“लड़कियों के साथ हो रहे अत्याचार और रेप को रोक नहीं पा रहे, लेकिन समलैंगिक विवाह से भारतीय संस्कृति को ठेस पहुंच रही है!” — समुदाय ने उठाया सवाल

“लड़कियों के साथ हो रहे अत्याचार और रेप को रोक नहीं पा रहे, लेकिन समलैंगिक विवाह से भारतीय संस्कृति को ठेस पहुंच रही है!” — समुदाय ने उठाया सवाल

इस बार शीतकालीन सत्र के दौरान समलैंगिकता (homosexuality) को लेकर एक बार फिर विवाद शुरु हो गया है। दरअसल भाजपा के राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने राज्यसभा में कहा है कि समलैगिंक विवाह को लेकर पहले संसद में चर्चा होनी चाहिए। क्योंकि समाज इसे मानने को तैयार नही है।

राज्यसभा में मंगलवार को एक बड़ा बयान देते हुए कहा कि समलैंगिक विवाह भारतीय संस्कृति के खिलाफ है। यह भारतीय संस्कृति और परंपरा के लिए उचित नही है।

साथ ही कहा कि कुछ वामपंथी और कार्यकर्ताओं ने समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। सुप्रीम कोर्ट के दो बेंचों की पीठ के फैसले दे देने से समलैंगिक विवाह उचित नहीं हो सकता है।

आपको बता दें साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में धारा 377 को रद्द कर दिया था। क्योंकि इसी धारा के आधार पर ही समलैंगिकों को अपना अधिकार नहीं मिल पा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि धारा 377 संविधान के समानता के अधिकार की धारा 14 का हनन करती है।

सांसद सुशील कुमार मोदी द्वारा दिए गए इस बयान के बारे में समलैंगिक समुदाय के लिए काम करने वाली मितवा एनजीओ की फाउंडर विद्या राजपूत से द मूकनायक ने बात की, इस बयान के बारे उनका कहना है कि "कई लोगों ने इसके लिए संघर्ष किया है। फिर जाकर हमें ये अधिकार मिला है कि आज हमें भी समान रूप से देखा जाता है।"

"धारा 377 खत्म करने के बाद भी संस्कृति के नाम पर हमें एक बार फिर पीछे ठकेला जा रहा है। अगर कोई व्यक्ति समलैंगिक पैदा हुआ तो उसके साथ अन्याय होगा। उच्च पदों में बैठे लोग अगर इस तरह का बयान देंगे तो वह कहीं न कहीं बहुसंख्यक के बीच हमारी स्थिति खराब करना चाहते हैं", विद्या ने कहा।

लगभग सात साल से अपने पार्टनर के साथ रह रहे संदीपन ने द मूकनायक को बताया कि "आज जब तकनीक के दौर में हम इतने आगे बढ़ चुके हैं। हमें यह बताया जाता हैं कि हम विश्व के विकसित देशों का सामना काम करे हैं तो ऐसे में समलैंगिक लोगों के लिए ऐसी भावनाएं क्यों रखी जा रही हैं।"

संदीपन कहते हैं कि, "इससे संस्कृति को कैसे नुकसान हो रहा? यह बात तो सोचना वाली हैं। हमारे ही देश में कितने ही ऐसे लोग है जो संस्कृति की दुहाई देते हैं और दूसरी तरफ लड़कियों के साथ हो रहे अत्याचार और रेप को रोक नहीं पा रहे हैं। यहां संस्कृति को ठेस क्यों नहीं पहुंच रही हैं।"

"संविधान दो व्यवस्यकों को साथ रहने के अधिकार दे रहा हैं। फिर इसमें परेशानी क्यों है। जैसे बाकी जोड़े अपनी जिदंगी जी रहा रहे हैं, वैसे ही समलैंगिक भी जी रहा है। क्या वह किसी को परेशान कर रहे हैं जिससे संस्कृति को खतरा हो जाएगा?" संदीपन ने कहा। 

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