दलित-आदिवासी सरकारी कर्मचारियों को पदोन्नति नहीं देना चाहती MP सरकार, जानिए क्या है कारण?

सात सालों से फाइलों में कैद पदोन्नति नियम, 60 हजार एससी/एसटी कर्मचारियों को प्रोमोशन का इंतजार।
दलित-आदिवासी सरकारी कर्मचारियों को पदोन्नति नहीं देना चाहती MP सरकार, जानिए क्या है कारण?

भोपाल। मध्य प्रदेश सरकार दलित-आदिवासी सरकारी कर्मचारियों के हितों की अनदेखी कर रही है। अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के कर्मचारी 16 वर्षों से प्रमोशन की आस में बैठे हैं। बावजूद इसके 'गोरकेला समिति' द्वारा बनाए गए पदोन्नति नियम 2016 को राज्य सरकार अभी तक लागू नहीं कर पाई। पदोन्नति में आरक्षण नियम लागू नहीं होने से एससी/एसटी वर्ग के करीब 60 हजार अधिकारी, कर्मचारियों की पदोन्नति नहीं हो पा रही है।

दरअसल, साल 2017 में नवीन पदोन्नति नियम का ड्राफ्ट तैयार हो चुका है। गोरकेला समिति ने ड्राफ्ट तैयार कर राज्य सरकार के सामान्य प्रशासन (कार्मिक) विभाग को सौंप दिया था, लेकिन 6 साल बीत गए सरकार पदोन्नति नियम को कैबिनेट में तक नहीं रख पाई। इससे साफ जाहिर होता है कि सरकार अनुसूचित जाति व जनजाति के अधिकारों के प्रति गंभीर नहीं है।

मध्यप्रदेश अनुसूचित जाति जनजाति अधिकारी कर्मचारी संघ (अजाक्स) ने वर्ष 2012 में पदोन्नति में आरक्षण दिए जाने की मांग शुरू की थी। अजाक्स ने सैकड़ों धरने जिला, संभाग और प्रदेश स्तर पर किए थे। आंदोलन तेज होते देख तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल में 12 जून 2016 को अजाक्स के प्रांतीय अधिवेशन में घोषणा कर कहा था कि पदोन्नति में आरक्षण हर हाल में जारी रहेगा, उसके लिए यदि नियम बनाना होगा तो नियम बनाया जाएगा।

मुख्यमंत्री द्वारा की गई उक्त घोषणा के पालन के लिए सरकार ने गोरकेला समिति का गठन किया था। सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता एवं मध्यप्रदेश के स्पेशल कॉउंसिल मनोज गोरकेला ने नवीन पदोन्नति नियम का ड्राफ्ट तैयार कर सरकार को सौंप दिया था। सरकार की ओर से अधिवक्ता मनोज गोरकेला ने प्रमोशन में आरक्षण दिए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में पैरवी भी की थी।

द मूकनायक से बातचीत करते हुए अजाक्स के प्रांतीय प्रवक्ता विजय श्रवण ने कहा कि उस वक्त सरकार प्रोमोशन में आरक्षण लागू करने के पक्ष में थी। सरकार ने हर तरह से मदद भी की, लेकिन अब नियम बनने के बाद उसको लागू क्यों नहीं किया जा रहा है। श्रवण ने कहा कि यह नियम लागू होने से सभी को फायदा होगा। एससी/एसटी सहित ओबीसी और सामान्य वर्ग के अधिकारी कर्मचारियों को भी इसका सीधा लाभ मिलेगा। सरकार को गोरकेला समिति के प्रामोशन नियम 2016 ड्राफ्ट को प्रभावी करना चाहिए।

2008 में लगा था पदोन्नति में आरक्षण प्रतिबंध

हाईकोर्ट ग्वालियर में पदोन्नति में आरक्षण दिए जाने के मामले में चुनौती दी गई थी। कोर्ट में पदोन्नति नियम 2002 में रिजर्वेशन मैरिट के आधार पर प्रोमोशन देना विधि विरुद्ध बताया गया था। हाईकोर्ट ग्वालियर ने इस मामले में सुनवाई करते हुए 2008 में पदोन्नति में आरक्षण पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसको लेकर 2006 में याचिका दायर की गई थी।

सवाल यह भी है कि केस में सुनवाई के दौरान यदि सरकार की पैरवी मजबूत होती तो शायद प्रमोशन में आरक्षण पर प्रतिबंध नहीं होता। हाईकोर्ट के फैसले के विरुद्ध सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, अधिवक्ता मनोज गोरकेला ने सरकार की तरफ से केस लड़ा। सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में प्रमोशन में आरक्षण पर राज्य शासन को नियम बनाकर लाभ देने और नौकरी में प्रमोशन संबंधी स्वतंत्र किए जाने के निर्देश दिए, जिसके बाद बनी गोरकेला समिति के नवीन पदोन्नति नियम को बनाया जो आजतक लागू नहीं किया गया।

60 हजार कर्मचारी कतार में

मध्य प्रदेश में एक अनुमान के मुताबिक करीब सात लाख अधिकारी, कर्मचारी हैं, जिनमें से अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के करीब 60 हजार कर्मचारी पदोन्नति की कतार में हैं। पदोन्नति पर प्रतिबंध होने के कारण इन सभी को प्रमोशन का लाभ नहीं मिल पा रहा है। इसके अतिरिक्त 2006 से वर्तमान वर्ष तक सैकड़ों की संख्या में आरक्षित वर्ग के कर्मचारी बगैर प्रमोशन के ही सेवानिवृत्त हो गए।

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