मैनुअल स्कैवेंजिंग में जान गंवाने वाले लोगों के परिजनों को मुआवजे पर कोर्ट ने दिल्ली सरकार से क्या कहा?

अदालत मैनुअल स्कैवेंजिंग के दौरान जान गंवाने वाले लोगों की विधवा महिलाओं द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। जिसमें दिल्ली सरकार से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पूरा करने के लिए प्रत्येक को 20 लाख रुपये का भुगतान करने की मांग की गई थी।
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Manual scavengingफोटो साभार- CLPR

नई दिल्ली। हाथ से मैला ढोने का काम करने के दौरान जान गंवाने वाले कर्मचारियों को दिल्ली हाई कोर्ट ने बड़ी राहत दी है। जान गंवाने वाले कर्मचारियों की विधवा पत्नियों द्वारा दायर विभिन्न याचिकाओं पर न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया कि सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के अनुपालन में कर्मचारियों के परिवारों को अतिरिक्त 20 लाख रुपये का भुगतान करने का प्रयास करें।

अदालत ने कहा, "यह अच्छी तरह से स्थापित है कि जब कोई व्यक्ति अदालत का दरवाजा खटखटाता है और अपने पक्ष में कानून की घोषणा प्राप्त करता है, तो यह उम्मीद की जाती है कि राज्य उन व्यक्तियों को अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर किए बिना सभी समान स्थिति वाले व्यक्तियों को समान लाभ प्रदान करेगा।"

अदालत मैनुअल स्कैवेंजिंग के दौरान जान गंवाने वाले लोगों की विधवा महिलाओं द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। जिसमें दिल्ली सरकार से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पूरा करने के लिए प्रत्येक को 20 लाख रुपये का भुगतान करने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने सीवर में होने वाली मौतों के लिए मुआवजे को बढ़ाकर 30 लाख रुपये और सीवर संचालन से उत्पन्न स्थायी विकलांगता के लिए 20 लाख रुपये और अन्य प्रकार की विकलांगता के लिए 10 लाख रुपये कर दिया है।

कामगार यूनियन (एसकेयू) के राज्य कार्यकारिणी सदस्य, एडवोकेट हरीश गौतम से द मूकनायक ने इस मुद्दे पर बात की। हरीश बताते हैं कि, "दिल्ली हाई कोर्ट ने बहुत ही अच्छा फैसला दिया है। परंतु क्या इस पर अमल किया जाता है। इसमें कितना समय लगेगा। कुछ भी पता नहीं है। सबसे बड़ी बात यह है कि सरकार के पास डेटा ही नहीं है, कि कितने मजदूर इन सीवर आदि के कार्यों में काम कर रहे हैं। सरकार इन कर्मचारियों का डेटा बनाने में ज्यादा इंटरेस्टेड भी नहीं है। कितने सफाई कर्मचारी पूरे देश में काम कर रहे हैं, राज्यों में सफाई कर्मचारियों की संख्या क्या है? अगर कोई डेटा बताया भी जाता है तो उस डेटा में सच्चाई कहीं भी नहीं है।"

उन्होंने कहा, "2017 की एक रिपोर्ट के अनुसार इस कार्य में 20 लाख कर्मचारी हैं। जो खतरनाक जगह पर काम करते हैं। जिसमें मरने की संभावना अधिक होती है। एक रिपोर्ट के अनुसार 59 हजार कर्मचारियों की पहचान रजिस्टर है। ऐसे कैसे हो सकता है कि पूरे देश में सिर्फ 49 हजार ही सफाई कर्मचारी साफ सफाई कर रहे हैं। इनकी संख्या काफी अधिक है। एक रिपोर्ट यह कह रही है कि 50 लाख लोग काम कर रहे हैं। दूसरी तरफ सरकार 49 हजार बता रही है। जब तक यह ही नहीं पता होगा, कि कर्मचारियों की संख्या कितनी है। तब तक मुआवजा कैसे उन तक पहुंचेगा। अब तक यह मुआवजा कितने लोगों को मिला है, और कब मिलेगा। इसकी जानकारी क्यों नहीं देती सरकार। सिर्फ कहने से मुआवजा नहीं हो जाएगा...? इसके लिए कुछ ठोस कदम भी उठाने होंगे।"

राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त और विकास निगम (एनएसकेएफडीसी) के डेटा की बात करें तो, इसमें 58,098 व्यक्तियों को मैला ढोने वालों के रूप में पहचाना गया है। इसके बावजूद, 766 में से केवल 530 जिलों ने खुद को मैला ढोने से मुक्त घोषित किया, जो व्यापक सर्वेक्षण करने में सरकार की विफलता को उजागर करता है।

सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री, रामदास अठावले ने लोकसभा को संबोधित करते हुए स्वीकार किया कि 2018 और नवंबर 2023 के बीच, सीवर और सेप्टिक टैंक सफाई कर्तव्यों का पालन करते हुए 443 व्यक्तियों ने अपनी जान गंवा दी। हालाँकि, सफाई कर्मचारी आंदोलन जैसे संगठनों के विरोधाभासी आंकड़े इस अवधि के दौरान 1,760 मौतों की रिपोर्ट करते हैं।

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