागरूकता अभियानों और सरकारी योजनाओं के बावजूद बाल भिक्षावृत्ति पर पूरी तरह से रोक नहीं लग सकी। कलेक्टर सक्सेना का मानना है कि इस बार समाजसेवी संगठनों के साथ मिलकर किए जा रहे प्रयासों से इस समस्या को जड़ से समाप्त करने में सफलता मिल सकती है।
जिला प्रशासन का मानना है कि जब तक समाज, सरकार, और गैर सरकारी संगठनों के बीच समन्वय स्थापित नहीं होगा, तब तक इस समस्या का समाधान मुश्किल है। प्रशासन द्वारा आगामी सप्ताह में इस संबंध में एक बैठक बुलाई गई है, जिसमें सभी संबंधित विभागों और समाजसेवी संगठनों के साथ आगे की रणनीति तैयार की जाएगी।
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