चेन्नई - तमिलनाडु का द्रविड़ शासन मॉडल, हाशिये के समाज के लोगों के लिए परेशानियां खड़ी कर रहा है, प्रदेश के सरकारी स्कूलों में शौचालयों की सफाई करने वाले कर्मचारी बेहद कम वेतन पर काम करते हैं, और अब छह महीने से बिना सैलरी के गुजारा कर रहे हैं। यह स्थिति न केवल उनके जीवन-यापन को मुश्किल बना रही है, बल्कि उनकी गरिमा और अधिकारों पर भी बड़ा सवाल खड़ा कर रही है। ग्रामीण इलाकों में बेहद कम वेतन पर गुजारा करने वाले सफाई कर्मियों को बीते 6 माह से सैलरी नहीं मिली है।
सरकारी स्कूलों के 30,000 से अधिक सफाईकर्मी, जिनमें ज्यादातर महिलाएं हैं, पिछले छह महीने से वेतन न मिलने की समस्या का सामना कर रहे हैं। बताया जाता है कि ग्रामीण विकास और पंचायत राज विभाग द्वारा धनराशि जारी न किए जाने के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई है। सफाईकर्मियों को वेतन के रूप में मात्र ₹1,000 (प्राथमिक स्कूल), ₹1,500 (माध्यमिक स्कूल), और ₹3,000 (उच्च माध्यमिक स्कूल) दिए जाते हैं, जो उनके लिए सम्मानजनक जीवन जीने के लिए पर्याप्त नहीं है।
टीएनआईई की एक रिपोर्ट में कल्लाकुरिची जिले के संकरापुरम ब्लॉक की 55 वर्षीय के. सोलाची कहती हैं कि वह पिछले 10 वर्षों से अपने गांव के एक माध्यमिक स्कूल में काम कर रही हैं। उन्होंने कहा, “पिछले साल पंचायत ने 12 में से केवल छह महीने का वेतन दिया था। इस साल की शुरुआत से अब तक कोई वेतन नहीं मिला है। मुझे पिछले 12 महीनों के ₹18,000 अभी तक नहीं मिले। इस कारण मैं अपनी भोजन और दवा की जरूरतें पूरी नहीं कर पा रही हूं और स्कूल के मध्याह्न भोजन पर निर्भर हूं।”
सोलाची जैसी हजारों महिलाएं राज्यभर में इसी समस्या का सामना कर रही हैं। कई महिलाएं अपने बच्चों की पढ़ाई जारी रखने के लिए काम छोड़ने का साहस नहीं कर पा रही हैं क्योंकि उनके बच्चे उन्हीं स्कूलों में पढ़ते हैं।
कोयंबटूर के थोंडामुथुर ब्लॉक के एक पंचायत संघ माध्यमिक स्कूल के प्रधानाध्यापक ने बताया कि पंचायत से पिछले 18 महीनों से सफाईकर्मियों के वेतन के लिए धन नहीं मिला है। उन्होंने कहा, "हमारे स्कूल में दो शौचालय हैं। मैंने अपनी सैलरी से हर महीने एक सफाईकर्मी को ₹3,000 का भुगतान किया है।"
कई अन्य स्कूलों में भी शिक्षकों और प्रधानाध्यापकों को शौचालय की सफाई और रखरखाव के लिए अपनी जेब से पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं।
कल्लाकुरिची के सामाजिक कार्यकर्ता के. तिरुपति ने बताया कि अधिकारियों से बार-बार अपील के बावजूद समस्या का कोई समाधान नहीं हुआ है। वे कहते हैं, "सफाईकर्मियों को मिलने वाला वर्तमान वेतन ₹1,000 बेहद कम है। इसे कम से कम ₹5,000 किया जाना चाहिए ताकि वे सम्मानजनक जीवन जी सकें।"
द कम्यून की रिपोर्ट के मुताबिक तमिलनाडु प्राथमिक विद्यालय शिक्षक महासंघ के आर. कनगराज बताते हैं कि इस शैक्षणिक वर्ष के लिए वेतन या शौचालय रख-रखाव के लिए कोई बजट आवंटित नहीं किया गया है। पहले जो ₹300 सफाई सामग्री के लिए आवंटित किए गए थे, वह भी अब उपलब्ध नहीं हैं, जिसके कारण शिक्षकों को इन खर्चों को अपने ऊपर उठाना पड़ रहा है।
कोयंबटूर के एक ब्लॉक विकास अधिकारी ने पुष्टि की कि ग्रामीण विकास विभाग से फंड मार्च से रोक दिए गए हैं। उन्होंने बताया कि जिले के 671 सरकारी स्कूलों के वेतन और रख-रखाव के लिए लगभग ₹80 लाख वार्षिक आवश्यकता है, जो फिलहाल पंचायत फंड की कमी के कारण उपलब्ध नहीं है।
कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकारी स्कूलों में दाखिला बढ़ाने के लिए साफ-सफाई की व्यवस्था सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है। इसके लिए न केवल सफाईकर्मियों के वेतन में वृद्धि करनी होगी, बल्कि उन्हें समय पर भुगतान भी करना होगा। सरकार को चाहिए कि वह इस समस्या का स्थायी समाधान निकालकर शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों क्षेत्रों में सुधार करे।
सोशल वर्कर्स कहते हैं कि सफाईकर्मियों की दुर्दशा तब और उजागर हुई जब इस साल 21 अक्टूबर को डीएमके सरकार ने राज्य के TASMAC कर्मचारियों को ₹16,800 तक का बोनस देने की घोषणा की, लेकिन सफाईकर्मियों की समस्याओं को नजरअंदाज कर दिया। यह मुद्दा पहले कोयंबटूर में उभरा और बाद में तूतीकोरिन जिले तक फैल गया, जहां सफाईकर्मी कलेक्ट्रेट कार्यालय के बाहर इकट्ठा होकर अपने वेतन की मांग करने लगे।
इधर इस मामले में ग्रामीण विकास और पंचायत राज विभाग के निदेशक पी. पोनैया ने कहा कि वे जल्द ही फण्ड जारी करने के लिए कदम उठा रहे हैं।
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