UP: शहरों में नियुक्त सफाई कर्मियों का कैसे शोषण कर रहे सर्विस प्रोवाइडर?

यूपी विधानसभा में बजट सत्र के दौरान विधायक ने बताया कि बेरोजगारी इतना है कि शोषण होने के बावजूद भी सफाईकर्मी की नियुक्ति के लिए सर्विस प्रोवाइडर को सिफारिश के साथ 40-50 हजार रुपए भी पैसे देने पड़ते हैं।
सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीरफोटो साभारl: SAJJAD HUSSAIN/AFP via Getty Images

उत्तर प्रदेश। यूपी विधानसभा बजट सत्र के दौरान चर्चा में बस्ती जिले के रुधौली विधानसभा विधायक राजेन्द्र प्रसाद चौधरी ने नगर पंचायतों और नगर निगमों में सफाई कर्मियों के वेतन और उनके साथ हो रहे शोषण की पोल खोल दी। विधायक ने यूपी कैबिनेट के श्रम एवं सेवायोजना, समन्वय मंत्री अनिल राजभर से सवाल करते हुए पूछा कि ग्रामीण क्षेत्रों में नियुक्त सफाईकर्मियों और नगर पंचायतों और नगरपालिकाओं में नियुक्त सफाई कर्मियों के वेतन में भारी असमानता क्यों है, जबकि शहरी क्षेत्रों के सफाईकर्मी उतनी ही मेहनत करते हैं। 

समाजवादी पार्टी (सपा) विधायक राजेन्द्र प्रसाद चौधरी ने नगर निकायों में ठेके पर नियुक्त सफाईकर्मियों के वेतन पर चिंता जाहिर करते हुए बताया कि, “सर्विस प्रोवाइडर के माध्यम से जो नियुक्तियाँ हो रहीं हैं इसमें शोषण हो रहा है। सरकार अकुशल मजदूरों को 10,575, अर्ध कुशल मजदूरों 11,303 और कुशल मजदूरों को 12,666 रुपए दे रही है। जबकि सर्विस प्रोवाइडर के माध्यम से लिए गए सफाई कर्मियों का वेतन 366.14/प्रतिदिन निर्धारित (अर्ध कुशल और कुशल मजदूरों से भी कम) है। इसमें भी 30 दिन की जगह सिर्फ 26 दिन का वेतन दिया जाता है। इस वेतन से पीएफ भी काट लिया जाता है।”

“लेकिन जो सर्विस प्रोवाइडर के लोग हैं वह तो उद्योगपति बनते जा रहे हैं। अगर एक सर्विस प्रोवाइडर एक हजार लोगों को नौकरी दिया तो कम से कम उसे 10 प्रतिशत अतिरिक्त (10 लाख रुपए प्रति माह) मिलता है। जबकि सफाईकर्मी लगभग आठ हजार ही पा रहा है। लेकिन बिचौलिया बना सर्विस प्रोवाइडर पैसा कमा रहा है,” विधायक राजेन्द्र प्रसाद चौधरी ने विधानसभा में कहा। 

यूपी विधानसभा के बजट सत्र में अपने सवालों के बारे में बात करते रुधौली विधायक राजेन्द्र प्रसाद चौधरी
यूपी विधानसभा के बजट सत्र में अपने सवालों के बारे में बात करते रुधौली विधायक राजेन्द्र प्रसाद चौधरीफोटो साभार- विधानसभा Youtube चैनल

विधायक ने बताया कि बेरोजगारी इतना है कि शोषण होने के बावजूद भी सफाईकर्मी की नियुक्ति के लिए सर्विस प्रोवाइडर को सिफारिस के साथ 40-50 हजार रुपए भी पैसे देने पड़ते हैं। 

प्रदेश में शहरी निकायों में सफाईकर्मियों के वेतन विसंगति के साथ-साथ विधायक ने आंगनवाड़ी, रसोईयों, आशा बहु, केयरटेकर, आशा संगिनी जैसे कर्मियों के बहुत कम वेतन पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि उक्त लोगों का मासिक वेतन अर्ध कुशल और कुशल मजदूरों से भी काफी कम है। जिससे उनका जीवन दयनीय होता जा रहा है। इसलिए सर्विस प्रोवाईडर्स द्वारा सफाई कर्मियों का किया जा रहा आर्थिक दोहन बंद कराया जाए, और उन्हें उचित वेतन दिया जाए। 

“जो गांव में सफाई कर्मचारी हैं वह 35 से 40 हजार रुपए वेतन पा रहे हैं, जबकि उसी काम का नगर पंचायतों और नगर पालिकाओं के सफाई कर्मियों को 8200- 8500 ही वेतन मिल रहा है। उससे उनका जीवनयापन मुश्किल हो गया है”, सफाई कर्मियों के वेतन असमानता पर ध्यान देने के लिए विधायक ने विधानसभा अध्यक्ष से आग्रह किया। उन्होंने सवाल किया कि, “क्या सरकार सर्विस प्रोवाइडर की व्यवस्था बंद कर सफाई सफाई कर्मचारियों को मानदेय पर नियुक्ति देगी?”

यूपी के बस्ती जिले के एक सफाई कर्मचारी ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर द मूकनायक को बताया कि, "साढ़े आठ हजार के वेतन में हम लोगों का परिवार नहीं चल पाता है. मजबूरी में कोई कर भी क्या सकता है..! इतना बेरोजगारी है, ऐसे में जो मिल रहा है उसी में काम चला रहे हैं. कई बार कर्जा लेकर भी काम चलाना पड़ता है."

विधायक राजेन्द्र प्रसाद के सवाल पर श्रम एवं सेवायोजना, समन्वय मंत्री अनिल राजभर ने जवाब देते हुए कहा कि, “बहुत पारदर्शी तरीके से सरकार ने पोर्टल की व्यवस्था कर रखी है। जिनको जैसी आवश्यकता है वह वहां से लोगों को आउटसोर्स कर सकता है। इस व्यवस्था को समाप्त करने की ऐसी कोई योजना नहीं है। आउटसोर्स से आने वाला कर्मचारी कम समय के लिए आता है। आउटसोर्स के कर्मचारी किसी कंपनी के एंप्लॉय हैं, इसलिए हम उनको अपनी सरकारी सेवाओं में सेवायोजित नहीं कर सकते हैं।”

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