भारत में 2050 तक पुरुषों की औसत आयु 75 और महिलाओं की 80 साल होगी: शोधकर्ताओं का दावा

'द लैसेट' पत्रिका में प्रकाशित एक वैश्विक अध्ययन में यह दावा किया गया है कि विश्वभर में पुरुषों की जीवन प्रत्याशा में पांच वर्ष और महिलाओं में चार वर्ष का सुधार होने का अनुमान। शोधकर्ताओं ने कहा है कि उन देशों में सुधार सबसे अधिक होने की उम्मीद है, जहां जीवन प्रत्याशा कम है।
जीवन प्रत्याशा दर
जीवन प्रत्याशा दर Graphic- The Mooknayak

स्वास्थ्य सेवाओं में नवाचार, खोज और नई उन्नत तकनीकी कामयाबियों के कारण शोधकर्ताओं ने पाया कि आज से लगभग ढाई दशक बाद, वर्ष 2050 तक भारत में पुरुषों की जीवन प्रत्याशा औसतन 75 वर्ष और महिलाओं की करीब 80 वर्ष होने की संभावना है। 

आपको बता दें कि जीवन प्रत्याशा का अर्थ किसी व्यक्ति का औसत जीवनकाल होता है। शोधकर्ताओं का दावा है कि विश्वभर में पुरुषों की जीवन प्रत्याशा में करीच पांच वर्ष और महिलाओं की जीवन प्रत्याशा में चार वर्ष से अधिक का सुधार होने का अनुमान है। 'द लैसेट' पत्रिका में प्रकाशित एक वैश्विक अध्ययन में यह दावा किया गया है।

इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कहा है कि उन देशों में सुधार सबसे अधिक होने की उम्मीद है, जहां जीवन प्रत्याशा कम है। इससे सभी भौगोलिक क्षेत्रों में जीवन प्रत्याशा में समग्र वृद्धि देखने को मिलेगी। शोधकर्ताओं के मुताबिक, हृदय रोगों, कोविड-19, जच्चा-बच्चा व पोषण संबंधी चीमारियों और अन्य संक्रामक रोगों से बचाव को लेकर सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय लोगों के जीवित रहने की दर में सुधार करने वाले कारक हैं। इनसे बड़े पैमाने पर विश्व स्तर पर जीवन प्रत्याशा में वृद्धि दिखने को मिलेगी।

शोधकर्ताओं की ओर से कहा कि दुनियाभर में स्वस्थ जीवन प्रत्याशा आने वाले वर्षों में 2.6 साल बढ़ जाएगी। उन्होंने कहा कि वर्ष 2022 में जीवन प्रत्याशा का आंकड़ा जहां 64.8 वर्ष था, वहीं 2050 में यह बढ़कर 67.4 वर्ष हो जाएगा। 

अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि भारत में 2050 तक पुरुषों की जीवन प्रत्याशा औसतन 75 वर्ष से अधिक और महिलाओं के लिए लगभग 80 वर्ष हो सकती है। हालांकि, भारत में पुरुष और महिलाओं दोनों के लिए 'स्वस्थ जीवन प्रत्याशा' वर्ष से अधिक होने का अनुमान लगाया गया है। 

इस अध्ययन में शामिल अमेरिका के वाशिंगटन विश्वविद्यालय के इंस्टिट्यूट फार हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन के निदेशक क्रिस मुरे ने कहा, “हमने पाया है कि समग्र रूप से जीवन प्रत्याशा में वृद्धि के साथ ही विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में जीवन प्रत्याशा में असमान कम हो जाएगी।” यह एक संकेतक है कि उच्चतम निम्नतम आय वाले क्षेत्रों के बीच स्वास्थ्य असमानत बनी रहेंगी, लेकिन अंतर कम हो रहा है। उप-सहारा अफ्रीका क्षेत्र में जीवन प्रत्याशा को लेकर अधिक सुधार होने की उम्मीद है।

क्या दलित महिलाओं का भी बढ़ेगी जीवन?

वर्ष 2018 में, संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की एक रिपोर्ट में सामने आया है कि महिलाओं के साथ होने वाला भेदभाव केवल लैंगिक नहीं है, बल्कि जाति और आर्थिक स्थिति पर भी आधारित है. इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, ‘टर्निंग प्रॉमिसेस इन टू एक्शन- जेंडर इक्वॉलिटी इन द 2030’ एजेंडा नाम की इस रिपोर्ट के अनुसार एक सवर्ण महिला की तुलना में एक दलित महिला करीब 14.6 साल कम जीती है. इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ दलित स्टडीज़ के 2013 के एक शोध का हवाला देते हुए इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां एक ऊंची जाति की महिला की औसत उम्र 54.1 साल है, वहीं एक दलित महिला औसतन 39.5 साल ही जीती है.

रिपोर्ट के अनुसार इसका कारण दलित महिलाओं को उचित साफ-सफाई न मिलना, पानी की कमी और समुचित स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव है.

रिपोर्ट यह भी कहती है कि दलित महिलाओं की मृत्यु की उम्र तब भी कम है, जब मृत्यु दर से जुड़े उनके अनुभव उच्च जातीय महिलाओं जैसे ही थे. अगर सामाजिक स्थिति के भेद को भी देखा जाए, तब भी दलित और सवर्ण महिला की मृत्यु के बीच 5.48 साल का अंतर दिखता है.

इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ दलित स्टडीज के शोधकर्ताओं ने पाया था कि अगर ऊंची जाति और दलित महिलाओं की साफ-सफाई और पीने के पानी जैसी सामाजिक दशाएं एक जैसी भी हैं, तब भी सवर्ण महिलाओं की तुलना में दलित महिलाओं के जीवन की संभावना में करीब 11 साल का अंतर दिखता है.

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