
उत्तर प्रदेश। इलाहाबाद में रहने वाले एक परिवार में इकलौते बेटे ने अपना लिंग परिवर्तन करा लिया। माता-पिता ने तीन बेटियों के बाद बड़ी मिन्नतों के बाद एक बेटे को जन्म दिया था। लेकिन उसके इस कदम से परिवार को धक्का लगा। लेकिन जितना बड़ा धक्का परिवार को लगा उससे कहीं अधिक मानसिक तनाव और परेशानियों का सामना उस बेटे ने किया जो अब बेटी बन चुका है। बेईज्जती होने के डर से उसकी बहनों ने खुद उससे किनारा कर लिया। माता-पिता ने ऊपरी साया और भूत प्रेत के चक्कर में कई पूजा-पाठ करा डाले और तांत्रिकों से मिले। सगे सम्बन्धियों का व्यवहार भी ठीक नहीं रहा। लेकिन बेटे से बेटी बनने की जिद ने कुछ हद तक जीत दिलाई और नियम पारित होते ही लिंग परिवर्तन करा लिया। लेकिन आज भी वह हक की लड़ाई लड़ रहा है।
यूपी के इलाहाबाद में सूबेदार गंज निवासी मांगेराम अपने परिवार के साथ रहते हैं। मांगेराम की पत्नी का बीमारी के कारण 2008 में देहांत हो चुका है। मांगेराम को हमेशा एक बेटे की चाह थी। मांगेराम की पत्नी को लगातार तीन बेटियां हुई। तीनो बेटियों में दो से चार साल का फासला है। बेटे की चाह रखने वाले मांगेराम के घर हर बार बेटियां पैदा हो रही थी। बेटा होने के लिए मांगेराम ने पत्नी के साथ कई पूजा और हवन किये। मांगेराम को संयोग से एक बेटा पैदा हो गया। मांगेराम ने उसका नाम आशीष रखा। आशीष के होने पर मांगेराम की खुशी का ठिकाना नहीं था।
समय बीता और आशीष बड़ा होने लगा। आशीष (अब यशिका) बताते हैं, "मैं स्कूल के समय से ही लड़कियों के बीच बैठना पसन्द करता था। मुझे उनके साथ खो-खो खेलना,घर-घर खेलना और सभी लड़कियों वाले खेल पसन्द थे। पैरेंट टीचर मीटिंग के समय अक्सर टीचर मेरे इस व्यवहार की शिकायत मेरे माता-पिता से करते थे।"
यशिका बताती हैं, "मुझे शुरुआत से ही लड़कों का साथ नहीं पसन्द था। मेरे साथ पढ़ने वाले लड़के हमेशा मेरा मजाक उड़ाते थे। मेरे मोहल्ले में भी मैं लड़कियों के साथ ही रहना और खेलना पसंद करती थी। यह सब देखकर मेरे पिता मुझे अक्सर फटकार लगाते थे। वह मुझसे लड़कों जैसा बनकर रहने को कहते थे।"
यशिका आगे बताती हैं, मैं अपनी बहनों की तरह ही सजना-सवरना चाहती थी। मैं उनके कपड़े पहन लेती थी। इससे वह नाराज होने लगती थी। मैंने सबसे पहले अपनी तीनों बहनों को पुरुष से महिला में परिवर्तन करने की बात कही थी। वह सब मुझपर भड़क गई थी। उन्होंने इसकी शिकायत माता-पिता से की। मेरी बहनें माता-पिता को हमेशा कहती थी कि 'यह कैसा होता जा रहा है। इसके कारण मोहल्ले में हमारी बहुत बेइज्जती होती है। मेरी सारी दोस्त भी तरह-तरह की बाते करती हैं। ऐसे ही रहा तो हम लोगों से शादी कौन करेगा। आपका बेटा ऐसा खराब निकला है कि कोई घर भी आना पसन्द नहीं करता।'
"मेरे इस व्यवहार को देखकर अक्सर पिता दुखी रहते थे। मेरे माता-पिता ऊपरी साया, जादू- टोना कराने की बात कहकर आपस में लड़ने लगते थे। वह कहते हैं मुझे किसी ने कुछ खिला दिया है," यशिका ने बताया।
यशिका पंजाब यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स एंड ड्यूटीज़ से मास्टर्स कर रही हैं। शुरुआती 6 महीने में उन्हें हॉस्टल के लिए संघर्ष करना पड़ा था। हॉस्टल के लिए मेरिट लिस्ट में यशिका का नाम था, लेकिन यूनिवर्सिटी की नीतियों में ट्रांस स्टूडेंट्स के रहने की व्यवस्था नहीं थी। इसे लेकर यशिका ने प्रोटेस्ट भी किया था। जिसके बाद सोशल मीडिया पर और छात्र संगठनों ने यशिका को सपोर्ट किया था।
शोषित/वंचित, दलित, आदिवासी, महिला और अल्पसंख्यकों के मुद्दों, समस्याओं को प्रमुखता से उठाने वाली द मूकनायक की जनवादी पत्रकारिता को सपोर्ट करें। द मूकनायक आपके सहयोग से संचालित होता है। आर्थिक मदद के लिए यहां क्लिक करें.